कल राजघाट गया था। दिल्ली में रहते हुए 30 जनवरी को राजघाट जाकर महामानव गांधी को श्रद्धांजलि देने का यह पहला मौका था। वहां पीएम नरेंद्र मोदी, कांग्रेस के नेता राहुल गांधी सहित बड़ी संख्या में वीवीआईपी मौजूद थे। दिलचस्प यह कि वहां मैंने वीवीआई लिखा पोस्टर भी देखा। मतलब यह कि स्मारक स्थल (पता नहीं क्यों इसे समाधि स्थल कहा जाता है? गांधी की हत्या की गई थी। उन्होंने कोई समाधि नहीं ली थी।) के ठीक सामने यह पोस्टर था। सारे महत्वपूर्ण नेतागण उसी तरफ बैठे थे। दूसरी तरफ कुर्सियां थीं। उन कुर्सियों पर नौकरशाह आदि विराजमान थे। यह अद्भूत दृश्य था। यह बात मैं हंसने के लिहाज से कह रहा हूं। और मैं हंस इसलिए रहा हूं क्योंकि गांधी की हत्या एकबार फिर मेरे सामने हो रही थी।
सबसे अधिक हंसी तो तब आयी जब तोपों की गड़गड़ाहट हुई। मैं यह सोच रहा था कि अहिंसा और करुणा का तथाकथित संदेश देनेवाले गांधी को श्रद्धांजलि देने के लिए हुकूमत को तोपों का उपयोग क्यों करना पड़ता है? एक और बात जो कल मुझे अजीबोगरीब लगी, वह वहां मौजूद स्कूली बच्चों का पहनावा था। बच्चों ने श्वेत वस्त्र के ऊपर भगवा रंग का ब्लेजर पहन रखा था।
[bs-quote quote=”महत्वपूर्ण यह कि कल जब नरेंद्र मोदी मजबूरीवश ही सही, गांधी के स्मारक स्थल पर शीश नवा रहे थे, लगभग उसी समय देश के एक दूसरे शहर ग्वालियर के दौलतगंज इलाके में हिंदू महासभा की ओर से गांधी के हत्यारों नारायण राव आपटे और नाथूराम गोडसे को श्रद्धांजलि दी जा रही थी। आज की पीढ़ी को यह जरूर जानना चाहिए कि नाथूराम गोडसे और नारायण राव आपटे दोनों ब्राह्मण थे। साथ ही यह भी कि मुख्य साजिशकर्ता नारायण राव आपटे था। गोडसे ने गांधी का सीना गोलियों से छलनी कर दिया था।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
दरअसल, मैं दो चीजें देख रहा था। एक तो यह कि हुकूमत सेना और नौनिहालों का इस्तेमाल राजनीति के लिए किस तरह करती है। सेना तो खैर वैसे भी सियासती तंत्र का हिस्सा है। खासकर नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में सेना के शीर्ष नेतृत्व और सत्ता पक्ष के छुटभैया नेताओं के बीच में कोई खास अंतर नहीं रह गया है। मौजूदा थलसेना अध्यक्ष तो इन दिनों नये रिकार्ड बना रहे हैं।
खैर, महत्वपूर्ण यह कि कल जब नरेंद्र मोदी मजबूरीवश ही सही, गांधी के स्मारक स्थल पर शीश नवा रहे थे, लगभग उसी समय देश के एक दूसरे शहर ग्वालियर के दौलतगंज इलाके में हिंदू महासभा की ओर से गांधी के हत्यारों नारायण राव आपटे और नाथूराम गोडसे को श्रद्धांजलि दी जा रही थी। आज की पीढ़ी को यह जरूर जानना चाहिए कि नाथूराम गोडसे और नारायण राव आपटे दोनों ब्राह्मण थे। साथ ही यह भी कि मुख्य साजिशकर्ता नारायण राव आपटे था। गोडसे ने गांधी का सीना गोलियों से छलनी कर दिया था।
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तो कल ग्वालियर में हुआ यह कि हिंदू महासभा ने आपटे-गोडसे को न केवल याद किया बल्कि उसने एक सम्मान की घोषणा भी की। इस घोषणा के मुताबिक कालीचरण नामक एक बददिमाग को आपटे–गोडसे स्मृति भारत रत्न सम्मान दिया गया। यह कालीचरण वही है, जिसने अभी हाल ही में एक तथाकथित धर्म संसद में गांधी को गालियां दी थी।
