छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के पीछे के कारणों की पड़ताल करती बस्तर और रायपुर से लौटे गौरव गुलमोहर की यह ग्राउंड रिपोर्ट
छत्तीसगढ़ में पांच साल के अंतराल के बाद एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी ने वापसी कर ली है। गिनती के ऐन वक़्त पहले तक आत्मविश्वास से लबरेज छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने जनादेश स्वीकार कर लिया है और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपना इस्तीफा भी राज्यपाल को सौंप दिया है, लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि छत्तीसगढ़ की जनता का मूड भांपने में तमाम राजनीतिक पंडित, एग्जिट पोल और मेन स्ट्रीम मीडिया के अलावा वैकल्पिक मीडिया के तौर पर सक्रिय लोग कहां गलती कर बैठे?
पिछले चुनाव में 15 सीटों पर सिमट जाने वाली भाजपा ने पांच साल बाद 90 में से 54 सीटें जीत कर वापसी की है, वहीं 71 सीटों पर काबिज कांग्रेस 35 सीटों पर सिमट कर रह गई। छत्तीसगढ़ के गठन के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि कांग्रेस इतनी कम सीटों पर जीत दर्ज कर सकी। उधर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने लगभग दो दशक बाद एक सीट पर जीत दर्ज कर सबको चौंका दिया। जबकि दो सीटों पर काबिज बहुजन समाज पार्टी और पांच सीटों पर काबिज छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस एक भी सीट जीतने में नाकाम रही।
ऐसे में सवाल उठने लाज़मी हैं कि छत्तीसगढ़ में सरकार बनने के बाद से ही दो गुटों में बंटी कांग्रेस क्या गुटबाजी की शिकार हो गई? क्या कांग्रेस की किसान कर्ज माफी, 3200 रुपये प्रति क्विंटल पर धान खरीद, 200 यूनिट बिजली फ्री के वादे पर भाजपा की हिंदू हितों को साधने की क़वायद, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश, महतारी वंदन योजना और कांग्रेस पर भ्रष्टाचार का आरोप भारी पड़ गया? आज हम अपनी रिपोर्ट में पड़ताल कर जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर कांग्रेस की बुरी तरह हार और भाजपा की बम्पर जीत की प्रमुख वजह क्या रही? कांग्रेस कहाँ चूक गई?
किस क्षेत्र में किसको कितनी सीटें?
सत्ता की कुंजी कहे जाने वाले बस्तर सम्भाग में कुल 12 सीटों में भाजपा ने 8 सीटों पर जीत दर्ज की और कांग्रेस महज 4 सीटों पर सिमट गई। हालांकि बस्तर की कांकेर सीट पर भाजपा प्रत्याशी आशा राम नेताम ने सबसे करीबी मुकाबले में मात्र 16 वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी शंकर ध्रुवा को मात दी। 2018 में कांग्रेस ने बस्तर सम्भाग की 11 सीटों पर और भाजपा ने 1 सीट पर जीत दर्ज की थी। राजनीतिक पंडितों की मानें तो बस्तर सम्भाग की कई सीटों पर भाजपा को धर्मांतरण का लाभ और कांग्रेस को आंतरिक कलह का नुकसान हुआ।
इसी तरह सरगुजा सम्भाग की कुल 14 सीटों में जहां पिछली बार सभी सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी वहीं इस बार भाजपा ने उप मुख्यमंत्री टी एस सिंह देव समेत सरगुजा सम्भाग की सभी सीटें कांग्रेस से छीन ली। रायपुर सम्भाग की 20 सीटों में भाजपा ने 12 सीटें जीती और 8 सीटें कांग्रेस को मिली। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 14 और भाजपा ने 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं दुर्ग सम्भाग की 20 सीटों में 10 सीटें कांग्रेस और 10 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की, यहाँ मामला बराबरी का रहा। पिछले चुनाव में भाजपा ने दुर्ग सम्भाग से मात्र दो सीटें ही हासिल की थी। जबकि बिलासपुर सम्भाग की 24 सीटों में कांग्रेस ने 13 सीटों पर और भाजपा ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की। एक सीट पर गोंगपा (गोंडवाना गणतंत्र पार्टी) ने जीत दर्ज की। पिछले चुनाव में कांग्रेस 12 सीटों पर, भाजपा 7, सीजेसीजे (छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस ) 3 और बसपा ने 2 सीटों पर जीत दर्ज किया था।
भाजपा ने सभी सम्भागों में पहले से बेहतर प्रदर्शन किया है वहीं कांग्रेस का लगभग सभी सम्भागों में पहले से बुरा प्रदर्शन रहा। पूरे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का सबसे बुरा प्रदर्शन सरगुजा सम्भाग में रहा। कांग्रेस अपने निवर्तमान उप मुख्यमंत्री टी एस सिंहदेव समेत आठ मंत्रियों की सीट भी बचाने नाकाम रही। राजनीतिक पंडित मानते हैं कि पिछले चुनाव में सरगुजा सम्भाग की सभी 14 सीटें कांग्रेस ने अपने दम पर नहीं बल्कि सिंहदेव के मुख्यमंत्री बनने की चर्चा के कारण जीती थीं।
जशपुर से दैनिक भास्कर के सीनियर पत्रकार विकास पांडे कहते हैं, “कांग्रेस सरगुजा संभाग में गुटबाजी और खींचतान की शिकार हो गई। भाजपा ने आदिवासी क्षेत्रों पर जितना ध्यान दिया कांग्रेस ने उतना ध्यान नहीं दिया। भाजपा के तीनों प्रमुख नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा जशपुर की तीनों सीटों पर आए लेकिन कांग्रेस से बड़े नेताओं ने इन क्षेत्रों में उतना समय नहीं दिया। कांग्रेस आदिवासी क्षेत्रों सरगुजा और बस्तर संभाग में सबसे ज्यादा कमजोर रही और भाजपा ने आदिवासी क्षेत्रों में सबसे ज्यादा काम किया।
दूसरा, महतारी वंदन योजना का फॉर्म जिस तरह भाजपा ने लोगों से भराया उससे महिलाओं का विश्वास मजबूत हुआ कि उन्हें प्रतिमाह एक हजार रुपये मिलेंगे। कांग्रेस ने दिवाली के दिन प्रति वर्ष पंद्रह हजार रुपये देने का वादा किया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और कांग्रेस इसका व्यापक प्रचार भी नहीं कर सकी।”
कहां चूकी कांग्रेस, कहां बीजेपी ने मारी बाजी?
छत्तीसगढ़ सरकार में बतौर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अंत तक महसूस नहीं होने दिया कि वे भाजपा के सामने कमजोर पड़ रहे हैं। जबकि परिणाम बताते हैं कि कांग्रेस के खिलाफ जमीन पर मजबूत एंटीइनकम्बेंसी थी। यदि हम देखेंगे तो हमें मिलता है कि मैदानी इलाकों में कांग्रेस का प्रदर्शन कमोबेश बेहतर रहा लेकिन आदिवासी प्रमुख क्षेत्रों में बस्तर और सरगुजा सम्भाग की कुल 26 सीटों में कांग्रेस महज 4 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी।
रायपुर के एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं, कांग्रेस की आपसी कलह और आदिवासी क्षेत्रों में ध्यान न देना हार का प्रमुख कारण रहा है। कांग्रेस का पूरे चुनाव में ज्वाइंट एफर्ट नज़र नहीं आया। तीन ऐसी सीटें हैं जहां कांग्रेस 300 से भी कम वोटों से चुनाव हारी है और कई ऐसी सीटें हैं जहां बागी नेताओं ने नुकसान पहुंचाया है। कांग्रेस यह चुनाव जीत सकती थी, नहीं जीतती तो करीबी मुकाबले में जा सकती थी लेकिन आदिवासी वोटरों को टेकेन फॉर ग्रांटेड लेना कांग्रेस को भारी पड़ गया।
