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ग्राउंड रिपोर्ट

इलेक्टोरल बॉन्ड का भंडाफोड़ : पीएम केयर्स फंड का नंबर कब आएगा?

पीएम केयर्स फंड की स्थापना से लेकर संचालन तक पर सवाल हैं। सरकार ने इसका ऑडिट क्यों नहीं होने दिया? इसे आरटीआई के दायरे में क्यों नहीं लाया गया?

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इलेक्टोरल बॉन्ड की जो जानकारियां सामने आईं, उनसे यह साबित हुआ कि इस स्कीम के बारे में विपक्षी पार्टियों और जानकारों की आशंकाएं सही थीं। इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये शेल कंपनियों से चुनावी चंदा लेना और चंदा देने वालों के नाम गुप्त रखने जैसे तथ्य भयानक भ्रष्टाचार की ओर इशारा करते हैं।

शेल कंपनियों के जरिये चुनावी चंदा लेने का मतलब है कि सरकार ने खुद ही कानून बनाकर चुनावों में काला धन खपाने का रास्ता तैयार किया था। अब तक जो तथ्य सामने आए हैं, वे केंद्रीय एजेंसियों द्वारा कंपनियों पर छापेमारी करके चंदा वसूलने और चंदा देकर प्रोजेक्ट हासिल करने जैसे कदाचार की ओर इशारा करते हैं।

पीएम केयर्स फंड पर सवाल

इसी तरह से एक और मामले में सरकार सवालों के घेरे में है। वह है – पीएम केयर्स फंड। अप्रैल, 2023 में आई भास्कर की रिपोर्ट में कहा गया कि सरकार की हिस्सेदारी वाली कंपनियों ने कुल 2,913.60 करोड़ रुपए पीएम केयर्स फंड में दान किए। यह जानकारी खुद सरकार ने नहीं दी थी, बल्कि कंपनियों पर नजर रखने वाली एक निजी फर्म प्राइम इन्फोबेस डॉटकॉम ने दी थी।

सरकारी कंपनियों ने दिए 2,913.60 करोड़

इस रिपोर्ट के मुताबिक, पीएम केयर्स फंड में दान देने वाली कुल 57 कंपनियां ऐसी हैं जिनमें सरकार की बड़ी हिस्सेदारी है, अर्थात ये सरकारी कंपनियां हैं। पीएम केयर्स फंड में कंपनियों की ओर से कुल 4,910.50 करोड़ रुपए दिए गए, जिसमें से 60% हिस्सा यानी 2,913.60 करोड़ सरकारी कंपनियों से आया। इन दानदाता कंपनियों में 247 निजी और 57 सरकारी कंपनियां हैं।

इन 57 सरकारी कंपनियों में सबसे ज्यादा 370 करोड़ रुपए की रकम ONGC ने दी। इसी तरह NTPC ने 330 करोड़, पावरग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया ने 275 करोड़, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन  ने 265 करोड़ और पावर फाइनैंस कॉर्पोरेशन ने 222.4 करोड़ रुपए दिए। यह जानकारी सामने आने के बाद यह सवाल उठा कि क्या इन सरकारी कंपनियों ने बिना किसी दबाव के इतनी बड़ी धनराशियां दान कीं?

आपदा में अवसर

कोरोना महामारी आई तो प्रधानमंत्री ने देशवासियों से कहा कि आपदा को अवसर में बदलना है। इसका क्या मतलब था पता नहीं, लेकिन पीएम केयर्स फंड आपदा में अवसर का सबसे आला उदाहरण है। कोरोना महामारी के बीच ही इस फंड की शुरुआत की गई। प्रधानमंत्री खुद इसके चेयरमैन बने और गृहमंत्री, रक्षामंत्री व वित्तमंत्री इसके ट्रस्टी हैं। गौरतलब है कि देश में पहले से प्रधानमंत्री राहत कोष मौजूद था, जो पूरी तरह से पारदर्शी व्यवस्था थी। प्रधानमंत्री राहत कोष पर कभी कोई सवाल नहीं उठे क्योंकि उसकी पारदर्शिता थी, सरकार उसका ऑडिट कराती थी और ऑडिट रिपोर्ट जारी होती थी। पीएम केयर्स का मामला इसके उलट है।

पीएम केयर्स फंड बनाने के बाद खुद प्रधानमंत्री ने देशवासियों से अपील की कि महामारी का सामना करने के लिए इस फंड में यथासंभव दान करें। उनकी अपील पर लाखों देशवासियों ने दान किया। यह कोई नई बात नहीं थी। देश में पहले सरकार नागरिकों से सहयोग मांगती रही है। भारत चीन युद्ध के दौरान इंदिरा गांधी ने एक अभियान चलाया जिसमें देश की लाखों महिलाओं ने अपने गहने दान कर दिए थे ताकि हमारे सैनिकों को जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई जा सकें।

पीएम केयर्स में भी घोटाला है?

