छत्तीसगढ़ में भाजपा शासन में 4077 विद्यालय बंद किए जा चुके हैं। सरकार शिक्षा के स्तर सुधारने और नई भर्ती करने की बजाए उसे बिगाड़ने का काम कर गाँव के बच्चों को पढ़ाई से वंचित करने की व्यवस्था बना रही है। सदैव से भाजपा की यही रणनीति रही है कि शिक्षा एक खास वर्ग ही हासिल कर पाए। भाजपाशासित प्रदेशों में शिक्षा और शिक्षा नीति में लगातार बदलाव कर तर्क सम्मत पाठ्यक्रमों को हटाकार धार्मिक विषयों को शामिल करने की होड़ लगी है।
असली जातिवाद देखना है तो विश्वविद्यालयों की वर्तमान स्थिति को देखा जा सकता है। जातिवाद के सबसे क्रूर, घिनौने और घिनौने स्थान विश्वविद्यालय बन गए हैं। जहां गले तकभ्रष्टाचार खुले आम हो रहा है। विश्वविद्यालय के मुखिया से लेकर प्रोफेसरों की नियुक्ति अब आरएसएस और भाजपा के इशारे पर हो रही है।
एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (ASER) द्वारा किए गए सर्वे के आधार पर यह सामने आया कि प्राथमिक और पूर्व प्राथमिक विद्यालय के बच्चों की बुनियादी साक्षरता और गणितीय कौशल के स्तर मे सुधार के लिए किए जा रहे प्रयास के परिणाम सही दिशा में आते हुए दिखाई दे रहे हैं। हालांकि यह लक्ष्य बहुत सकारात्मक नहीं है लेकिन सुधार होता दिख रहा है। ‘निपुण भारत मिशन’ जिसकी शुरुआत 5 जुलाई 2021 को हुई थी, तय लक्ष्य पाने में अभी बहुत पीछे है लेकिन जो भी हासिल है उसका श्रेय शिक्षकों को दिया जाना चाहिए।
विद्यालय में बच्चों की पढ़ाई में रुचि पैदा हो इसके लिए अध्यापकों का पूरा ध्यान दिया जाना जरूरी है। लेकिन होता यह है कि सरकारी विद्यालयों में अध्यापकों को पढ़ाने के अलावा अन्य प्रशासनिक कामों की ज़िम्मेदारी सौंप दी जाती है और उसे करने का दबाव बनाया जाता है, जिसकी वजह से अध्यापक काम पूरा करने के लिए बच्चों को दिये जाने वाले समय से कटौती करता है। सरकार को अन्य प्रशासनिक कामों से पूरी तरह मुक्त रखना होगा ताकि बच्चे बच्चे सीखने की उम्र में रुचि के साथ सीख सकें।
ग्रामीण क्षेत्रों में शैक्षिक संसाधनों की कमी को पूरा करने के लिए एक ठोस रणनीति पर अमल करने की जरूरत है। जिसमें बुनियादी ढांचा और सुविधाएं उपलब्ध कराना अहम हैं। इनमें क्लास रूम की सुविधा उपलब्ध कराना, उचित स्वच्छता सुविधाओं को मुहैया कराना, शौचालय विशेष रूप से लड़कियों के लिए, साथ ही बिजली और पीने का साफ पानी मुख्य रूप से शामिल है।
भारत में नई शिक्षा नीति लागू कर दी गई है। इसके तहत विश्वविद्यालय स्तर पर अनेक ऐसे नए पाठ्यक्रम चलाये जा रहे हैं जो न केवल अतार्किक, विज्ञान और प्रगति विरोधी हैं बल्कि आज के दौर में बेमतलब है। भारतीय ज्ञान परंपरा के नाम पर फलज्योतिष, विमानशास्त्र , पौरोहित्य जैसे पाठ्यक्रम पढ़ाये जा रहे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में शिक्षामंत्री रहे डॉ मुरली मनोहर जोशी के आदेश से चलाये जाने वाले पौरोहित्य पाठ्यक्रम पर सवाल उठा था कि दलित जाति के विद्यार्थियों द्वारा यह उपाधि लेने पर क्या उनका चयन मंदिर के पुजारी के रूप में होगा? उस समय संघी विद्वान इसका जवाब नहीं दे पाये थे। अब अधिक सुनियोजित तौर पर ऐसे पाठ्यक्रमों को बनाया गया और 'मजबूत' सरकार द्वारा आसानी से लागू किया गया है। पिछले दस सालों में विश्वद्यालयीन शिक्षा-प्रणाली और तंत्र में आए परिवर्तनों पर प्रमोद मुनघाटे का विचारणीय लेख।
