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आखिर कम क्यों नहीं हो रहे हैं महिलाओं के खिलाफ अपराध

कोलकाता की डॉक्टर की नृशंस तरीके से कार्यस्थल पर हत्या की गई और इसके साथ दूसरी जगहों से भी लगातार बलात्कार की खबरें आ रही हैं। आज पूरा देश डॉक्टर के न्याय के लिए उतरा है। इस तरह की घटनाओं का देशव्यापी विरोध होना इसलिए जरूरी है क्योंकि सरकार बलात्कारियों को बचाने का काम कर रही है। वैसे भी अनगिनत केस दर्ज नहीं किए जाते लेकिन जो केस दर्ज होते हैं, उन्हें भी राजनैतिक दबाव व संरक्षण के चलते सजा नहीं मिलती बल्कि स्वागत किया जाता है। उनका इस तरह खुला घूमना सरकार के साथ न्याय व्यवस्था पर भी सवाल खड़ा करता है

घटना एक 9 अगस्त – कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज के सेमीनार हॉल में एक ट्रेनी डॉक्टर की दरिंदगी कर उसकी हत्या कर दी गई। यह उस वक्त हुआ जब वह 36 घंटे की ड्यूटी के बाद सेमीनार हॉल में आराम कर रही थी।

घटना दो 10 अगस्त – चंदौली जनपद के अलीनगर थानाक्षेत्र की यह युवती 10 जुलाई को दीनदयाल उपाध्याय नगर (मुगलसराय) के गया कालोनी में छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपने घर लौट रही थी, 8 लोगों ने बीच रास्ते में रोककर उसे नशीले पदार्थ से बेहोश किया फिर मारते-पीटते हुए शराब पिलाई और सामूहिक बलात्कार किया। घटना के बाद ये 8 आरोपी युवती को नजदीक के रेलवे लाइन पर फेंककर फरार हो गए किसी तरह पीड़िता ने अपने परिजनों से संपर्क किया तो परिजन युवती को लेकर घर गए।

घटना तीन 11 अगस्त – बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के पारु थाना क्षेत्र के लालू छपरा गाँव के एक दलित परिवार की 14 वर्षीय लड़की को उसके परिवार के सामने से यह कहते हुए उठाकर ले गए कि इसका रेप करेंगे। उस लड़की का सैकड़ों बार बलात्कार किया गया। उसके प्राइवेट पार्ट को चाकू से गोदा गया और बाद में स्तन काटकार हत्या कर दी गई। युवती के शरीर में अनेक घाव भी मिले हैं।

घटना चार 12 अगस्त – देहरादून में उत्तराखंड रोडवेज की बस में पांच लोगों ने 16 वर्ष की लड़की के साथ गैंगरेप किया।

घटना पाँच 14-15 अगस्त- राजस्थान के सिरोही जिले में 63 वर्ष की महिला के साथ दो लोगों ने गैंगरेप किया और 15 हजार रुपये लूट लिए।

घटना छ: 17 अगस्त – राजस्थान के जोधपुर में माँ के साथ सो रही 3 वर्ष की बच्ची को अगवा कर उसके साथ रेप किया गया बाद में उसे कपड़े में लपेटकर घायलावस्था में सड़क पर छोड़ दिया गया।

रेप की ये सभी घटनाएं एक हफ्ते के दौरान हुई हैं। रोज अखबारों में अपने आसपास होने वाले रेप की खबरें छपती हैं। उन्हें खबरों की तरह हम पढ़ लेते हैं, मन में अफसोस और दुख होता है लेकिन कुछ कर नहीं सकते।

ऊपर लिखी रेप की छ: घटनाएं एक हफ्ते के दौरान घटीं। इनमें से कोलकाता की ट्रेनी डॉक्टर की खबर आते ही पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुआ और अब भी जारी है। इसके बाद अखबारों में लगातार रेप कर हत्या कर देने की खबरें आ रही हैं।

इन खबरों में 3 वर्ष से लेकर 63 वर्ष की उम्र की पीड़ित महिलाएं है। बलात्कारी को इस बात से कोई लेना-देना नहीं कि महिला किस उम्र की है।

