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यूपी में किसान बेहाल, सरकार की नज़र में सब हैं खुशहाल

वाराणसी। ‘पहले किसान कर्ज में डूबा था आज खुशहाल है’, यह बात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने एक बयान  में कही। यह भी कहा है कि जब से प्रदेश में बीजेपी की सरकार आयी है तब से किसानों में खुशहाली आयी है। बंद पड़ी चीनी मिलों को चालू कराया और बकाया गन्ना किसानों का भुगतान […]

वाराणसी। ‘पहले किसान कर्ज में डूबा था आज खुशहाल है’, यह बात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने एक बयान  में कही। यह भी कहा है कि जब से प्रदेश में बीजेपी की सरकार आयी है तब से किसानों में खुशहाली आयी है। बंद पड़ी चीनी मिलों को चालू कराया और बकाया गन्ना किसानों का भुगतान किया गया। यह किसानों के लिए खुशी की बात है। सीएम योगी दावा करते है कि यूपी के 86 लाख किसानों का कर्ज माफ किया। जबकि 2017 से पहले प्रदेश के किसान आत्महत्या करने को मजबूर थे। वह कर्ज में डूबे हुए थे। खेती के लिए बिजली, खाद और सिचाई की कोई व्यवस्था नहीं थी।

योगी के दावे से इतर देखा जाए तो उत्तर प्रदेश के साथ ही देश में जब से बीजेपी की सरकार आई है तब से वह लगातार सिर्फ कार्पोरेट हित में काम करती जा रही है। दूसरी तरफ किसान बेहाल हैं और आत्महत्याओं का दौर बदस्तूर जारी है।

देखा जाय तो अकेले उत्तर प्रदेश में 2017 से 2021 के बीच 398 किसानों ने आत्महत्यायें की। राज्यसभा में एक लिखित प्रश्न का जवाब देते हुए कृषि मंत्री ने यह बात बतायी थी। वहीं, 2014 के एक आंकड़े पर गौर करें तो इस वर्ष महज 145 किसानों ने आत्महत्या की है।

एक तरफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में किसानों के खुशहाली की बात कर रहे हैं जबकि जमीनी स्तर पर  इसकी सच्चाई कुछ और ही नजर आती है। वाराणसी के बाबतपुर के तीन गांवों के किसान लाल बहादुर शास्त्री एयरपोर्ट के विस्तारीकरण में अपनी जमीन जाने से परेशान हैं। किसान अपनी जमीन को बचाने के लिए इधर-उधर भटक रहे हैं। उनकी समझ में नहीं आ रहा है की वे किस अधिकारी के पास जाएं, जिससे उनकी जमीन बच जाय।

आरोप है कि उनकी जमीन को सरकार औने-पौने दाम में लेना चाहती है, लेकिन किसान ऐसा हरगिज नहीं होने देंगे। चाहे इसके लिए उन्हें अपने प्राणों की बलि ही क्यों न देनी पड़े। वाराणसी में ट्रान्सपोर्ट नगर बनाने के नाम पर बहुत पहले से चार गांवों की जमीन लेने की विकास प्राधिकरण (VDA) कोशिश कर रहा है। इसीलिए बीते वर्ष मार्च में बैरवन गांव के निवासियों पर पुलिस ने बर्बरतापूर्वक लाठी चार्ज किया था।

किसानों पर हो रहे अत्याचार की कहानी यहीं खत्म नहीं होती। वाराणसी के जाल्हूपुर परगना के चार गांवों की 109 एकड़ जमीन को बंजर के रूप में चिन्हित कर उन्हें हड़पने का प्रयास जिला प्रशासन द्वारा किया गया। हालांकि, बाद में राजस्व ने इस पर स्टे लगा दिया। राज्य सरकार के इशारे पर किसानों पर जुल्म की दास्तां का एक और जीता-जागता प्रमाण है, आजमगढ़ में बनने वाले अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट। इस एयरपोर्ट के नाम पर किसानों से न सिर्फ उनकी जमीन छीने जाने की कोशिशें की जा रही हैं बल्कि इस भूमि अधिग्रहण का विरोध करने वाले किसानों पर तमाम प्रकार से पुलिस जुल्म भी ढा रही है।  किसान इस बात का लगातार विरोध कर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में इस समय कुल 157 चीनी मिलें हैं, जिनमें से 118 मिलें चल रही हैं। वर्ष 2017 से पहले उत्तर प्रदेश में 110 चीनी मिलें चल रही थीं। देखा जाए तो आज से सात साल पहले यूपी में 110 चीनी मिलें थी। देखा जाय तो आज केंद्र में बीजेपी की सरकार है। ऐसे में योगी सरकार को मनमाफिक धन केंद्र से मिल जाता है। इसके बावजूद भी क्या कारण है कि 39 चीनी मिलें बंद पड़ी हुई हैं? लगभग सात साल के अपने कार्यकाल में योगी का ध्यान इन मिलों पर क्यों नहीं गया? योगी सरकार ने पिछले चार साल में 45.44 लाख से अधिक गन्ना किसानों को एक लाख 40 हजार करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है। यह बसपा सरकार से दोगुना और सपा सरकार के मुकाबले डेढ़ गुना अधिक है।

