Friday, December 6, 2024
Friday, December 6, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमविचारब्राह्मणवादी चुनौतियां मेरे आगे (डायरी 22 नवंबर, 2021)

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

ब्राह्मणवादी चुनौतियां मेरे आगे (डायरी 22 नवंबर, 2021)

परिजनों से दूर दिल्ली में रहकर ब्राह्मणवादी परंपराओं का विरोध बहुत आसान है मेरे लिए। चूंकि मैं नास्तिक आदमी हूं तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन सा पर्व आया और कौन सा चला गया। ऐसे भी जिस हिंदू धर्म से मेरा संबंध है, वह धर्म है ही नहीं। इसमें पाखंड ही पाखंड है। […]

परिजनों से दूर दिल्ली में रहकर ब्राह्मणवादी परंपराओं का विरोध बहुत आसान है मेरे लिए। चूंकि मैं नास्तिक आदमी हूं तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन सा पर्व आया और कौन सा चला गया। ऐसे भी जिस हिंदू धर्म से मेरा संबंध है, वह धर्म है ही नहीं। इसमें पाखंड ही पाखंड है। यह बात न केवल मैं लिखता हूं बल्कि इन्हें मैं जीता भी हूं। लेकिन आनेवाले कुछ दिन चुनौतियों के रहेंगे। ये चुनौतियां मेरे सामने पहली बार होंगीं। एक तरह से मेरा इम्तिहान होना है और मेरे सामने होगा मेरा अपना परिवार। मेरा वह परिवार, जो अब भी ब्राह्मणवादी मानसिकता के शिकार हैं। मेरी चुनौतियों में यह शमिल होगा कि मेरे सामने कोई ब्राह्मण मेरे घर में कर्मकांड करवाएगा और मैं प्रतिमावत रहूंगा। मैं चाहकर भी विरोध नहीं कर सकूंगा। वजह यह कि मैँ अपने अपने विचार किसी पर नहीं थोपता। फिर चाहे वह मेरे परिजन ही क्यों न हों।

मेरा मानना है कि कोई व्यक्ति आजादी की सांस लेना चाहता है तो इसकी चाह उसे खुद होनी चाहिए। बौद्धिक पूंजी के निर्माण में रत हम जैसे लोगों की जिम्मेदारी है कि उन्हें इसकी जानकारी दें कि हमारे अपने लोग कैसे ब्राह्मणवादी मानसिकता के गुलाम हैं। वे आज भी यही मानते हैं कि ब्राह्मणें के पेट में अनाज जाने से मर चुके स्वजनों को आहार पहुंचेगा। वे आज भी यह मानते हैं कि विवाह में ब्राह्मण का होना जरूरी है और बिना उसके मंत्रों के शादी सफल नहीं मानी जाएगी।

[bs-quote quote=”कोई व्यक्ति आजादी की सांस लेना चाहता है तो इसकी चाह उसे खुद होनी चाहिए। बौद्धिक पूंजी के निर्माण में रत हम जैसे लोगों की जिम्मेदारी है कि उन्हें इसकी जानकारी दें कि हमारे अपने लोग कैसे ब्राह्मणवादी मानसिकता के गुलाम हैं। वे आज भी यही मानते हैं कि ब्राह्मणें के पेट में अनाज जाने से मर चुके स्वजनों को आहार पहुंचेगा।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

दरअसल, मेरे घर में दो शादियां हैं अगले महीने। कल ही इसका आमंत्रण प्राप्त हुआ है। चूंकि दाेनों शादियां बेहद खास हैं तो यह मुमकिन ही नहीं है कि मैं इन शादियों में शरीक न होऊं। एक शादी मेरी सबसे बड़ी भतीजी की है और दूसरी शादी मेरे सबसे बड़े भतीजे रौशन की। भैया ने दोनों शादियों का कार्यक्रम किसी ब्राह्मण से ऐसा तैयार करवाया है कि मुझे कम से कम 18 दिन पटना में रहने होंगे और इन 18 दिनों में मुझे वह सब देखना होगा, जो मैं नहीं देखना चाहता। मतलब यह कि दहेज प्रथा का पालन होगा, जिसका मैं विरोधी हूं। मैं चाहकर भी इसका विरोध नहीं कर सकूंगा। यदि किया तो दोनों बच्चे इसे नकारात्मक रूप में ग्रहण करेंगे। उन्हें तो इसकी समझ भी नहीं कि दहेज लेना और दहेज देना क्यों गलत है। मेरे सामने ब्राह्मणवादी कर्मकांड होंगे, जो मुझे बिल्कुल पसंद नहीं होंगे। मुमकिन है कि मुझे भी कर्मकांड में शामिल होने काे कहा जाएगा और जब मैं मना करूंगा तो मेरे परिजन नाराज होंगे।

