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शिअद प्रमुख सुखबीर के खिलाफ प्राथमिकी रद्द करने संबंधी आदेश के विरुद्ध अपील खारिज

नई दिल्ली (भाषा)। उच्चतम न्यायालय ने शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ 2021 में दर्ज एक प्राथमिकी को रद्द करने के पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली पंजाब सरकार की अपील आज खारिज कर दी। बादल के खिलाफ प्राथमिकी महामारी रोग अधिनियम, 1897 के तहत […]

नई दिल्ली (भाषा)। उच्चतम न्यायालय ने शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ 2021 में दर्ज एक प्राथमिकी को रद्द करने के पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली पंजाब सरकार की अपील आज खारिज कर दी।

बादल के खिलाफ प्राथमिकी महामारी रोग अधिनियम, 1897 के तहत और लोकसेवक के आदेश की अवज्ञा करने, बाधा उत्पन्न करने, आपराधिक धमकी देने और गैरकानूनी गतिविधियों के आरोप में दर्ज की गई थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने अमृतसर जिले के ब्यास शहर में एक निजी कंपनी के खनन कार्यों में बाधा डाली थी।

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने आश्चर्य जताया कि मामले में शिकायतकर्ता ने शीर्ष अदालत का दरवाजा क्यों नहीं खटखटाया और केवल राज्य सरकार ने प्राथमिकी को रद्द करने के उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील क्यों की।

यह उल्लेख करते हुए कि यह ‘निस्संदेह एक फर्जी मामला’ था, पीठ ने पंजाब सरकार के वकील से कहा, ‘सिर्फ इसलिए कि एक व्यक्ति, जो एक राजनीतिक नेता है, घटनास्थल का निरीक्षण करने या कुछ और करने के लिए वहां गया था, उस पर मामला दर्ज किया गया था। अपराध का कोई आरोप नहीं बनता है।’

वकील ने जब दलील दी कि उच्च न्यायालय ने गलत तरीके से प्राथमिकी को रद्द कर दिया, तो पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने दस्तावेज़ का अध्ययन किया और पाया कि कोई भी अपराध नहीं बनता है।

न्यायमूर्ति ओका ने कहा, ‘दिलचस्प बात यह है कि शिकायतकर्ता एक खनन कंपनी है और उसने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील नहीं की है। केवल राज्य सरकार ने इसे चुनौती दी है। क्यों?’

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप का कोई मामला नहीं बनता है। विशेष अनुमति याचिका खारिज की जाती है।’

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 4 अगस्त, 2023 को राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री बादल के खिलाफ एक जुलाई, 2021 को ब्यास थाने में दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया था।

अभियोजन ने दावा किया कि बादल ने खनन कंपनी के कर्मचारियों को धमकी दी और इसके कानूनी संचालन में बाधा डाली। उस समय कोविड-19 रोधी प्रतिबंध भी लागू थे।

उच्च न्यायालय ने प्राथमिकी को रद्द करते हुए कहा कि बादल पर मुकदमा चलाने का कोई मामला नहीं बनता है। इसने बादल के इस दावे पर गौर किया गया कि उन्होंने पर्यावरण की दृष्टि से अतिसंवेदनशील नदी क्षेत्र में अवैध खनन के आरोपों की जमीनी हकीकत की जांच करने के लिए मौके का दौरा किया था।

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