भाजपा का पाखंड उसके हर विचार और काम में खुलकर दिखाई दे रहा है। चाहे शाहबानो के तलाक का मसला हो या बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि विवाद हो। इन घटनाओं को धार्मिक कट्टरवादियों ने बहुत तूल दिया है। उसके बाद अल्पसंख्यक समुदायों में पहचान की समस्या खड़ी हुई और इस कारण से पुरुषों में दाढ़ी, गोल टोपी, पांच बार नमाज, रोजे जैसे कर्मकांड बढ़े, वहीं मुस्लिम औरतों में हिजाब और बुर्का पहनने के चलन में भी इजाफा हुआ।
2 अप्रैल की दोपहर को एक बजे के आसपास, जब मैं कोल्हापुर से नागपुर की ट्रेन में बैठा तब कोल्हापुर के बाद मिरज स्टेशन पर मेरी बर्थ के सामने सवा तीन पैसेंजर आकर बैठे, जो रात दो बजे परभणी स्टेशन पर उतर गए। सवा तीन लोग इसलिए कि उनमें एक पुरुष के साथ एक छोटा बच्चा और दो पढ़ने वाली युवतियाँ थीं।
वे दोनों बहनें थीं और दोनों ने काफी फैशनेबल बुर्के पहने हुए थे। इनमें छोटी बहन आयुर्वेद डॉक्टर और बड़ी एनेस्थेशिस्ट थी। पुरुष इंजीनियर था। दोपहर दो बजे ट्रेन पर चढ़ने के बाद बर्थ पर चटाई जैसे कपड़े को बिछाकर जिसे जा-ए-नमाज़ कहते हैं पर तय समय पर चार बार नमाज अदा की। यह काम इंजीनियर युवा और एनेस्थेशिस्ट ने किया। दूसरी आयुर्वेद डॉक्टर ने यह नहीं किया।
इसके पहले कोल्हापुर बस स्टैंड से स्टेशन आते समय सड़क किनारे बड़ापाव की दुकान पर खाने के लिए रुका वहाँ बड़ापाव विक्रेता जो लगभग 28-30 वर्ष का रहा होगा, माथे पर केसरिया रंग का तिलक लगाकर अपना काम कर रहा था। कल से आज तक ट्रेन में जितने भी वेंडर्स चीजें बेचने के लिए आए, उनमें से ज्यादातर विक्रेता के माथे पर लाल टीका लगा हुआ दिखा।
यह सब देखकर मैं सोचने लगा कि अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति या वैज्ञानिक सोच और चेतना जैसे मूल्यों के प्रसार के बावजूद, भारत के सभी प्रदेशों में हिंदुत्व का प्रभाव पहले की तुलना में अधिक दिखाई दे रहा है।
क्या संघियों द्वारा भारत के विश्वगुरु बनने की लगाई जा रही रट के साथ धार्मिक कर्मकांड करने वाले लोगों की बढ़ती हुई संख्या ही विश्वगुरु का हरावल दस्ता है? यदि इन लोगों की विश्वगुरु की संकल्पना में सभी लोगों द्वारा अवैज्ञानिक सोच अपनाकर कर्मकांड अपनाना है तो समस्त विश्व का क्या होगा?
भारत में गत सौ सालों से आरएसएस कोशिशें कर रहा है। आज भारत में सभी प्रकार के धार्मिक फूहड़पन के लिए यही लोग जिम्मेदार हैं। कोरोना के समय जब देश का प्रधानमंत्री खुद थाली और ताली बजाने जैसी बचकानी हरकत करने के लिए लोगों से अपील करते हैं, तब देश में इससे ज्यादा क्या ही उम्मीद की जा सकेगी।
22 जनवरी 2024 को राममंदिर के तथाकथित प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के दौरान भी प्रधानमंत्री ने देश के लोगों को घरों पर भगवा झंडा फहराने तथा राम रथ के जुलूस में राम नाम के भजन डीजे पर बजाए जाने की अपील की। डीजे में बजाए गए विभिन्न गानों ने बीमारों, परीक्षाओं की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों तथा दूध पीते बच्चों की नींद हराम कर दी थी। यह सिलसिला लगातार जारी है। शायद लोकसभा चुनाव में चार सौ का आंकड़ा पार करने का दावा भी राम के भरोसे ही पूरा करेंगे।
जिस देश में एक मंगलयान अभियान के समय वैज्ञानिक तिरूपति मंदिर में मंगलयान की प्रतिकृति भेंट चढ़ाने के लिए जाते हैं, तब ऐसे में मंगल या चांद जैसे आकाशीय पिंडों पर इतना खर्च कर यान भेजने का क्या मतलब है?