इन घटनाओं में बलात्कारी ने किसी भी महिला की सामाजिक, शैक्षणिक या आर्थिक पृष्टभूमि नहीं देखी। बस अपने तय कारणों के लिए उन्हें शिकार बनाया। बलात्कारी की क्रूरता उसकी हत्या कर देने की सीमा तक जाती है।

हर रोज हो रही इस तरह की आपराधिक घटनाएं महिलाओं की स्वतंत्रता में बाधा हैं। एक तरह से उन्हें गुलाम बनाए जाने की तरफ जाने वाला कदम है। ऐसे में महिलायें आगे बढ़ ही नहीं सकेंगी क्योंकि घर से निकलकर कोई भी काम करने के लिए उन्हें एक गार्ड की जरूरत होगी। चाहे वह भाई हो, पिता हो या पति हो।

लेकिन इनके साथ रहने के बाद भी लड़कियां या महिलायें सुरक्षित रहेंगी, नहीं कहा जा सकता। अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि घर से अभिभावक के सामने से लड़की को उठाकर ले गए, यह बताते हुए कि उसका रेप करेंगे।(मुजफ्फरपुर में हुई घटना, इसी तरह से हुई)। उनके इस दु:साहस का कारण रेप करने वालों को न्यायालय द्वारा बरी कर दिया जाना या फिर सजा सुनाए जाने में दशकों लगा दिया जाना है।

जैसे अभी तीन दिन पहले अजमेर ब्लैकमैलिंग कांड का आया फैसला है। जिसे आने में 32 वर्ष लग गए, मतलब वर्ष 1992 मे हुए इस कांड में स्कूल में पढ़ने वाली 100 लड़कियों की न्यूड फोटो खींचकर उन्हें ब्लैक्मैल किया जा रहा था। यह जानकर उस समय कुछ लड़कियों ने आत्महत्या कर ली और कुछ अवसाद में चली गईं। इस अपराध के लिए आज से तीन दिन पहले  6 आरोपियों को उम्र कैद की सजा हुई। 4 को पहले सजा हुई थी लेकिन बाद में बरी कर दिया गया। सजा तो हुई लेकिन 32 वर्ष बाद, न्याय की उम्मीद में पीड़ित बच्चियाँ अब अपने बच्चों की माँ बन चुकी होंगी। अपराध करने वाले सठिया चुके होंगे। ये हमारी लचर न्याय व्यवस्था एक नमूना है।

रेपिस्ट कौन?

इसे जानने के लिए कोई फार्मूला नहीं है न ही कोई लक्षण, जिसे देखकर रेपिस्ट को पहचाना जा सके। लेकिन सामाजिक व्यवस्था इसके लिए जरूर जिम्मेदार है।

पितृसत्तात्मक समाज में पुरुषों को विशेषाधिकार मिला है। समाज में स्त्रियों को कमजोर माना गया है और इन्हें पुरुषों के अधीन रहते हुए उनके निर्णयानुसार काम करने का दबाव होता है। लैंगिक समानता का अभाव व लैंगिक भेदभाव हम अपने घर से लेकर आसपास देखते हैं, जो समाज के लिए घातक होता है।

भारत जैसे देश में यह भेद स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। वर्ष 2024 में भारत का वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा ग्लोबल जेंडर गैप 146 देशों में से 129 वें स्थान पर रहा। जबकि 2023 वर्ष  में  127 वें स्थान से दो पायदान नीचे खिसक गया है। इस रैंक से साफतौर पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारे देश में लैगिंक भेदभाव की जड़ें कितनी मजबूत और गहरी है।

एक बात और पुरुष, महिलाओं को एक वस्तु से ज्यादा कुछ नहीं समझता। गाहे-बगाहे उसे याद दिला ही देता है कि वह महिला है। प्रेम, दोस्ती या एकतरफा प्रेम में महिलाओं की ‘न’ पुरुषों को गवारा नहीं होती और बदला लेने की मंशा से वह अनेक घटनाओं में रेप करता है।

समय ऐसा है कि कहीं भी परिचित/अपरिचित पुरुष की उपस्थिति से डर लगता है लेकिन डर लगने के बाद भी सतर्क रहने की जरूरत है क्योंकि अपने वर्चस्व को साबित करने के लिए वह रेप ही करे यह जरूरी नहीं है बल्कि भाषा या व्यवहार भी महिला को अपमानित कर सकता है। उसकी नजरें, हावभाव, बोलना, इशारा करना आदि।

