2024 के लोकसभा चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं और इसमें चर्चा का जो सबसे बड़ा विषय बना हुआ है, वह है कांग्रेस का घोषणापत्र, जिसको जारी हुए एक महीनापूरा हो चुका है। 5 अप्रैल की शाम जब मैंने 5 न्याय, 25 गारंटियों और 300 वादों से युक्त ‘न्याय पत्र’ के नाम से जारी कांग्रेस का 48 पृष्ठीय घोषणा पत्र पढ़कर समाप्त किया तो सुखद आश्चर्य में डूबे बिना न रह सका। सबसे पहले मेरे मन से जो बात निकली वह यह कि ‘विशुद्ध क्रांतिकारी है डाइवर्सिटी को सम्मान देता कांग्रेस का घोषणा पत्र, जो आजाद भारत के अबतक के किसी चुनाव में देखने को नहीं मिला। और यदि यह जनता तक ठीक से पहुंच सका तो कांग्रेस की सत्ता में वापसी सुनिश्चित हो जाएगी। यही नहीं एक ऐसे दौर में जबकि लोग घोषणापत्रों को मजाक में लेने लगे हैं, कांग्रेस का न्याय पत्र घोषणापत्रों के प्रति नए सिरे गंभीर बनाएगा।’ बहरहाल उपरोक्त पंक्तियां लिखते हुए मेरे मन में कहीं से भी संशय का भाव नहीं था, पूरा यकीन था कि हर कोई न्याय पत्र को क्रांतिकारी और अभूतपूर्व घोषित करेगा और वैसा ही हुआ भी। किसी ने लिखा की ऐसा घोषणापत्र आजतक नहीं आया तो किसी ने कहा कि लोगों की तकदीर बदलने वाला है कांग्रेस का घोषणापत्र। किसी ने लिखा कि कांग्रेस की गारंटियाँ करेगी धमाल तो किसी ने कहा भाजपा का खेल, खत्म कर देगा कांग्रेस का घोषणापत्र। साथ ही कइयों ने कहा कि कांग्रेस चुनाव में और कुछ न कर किसी तरह इस घोषणापत्र को जन-जन तक पहुँचा दे, बाकी सर काम उसके लिए यह कर देगा और आज की तारीख में कांग्रेस यही कर भी रही है।
वोटरों को भ्रमित कर रहे देश के प्रधानमंत्री मोदी
जहां तक विपक्ष का सवाल है इसकी प्रभावकारिता ने तो प्रधानमंत्री को भ्रम में दल दिया है और वे अबकी बार 400 पार तथा 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की बात भूलकर अपना चुनावी भाषण कांग्रेस के घोषणापत्र पर केंद्रित कर दिए। और आज भी अपनी सारी ऊर्जा इस पर भ्रम पैदा करने में लगा रहे हैं ताकि मतदाता इसके प्रभाव से मुक्त हो सकें। शुरू में इस पर मुस्लिम लीग की छाप बताने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने जब देखा कि जंगल में फैलने वाली आग की तरह यह मतदाताओं को अपनी चपेट में लेते जा रहा है, तब उनका धैर्य जवाब दे दिया और 21 अप्रैल को राजस्थान की एक चुनावी सभा मे कह डाले, ‘कांग्रेस का घोषणापत्र माओवादी सोच को धरती पर उतारने की उनकी कोशिश है। अगर इनकी सरकार बनी तो हरेक की संपत्ति का सर्वे किया जाएगा, हमारी मां-बहनों के पास कितना सोना है, इसकी जांच की जाएगी। हमारे आदिवासी परिवारों में चांदी होती है, उसका हिसाब लगाया जाएगा, जो बहनों का सोना और संपत्तियाँ हैं, ये सबकों समान रूप से वितरित कर दी जाएँगी। ये संपत्तियाँ इकट्ठा कर उनको बाटेंगे, जिनके ज्यादा बच्चे हैं। आपकी मेहनत का पैसा घुसपैठियों को बाँटा जाएगा, ये कांग्रेस का मैनिफेस्टो कह रहा है। ये अर्बन नक्सल की सोच है, ये आपका मंगलसूत्र भी नहीं बचने देंगे, ये यहाँ तक जाएंगे।’
