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ग्राउंड रिपोर्ट

झारखंडः हाथियों के हमले में मारे जा रहे आदिवासी और किसान, यह चुनावों में मुद्दा क्यों नहीं होता ?

झारखंड के अलग-अलग इलाकों के जंगलों-पहाड़ों से घिरे-सटे और तलहटी वाले गांवों में हाथी- मानव संघर्ष का अंतहीन सिलसिला जारी है। इसमें जान-माल की लगातार क्षति हो रही है। घरों को ढाह दिये जाने और अनाज खा जाने से संकट की तस्वीर पीड़ादायक होती है। हाथियों के हमले में मारे जाने वाले लोगों में अधिकतर आदिवासी, साधारण किसान, महिला और मजदूर होते हैं। सैकड़ों गांव भय के साये में रहते हैं, लेकिन अफसोस की बात है कि चुनावों में यह मुद्दा नहीं होता। पड़ताल करती एक ग्राउंड रिपोर्ट..

‘खेतों में लगी फसलों को हाथी रौंद डालते, हमारा घर ढाह देते, पर बाबा को छोड़ देते। अभी उनकी उम्र ही क्या थी- 53 साल। जिस सुबह उनकी लाश दरवाजे पर पड़ी थी, उसके अगले दिन एक बहन का ब्याह होना था। हमलोग मड़वा की तैयारियों में जुटे थे। अचानक हम भाई-बहनों की आंखों के सामने अंधेरा छा गया। उन पलों को भूल पाना मुमकिन नहीं। उस दिन ब्याह को टालना पड़ा।’

 25 साल के आदिवासी युवक रामफल मुंडा यह कहते हुए खामोश हो जाते हैं। कुछ क्षण बाद खेतों और पेड़ों की ओर देखते हुए कहते हैं, ‘वहीं पर हाथियों ने बाबा को कुचल कर मार डाला था। इस बीच रामफल मुंडा अपनी छोटी बहन सुशीला को आवाज देते हैं कि जल्दी ही खेतों से घर लौट जाना।’

 झारखंड की राजधानी रांची जिले के बेड़ो प्रखंड के हरहंजी गांव में खुराटोली के रहने वाले इस आदिवासी युवक के पिता मट्टू मुंडा को 25 फरवरी को हाथियों ने पटककर मार डाला था।

Elephant Killed tribal
हाथी के हमले के बारे में जानकारी देते मृतक मुट्टू मुंडा के पुत्र रामफल मुंडा

रामफल मुंडा हमें खेतों में लगी फसलों की बर्बादी और घटना स्थल दिखाने जा रहे थे। उन्होंने बताया, ‘पिता की मौत के बाद खेती और जानवर संभालना थोड़ा मुश्किल हो गया है। पिता घर पर रहते थे, तो वे (रामफल) खुद भी कमाने परदेस जाते थे, पर अब संभव नहीं लगता।’

आदिवासी युवक को इसका भी दुःख है कि जब वे छोटे थे, तो उनकी दादी को भी हाथियों ने मार डाला था। रामफल के दो भाई और तीन बहनें हैं। एक भाई विजय मुंडा परिवार के साथ असम में मजदूरी करने गए हैं। पिता की मौत पर विजय मुंडा परदेस से गांव नहीं आ सका। रामफल ने बताया कि बहन जीतन का जो ब्याह 26 फरवरी को था, उसे अब जाकर किया गया है।

आदिवासी युवक की यह पीड़ा बानगी भर है। झारखंड के अलग-अलग इलाकों के जंगलों-पहाड़ों से घिरे, सटे और तलहटी वाले गांवों में हाथियों के बदले मिजाज से जान-माल की लगातार क्षति हो रही है। पिछले साढ़े तीन महीनों के दौरान कम से कम 25 लोगों को हाथियों ने कुचलकर अथवा पटककर मार डाला है।