इस प्रकार से गन्ना भुगतान के मामले पर गौर किया जाए तो योगी आदित्यनाथ, अखिलेश के शासन काल से डेढ़ गुना अधिक भुगतान कर रहे हैं। लेकिन इस बात को हमें नहीं भूलना चाहिए कि बात सात साल पुरानी है। इन सात सालों में देखा जाय तो महंगाई कहां से कहाँ चली गय। खाद, बीज और खेती की लागत कितनी बढ़ गई, उस हिसाब से एमएसपी मे कोई वृद्धि नहीं हुई है। ऐसे में डेढ़ गुना अधिक भुगतान का मतलब ऊंट के मुंह में जीरा वाली बात हुई।

किसानों की दुर्दशा के लिए कौन जिम्मेदार

असल में देखा जाय तो किसानों की दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण केंद्र और राज्य सरकार की नीतियां रही हैं। केंद्र में मोदी की सरकार के आने के बाद से ही किसानों की बदहाली का दौर शुरू हुआ। नरेंद्र मोदी की सरकार कार्पोरेट जगत की हितैषी मानी जाती है। इसकी शुरुआत मोदी के कार्यकाल के पहले वर्ष में ही देखने को मिली। एक आंकड़ें के मुताबिक, देश में वर्ष 2014-2015 में कुल 24 हजार से अधिक किसानों ने आत्महत्या की।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ट एक्सीडेंटल डेथ्स एंड स्यूसाइड्स इन इंडिया 2022 के अनुसार, वर्ष 2021 में 10881 किसानों और कृषि श्रमिकों के मुकाबले 2022 में 11290 लोगों ने आत्महत्या की। कृषि क्षेत्र में महाराष्ट्र में 4248 कर्नाटक में 2392 आंध्र में 917 आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए। 2022 में आत्महत्या करने वाले 5207 किसानों में 4999 पुरुष जबकि 208 महिलाएं थीं। वहीं आत्महत्या करने वाले 6083 कृषि श्रमिकों में 5472 पुरुष और 611 महिलाएं शामिल थीं। यानि किसानों की आत्महत्या की घटनाओं में लगातार वृद्धि होती गयी।

किसान अपनी फसलों का उचित समर्थन मूल्य (एमएसपी) चाहता है, जिसे आज केंद्र की मोदी सरकार मानने को तैयार नहीं है। एमएसपी की मांग को लेकर 2020 में किसानों द्वारा लगभग 13 महीने तक दिल्ली में धरना-प्रदर्शन भी किया गया।

भारतीय किसानों का यह विरोध सितंबर 2020 में भारत की संसद द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों के विरोध में किया गया था। इस बिल को किसान विरोधी कानून के रूप में वर्णित किया गया था। कई किसान संगठनों ने कहा कि ये किसान विरोधी और कॉर्पोरेट हितैषी बिल है। विरोध-प्रदर्शन काफी हद तक अहिंसक था।

विरोध-प्रदर्शनों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बिल लाने की भी मांग सरकार से की गई, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सोसायटी जिले को नियंत्रित न कर सके। हालांकि, केंद्र सरकार किसानों के एमएसपी की मांग को लगातार नजर अंदाज कर रही है। इस प्रदर्शन में शामिल किसानों की आधा दर्जन से अधिक मांगों में से दो मांगों को सरकार ने मान भी लिए था।

इससे एक दावा निश्चित तौर पर किया जा सकता है कि योगी के दावे के विपरित आज किसान अपनी भूमि बचाने और अपने जीवन को चलाने के लिए संघर्ष करता हुआ नजर आ रहा है।

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