संविधान में सभी को बराबरी का अधिकार मिला हुआ है लेकिन समाज संविधान में दिये गए अधिकारों को अनदेखा कर लड़कियों के लिए अपने बनाए नियम थोपता है। पिछड़े इलाकों में लड़कियों की शिक्षा को लेकर बंदिश लगाई जाती हैं, जो उन्हे आगे बढ्ने से रोकती है।
विगत वर्षों में प्रदेश की बेसिक शिक्षा प्रणाली में कई ऐसे परिवर्तन हुये हैं जो उसको पतन के रास्ते पर ले जाने के जिम्मेदार हैं। एक दौर था जब बेसिक शिक्षकों ने विद्यार्थियों की मजबूत पीढ़ियों का निर्माण किया लेकिन कान्वेंट और कोचिंग से पढ़कर निकले अफसरों के दिमाग को पूंजी की तेज धार ने ध्वस्त कर दिया और उन्होंने भी बेसिक शिक्षा प्रणाली को अपने फायदे का माध्यम बना लिया। आज उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा विभाग ने अध्यापकों पर डिजिटलीकरण का इतना बोझ डाल दिया है कि वे केवल ऊपर से तय किए मानकों की पूर्ति करने में लग गए हैं। चाहे मिड डे मील हो या नामांकन का लक्ष्य हो अथवा डिजिटल हाजिरी। उन्हें हर हाल में विभाग को भरोसा दिलाना है कि वे अपनी जगह पर चाक-चौबन्द हैं। ऐसे में विद्यार्थियों की पढ़ाई और बौद्धिक विकास लगातार दयनीय हालत में पहुँच गया है।
4 जून से पहले, चुनाव को लेकर जहां पूरे देश में अलग-अलग पार्टियों की राजनीति चर्चा केंद्र में थी, वहीं 4 जून को नीट के नतीजे आने बाद नीट पपेरलीक होने की चर्चा हो रही है। फिर 18 जून को नेट परीक्षा का पेपरलीक हो गया। परीक्षा एजेंसी ने दुबारा परीक्षा करवाने की बात जरूर कही है लेकिन क्या आने वाले दिनों में पेपरलीक नहीं होगा, इसका भरोसा युवा कैसे करें?
हाल ही में उत्तर प्रदेश में शिक्षा विभाग के प्राथमिक शिक्षकों को दस बच्चों के एनरोलमेंट का फरमान जारी किया गया और टार्गेट पूरा न करने पर उनका इंक्रीमेंट रोक देने की धमकी दी गई। लेकिन पिछले अनुभवों के आधार पर देखा गया है कि प्रवेश देने के रिकॉर्ड अभियान को बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिली है और बच्चे बड़ी संख्या में ड्रॉप आउट हुये हैं। इस मुद्दे पर अपर्णा की टिप्पणी।
सरकार सर्व शिक्षा अभियान चलाती है, स्कूल खुलने पर प्रवेशोत्सव का आयोजन करती है ताकि गाँव का हर बच्चा स्कूल जाकर साक्षर हो सके लेकिन सवाल यह उठता है कि प्रवासी मजदूरों के साथ शहर जाने वाले बच्चे कैसे स्कूल जाएँ क्योंकि उनका न जनम प्रमाणपत्र बन पाता है और न ही वे लोग लंबे समय तक एक जगह रहकर काम करते हैं। ऐसे में उनके जैसे बच्चे कभी स्कूल का मुंह नहीं देख पाते।