यदि हम कांग्रेस सरकार के पांच सालों के कार्यकाल पर नज़र डालें तो हमें देखने को मिलता है कि कांग्रेस की सारी ऊर्जा किसानों को लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं की गिनती करने में ही खर्च हो गई। अन्य वर्गों को वह साधने में नाकाम रही, जिसमें आदिवासी, महिलाएं और युवा शामिल हों। बस्तर के कई जिलों में आदिवासी विभिन्न मांगों के साथ सालों से आंदोलनरत रहे लेकिन कांग्रेस सरकार की आंदोलन के प्रति कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली।
भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली छत्तीसगढ़ सरकार बनने के बाद से ही उस पर शराब घोटाला, कोयला घोटाला, गोबर घोटाला और पीएससी घोटाला के आरोप लगते रहे हैं। मुख्यमंत्री बघेल की निजी सचिव सौम्या चौरसिया समेत दो आईएएस अधिकारी समीर बिश्नोई और रानू साहू लेवी स्कैम मामले में जेल गये। बघेल लगातार ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स की कार्यवाई को केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा बदले की भावना से की गई कार्यवाई का आरोप लगाते रहे।
राजनीतिक विश्लेषक हर्ष दुबे कहते हैं, ‘कांग्रेस पांच सालों तक अपने ऊपर लगे आरोपों को भाजपा पर डालने की राजनीति करती रही। लेकिन धीरे-धीरे लोगों को समझ में आने लगा कि कांग्रेस सरकार युवाओं के साथ गड़बड़ कर रही है। इसमें पीएससी घोटाला अहम रहा। जिसमें सरकार पर आरोप लगा कि अधिकारियों के बच्चों को धांधली कर पास कर दिया गया। भाजपा ने इस मुद्दे पर सड़क से लेकर सदन तक बवाल काटा। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में इसका जिक्र किया।’
दुबे आगे कहते हैं, ‘बात 2019 की है, लगभग चार लाख युवा डिप्टी कलेक्टर की तैयारी कर रहे थे। प्रदेश में नई-नई कांग्रेस सरकार बनी थी और 2019 में महेंद्र कर्मा के लड़के आशीष कर्मा को सीधे नियुक्ति दे दी गई। वहीं से युवाओं में सरकार के खिलाफ नाराजगी की शुरुआत होती है। चुनाव से कुछ ही दिन पहले पीएससी घोटाले से युवाओं में खासा नाराजगी देखने को मिली। बहुत सम्भावना है कि प्रदेश के युवा कांग्रेस के खिलाफ मतदाता में तब्दील हो गये हों।’
प्रदेश के एक निजी चैनल पर कल शाम कांग्रेस डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव ने कहा ‘चुनाव के दौरान मैं जहां-जहां गया वहां युवा पीएससी घोटाले के विषय में पूछ रहे थे कि यह कैसे हो गया। चुनाव में इसका प्रभाव जरूर पड़ा होगा।’
वहीं दूसरी ओर भाजपा आदिवासी क्षेत्रों में धर्मांतरण के मुद्दे पर कांग्रेस को घेरने की कोशिश लगातार कर रही थी। सैकड़ों की संगठित भीड़ ने इसी साल दो जनवरी को नारायणपुर के एक कैथोलिक चर्च पर धावा बोल दिया और माता मरियम व ईसा मसीह की मूर्ति को तोड़ डाला। भीड़ को कंट्रोल करने पहुंचे एसपी सदानंद का सिर भी फोड़ दिया। इस मामले में भाजपा जिलाध्यक्ष समेत 30 से अधिक लोगों को जेल भी हुई। लेकिन कांग्रेस सरकार ईसाइयों पर हो रहे लगातार हमलों को नज़रंदाज करती रही।
हर्ष दुबे बस्तर में कांग्रेस की अधिक सीटें हारने के संदर्भ में कहते हैं, बस्तर में धर्मांतरण की आग दो सालों से धधक रही थी। नारायणपुर की घटना हुई लेकिन सरकार के स्तर पर सुध लेने की जहमत नहीं उठाई गई। सरकार ने अपना स्टैंड क्लियर नहीं किया। इसका खामियाजा उसे 12 में से 8 सीटें हार कर उठाना पड़ा। इतना ही नहीं जिस विधायक के रहते नारायणपुर अशांत हुआ कांग्रेस ने उसे ही दोबारा टिकट दे दिया और वह प्रत्याशी 19 हजार से अधिक मतों से हार गया। यह कांग्रेस का ओवर कांफिडेंस नहीं तो और क्या है?