21 अप्रैल को जिस तरह मोदी ने कांग्रेस के घोषणापत्र को मंगलसूत्र और मुसलमानों से जोड़ा, उसे लेकर पूरी दुनिया में उनकी थू-थू हुई, क्योंकि उन्होंने इसे लेकर जो बातें कही थीं, वह घोषणापत्र में है नहीं। किन्तु चारों ओर से धिक्कार का सैलाब उठने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी बेशर्मी की हद तक झूठ बोलने की सारी सीमाएं तोड़ते हुए आज भी घोषणापत्र के भय से झूठ फैलाने मे जुटे हैं। इसके असर से भाजपा को बचाने लिए ही मोदी और उनकी पार्टी के लोग मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने में अतीत के सारे रिकार्ड तोड़ते जा रहे हैं। इस क्रम में घोषणापत्र को इतना प्रचार मिल रहा है कि कांग्रेस के नेता-प्रवक्ता इसके लिए मोदी को धन्यवाद दे रहे हैं। धन्यवाद दे भी क्यों नहीं, आखिर प्रधानमंत्री के अपप्रचार के कारण उत्सुकतावश इसे करोड़ के करीब लोग डाउनलोड कर पढ़ चुके हैं।
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बहरहाल, मुगल-मटन-मंगलसूत्र को लेकर पिछले एक महीने से चर्चा में बना कांग्रेस का घोषणापत्र मोदी के एक अन्य बयान से भी लगातार चर्चा में बना हुआ है। जिस अन्य कारण से चर्चा में है, वह है इस पर माओवादी विचारधारा का प्रभाव। मोदी द्वारा 21 अप्रैल को यह उद्घोष किए जाने के बाद कि कांग्रेस का घोषणापत्र माओवादी सोच को धरती पर उतारने की उनकी कोशिश है, राष्ट्रवादी बुद्धिजीवियों में यह बताने कि होड मची हुई है कि इस पर वामपंथ की छाप है। तर्क देते हुए भाजपा समर्थक बुद्धिजीवी लिख रहे हैं कि यह वामपंथी सोच ही है कि कांग्रेस जातिगत जनगणना करानें और आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत से ज्यादा करने का वादा कर रही है। लेकिन जातिगत जनगणना कराना और आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा खत्म करना क्या वामपंथी सोच है? भारत के वामपंथियों ने क्या कभी भूमि के बंटवारे से आगे बढ़कर धन-संपदा, ठेकेदारी, मीडिया इत्यादि सहित शक्ति के समस्त स्रोतों में सभी समुदायों के संख्यानुपात में बंटवारे की बात किया, जैसा कि कांग्रेस का घोषणापत्र कहता दिख रहा है ? अमीर और गरीब में पूरे समाज को देखने की बात करने वाले भारत के वामपंथियों ने क्या अतीत में कभी जाति जनगणना कराकर विविध समुदायों के मध्य शक्ति के स्रोतों के वाजिब बंटवारे की बात किया? नहीं किया, क्योंकि इसमें वामपंथ का विचार बाधक रहा।
यह आंबेडकरवादी थे जो वर्षों से सरकारी और निजी क्षेत्र की नौकरियों से आगे बढ़कर सप्लाई, डीलरशिप, ठेकों, पार्किंग, परिवहन, फिल्म-मीडिया, पुजारियों की नियुक्ति इत्यादि सहित अर्थोपार्जन की सभी गतिविधियों में विविध समदायों की संख्यानुपात में अवसरों के बंटवारे की मांग उठाते रहे, जिस पर विचार करते हुए कांग्रेस ने फरवरी 2023 में रायपुर के अपने 85वें अधिवेशन में सामाजिक न्याय का पिटारा खोला और जाति जनगणना कराकर विविध समाजों के मध्य अवसरों के बंटवारे प्रस्ताव पास किया। और मई 2023 में कर्नाटक चुनाव को सामाजिक न्याय पर केंद्रित कर जिस तरह भाजपा को शिकस्त दिया, उसके बाद जाति जनगणना और जितनी आबादी ,उतना हक का मुद्दा राष्ट्रीय फलक पर छाते गया, जिसका चरम प्रतिबिंबन उसके न्याय पत्र में हुआ। आज यदि दुराग्रह मुक्त होकर ठंडे दिमाग से विचार किया जाए तो साफ नजर आएगा कि कांग्रेस के घोषणापत्र पर सिर्फ और आंबेडकरवाद की सोच हावी है। इसकी ठीक से पड़ताल करने के लिए आंबेडकरवाद की परिभाषा के तह में जाना होगा।
क्या है आंबेडकरवाद?