पांच परगना के बांस वन क्षेत्र में एक हाथी बना ग्रामीणों के लिए संकट

हाल के दिनों में खेतों में लगी फसलों और घरों के ढाने के भी दर्जनों घटनाएं सामने आती रही हैं। कोल्हान, दक्षिणी छोटानागपुर, उत्तरी छोटानागपुर के कई इलाके हाथी-मानव संघर्ष के लिए भी संवेदनशील रहे हैं। इनमें रांची का पांच परगना क्षेत्र भी शामिल है, जहां जनवरी महीने में ही 6 लोगों की जान गई है।

बेहद मुश्किलों में जी रहे ग्रामीण

रामफल मुंडा के साथ में ही चल रहे हरहंजी गांव के एक अन्य युवक कृष्णा नायक ने बताया, ‘एक-डेढ़ महीने से बहुत मुश्किल में वक्त गुजर रहा है। काम-धाम तो छोड़ नहीं सकते। कृष्णा के मुताबिक वन विभाग वाले हाथियों को भगाने के लिए ग्रामीणों को मुक्कमल रूप से पटाखे, लाइट, मशाल जलाने के लिए केरोसिन मुहैया नहीं कराते। नदी में मछली पकड़ने जा रहे रामनाथ नायक बताने लगे, अब तो पटाखे फोड़ने या टॉर्च मारने पर भी हाथी पीछे नहीं हटते। पैर जमाये खड़े हो जाते हैं।’

हरहंजी में 53 आदिवासी और 11 नायक (मछुवारा) परिवार रहते हैं। चारों तरफ वनों से घिरे इस गांव के आदिवासी परिवारों के जीने का मुख्य आधार खेती-बाड़ी, मजदूरी और जंगलों से मिलने वाले वनोत्पाद हैं। जबकि नायक परिवार के लोग मजदूरी करने, नदियों में मछली पकड़ने और ढोल-ढाक बजाने का काम करते हैं।

एक पीसीसी सड़क इस गांव से गुजरती है। सड़क के दोनों ओर आदिवासी परिवारों ने गेंहू, प्याज की खेती की है। वनों के सामने से एक पठारी नदी गुजरती है। इसी नदी का इस्तेमाल लोग सिंचाई में करते हैं। कुछ आदिवासी परिवारों की खेतों में गेंहू और प्याज की फसल तैयार होने को है। लेकिन खेत होकर ही हाथियों के गांव में घुस जाने से फसलें चौपट हो रही हैं।

नदी की तरफ से आते गांव के बुती मुंडा खेतों में मिले। मुंडा बताने लगे कि इस बार बारिश ने धोखा दिया। धान की खेती नहीं हो सकी।

इसके बाद गेंहू और प्याज की खेती में हम लोगों ने पूरी हिम्मत और मेहनत लगा दी लेकिन हाथी एकदम से बर्बाद करने पर तुले हैं। कुछ समझ में नहीं आता क्या करें। जान पर खतरा अलग से। कभी एक तो कभी तीन हाथी आ रहे हैं। कुछ दिन पहले दिन में ही गांव में हाथी घुस गए थे।’

गांव में घुसने के दौरान खेतों में हाथियों के पैर के निशान।

निकट के ही एक खेत में खड़ी आदिवासी महिला शालू मुंडा अपना कलेवा साथ लेकर आई हैं। वो बताने लगीं कि हम लोग के पास खेत ज्यादा नहीं हैं पर चार-छह टुकड़ों में ही मेहनत करते रहते हैं। सुबह होते ही ध्यान खेतों पर चला जाता है। डर लगा रहता है कि खेत रात में हाथियों ने बर्बाद तो नहीं कर दिए। इसी ख्याल से चली आती हूं।

सड़क किनारे एक विशाल फुटकल के पेड़ पर एक मचान बना था। रामफल मुंडा बताने लगे कि जान-माल की रखवाली के लिए युवा और मर्द पारी-पारी से मचान पर चढ़कर रातजगा करते हैं। साथ में टार्च और पटाखे रखते हैं। हाथियों के आने पर जब पटाखे फोड़ते हैं, तो गांव वालों को पता चल जाता है कि हाथी गांवों में घुस रहे हैं।’

हरहंजीः फुटकल के पेड़ पर मचान बनाकर फसलों को बचाने के लिए ग्रामीण रतजगा करते हैं।