पीएम केयर्स फंड के लिए प्रधानमंत्री की अपील पर भी ऐसा ही हुआ। लोगों ने यह माना कि देश का प्रधानमंत्री नागरिकों से मदद मांग रहा है और यह उनका फर्ज है। सक्षम लोगों ने स्वेच्छा से पीएम केयर्स फंड में दान किए। पूरे देश में सरकारी कर्मचारियों के वेतन से जबरन पैसे काटकर पीएम केयर्स फंड में डाले गए।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पीएम केयर्स फंड को इसकी स्थापना से मार्च, 2022 तक 13,000 करोड़ का फंड मिला। कांग्रेस पार्टी ने मीडिया के हवाले से दावा किया है कि इस फंड को कम से कम 12,700 करोड़ रुपए का दान प्राप्त हुआ।

2020 में ही एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया था कि प्रधानमंत्री की अपील पर उद्योगपति गौतम अडानी ने पीएम केयर्स फंड में 100 करोड़ रुपये का दान किया।

कांग्रेस पार्टी का दावा है कि संदेहास्पद रूप से, कई चीनी कंपनियों ने पीएम केयर्स फंड में दान दिया है। ऐसे समय में जब चीन भारत की भूमि पर अतिक्रमण कर रहा है, तब भी इन फर्मों से दान लिया गया है।

चार साल बाद भी यह स्पष्ट नहीं है कि पीएम केयर्स फंड की स्थापना क्यों की गई और किससे कितना धन प्राप्त हुआ। इसमें आए धन को कैसे वितरित किया गया और इसके प्रशासनिक ढांचे में पारदर्शिता की इतनी कमी क्यों है?… इलेक्टोरल बांड की तरह ही पीएम केयर्स भी एक घोटाला है।

पीएम केयर्स निजी फंड क्यों?

जब महामारी बीत गई, उसके बाद सवाल उठे कि पीएम केयर्स फंड में जमा हुए हजारों करोड़ रुपये कहां गए? आरटीआई के जरिये सामने आया कि सरकार इसे सार्वजनिक फंड नहीं मानती, इसलिए सरकार इस बारे में कोई सूचना देना नहीं चाहती। यह मामला कोर्ट पहुंचा और सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि पीएम केयर्स फंड सरकारी फंड नहीं है इसीलिए यह आरटीआई के दायरे में नहीं आता। यह निजी ट्रस्ट है।

इसके बाद कुछ जायज सवाल उठते हैं कि अगर पीएम केयर्स सरकारी फंड नहीं है तो इसकी घोषणा देश के प्रधानमंत्री ने क्यों की? उन्होंने इस फंड में दान की अपील क्यों की? प्रधानमंत्री इसके चेरयमैन क्यों हैं? यह फंड प्रधानमंत्री के नाम पर क्यों है? इस कथित निजी ट्रस्ट में सरकार के मंत्री क्यों हैं? पीएम केयर्स फंड की वेबसाइट को सरकारी डोमेन क्यों दिया गया? इस फंड के साथ प्रधानमंत्री का नाम क्यों लगा है? प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर इसकी सूचनाएं क्यों दी जाती हैं? क्या देश के प्रधानमंत्री अपने पदनाम से निजी फंड चला सकते हैं? क्या राज्यों के मुख्यमंत्री भी अपने अपने नाम से निजी फंड बना सकते हैं? क्या संवैधानिक पदों पर बैठे लोग अपने पदनाम से निजी फंड बना सकते हैं?

आरोप है कि पीएम केयर्स फंड में पाकिस्तान और चीन  से भी पैसे आए। पीएम केयर्स फंड में विदेशों से पैसे लेने के लिए भारतीय दूतावासों ने भी सहयोग किया और विदेशी चंदा लिया गया। केंद्र सरकार की ओर से इस फंड ने कॉरपोरेट्स और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से दान लिया और बदले में उन्हें आयकर में छूट दी गई। कोरोना महामारी के दौरान सरकारी मशीनरी का उपयोग करके इस फंड को वेंटिलेटर, ऑक्सीजन, वैक्सीन आदि पर खर्च किया गया।

पीएम केयर्स फंड में इलेक्टोरल बॉन्ड?

इलेक्टोरल बॉन्ड का मामला उछलने के बाद सामने आया 187 बॉन्ड को पीएम केयर्स फंड में डायवर्ट किया गया। इसमें कितना पैसा था, यह नहीं मालूम है। मीडिया रिपोर्ट से सामने आ चुका है कि इलेक्टोरल बॉन्ड में शेल कंपनियां भी शामिल हैं जिनके जरिये काला धन पार्टियों को दिया गया। तो क्या यह माना जाए कि पीएम केयर्स में भी काले धन का प्रवेश हो चुका है?

इन प्रश्नों के जवाब बेहद अहम 

जाहिर है कि इस फंड के बारे में ​जितना मालूम है, जो जानकारी सार्वजनिक की गई है, वह बहुत कम है। इसकी स्थापना से लेकर संचालन तक पर सवाल हैं। सरकार ने इसका ऑडिट क्यों नहीं होने दिया? इसे आरटीआई के दायरे में क्यों नहीं लाया गया? इसे प्रधानमंत्री के नाम पर क्यों चलाया जा रहा है जिसके प्रमुख खुद प्रधानमंत्री है? क्या प्रधानमंत्री द्वारा प्रधानमंत्री के नाम पर निजी फंड चलाना संवैधानिक है? क्या संवैधा​निक पद पर बैठा व्यक्ति संविधान के बाहर जाकर निजी कंपनी की तरह काम कर सकता है? क्या इस फंड को कानून और संविधान से अनुमति या सुरक्षा प्राप्त है? क्या पीएम केयर्स फंड को संसद की मंजूरी और नियम-कानूनों की जंरूरत नहीं है? अगर पीएम केयर्स में कोई गड़बड़ी नहीं है तो सरकार इसे पारदर्शी क्यों नहीं बनाती है? अगर इसमें भ्रष्टाचार नहीं हुआ है तो सरकार पारदर्शिता क्यों नहीं बरत रही है?

इलेक्टोरल बॉन्ड का खेल सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर हजारों लोगों ने यह सवाल उठाया कि जिस तरह इलेक्टोरल बॉन्ड के बारे में आशंकाएं सच साबित हुईं, उसी तरह पीएम केयर्स पर भी अनगिनत सवाल हैं और इनका जवाब मिलेगा तो तथ्य बेहद चौंकाने वाले होंगे।

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