आंबेडकरवाद है क्या? जाति, नस्ल, लिंग, धर्म भाषा इत्यादि जन्मगत कारणों से शक्ति के स्रोतों(आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक, धार्मिक) से जबरन बहिष्कृत कर सामाजिक अन्याय की खाई में धकेले गए मानव समुदायों को कानूनन शक्ति के स्रोतों में हिस्सेदारी दिलाने का प्रावधान करने वाला सिद्धांत ही आंबेडकरवाद है और इस वाद का औजार है आरक्षण। भारत में हिन्दू धर्म के प्राणाधार वर्ण व्यवस्था के प्रावधानों द्वारा दलित, आदिवासी, पिछड़ों और आधी आबादी को सदियों से शक्ति के समस्त स्रोतों से दूर धकेल कर दुनिया के सबसे अधिकारविहीन मानव समुदायों में तब्दील कर दिया गया। डॉक्टर आंबेडकर के प्रयासों से सबसे पहले गुलामों के गुलाम दलित और आदिवासियों के लिए आरक्षण का प्रावधान हुआ। परिणाम कल्पना से परे रहा। देखते ही देखते ही देखते आरक्षण के जरिए वे सांसद-विधायक, डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक इत्यादि बनकर राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ने लगे। दलित और आदिवासियों पर आंबेडकरवाद के चमत्कारिक परिणामों ने जन्म के आधार पर शोषण का शिकार बनाए गए अमेरिका, फ्रांस, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षित अफ्रीका इत्यादि के वंचितों के लिए मुक्ति के द्वार खोल दिए। खासकर अमेरिका में तो आंबेडकरवाद ने विस्मय ही सृष्टि कर दिया।
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भारतीय संविधान के यम : नरेंद्र मोदी
भारत से आरक्षण की आइडिया उधार लेने वाले अमेरिका के शासकों ने आरक्षण को भारत की तरह सिर्फ नौकरियों तक सीमित न रखकर सप्लाई, डीलरशिप, ठेकों, फिल्म-मीडिया इत्यादि समस्त क्षेत्रों तक प्रसारित कर दिया, जिसके फलस्वरूप अमेरिकी दलितों(अश्वेतों) के जीवन में आश्चर्यजनक बदलाव आया। अमेरिका में डाइवर्सिटी के रूप में लागू आरक्षण के चमत्कारिक परिणामों से अवगत होने के बाद नई सदी से दलित बुद्धिजीवी आंबेडकरवाद को विस्तार देने के लिए अमेरिका की भांति उद्योग-व्यापार, फिल्म-मीडिया इत्यादि समस्त क्षेत्रों में दलित, आदिवासी, पिछड़ों और महिलाओं के लिए आरक्षण की मांग उठाने लगे। फलस्वरूप कई राज्य सरकारों ने सप्लाई, डीलरशिप, ठेकों, धार्मिक न्यासों, मंदिरों के पुजारियों की नियुक्ति इत्यादि में कुछ-कुछ आरक्षण दिया। किन्तु आरक्षण के विस्तार के लिए दलित बहुजन बुद्धिजीवियों ने जो वैचारिक संग्राम चलाया, उसका सुखद परिणाम कांग्रेस के न्याय पत्र में प्रतिबिंबित हुआ है।
कांग्रेस के घोषणापत्र के पाँच न्याय और 25 गारंटियों में यूं तो युवाओं, किसानों, श्रमिकों के हित में बेहतरीन घोषणाएं की गई है, लेकिन इसका सर्वाधिक जोर जन्मगत(जातिगत) कारणों से शोषण-वंचना का शिकार बनाए गए लोगों की मुक्ति पर है। इस विषय में घोषणापत्र के पेज 6 पर कही गई यह बात काबिलेगौर है। ‘कांग्रेस पार्टी पिछले सात दशकों से समाज के पिछड़े, वंचित, पीड़ित और शोषित वर्गों एवं जातियों के हक और अधिकार के लिए सबसे अधिक मुखरता के साथ आवाज उठाती रही है। कांग्रेस लगातार उनकी प्रगति के लिए प्रयास करती रही है। लेकिन जाति के आधार पर होने वाला भेदभाव आज भी हमारे समाज की हकीकत है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग देश की आबादी के लगभग 70 प्रतिशत हैं, लेकिन अच्छी नौकरियों, अच्छे व्यवसायों और ऊंचे पदों पर उनकी भागीदारी काफी कम है। किसी भी आधुनिक समाज में जन्म के आधार पर इस तरह की असमानता, भेदभाव और अवसर की कमी बर्दाश्त नहीं होनी चाहिए। कांग्रेस पार्टी ऐतिहासिक असमानताओं की इस खाई को निम्न कार्यक्रमों के माध्यम से पाटेगी।’ भारत में जन्म के आधार पर असमानता, भेदभाव और अवसर की कमी से पार पाने की बात आंबेडकरवादी ही उठाते रहे हैं, लेकिन कांग्रेस इस मामले में तमाम आंबेडकरवादी और लोहियावादी दलों को बहुत पीछे छोड़ दी है।