आदिवासी, साधारण किसान और गरीब 

बर्बादी और दहशत को जानने ऊबड़-खाबड़ रास्ते, जंगलों से गुज़रते हम कई गांवों में पहुंचे। तथ्यों पर गौर करने से पता चलता है कि हाथियों के हमले में मारे जाने वालों में अधिकतर आदिवासी, साधारण किसान और गरीब होते हैं। घर भी इन लोगों के ही तोड़े जाते हैं और फसलें भी इनकी ही नष्ट होती हैं। हाथी-मानव संघर्ष का यह सिलसिला लंबा है, पर अफसोस यह चुनावों में मुद्दा नहीं होता।

सिमडेगा जिले के ठेठईटांगर के गांवों में भी हाथी घरों को तोड़ रहे

हाल के दिनों में रांची, खूंटी, सिमडेगा, बोकारो, चाईबासा, सारंडा के इलाकों से जान- माल की क्षति की लगातार खबरें मिल रही हैं। सिमडेगा जिले के बानो, बांसजोर, ठेठईटांगर, जलडेगा के अलग-अलग गांवों में हाथी लगातार लोगों के घरों में तोड़फोड़ मचा रहे है। घरों में रखा अनाज खा जा रहे हैं। जानकारी के मुताबिक 22 मार्च की रात बांसजोर और जलडेगा प्रखंड में झुंड से बिछड़े एक हाथी ने आधे दर्जन से अधिक आदिवासी परिवारों के घरों को क्षतिग्रस्त कर दिया। कई क्विंटल अनाज खा गए। दीवार गिरने से घर में रखा सामान बर्बाद हो गया।

सिमडेगा के बांसजोर, जलडेगा के गावों में हाथियों का कहर, पीड़िता से मिलते वनकर्मी

इस इलाके के लोग बताते हैं कि दर्जनों गांव ऐसे होंगे जहां शाम ढलते ही लोग दहशत के साए में घिर जाते हैं। घरों के क्षतिग्रस्त हो जाने के चलते कई परिवारों के सामने रहने का संकट पैदा हो रहा है। पीड़ित परिवार के सदस्य बताते हैं कि हाथी जब धमकते हैं, तो उन पलों में आंखों के सामने सिर्फ मौत नाचती रहती है। इस खौफ से निकलना आसान नहीं होता।

जंगल में दातुन-पत्ता तोड़ने, लकड़ी लाने, अहले सुबह घरों से निकलने, घने इलाके से शाम में लौटने या घरों में घुसकर अनाज खाने के दौरान हाथी लोगों की जान लेते रहे हैं। जबकि झुंड से बिछड़ा कोई एक हाथी सबसे ज्यादा हमलावर होता है। हालांकि हाथियों को बसावट वाले क्षेत्रों में जंगलों में भेजने के लिए लगातार ड्राइव भी चलाये जाते हैं।

हाल की घटनाओं में आदिवासियों की मौत

7 मार्च- चाईबासा के सोसोपी गांव में गर्भवती महिला सुकुरमुनी तीउ को मार डाला।

7 मार्च- चाईबासा में टोंटो के दोकट्ठा गांव निवासी सुरा खंडाइत को पटककर मार डाला।

25 फरवरी- बोकारो के ललपनिया क्षेत्र में सुहानी हेंब्रम, शानू मुर्मू समेत तीन की जान ली।

16 फरवरी- चाईबासा के सामठा गांव में बिरसा जोजो को पटककर दो टुकड़ों में विभाजित कर दिया।

14-15 फरवरीः पूर्वी सिंहभूम में क्यूआरटी टीम के सदस्य बाबुल बास्के को पटककर मार डाला।

11 जनवरी- खूंटी के एक गांव में घर धंसा दिए, दीवार में दबने से बुधनी पहनाइन की मौत।

6 जनवरीः रांची के राहे इलाके में हुसीरबेड़ा गांव के माड़राय मुंडा को कुचलकर मार डाला।

31 दिसंबर- सिमडेगा के जलडेगा में बिरसा जोजो को पटककर मार डाला।

9 दिसंबरः सिमडेगा के बानो स्थित एकोदा गांव में मरियम मुड़ाइन समेत दो की जान ले ली।

