अतीक और अशरफ के बाद पुलिस अभिरक्षा में जीवा की हत्या, पुलिस और सरकार पर सवाल
लखनऊ। जिले के कैसरबाग कोर्टरूम में पुलिस अभिरक्षा में पेशी के लिए लाए गए हत्यारोपी संजीव माहेश्वरी उर्फ़ जीवा की 7 जून को हत्या कर दी गई। इससे पहले 15 अप्रैल को पुलिस अभिरक्षा में मेडिकल जांच के लिए अस्पताल ले जाते समय प्रयागराज में बाहुबली अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या की गई थी। यह दोनों हत्याएं उत्तर प्रदेश की क़ानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं। एक तरफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार अपराध के खिलाफ जीरो टालरेंस की मुखालफत कर रहे हैं और दूसरी ओर, पुलिस की सिक्योरिटी लेयर में हत्या की जा रही है। यह हत्याएं योगी आदित्यनाथ के दावे पर सवालिया निशान लगाती हैं।
ज्ञात हो कि 7 जून को करीब 4 बजे पुलिस संजीव जीवा को हत्या के एक मामले में सुनवाई के लिए कोर्ट रूम में पेशी के लिए ले आई हुई थी। संजीव जीवा मुख्तार अंसारी गैंग का शूटर था। पेशी के लिए लाए जाने के दौरान वह जब एक कुर्सी पर बैठा हुआ था तब विजय यादव नामक एक युवक 357 बोर की मैग्नम अल्फा रिवाल्वर के साथ वकील के ड्रेस में आता है और ताबड़ तोड़ गोली चलाकर संजीव जीवा की सरेआम ह्त्या कर देता है। इस घटना में संजीव को चार गोलियां लगीं और मौका-ए-वारदात पर ही उसकी मौत हो गई, जबकि इस घटना में एक बच्ची और उसकी माँ भी घायल हो गई। दो महीने के अन्दर दो बड़ी घटनाओं में तीन लोगों की इस तरह से हत्या होना छोटी घटना कत्तई नहीं है। इन हत्याओं में सिर्फ तीन बड़े अपराधियों की हत्या नहीं हुई, बल्कि उत्तर प्रदेश के पूरे ‘ला एंड ऑर्डर’ को चुनौती दी गई है। सरकार के माफिया को मिट्टी में मिला देने की बयानबाजी से इतर दोनों ही घटनाओं में यह साफ़ दिखता है कि हत्यारोपी अभियुक्त पूरी प्लानिंग के साथ वारदात को अंजाम देते हैं। प्रयागराज के केस में अभियुक्त पहले से प्लान कर लेते हैं कि वह न्यूज रिपोर्टर बनकर घटना को अंजाम देंगे। अगर स्थितियों की विवेचना की जाए तो साफ़ दिखता है कि घटना अंजाम देने वाले सब जानते हैं, उन्हें पुलिस का हर रोड मैप पहले से पता है, जबकि अस्पताल के डॉक्टर इस बात से इनकार करते हैं कि उन्हें अतीक और अशरफ के मेडिकल चेक अप पर लाए जाने की कोई खबर थी।
[bs-quote quote=”पुलिस की डायरी में जीवा के नाम के पन्ने भी बढ़ते जा रहे थे और पुलिस के साथ चूहा-बिल्ली का खेल भी। इस खेल से बचने के लिए जीवा खुद को ह्वाइट कालर करने की कोशिश में लगा जरूर पर उसके अपराधों की लम्बी सूची देखते हुए किसी पार्टी ने अपना झंडा पकड़ाने का साहस नहीं किया। जब उसने राजनीति में अपनी सीधी इंट्री की उम्मीद छोड़ दी तब उसने तय किया कि वह खुद न सही बल्कि अपनी पत्नी पायल माहेश्वरी को राजनीतिक रूप से आगे बढ़ाने में लग गया। 2017 में मुजफ्फरनगर की सदर सीट से पायल ने राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा पर वह चुनाव हार गई।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
