गाजीपुर। खेती-किसानी पर बढ़ती महंगाई की मार को देखते हुए जिले के कई किसान मिर्च-टमाटर को छोड़कर अब बथुआ की खेती करने लगे हैं। किसान अत्यधिक लागत और मजदूरी वाली खेती करने से बच रहे हैं। अधिकतर किसानों ने कम लागत और कम मेहनत वाली फसलों की ओर अपना रुख कर लिया है।
असमय बारिश और अब बदली के कारण इस बार टमाटर-मिर्च की खेती करने वाले किसानों को उपज का लाभ भी नहीं मिल पाया है। किसानों का कहना है कि टमाटर के अलावा सब्जी की खेती में रखरखाव की भारी मशक्कत करनी पड़ती है। मौसम में बदलाव होेते ही फसलों में कीट प्रकोप का खतरा भी बना रहता है।
मौसम खुलते ही इन पर सबसे पहले कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करना पड़ता है। दवा की कीमत बाजार में आसमान छू रहे हैं। रखरखाव में जो खर्च हुआ इस बार किसानों को लाभ भी नहीं मिल पाया है। यही कारण है कि इस बार टमाटर-मिर्च की खेती करने में सब्जी उत्पादक किसान इंट्रेस्ट नहीं ले रहे हैं।
गाजीपुर के भाँवरकाल के किसान ज्ञानेंद्र पाँच साल पहले टमाटर, मिर्च और केले की खेती करते थे। वह बताते हैं कि कुछ सालों से मौसम हर बार किसानों के साथ अन्याय कर रही है। उतनी आमदनी भी नहीं हो पा रही है कि नुकसान की भरपाई की जा सके। अब यहाँ के किसान बथुआ की खेती कर रहे हैं। इसकी खेती में मेहनत और आमदनी भी कम लगती है। अक्टूबर माह में इसकी खेती शुरू हो गई थी। 40-50 दिन बाद इसकी कटाई शुरू हो जाती है।
वह बताते हैं कि एक बीघा खेत में टमाटर-मिर्च की खेती करने के लिए 20-25 हज़ार की लागत जाती है, मजदूरी अलग से। मौसम का रुख बदलने से दोनों चीजों का घाटा हो जाता है। साग की खेती जब से शुरू की है, तब से थोड़ा आराम हो गया है। इसमें लागत की कम लगती है। हाँ, जानवरों से रखवाली बढ़ जाती है।
प्रकृति की अनियमितताओं के कारण खरीफ में मुख्य फसलों को दो बार बोना पड़ रहा है। इसके बावजूद फसल अभी भी खतरे में है। सब्जियों का भी कमोबेश यही हाल है। किसानों के अनुसार, बीमारी और कीट के कारण मिर्च पीली हो जा रही है। इसलिए किसान अब दोहरी बुवाई की तैयारी कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि आगे चलकर भी उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है।