बलिया। ‘यही कोई 27/28 बरस पहले यह सड़क (नहर की पटरी के बगल से गुजरे मार्ग की ओर इशारा करते हुए) बनी हुई है। इसके बाद तो हमनी के नहीं देखली कि सड़क बन रहील बा…। ’
यह कहते हुए 58 वर्षीय दीनदयाल कुछ देर के लिए रूकते हैं मानों दिमाग पर जोर देते हुए कुछ याद करने की कोशिश कर रहे हों। फिर थमते हुए कहते हैं ‘नहर की पटरी से लगने वाले मार्ग पर सड़क (पीच) न होने से झाड़-झंखाड़ उग आए हैं। ऐसे में इधर से लोगों का आना जाना भी बाधित हो गया है। आवागमन थमा तो जंगली झाड़ियों ने विस्तार कर इसे पूरी तरह से अपने आगोश में ले लिया है।’
दीनदयाल की बातों का समर्थन कराते हुए नहर पटरी की बदहाली की बाबत नन्द किशोर कहते हैं ‘तकरीबन 27 साल हो गए हैं सड़क न तो बनी है ना ही दिखलाई देती है। इतने सालों में हमने कभी इस सड़क को बनते हुए भी नहीं देखा है।’
वह कहते हैं नहर के दोनों ओर उग आए बड़े-बड़े झाड़-झंखाड़, ऊपर से जहरीले जीव जंतुओं का बना भय रात क्या दिन के उजाले में भी इधर से आवागमन में लोगों के साहस को तोड़ कर रख देता है।
बदहाली, पिछड़ेपन की यह तस्वीर उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद के सुखपुरा इलाके की है। जो तकरीबन तीन दशक से यथावत चली आ रही है। जिसकी ओर झांकने की फुर्सत न तो जनप्रतिनिधियों को है और ना ही संबंधित विभाग के पास है। मज़े की बात तो यह है कि सुखपुरा जिला मुख्यालय से तकरीबन 12 किमी की ही दूरी पर स्थित है। बावजूद इसके किसी की नजरें इस ओर इनायत नहीं हो रही हैं।
इलाके के मानचित्र से है बाहर
देखा जाय तो उत्तर प्रदेश में भाजपा की योगी आदित्यनाथ सरकार अक्सर नगर से लेकर गांव तक सड़कों का जाल बिछाए जाने का दावा करती रहती है। लेकिन जमीनी हकीकत परखी जाए तो आज भी कई ऐसे गांव और मज़रे हैं जो बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। इनमें इस नहर से लगने वाली यह सड़क भी शामिल है। इस पर धूल की जमीं परतें कब हटेंगी यह एक बड़ा सवाल है ? लेकिन गाँव के लोग जो अभी भी इस सड़क के बनाने की उम्मीद पाले हुए हैं, उनकी उम्मीदें भी अब टूटने लगी हैं।
स्थानीय ग्रामीणों की माने तो नहर विभाग सहित ग्राम पंचायत और जिला पंचायत जिनके अधिकार क्षेत्र में यह आता है उनके द्वारा भी इसकी उपेक्षा होती आई है। पिछले लोकसभा चुनाव में इसका मुद्दा उठा था, तो जांच कराए जाने और जनसुविधा को देखते हुए पीच सड़क का निर्माण कराने की बात कही गई थी, लेकिन चुनाव बीतते ही इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
ग्रामीण भी किसी पचड़े में न फंसने की बात कहते हुए टका सा जवाब देकर चलते बनते हैं कि ‘जिसकी जिम्मेदारी बनती है वही कुछ नहीं करते तो हम क्यों बोले?
लंबा रास्ता तय करना पड़ता है ग्रामीणों को
नहर की पटरी पर सड़क निर्माण न होने से ग्रामीणों को भारी दिक्कतों का का सामना पड़ रहा है। एक किलोमीटर जाने के पाँच किलोमीटर जाना पड़ता है। गाँव के लोगों को खेतों में ट्रैक्टर ले आने जाने में भी काफी डिककटे हो रही हैं। ग्रामीणों का कहना है कि सड़क न होने से किसी आपातकालीन स्थिति में जैसे कोई बीमार हो गया, या कोई महिला प्रसव पीड़ा से पीड़ित है तो ऐसी स्थिति समस्या और भी जटिल हो जाती है।
नंदकिशोर की माने तो उनकी उम्र लगभग 27 वर्ष हो गई है, लेकिन कभी इस नहर की पटरी पर सड़क का निर्माण नहीं होते देखा। जब से उन्होंने होश संभाला है नहर पर न तो आवागमन होते हुए देखा है और ना ही झाड़ियों की सफाई होते हुए। वह मज़ाकिया शब्दों में कहते हैं ‘हो सकता है हमारे जन्म से पहले बनी हो? जब से मैंने होश संभाला तब से तो मैंने इसे कभी बनते हुए नहीं देखा है। यह सड़क पूरी तरह से झाड़ झंखाड़ से घिरे होने के चलते एक किलो मीटर तक पूरी तरह से बंद है। इस पर आदमी पैदल तक नहीं जा सकता, बाइक से तो चलना दूर की बात है।
ग्रामीणों को इंतजार है एक ऐसे जीतन मांझी की जो ग्रामीणों की पीड़ा और पुकार को सुन समझ कर उनके आवागमन रूपी समस्या का समाधान कर इस पहाड़ पहाड़ से निजात दिला सकें।