सुप्रसिद्ध आलोचक चन्द्रबली सिंह की जन्म-शताब्दी के अवसर पर 20 अप्रैल को जनवादी लेखक संघ की ओर से अशोक मिशन, शिवपुर वाराणसी में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में शामिल सभी वक्ताओं ने चन्द्रबली सिंह से जुड़े मूल्यवान और दुर्लभ संस्मरण तो सुनाये ही, अनुवाद और आलोचना के क्षेत्र में किये गये उनके महत्वपूर्ण कार्यों पर प्रकाश भी डाला।
कार्यक्रम के दौरान इस बात की कमी महसूस की गयी कि बनारस के तीनों वाम लेखक संगठन चंद्रबली सिंह का जन्म शताब्दी वर्ष उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व के अनुसार मनाते तो ज्यादा अच्छा होता, लेकिन कुछ अज्ञात कारणों से शायद यह संभव नहीं हो पा रहा है। वैसे, अभी पूरा साल पड़ा हुआ है, साहित्य, समाज और वामपंथ के प्रति प्रतिबद्ध लोग इस पर विचार कर सकते हैं, क्योंकि चन्द्रबली सिंह बनारस की पहचान थे।
इस अवसर पर चंद्रबली सिंह से जुड़े संस्मरण सुनाये। बोले चंद्रबली सिंह को देखने-सुनने का भरपूर मौका मुझे मिला था। उनके पास बैठने से लगता था कि हम अपने संरक्षक के पास बैठे हैं। वे खुद चाय बनाकर पिलाते, दो-तीन घंटे तक देश, दुनिया, साहित्य और समाज पर अपने विचार रखते और जब हम चलने को होते, तो डांटती हुई हंसी के साथ कहते, बैठो अभी, एक बार और चाय बनाता हूं। इस स्वार्थान्धकार समय में ऐसी आत्मीयता अब सिर्फ स्मृतियों में ही बची हुई है।
इलाहाबाद गए थे आईएएस बनने साहित्यकार बनाकर लौटे
चंद्रबली सिंह इलाहाबाद तो गये थे आईएएस बनने, लेकिन मानवीय संवेदना ने बना दिया उन्हें साहित्यकार। बलवंत राजपूत कालेज आगरा में उन्हें उन रामविलास शर्मा का साथ मिला,जो प्राध्यापक के रूप में प्रतिदिन साइकिल की डंडी पर या पीछे कैरियर पर बिठा कर उन्हें कालेज ले जाते, लेकिन रामविलासजी के लाख मना करने के बावजूद वे बनारस खिंचे चले आये और उदयप्रताप कालेज में अध्यापकी करने लगे। चंद्रबलीजी अक्सर जिक्र करते थे कि रामविलासजी का कहना न मानना मेरा ‘हिमालयन ब्लंडर था।’
प्रेमचंद को भारतीय स्वाधीनता आंदोलन का सबसे बड़ा योद्धा मानते थे चंद्रबली सिंह
चंद्रबली सिंह की आलोचना की दो पुस्तकें हैं- लोक दृष्टि और हिन्दी साहित्य तथा आलोचना का जन पक्ष। जिस चंद्रकांता संतति को रामचंद्र शुक्ल खारिज कर चुके थे, उसमें चंद्रबलीजी ने ‘नये-नये उभरते समाज और भारत के भविष्य को देखा। ‘वे प्रेमचंद को भारतीय स्वाधीनता आंदोलन का सबसे बड़ा योद्धा मानते थे। साहित्यिक योद्धा, इस अर्थ में की प्रेमचंद का साहित्य साम्राज्यवाद, सामंतवाद और पूंजीवाद के विरुद्ध किसानों और मजदूरों के संघर्ष की पहचान कराता है। वे उन लोगों की कठोर आलोचना करते हैं, जो प्रेमचंद को देवता बनाकर पूजते हैं। वे प्रेमचंद के साहित्य को जनवादी यथार्थवाद कहना पसंद करते हैं। वे बच्चन और अज्ञेय की कविताओं के स्वर की पहचान करते हैं तथा पंतजी की अध्यात्मवादी और नरेंद्र शर्मा की निराशा में डूबी हुई कविताओं की आलोचना करते हैं।
