Thursday, December 25, 2025
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

साहित्य

मूँदहु आंख भूख कहुं नाहीं

अब गरज तो विश्व गुरु कहलाने से है, भूख बढ़ाने में विश्व गुरु कहलाए तो और भूख मिटाने में विश्व गुरु कहलाए तो। उसके ऊपर से 111 की संख्या तो वैसे भी हमारे यहां शुभ मानी जाती है। भारत चाहता तो पिछली बार की तरह, भूख सूचकांक पर 107वें नंबर पर तो इस बार भी रह ही सकता था। पर जब 111 का शुभ अंक उपलब्ध था, तो भला हम 107 पर ही क्यों अटके रहते? कम से कम 111 शुभ तो है। भूख न भी कम हो, शुभ तो ज्यादा होगा।

विश्वगुरु की सीख का अपमान ना करे गैर गोदी मीडिया

इन पत्रकारों की नस्ल वाकई कुत्तों वाली है। देसी हों तो और विदेशी हों तो, रहेंगे तो कुत्ते...

तुम्हारी लिखी कविता का छंद पाप है

मणिपुर हिंसा पर केन्द्रित कवितायें  हम यहाँ ख्यातिलब्ध बांग्ला कवि जय गोस्वामी की कुछ कवितायें प्रकाशित कर रहे हैं।...

हरिशंकर परसाई और शंकर शैलेंद्र की जन्मशती पर हुआ संगोष्ठी का आयोजन

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में  हरिशंकर परसाई और शंकर शैलेंद्र की जन्मशती पर संगोष्ठी का...

व्याकरण के प्रकांड विद्वान थे आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी और आरसी प्रसाद सिंह की मनाई गई जयंती दरभंगा। आज विश्वविद्यालय हिंदी विभाग, ल.ना....

जो भी कन्ना-खुद्दी है उसे दे दो और नाक ऊंची रखो। लइकी हर न जोती ! (तीसरा हिस्सा)

मेरे अरियात-करियात की बहुत कम औरतें स्वतंत्र और आत्मचेतस रही हैं l मजबूरी में कोई-कोई विधवा स्त्री भले ही अपनी मर्ज़ी से अपना जीवन...

इस एक बात पर दुनिया से जंग जारी है

दूसरा हिस्सागोरखपुर में पदस्थापना अगस्त दो हजार आठ में हुई तो वसीम साहब से मुलाक़ात के कई अवसर मिले। बरेली आने-जाने का मौक़ा...

अरविंद पासवान परिवर्तनवादी कवि हैं – दामोदर मोरे

‘मैं उसे अंबेडकरवादी कहता हूं जो संघर्ष के मैदान में बिगुल बजाता हो। जिसमें संघर्ष का संगीत हो, जिसमें जातिभेद की जंजीरें टूटने की...

जो भी कन्ना-खुद्दी है उसे दे दो और नाक ऊंची रखो। लइकी हर न जोती ! (दूसरा हिस्सा)

लोगों की समस्याएं भी किसिम-किसिम की होती हैं l किसी का पेट पिरा रहा है, किसी को खोंचा पड़ गया, किसी का जी उचाट...

जो भी कन्ना-खुद्दी है उसे दे दो और नाक ऊंची रखो। लइकी हर न जोती !  

पहला हिस्सा गाँव में स्त्री की स्थिति किसी गूँगे परिचारक जैसी रही है l गूँगे के पास ज़बान नहीं होती है, मगर स्त्री के पास...

एक हैं शायर वसीम एक हैं घरेलू वसीम !

पहला हिस्सासामाजिक परिप्रेक्ष्य में एक जनवादी नारा है जिसमें संसाधनों की वाज़िब हिस्सेदारी की बात उठाई गई है। यह सच्चाई पूँजीवादी व्यवस्था को...
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