मतलब यह कि देश के दो अलग-अलग हिस्सों में यह सबकुछ चल रहा था। मुझे लगता है कि यहां दिल्ली के झंडेवालान में, जहां आरएसएस का राष्ट्रीय कार्यालय है, या फिर नागपुर स्थित मुख्यालय में आपटे-गोडसे को जरूर याद किया गया होगा। हालांकि आरएसएस अब एक चुनावी संगठन बन चुका है और इस कारण से उसने इस आशय की खबरों को बाहर नहीं आने दिया। जाहिर तौर पर उसने ऐसा केवल और केवल इस कारण किया क्योंकि देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं।
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चुनावों से एक बात याद आयी। कल नरेंद्र मोदी के मन की बात का प्रसारण हुआ। कल उन्होंने कर्तव्य, अधिकार और भ्रष्टाचार की बात कही। अपने इसी संबोधन में उन्होंने अमर जवान ज्योति को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की ज्योति में विलय की करने की चर्चा की और इसे भावुक पल कहा। जब वे अपनी बात कर रहे थे, मुझे भ्रष्टाचार सबसे उल्लेखनीय लगा। भाजपा के भ्रष्टाचार तो अब विश्व स्तर पर जाना जाने लगा है। दो दिन पहले ही 28 जनवरी, 2022 को रोनेन बर्गमॅन और मार्क मॅजॅटी नामक दो पत्रकारों की रपट को न्यूयॉर्क टाइम्स ने प्रकाशित किया। शीर्षक है – दी बॅटल फॉर दी मोस्ट पावरफुल साइबर वेपन। अपनी इस रपट में दोनों पत्रकारों ने नरेंद्र मोदी के भ्रष्टाचार (चाहें तो भारतीय संविधान के हिसाब से देशद्रोह की संज्ञा भी दे सकते हैं, क्योंकि पेगासस का इस्तेमाल भाजपा ने राजनीतिक षडयंत्र के तहत किया है, ऐसा आरोप उसके खिलाफ लगाया जा रहा है) के संबंध में लिखा है कि वर्ष 2017 में इजरायल दौरे के दौरान मोदी ने जो रक्षा खरीद के समझौते पर हस्ताक्षर किए, उनमें पेगासस की खरीद भी शामिल थी।
सचमुच कितना अजीब लगता है देश के शीर्ष पर आसीन व्यक्ति का इस तरह का दोमुंहा व्यक्तित्व। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि पेगासस संबंधी जो आरोप प्रधानमंत्री के ऊपर लग रहा है, इतना संवेदनशील है कि यदि भारतीय संसद के पास जमीर होता तो उनके खिलाफ महाभियोग चलाया जाता। लेकिन अपने यहां तो संसद भी पीएम के समक्ष मजबूर हैं।
संसद से एक बात याद आयी। आज से बजट सत्र शुरू प्रारंभ हो रहा है। गूंगे-बहरे-अंधे की माफिक राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इसकी औपचारिक शुरूआत संसद के दोनों सदनों यानी राज्यसभा और लोकसभा को संयुक्त रूप से संशोधित कर करेंगे। इसके बाद पेगासस को लेकर हंगामा होने के आसार हैं। विपक्ष हंगामा करेगा और सत्ता पक्ष मौजूदा राजनीति पर ठहाके लगाएगा।
बहरहाल, कल देर शाम एक व्यक्तिगत अहसास ने देर तक प्रभावित किया। सोचा इसे भी एक कविता के रूप में डायरी में प्राथमिकी के जैसे कलमबद्ध कर लूं।
कितना समय बीत गया जब
मैंने कहा था तुमसे कि
तुम उजाले के समान हो
और तुम्हारी रोशनी में
मेरी रातें हसीन हो जाती हैं
जब तुम्हारी बाहों में
पनाह मैं पाता हूं।
अब जब हमारे दरमियान है
फासला हजारों मील का
मैं सोच रहा हूं
यदि पृथ्वी गोल होने के बजाय
तुम्हारी बाहों के घेरे के समान होती तो
कितना अच्छा होता।
नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं ।
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