वन क्षेत्र, कॉरिडोर और मौत के आंकड़े

इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021 के मुताबिक झारखंड में 23,731 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र (कुल भौगोलिक क्षेत्र का 29.71 प्रतिशत) है। इनमें 2601.05 वर्ग किलोमीटर अति घना वन क्षेत्र (वेरी डेंस फॉरेस्ट एरिया) जबकि 5706 वर्ग किलोमीटर मॉडिरेटली डेंस है।

झारखंड सरकार के वन पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन विभाग (वाइल्ड लाइफ) ने एक मैप तैयार किया है। इसमें पता चलता है कि कम से कम 26 फॉरेस्ट डिवीजन में 2015 से 2022 के दौरान हाथियों ने किसी न किसी व्यक्ति को मारा है। इनमें ज्यादा जानें आदिवासी बहुल चाईबासा, सिमडेगा, खूंटी, धालभूम में गई हैं।

बीती नौ फरवरी को संसद में एक सवाल के जवाब में वन, पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन विभाग के केंद्रीय राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने बताया है कि झारखंड में (सेंसस-2017) हाथियों की संख्या 679 है।

इससे पहले आठ फरवरी को संसद में ही एक सवाल के जवाब में केंद्रीय वन पर्यावरण राज्य मंत्री ने बताया है कि ईस्ट रीजन स्थित झारखंड में 2019- 2023 के बीच हाथियों के हमले में 387 लोगों की मौत हुई है। इनमें अकेले 2021-22 में सर्वाधिक 133 लोग मारे गए। यह संख्या देश भर में सबसे ज्यादा थी। इससे पहले साल 2018 में झारखंड में 87 लोगों की मौत हुई।

लिहाजा इंसान-हाथी संघर्ष की कई घटनाओं के मामले फॉरेस्ट वालों के लिए चुनौतियां बनते रहे हैं। साल 2017 में साहिबंगज के पहाड़ी इलाके में आंतक का पर्याय बने एक बिगड़ैल हाथी को सरकारी आदेश के तहत मारने के लिए देश के जाने-माने शूटर नवाब शहफत अली खान को बुलाया गया था। अली खान दर्जनों जानवरों को ट्रैंकुलाइज (बेहोश) कर पकड़ भी चुके हैं।

आईएफएस अधिकारी और सिमडेगा के डीएफओ विकास कुमार उज्जवल जमीनी स्तर पर हाथियों के विस्थापन और व्यवहार को देखते-समझते रहे हैं। वे बताते हैं, माइग्रेशन का पैटर्न हाथियों की जीवनशैली से जुड़ा है। अक्सर हाथी एक साथ 25-30 के झुंड में चलते हैं। कभी-कभी यह संख्या 50-60 तक हो सकती है। एक हाथी को डेढ़ से दौ सौ लीटर तक पानी की आवश्यकता होती है। साथ ही वह डेढ़ सौ किलो खाता है। तब बड़े झुंड के लिए खाना मिलना चैलेंज होता है। इसलिए उन्हें हमेशा माइग्रेट करना पड़ता है। इसके अलावा खाने में टेस्ट चेंज करने के लिए उनके व्यवहार में बदलाव देखा जा रहा है। उन्हें धान, मकई, चावल और अन्य फसलों का स्वाद मिल गया है।

अब वे ग्रीन फील्ड (फसलों वाली खेतों में) चले जाते हैं। साथ ही अनाज खाने गांवों में घुसते हैं। बहुत ग्रामीणों के घर छोटे हैं। एक ही कमरे में अनाज भी रखा है और लोग सोते भी हैं।