भाजपा प्रवक्ता सच्चिदानन्द उपासने भाजपा की बड़ी जीत में महतारी वंदन योजना, पीएम आवास और कांग्रेस के पीएससी घोटाले को अहम मानते हैं।
उपासने कहते हैं, ‘कांग्रेस की हार की प्रमुख वजह पूर्ण शराब बंदी का वादा करके उसपर अमल न करना रहा। युवाओं को 2500 रुपया प्रति माह बेरोजगारी भत्ता देने का वादा कर न देना, ऊपर से पीएससी घोटाला करके नेताओं और अधिकारियों के बेटे-बेटियों को पास कर दिया गया। किसानों को चार-चार किस्तों में बोनस का पैसा दिया गया। वहीं भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में सभी वर्गों को शामिल किया। महिलाओं, किसानों और युवाओं ने भाजपा पर विश्वास जताया इसलिए भाजपा ने बड़ी जीत दर्ज की।’
धर्मांतरण और ध्रुवीकरण की फांस में फंसी कांग्रेस
इस बार चुनाव में मैदानी इलाकों की दो सीटें कवर्धा और साजा चर्चा के केंद्र में रही। कवर्धा पिछले दो सालों से साम्प्रदायिक तनाव का केंद्र रहा है। पिछले चुनाव में सर्वाधिक 59284 वोटों से जीते परिवहन मंत्री और सरकार के प्रवक्ता मोहम्मद अकबर इस बार 39592 वोटों के अंतराल से चुनाव हार गए हैं। कांग्रेस और भाजपा के 180 प्रत्याशियों के बीच अकबर एकमात्र मुस्लिम प्रत्याशी थे। अकबर के खिलाफ भाजपा ने दंगों के आरोपी विजय शर्मा को मैदान में उतारा था।
पूर्वोत्तर भारत में हिंदुत्व के चेहरे के रूप में विख्यात असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिश्व शर्मा ने 18-अक्टूबर को छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले के कवर्धा में अपने भाषण के दौरान कांग्रेस प्रत्याशी मोहम्मद अकबर पर निशाना साधते हुए कहा था, ‘यदि अकबर को नहीं हटाया गया तो माता कौशल्या की भूमि अपवित्र हो जाएगी। एक अकबर कहीं आता है तो 100 अकबर बुलाता है। अत: जितनी जल्दी हो सके उसे विदा करो, अन्यथा माता कौशल्या की भूमि अपवित्र हो जायेगी।’
कवर्धा के बगल की साजा सीट से कांग्रेस के कद्दावर नेता और सात बार के विधायक रवीन्द्र चौबे के सामने भाजपा ने बीरनपुर की साम्प्रदायिक घटना में मारे गये भुवनेश्वर साहू के पिता ईश्वर साहू को प्रत्याशी बनाया था। ईश्वर साहू एक आम परिवार से हैं, उनका कोई राजनीतिक इतिहास नहीं था लेकिन ईश्वर साहू ने 5196 मतों से कांग्रेस प्रत्याशी को हराकर जीत दर्ज की।
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साजा विधानसभा का बीरनपुर गांव तब चर्चा में आया जब दो समुदाय, मुस्लिम और साहू समाज के छोटे बच्चों को लेकर हिंसा हुई थी। हिंसा में ईश्वर साहू के बेटे भुनेश्वर साहू की हत्या हो गई थी। दो दिन बाद ही बकरी चराने गये दो मुस्लिम युवाओं की हत्या कर दी गयी थी।
छत्तीसगढ़ की राजनीति पर नज़र रखने वाले अतुल पाण्डेय कहते हैं, ‘भाजपा के लिए साजा हमेशा से कमजोर सीट रही है इसलिए भाजपा ने हिन्दू-मुस्लिम एंगल देने के लिए और छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े पिछड़े वर्ग साहू समाज को साधने के उद्देश्य से बीरनपुर घटना को तूल देते हुए ईश्वर साहू को उम्मीदवार बनाया था, जिससे प्रदेश के सभी साहू बाहुल्य सीटों पर लाभ मिल सके। भाजपा के हर बड़े नेता ने अपने मंच से बीरनपुर घटना का जिक्र करके साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश भी की। इससे भाजपा सिर्फ साहू मतदाताओं को ही नहीं बल्कि हिंदू मतदाताओं की भी साधने में सफल रही। कांग्रेस ने सबकुछ देखते हुए भी चुप रहने या सॉफ्ट हिंदुत्व का रास्ता चुना। आज परिणाम सबके सामने है।’
कांग्रेस प्रवक्ता सुशील आनंद भाजपा की जीत में सांप्रदायिक माहौल और ध्रुवीकरण की भूमिका मानते हैं। आनंद कहते हैं, ‘हमने कुछ सीटों पर टिकट वितरण में कोताही बरती है जिसके कारण हमें नुकसान हुआ लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति के जरिए जनता को भावनात्मक रूप से अपनी ओर करके कांग्रेस के लोकप्रिय नेताओं को पराजित किया। इसका उदाहरण कवर्धा और साजा जैसी सीटें हैं।’
उन्होंने आगे कहा कि हम अपने हार की व्यापक समीक्षा आने वाले दिनों में करेंगे और अपनी आगे की रणनीति तय करेंगे।
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