रामविलास शर्मा की तरह निरालाजी उनके आदर्श हैं। कवि के रूप में जब त्रिलोचनजी की उपेक्षा हो रही थी, चन्द्रबली जी ने उनके सानेटों की भाषा-शक्ति तथा यथार्थ प्रकृति पर विस्तार से लिखा। उनका कहना था कि प्रगतिशील कवियों में शमशेर सबसे कम ‘आउट स्पोकेन’ हैं, सबसे ज्यादा नागार्जुन और केदारनाथ अग्रवाल हैं, इनके बाद त्रिलोचन का नाम आता है। मुक्तिबोध को वे ‘डिबेट’ वाले कवि मानते हैं, लेकिन जीवन को समग्रता में लेने की दृष्टि से मुक्तिबोध सबसे ऊंचे स्थान पर आयेंगे। उनका विचार था कि मुक्तिबोध की भाषा में अनगढ़पन है, जो हिन्दी की ‘स्पिरिट’ नहीं है, लेकिन कविताओं में जीवन के प्रतिबिंब की वजह से उनकी भाषा का अनगढ़पन छिप-सा जाता है। कवि को कविता की भाषा का संस्कार बनाना पड़ता है। आलोचक को भी कविता का संस्कार बनाना पड़ता है,यह निरंतर विकसित करने की बात है। वे धूमिल को ‘डेमोक्रेटिक पोएट’ मानते थे और कहते थे कि उन पर न लिखने का मेरे मन में एक अपराध बोध है।
चंद्रबली सिंह का कहना था कि कविता मानव-मुक्ति के लिए संघर्ष करना सिखाती है। समाज की तरह साहित्य में भी सुंदर और असुंदर की लड़ाई सदा से रही है। कभी-कभी ऐसे दौर भी आते हैं,जब असुंदर की जीत होती है, लेकिन सुंदर का पक्षधर होने के कारण साहित्य और कला जीवित रहते हैं। चंद्रबलीजी का मानना था कि आज मानवीय संवेदनाएं खत्म की जा रही हैं। आदमी का हृदय संकुचित होता जा रहा है। वर्तमान व्यवस्था साहित्य और कला को जीवन के यथार्थ से काटने की कोशिश कर रही है। वह लोगों के सामने सच्चाई को नहीं आने देना चाहती, इसलिए कला और साहित्य का कार्य आज ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया है। पाब्लो नेरुदा के संस्मरणों के आधार पर उनका कहना था कि कविता मनुष्य के मन में साथी का भाव जाग्रत करती है। वसंत में फूटने वाले नये अंकुर की तरह कला और साहित्य भी एक विद्रोह है। चंद्रबली सिंह का मानना था कि आदमी के सिद्धांत और व्यवहार में अंतर नहीं होना चाहिए। कविता में विचार दाल में नमक की तरह आये,तो ठीक होगा। कविता को सिद्धांत के प्रचार का माध्यम नहीं बनाना चाहिए।
चंद्रबली सिंह की निर्णय लेने की क्षमता, दृढ़ता और सहजता के सभी कायल थे
चंद्रबली सिंह किसी भी प्रकार के दिखावे वाले समारोह के सख़्त विरोधी थे, अपने मित्र रामविलास शर्मा की तरह। शुभचिंतकों के बार-बार आग्रह के बावजूद उन्होंने अपनी साठवीं, सत्तरवीं या पचहत्तरवीं जयंती मनाने से साफ इन्कार कर दिया था। उनकी निर्णय लेने की क्षमता, दृढ़ता और सहजता के सभी कायल थे। अपने विचारों के प्रति प्रतिबद्धता का सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि रामविलास शर्मा के सर्वहारा की तानाशाही का विरोध करने वाले लेख का प्रतिवाद करते हुए उन्होंने भी लेख लिखे। वे कहते थे कि रामविलास शर्मा की आलोचना में कई ‘ब्लाइंड स्पाट्स’ हैं। उन्होंने नाजिम हिकमत, वाल्टह्विटमन, पाब्लो नेरुदा और एमिली डिकिंसन की कई कविताओं का अनुवाद किया। उनका मानना था कि अनुवाद करते हुए हमें कवि की भाषा की लय और संवेदना को सर्वाधिक महत्व देना चाहिए। जन्म शताब्दी वर्ष पर हिन्दी के ऐसे योद्धा को विनम्र श्रद्धांजलि।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता अवधेश प्रधान, मुख्य अतिथि नलिन रंजन सिंह, अध्यक्ष रामसुधार सिंह थे। कार्यक्रम में आये अतिथियों का स्वागत और संचालन क्रमशः अशोक आनंद और महेन्द्र प्रताप सिंह ने किया। गोष्ठी में रामजी यादव, सुरेश प्रताप, शिवकुमार पराग, श्रीनिवास, शैलेन्द्र,सलाम बनारसी, रामेश्वर तिवारी के साथ अवकाश प्राप्त प्राचार्य डा.बी.बी.सिंह जैसे प्रबुद्ध वर्ग के लोग मौजूद रहे।