हाथियों की मौत अलग चिंता का विषय

हाल ही में भारतीय वन्यजीव संस्थान ने देशभर में हाथियों की गतिविधियों के आधार पर मौका मुआयना करने के बाद एलिफेंट कॉरिडोर्स ऑफ इंडिया 2023 रिपोर्ट तैयार की है। इसके तहत झारखंड के भीतर और दूसरे राज्यों से जुड़े 17 इलिफेंट कॉरिडोर चिह्नित किए गए हैं। अब ये गलियारे जहां-जहां खंडित हैं, उन्हें अवरोध मुक्त बनाने के प्रयास किए जाएंगे। कॉरिडोर में गैर मजरुआ भूमि, निजी भूमि पर भी हाथियों के मार्ग को अवरोध मुक्त बनाते हुए हाथियों के भोजन का पर्याप्त आधार उपलब्ध कराया जाएगा, ताकि हाथियों का झुंड अपने मार्ग से भटके नहीं।

दूसरी तरफ झारखंड में हाथियों की मौत की घटनाएं भी सुर्खियों में रही है। हाथियों की इन मौतों पर भी सवाल उठते रहे हैं। हाथियों की मौत की मुख्य वजहें वन क्षेत्र से गुजरने वाली ट्रेनों की चपेट में आना, बिजली के झटके लग जाना और अवैध शिकार के प्रयास रहे हैं। पिछले साल नवंबर महीने में ही पूर्वी सिंहभूम में 7 और गिरिडीह में एक हाथी की बिजली के झूलते तारों और झटकों की वजहों से मौत हुई है। इस मामले में केंद्र से एक उच्च स्तरीय टीम ने यहां आकर जांच की और लापवारवाहियों पर नाराजगी जाहिर की है।

गौरतलब है कि पिछले 5 वर्षों में देश के 10 राज्यों में बिजली के झटके से 370 हाथियों की जान चली गई। इन 10 राज्यों में झारखंड भी शामिल है।

मुआवजे की प्रक्रिया को कठिन बताते हुए बिरसा उरांव

मुआवजे की कठिन प्रक्रिया

ग्रामीणों और पीड़ित परिवारों से बातचीत में पता चला कि मुआवजे की प्रक्रिया पूरी करने में इतना वक्त लग जाता है कि गरीबों को कई महीने तक दर्द सहना होता है। हाथी-मानव संघर्ष में मृत्यु होने पर आश्रितों को बतौर मुआवजा चार लाख रुपये दिये जाने का प्रावधान है। हालांकि घटना के बाद तात्कालिक सहायता के रूप में सिर्फ 10 से 25 हजार रुपये ही दिये जाते हैं। इसके अलावा गंभीर रूप से पक्के मकान के क्षतिग्रस्त होने पर 40 और कच्चा मकान के क्षतिग्रस्त होने पर 20 हजार रुपये दिए जाते हैं।

हरहंजी गांव के ही बिरसा उरांव मुआवजे की बात पर गुस्सा जाहिर करते हुए कह रहे थे कि जब जान-माल का नुकसान होता है, तो जंगल विभाग (फॉरेस्ट) वाले कहते हैं कि पहाड़-जंगल के किनारे काहे घर बना लेते हो। पुरखों के समय से यहीं रहते आये हैं, तो इन जगहों को छोड़कर कहां जाएं। दूसरा- जितना मुआवजा देने की बात वे करते हैं, वह नुकसान की भरपाई में कम होता है और इसे पाने के लिए यहां कागज भरो, वहां कागज दो…।

कोल्हान में चाईबासा के डीएफओ सत्यम कुमार का कहना है कि कॉरिडोर (माइग्रेटरी पार्ट) में कोई बदलाव नहीं देखा जा रहा है, लेकिन जब हाथियों के झुंड बसावट वाले क्षेत्र में आ जाते हैं, तो संघर्ष होता है। इन संघर्षों को रोकने के लिए लगातार विषेषज्ञों द्वारा अध्ययन और शोध किए जा रहे हैं। कई तकनीक का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। हाथियों के कॉरिडोर को ग्रीन बनाना और बसावट वाले क्षेत्रों में ग्रामीणों के द्वारा खेती पैटर्न को बदलने-मसलन धान के बदले बांस की खेती से एक अच्छा समाधान निकल सकता है। संघर्ष कम हो सकता है।

नीरज सिन्हा
नीरज सिन्हा
लेखक झारखंड में वरिष्ठ और स्वतंत्र पत्रकार हैं तथा रांची में रहते हैं।

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