बंगाल का अकाल और ख़्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म ‘धरती के लाल’
उषा वैरागकर आठले

ये मुद्दे उठे ‘धरती के लाल’ पर केंद्रित परिचर्चा में। भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) ने अपने संस्थापक सदस्य ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्मों के तत्कालीन और वर्तमान संदर्भों के बीच सेतु बनाने के लिए पाँच कड़ियों में उनकी छह फिल्मों पर विशेषज्ञों के साथ ऑनलाइन चर्चा आयोजित की। इसकी पाँचवीं और अंतिम कड़ी में इप्टा की पहली फिल्म ‘धरती के लाल’ पर केंद्रित जया मेहता, विनीत तिवारी और सारिका श्रीवास्तव ने प्रस्तुति दी।

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ. जया मेहता ने बंगाल के अकाल की पूर्व पीठिका बताते हुए सोलवीं शताब्दी से बीसवीं शताब्दी तक दुनिया के सबसे समृद्ध भू-भाग बंगाल के लोगों की बदहाली का भुखमरी की कगार तक पहुँचाने के लिए जिम्मेदार अंग्रेज शासन को ठहराया। तथ्यों और आंकड़ों के हवाले से उन्होंने बताया कि न केवल किसानों पर लगान छह गुना तक बढ़ा दिया गया था बल्कि धान की पैदावार को द्वितीय विश्वयुद्ध में लगने वाली फ़ौज के लिए इकट्ठा करके उन किसानों को ही अनाज से वंचित कर दिया गया था जिन्होंने अपने खून-पसीने से वो अनाज पैदा किया था। ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में बार-बार अकाल निर्मित होता रहा क्योंकि प्राकृतिक विपदा के समय भी बहुत क्रूरता के साथ टैक्स रेवेन्यू वसूल किया जाता था। ब्रिटिश शासनकाल द्वारा 1770 में बंगाल में पहली बार अकाल निर्मित किया गया, जिसमें तीन करोड़ की आबादी में से एक करोड़ लोग मौत के मुंह में समा गए। इसी अकाल की पृष्ठभूमि पर बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने ‘आनंदमठ’ उपन्यास लिखा था। गोदामों में अनाज बेतहाशा भरा पड़ा था जो अंग्रेजों और उनके चाकरों के लिए सुरक्षित कर लिया गया था और किसानों के पास अपने ही अनाज को खरीदने लायक पाई भी नहीं छोड़ी थी। आज अंग्रेजों का शासन नहीं है लेकिन कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग और विश्व व्यापारियों के समक्ष भारत के किसानों को फिर से खुली लूट के लिए छोड़ दिया गया है। हमें आज के किसान आंदोलन को पूरी तरह समर्थन देने और लुटेरों के खिलाफ साझा संघर्ष की प्रेरणा ‘धरती के लाल’ से आज भी मिलती है। मेरी दृष्टि में यह फिल्म अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ एक सशक्त कलात्मक प्रतिरोध है।
आज अंग्रेजों का शासन नहीं है लेकिन कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग और विश्व व्यापारियों के समक्ष भारत के किसानों को फिर से खुली लूट के लिए छोड़ दिया गया है। हमें आज के किसान आंदोलन को पूरी तरह समर्थन देने और लुटेरों के खिलाफ साझा संघर्ष की प्रेरणा 'धरती के लाल' से आज भी मिलती है।