कुमार विजय
ग्राउंड रिपोर्ट
शिवपुर स्टेशन के बाहर बसा बांसफोर समाज चालीस साल से तलाश रहा है अपनी पहचान
इस समाज का यक्ष प्रश्न भी महसूस होता है कि पिछले लगभग पचास सालों से वाराणसी शहर के शिवपुर में रहने वाले लोग आखिर कैसे बिना किसी नागरिकता पहचान के पिछले चालीस से ज्यादा सालों से रह रहे हैं? इस समाज के लोगों के पास आधार, राशन कार्ड जैसी कोई पहचान नहीं है, अपनी कोई जमीन नहीं है, इसलिए जमीन का भी कोई कागज नहीं है।
ग्राउंड रिपोर्ट
स्मृतियों को विलोपन से बचाते लीजेन्ड डॉ अर्जुनदास केसरी
सोनभद्र यात्रा – 3
उम्मीद करता हूँ कि सोनभद्र की मेरी इस यात्रा की पहली और दूसरी शृंखला अब तक आप पढ़ चुके होंगे नहीं...
राजनीति
एक नया राजनीतिक अध्याय साबित हो सकती है बिहार की जाति जनगणना
गांधी जयंती पर बिहार सरकार ने जाति जनगणना के आंकड़े जारी करके भारतीय राजनीति और सामाजिक बदलाव के एक नए अध्याय की शुरुआत कर...
ग्राउंड रिपोर्ट
गंगा कटान पीड़ितों की आवाज उठाने के लिए पाँच दिवसीय यात्रा पर निकले मनोज सिंह
चंदौली जिले में लगभग 73 गाँव गंगा के कटान से प्रभावित हैं। इन गांवों के बहुत से किसान कटान की वजह से अब पूरी तरह से खेतविहीन हो चुके हैं। उनके पूरे के पूरे खेत गंगा में समाहित हो गए हैं। इन किसानों को ना तो बदले में कहीं दूसरी जमीन मिली ना ही सरकार की ओर से कोई मुआवजे का प्रावधान हुआ।
ग्राउंड रिपोर्ट
वाराणसी : ऊ कलाकारी करके का करें, जिसके सहारे परिवार का पेट ही ना पले
बुनकरों का कहना है कि सरकार मंहगाई रोक ही नहीं पा रही है। इतनी मंहगाई है कि आदमी शौक को दबाकर चूल्हा-चक्की के फेर में उलझा हुआ है। बनारसी हैंडलूम की साड़ियाँ महँगी होती हैं। अब बनाने वालों की मजदूरी ही जब आठ-दस हजार चली जाएगी, तब खुद ही सोचिए कि साड़ियाँ बनकर जब बाजार में जाएगी तब कितने की पड़ेगी। बुनकरों का यह सवाल वाजिब है।
ग्राउंड रिपोर्ट
कभी ऊन से दून और अब उखड़ती सांस, भदोही कालीन व्यवसाय का हाल कैसे हुआ बेहाल
भदोही कालीन उद्योग शृंखला - 1
भदोही। ‘यह देखिये।’ हमारे दिशा-निर्देशक कवि कर्मराज किसलय ने एक बाइक पर काती (ऊन) लादे लिए जा रहे है...
संस्कृति
सिनेमा में भारत-पकिस्तान विभाजन की त्रासदी
भारत-पाकिस्तान विभाजन को कई बार और कई-कई तरह से हिन्दी सिनेमा के साथ पाकिस्तानी सिनेमा ने भी पर्दे पर उतारा है। इतिहास यात्रा की इस परिघटना ने हिन्दी सिनेमा को कुछ महत्वपूर्ण फिल्में दी हैं। जिनमें विस्थापन की व्यथा-कथा बहुत ही मार्मिक तरीके से दर्ज है।
लोकल हीरो
वाराणसी : संघर्ष के धागे से ज्ञान की कायनात बुनते शैक्षिक शिल्पकार हैं सुरेन्द्र प्रसाद सिंह
यही वह प्रस्थान बिंदु बना जिसने एक नए सुरेन्द्र प्रसाद सिंह को रचना, गढ़ना शुरू किया। जिले के अन्य शिक्षक जहां इस सर्वे का प्रारूप ही नहीं तैयार कर पा रहे थे वहीं सुरेन्द्र प्रसाद सिंह ने सर्वे का पूरा फार्मेट सेट कर दिया था। इनके बनाये हुये सर्वे का फार्मेट ही सर्वे का माडल पत्र बन गया। उसी प्रारूप को प्रिंट कराकर पूरे जिले में वितरित किया गया। यह सर्वजनिक जीवन में पहला ऐसा बड़ा काम था जिसकी प्रसंशा की गई और सुरेन्द्र प्रसाद सिंह वाराणसी शिक्षा विभाग की एक नई उम्मीद भी बने।
ग्राउंड रिपोर्ट
राम का नाम भी नहीं आया काम, नौ साल से सड़क बनाने के लिए जारी है संघर्ष