इन सबको देखते हुए यह निश्चित है कि हमारे देश से अंधश्रद्धा निर्मूलन संभव नहीं हो सकता।
कोरोना से लेकर कैंसर जैसी बीमारियों को ठीक करने के बड़े-बड़े विज्ञापन, रामदेव जैसे फ्रॉड बाबा द्वारा संचालित पतंजलि के विज्ञापन, अखबार और टीवी पर आते हैं। लेकिन सरकारी विभागों ने आंखें मूंद ली हैं क्योंकि रामदेव ने देशभर के पतंजलि के एजेन्टों को भाजपा के चुनाव प्रचार-प्रसार करने के काम में जो लगा रखा है। लेकिन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के बाद, सर्वोच्च न्यायालय से रामदेव सिर्फ झूठ-मूठ की माफी मांगकर भागना चाहता था पर सर्वोच्च न्यायालय ने और कड़ा रुख अपनाने का ऐलान कर दिया है।
लेकिन विरोधियों के खिलाफ कार्रवाई करने वाले सत्ताधारी दल ने रामदेव जैसे सैकड़ों भगवा-कफनी पहनने वालों को, तथाकथित हिंदुत्व की आड़ में भाजपा के प्रचार-प्रसार के लिए काम करवाने का जिम्मा सौंपा है, जिसकी वजह से इनके गैर कानूनी व्यवहारों को सत्ताधारी दल जानबूझकर अनदेखा करता रहा है।
भ्रष्टाचार के मामले में अगर कोई व्यक्ति विरोधी दल का है तो तुरंत कार्रवाई हो रही है लेकिन वही भ्रष्टाचारी जैसे ही भाजपा की शरण लेते हुए एनडीए की तरफ गया तो किसी को आसाम का मुख्यमंत्री तो किसी को महाराष्ट्र का उपमुख्यमंत्री का पद सौंप दिया। विमान खरीदी में घोटाला करने वाले प्रफुल्ल पटेल ने एनडीए जॉइन की तब सीबीआई ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार की कार्रवाई को सिर्फ रोकने का काम ही नहीं किया बल्कि पूरे केस को ही बंद कर दिया। एनडीए के समर्थन में जाते ही 95 प्रतिशत लोगों के खिलाफ चल रही कार्रवाई रोक दी गई, उनके केस बंद कर दिये गए। 25 नेताओं के खिलाफ कार्रवाई चल रही थी, उनमें से 23 ने भाजपा जॉइन कर ली, तो तीन लोगों के केस बंद कर दिये गए और बीस के खिलाफ चल रही कार्रवाई को रोक दिया गया।
मतलब भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही कार्रवाई सिर्फ विरोधी दलों की ताकत को तोड़ने के लिए चल रही है। ऐन चुनाव के मौके पर दो-दो मुख्यमंत्रियों को गिरफ्तार करना क्या साबित करता है?
भाजपा ने इस लोकसभा चुनाव में 400 का आंकड़ा पार करने के लिए सिनेमा के लोगों से लेकर न्यायाधीशों तक को इस्तीफा दिलाकर उन्हें लोकसभा चुनाव में टिकट दे दिया है। भाजपा भले ही अपने आपको ‘पार्टी विद डिफरंस’ बोलती रहे लेकिन है पूरी पाखंडियों की पार्टी।
यह भी पढ़ें –
कांग्रेस ने ही बोए थे भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने वाले सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बीज
मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय धनंजय चंद्रचूड़ के नाम खुला पत्र!