जुल्म, इश्क, सेक्स और जिंदगी, (डायरी, 21 नवंबर, 2021)

खैर, इन चुनौतियों के साथ-साथ मुझे एक खास लाभ भी होनेवाला है। दरअसल, ब्राह्मणवादी संस्कृतियों ने भले ही मेरे घर की परंपराओं का अतिक्रमण किया है, परंतु अभी भी मेरे घर की मूल परंपराएं जस की तस हैं। ये परंपराएं और संस्कार हमारे अपने हैं। इनमें मटकोरवा से लेकर ब्राह्मण द्वारा शादी कराये जाने के समय तक किए जाते हैं। इन परंपराओं और संस्कारों में हमारी आदिवासियत की खुश्बू है, हमारी श्रमण परंपरा का गहरा प्रभाव है, जिसे ब्राह्मण आज भी नहीं बदल सके हैं।

लिहाजा दो बातें संभव हैं। एक तरफ तो मुझे अपने लोगों की आलोचनाओं का सामना करना पड़ेगा। यह भी मुमकिन है कि कर्मकांडों को लेकर वे मेरा अपमान करें। दूसरी तरफ  मेरा पूरा परिवार लंबे समय के बाद एकबार फिर एकजुट होगा। ऐसी एकजुटता अंतिम बार मेरी शादी के समय हुई थी। लेकिन उस घटना को हुए अब लंबा समय बीत गया है।

[bs-quote quote=”एक तरह से मेरा इम्तिहान होना है और मेरे सामने होगा मेरा अपना परिवार। मेरा वह परिवार, जो अब भी ब्राह्मणवादी मानसिकता के शिकार हैं। मेरी चुनौतियों में यह शमिल होगा कि मेरे सामने कोई ब्राह्मण मेरे घर में कर्मकांड करवाएगा और मैं प्रतिमावत रहूंगा। मैं चाहकर भी विरोध नहीं कर सकूंगा। वजह यह कि मैँ अपने अपने विचार किसी पर नहीं थोपता। फिर चाहे वह मेरे परिजन ही क्यों न हों।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

तो इन दिनों मैं आनेवाले दिनों को लेकर सोच रहा हूं। परिस्थितियां विषम होंगी (इसका अहसास मेरे परिजन हाल के दिनों में कुछ-कुछ करवा चुके हैं) और मुझे अपने-आपको इसके लिए तैयार करना होगा। वैसे भी जबतक मैं पाखंड पर आधारित ब्राह्मणवादी परंपराओं को अपने घर से दूर नहीं फेंकूंगा, तबतक लड़ना नहीं छोड़ूंगा। कल देर शाम यही सब सोचते हुए कविता जेहन में आयी–

जिंदगी सफर है तो सफर के मजे लीजिए,

फिर क्या पांवों में छालों की परवाह करिए।

बहुत शौक से उगता-डूबता है सूरज रोज,

आप भी ऐसे ही रोज उगा-डूबा करिए।

समंदर की लहरों से सीखिए जंग का सलीका,

हार से खौफ कैसा, जो भी हो सामना करिए।

किताबों से रखिए दोस्ती, रोज कुछ पढ़ते रहिए,

मन हो तन्हां तो कोई गीत नया लिखा करिए।

हर इंसान में है खून एक, मत रखिए भेद कोई,

करिए इश्क और कभी आवारगी भी किया करिए।

नवल किशोर कुमार फारवर्ड प्रेस में संपादक हैं।

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।
1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here