कांग्रेस के घोषणा पत्र में दलित, आदिवासी, पिछड़ों के हितों की बात
जन्म के आधार पर असमानता, भेदभाव और अवसरों की कमी झेलने वाली 70 प्रतिशत आबादी को ऐतिहासिक असमानताताओं के दल-दल से निकालने के लिए ही कांग्रेस ने आर्थिक-सामाजिक जाति जनगणना करवाने की घोषणा की है ताकि प्राप्त आंकड़ों के आधार पर शासन- प्रशासन में वाजिब हिस्सेदारी सुनिश्चित करने साथ ऐसा उपक्रम चलाया जा सके जिससे दलित, आदिवासी, पिछड़ों को कंपनियों, टीवी, अखबारों इत्यादि का मालिक और मैनेजर बनने का मार्ग प्रशस्त हो सके। 70 प्रतिशत आबादी को समानता दिलाने के लिए काग्रेस के घोषणापत्र में आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा खत्म करने, न्यायपालिका में हिस्सेदारी सुनिश्चित करने की बात आई है। जन्म के आधार पर असमानता खत्म करने के लिए ही एससी, एसटी समुदायों से आने वाले ठेकेदारों को सार्वजनिक कार्यों के अनुबंध अधिक मिले, इसके लिए सार्वजनिक खरीद नीति का दायरा बढ़ाने की बात घोषणापत्र में प्रमुखता से जगह पाई है। इस मकसद से ही एससी,एसटी, ओबीसी समुदाय के छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति को दो गुना करने, विशेष रूप से उच्च शिक्षा में, की बात कही गई है। इसी तरह एससी,एसटी समुदाय के छात्रों को विदेशों में पढ़ने में मदद करने के साथ उनके पीएचडी छात्रवृत्ति की संख्या दो गुना करंने का कांग्रेस ने वादा किया है। जन्म के आधार पर शोषण, वंचना और असमानता का शिकार आधी आबादी भी रही है। इसके लिए दलित बुद्धिजीवी प्रायः डेढ़ दशकों से जेंडर डाइवर्सिटी लागू करने अर्थात प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देने की वैचारिक लड़ाई छेड़े हुए थे।
कांग्रेस ने नारी न्याय के तहत 2025 से महिलाओं के लिए केंद्र सरकार की आधी(50 प्रतिशत) नौकरियां आरक्षित करने का वादा कर जेंडर डाइवर्सिटी लागू करने की दिशा में ऐतिहासिक घोषणा किया है( भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस न्यायपत्र 2024, पृष्ठ- 16)। कांग्रेस एक विविधता आयोग(डाइवर्सिटी कमीशन) की स्थापना करेगी जो सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में रोजगार और शिक्षा के संबंध में विविधता की स्थिति का आंकलन करेगी और बढ़ावा देगी(पृष्ठ-7)। जिन लोगों को कांग्रेस के घोषणापत्र में आंबेडकरवाद का प्रतिबिंबन नजर नहीं आता, उन्हें विविधता आयोग की स्थापना की अहमियत का आंकलन कर लेना चाहिए। डाइवर्सिटी कमीशन अमेरिका में स्थापित है, जो इस बात पर नजर रखता है कि वंचित नस्लों का आरक्षण ठीक से लागू हुआ कि नहीं। ठीक से नहीं लागू होने पर अमेरिकी कंपनियों पर इतना बड़ा आर्थिक दंड लगा दिया जाता है कि वे दिवालिया तक हो जाती हैं। भारत में डाइवर्सिटी कमीशन बने इसकी मांग दलित बुद्धिजीवी वर्षों से उठाते रहे हैं। विविधता आयोग की स्थापना करने का वादा कर कांग्रेस ने आंबेडकरवाद को सम्मान देने का ऐतिहासिक कार्य किया है।