गाजीपुर जिले की सिधौना बाज़ार की मुख्य सड़क पिछले 8-10 वर्षों से उपेक्षा की शिकार रही है। उत्तर प्रदेश की वर्तमान बीजेपी की सरकार भले ही बारिश शुरू होने से पहले सडकों को गड्ढा मुक्त करने का फरमान जारी करती है लेकिन गड्ढा मुक्ति का उसका अभियान अभी फेल ही नजर आ रहा है।
ग्राउंड रिपोर्ट
जाने कब से जमीन तलाश रही है बांस की खपच्चियों में उलझी हुई ज़िंदगी
यही झोंपड़ा उसका घर है, पर इसे घर भी भला कैसे कहा जा सकता है? बस पन्नियों का एक पर्दा भर है, इंसानों से भी और आसमान से भी। पन्नियों को ही पर्दे सा घेर लिया गया है और फिलहाल यही इनका घर है।
पूर्वांचल
हक़ की हर आवाज़ पर पहरेदारी है और विकास के नाम पर विस्थापन जारी है
[भव्यता के ख्वाब तले कुचले जा रहे स्वपन अब एक बड़े वर्ग की आँखों में चुभने लगे हैं। लोग दर्द में हैं और हक़ की आवाज पर सरकार की पहरेदारी है। धमकियाँ हैं। बावजूद इसके लोग अब भी लड़ रहे हैं। जब तक लोग लड़ रहे हैं तब तक उम्मीद जिंदा है। इस जिंदा उम्मीद के लिए न्याय की नियति क्या होगी, भविष्य क्या होगा, इस पर अभी तो प्रश्नवाचक का पेंडुलम वैसे ही झूल जा रहा है, जैसे समय के साथ चलने वाली घड़ी के बंद हो जाने पर उसका पेंडुलम खामोशी से झूलता रहता है और इंतजार करता रहता है कि कभी तो कोई उसकी चाभी भरकर उसे चला देगा।
सामाजिक न्याय
क्या मणिपुर में नागा, कूकी और मैतेई विवाद एक सांप्रदायिक भविष्य का संकेत है
जिस आग में आज मणिपुर जल रहा है, उसकी चिंगारी दशकों पहले ही बोई जा चुकी थी। राजनीतिक सत्ता हथियाने के लिए बुना गया यह जाल आज भले ही जातीय बंटवारे की त्रासदी दिखा रहा है पर भविष्य में यह संघर्ष साम्प्रदायिक रंग जरूर ओढ़ेगा। अंतर सिर्फ इतना होगा कि यहाँ हिन्दू बनाम मुसलमान नहीं होगा बल्कि यहाँ हिन्दू बनाम ईसाई होगा। घृणा के इस तूफान में मणिपुर को तबाह करने वाले नेता अभी अधजली लाशों के लिए वक्त से शोक गीत लिखवा रहे हैं। आज रचे जा रहे शोक गीतों से आने वाले कल में एक राजनीतिक विभाजक रेखा खींच दी जाएगी ताकि नए बाहुल्य से नई सत्ता की बुनियाद रखी जा सके।
सामाजिक न्याय
एक तीली आग जो ताउम्र शिक्षा का दिया जलाती रही
न्यायमूर्ति राम प्रसाद यादव का देहावसान तमाम वंचित लोगों की उम्मीद का अवसान है। उनके चले जाने से तमाम आँखों की उम्मीद का रंग धूमिल हो गया है। न्यायमूर्ति राम प्रसाद सिर्फ व्यक्ति नहीं, बहुत से लोगों का विश्वास भी थे, जिस विश्वास के सहारे एक सम्मानजनक भविष्य की बुनियाद रखी जा सकती थी। अब यह उम्मीद तिरोहित हो चुकी है। शेष सिर्फ स्मृतियाँ हैं। यह स्मृतियाँ लंबे काल खंड तक उनके शैक्षिक उत्थान के प्रयास और सार्थक सामाजिक सरोकारों की कीर्तिध्वजा फहराती रहेंगी।
ग्राउंड रिपोर्ट
टूटी सीढ़ियों पर ख्वाबों के पंख लगाकर चल रहे हैं लोग
लाखों की संख्या में यहाँ लोग रहते हैं। हिन्दू, क्रिश्चियन के साथ अच्छी संख्या मे मुस्लिम आबादी भी यहाँ है। यहाँ के ज्यादातर लोग मध्यवर्गीय या निम्न मध्यवर्गीय समाज से हैं। यह वह समाज है जो एडजस्ट करने का हुनर पेट से लेकर ही पैदा होता है। पानी की सप्लाई लाइन बिछी हुई है पर पानी कभी-कभार ही आता है। जिसकी वजह से पानी यहाँ का सबसे बड़ा बिज़नस बना हुआ है। घरेलू कामों के लिए टैंकर से पानी का व्यापार चल रहा है तो प्यास बुझाने के लिए प्यूरीफाई पानी बोतलों में बंद कर बेंचा जा रहा है। शायद दुर्भाग्य ही है कि यहाँ के लोगों को अभी कोई ऐसा नेता नहीं मिला है जो इनके हित में संघर्ष कर सके।