इसी तरह संजीव के मर्डर केस में भी घटना को अंजाम देने वाले पूरे मास्टर प्लान के साथ सामने आते हैं और घटना को अंजाम देकर भागने की कोशिश करते हैं। हत्या को अंजाम देने वाले विजय यादव के बारे में जानने से पहले संजीव माहेश्वरी उर्फ़ जीवा का अतीत जान लेते हैं। जीवा एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार का युवक था। जिसका सपना था कि वह डॉक्टर बने पर आर्थिक हालत ऐसे नहीं थे कि वह मेडिकल की पढ़ाई कर पाता, जिसकी वजह से वह एक झोलाछाप डॉक्टर के यहाँ बतौर कम्पाउंडर काम करने लगता है। काम भले कंपाउंडर का करता था पर लोग उसे डॉक्टर कहते थे। डॉक्टर के रूप में मुकम्मल पहचान बन चुकी थी। उसी बीच जिस डॉक्टर के लिए वह काम करता था, उसने उसे किसी को दिए अपने पैसे वसूलने का काम सौंपा। डॉक्टर ने यह भी कहा था कि अगर वह उसके पैसे वापस दिलाता है तब वह उसे भी उसमें से एक बड़ा हिस्सा देगा। संजीव के जीवन की यह पहली पाठशाला थी, जब वह अपराध की दिशा में आगे बढ़ा था। पैसे वसूलने में जीवा सफल हुआ तो डॉक्टर से उसे शाबाशियाँ भी मिली और हिस्सेदारी भी। इस हिस्सेदारी ने जीवा को वह शार्टकट बता दिया था कि अपराध ही वह रास्ता है, जिसके सहारे अब तक के देखे हुए हर सपने को पूरा किया जा सकता है।
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धीरे-धीरे वह अपराध में हाथ साधने लगा। जीवा ने ज्यादा पैसे के लालच में एक दिन अपने उसी डॉक्टर को ही किडनैप कर लिया, जिसकी मातहती में उसने अपराध के रास्ते पर पाँव बढ़ाया था। बड़ी रकम मिलने के बाद अपने मालिक को छोड़ दिया। इसके बाद एक सनसनीखेज घटना को अंजाम देते हुए जीवा ने कोलकाता के एक व्यापारी के बेटे का अपहरण कर लिया और दो करोड़ रुपये की फिरौती मांगकर जरायम की दुनिया में अपने होने को एक मजबूत रसूख के साथ स्थापित कर दिया। 90 के दशक में मांगी गई यह फिरौती बहुत बड़ी थी। इसके बाद मुन्ना बजरंगी से जीवा की दोस्ती हुई तो उसकी मदद से वह मुख्तार अंसारी के गैंग का हिस्सा बन गया और मुख्तार के शूटर के रूप में नई पहचान बनाई। पश्चिमी और पूर्वी उत्तर प्रदेश दोनों ही जगहों पर जीवा के टेरर का किस्सा डर का नया पर्याय बन गया। बाद में उसने अपनी खुद की गैंग बनाई, जिसमें तकरीबन 40 नए लड़कों को शामिल किया और उसी ताकत के सहारे रियल स्टेट के धंधे में भी अपना दम दिखाने लगा। जीवा तेजी के साथ जरायम की दुनिया की ऊँचाई छू रहा था। पुलिस की डायरी में उसके नाम के पन्ने भी बढ़ते जा रहे थे और पुलिस के साथ चूहा-बिल्ली का खेल भी। इस खेल से बचने के लिए जीवा खुद को ह्वाइट कालर करने की कोशिश में लगा जरूर पर उसके अपराधों की लम्बी सूची देखते हुए किसी पार्टी ने अपना झंडा पकड़ाने का साहस नहीं किया। जब उसने राजनीति में अपनी सीधी इंट्री की उम्मीद छोड़ दी तब वह अपनी पत्नी पायल माहेश्वरी को राजनीतिक रूप से आगे बढ़ाने में लग गया। 2017 में मुजफ्फरनगर की सदर सीट से पायल ने राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा पर वह चुनाव हार गई।
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फिलहाल, जीवा को उम्रकैद की सजा हो चुकी थी। जैसे अतीक को उम्रकैद की सजा हुई थी, पर दोनों की ही पुलिस सुरक्षा घेरे के अन्दर हत्या की जा चुकी है। दोनों ही घटनाओं में बेशक अपराधी मारे गए हैं, पर क्या पुलिस के हाथ के नीचे एक नए अपराधी द्वारा पुराने अपराधी की ह्त्या को सरकार और उसकी पुलिस अपने तथाकथित अपराध विरोधी अभियान का हिस्सा बनाकर जायज ठहराना चाहती है। इस तरह सरेआम यदि अपराध बढ़ेंगे तो ना सिर्फ आम आदमी की सुरक्षा संकट में पड़ेगी, बल्कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिन निवेशकों को राज्य आमंत्रित करने की कोशिश में लगे हुए हैं, उनकी उस उम्मीद को भी बड़ा झटका लग सकता है।
कुमार विजय गाँव के लोग डॉट कॉम के एसोसिएट एडिटर हैं।
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