पुरुष कमजोर कैसे हो सकता है, इस जूठे दंभ में अपने शक्ति का प्रदर्शन सदैव ही दबे-कुचले और आर्थिक व सामाजिक रूप से कमजोर लोगों के सामने करता है। जिसमें बलात्कार एक हथियार के रूप में किया जाता है।

‘व्हाय मेन रेप’ किताब लिखने वाली डॉ मधुमिता ने बीबीसी को बताया कि ‘इसका कोई एक जवाब नहीं है क्योंकि बलात्कार एक कॉम्प्लेक्स क्राइम है। हर मामला अपने आप में अलग होता है और यह काफ़ी सब्जेक्टिव भी है। कुछ लोग गैंगरेप में शामिल होते हैं तो कुछ पीड़िता की पहचान वाले होते हैं तो कुछ एकदम अनजान महिला को बलात्कार का शिकार बनाते हैं। बलात्कारी भी कई तरह के होते हैं – गुस्से में आकर बलात्कार करने वाले, क्रूरता के साथ दूसरों को पीड़ा पहुंचाने की नीयत से बलात्कार करने वाले और कई बलात्कार करने वाले सीरियल रेपिस्ट। बलात्कारी कोई भी हो सकता है – पति, सहकर्मी, नज़दीकी दोस्त, डेट पर मिलने वाला दोस्त, क्लासमेट, प्रोफेसर।‘

कथाकार और स्त्रीवादी चिंतक सुधा अरोरा का कहना है कि, ‘जब तक युवा बेरोजगार लड़कों को स्कूल के समय से ही लड़कियों को एक वस्तु की तरह नहीं, अपने जैसे ही एक इंसान की तरह देखने का पाठ नहीं पढ़ाया जाएगा, भारत की सदियों पुरानी, गहरी धंसी हुई पुरुष वर्चस्व की मानसिकता में कोई बदलाव आने वाला नहीं है। दुष्कर्म करने वाले को कड़ी सज़ा तुरंत दी जाए। लड़कियां अपने घरों में और कार्यस्थलों पर भी सुरक्षित नहीं तो आखिर वे कहां जाएं। बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ एक खोखला नारा बनकर रह गया है।’

रंगकर्मी उषा वैरागकर आठले ने बलात्कार घटनाओं को लेकर चिंता जाहिर  करते हुए कहा कि, बलात्कार की कल्पना से हरेक स्त्री, चाहे वह किसी भी उम्र की हो, एक प्रकार की दहशत महसूस करती है। बलात्कार सिर्फ शारीरिक ज़बर्दस्ती या हिंसा ही नहीं है, वरन स्त्री नामक मनुष्य के अस्तित्व और व्यक्तित्व को नकारने का एक अमानवीय ज़रिया है। यह स्त्री को आतंकित करने, उसे भोग की ही वस्तु साबित करने और उसे देहकेन्द्रित बनाकर अपमानित करने का पुरुषवादी औज़ार है। बलात्कार की हतप्रभ करने वाली घटनाओं से कुछ सवाल उभरते हैं – क्या स्त्री के स्वतंत्र विचार, मत, व्यवहार पर अंकुश लगाने का माध्यम है बलात्कार? क्या स्त्री को ‘पैरों की जूती’ बनाए रखने की अदम्य इच्छा की अभिव्यक्ति होते हैं बलात्कार? क्या पुरुष को वर्चस्व जताने के लिए, बदला लेने के लिए, स्त्री को अपने नियंत्रण में रखने के लिए यौन आक्रमण करना आवश्यक लगता है?

बलात्कारियों को सरकार का संरक्षण

 गोधरा कांड में बिलकिस बानो के अपराधियों को सरकार ने पिछले वर्ष 15 अगस्त को जमानत पर रिहा कर दिया था, जिनका फूल माला से स्वागत किया गया था, लड्डू बांटे गए थे। बाद में दबाव के बाद फिर से सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जेल में डालने का आदेश दिया।

देश की जेल में अनेक ऐसे पत्रकार और युवा नेता बंद हैं, जिनके खिलाफ कोई अपराध साबित नहीं हुआ है। सरकार के दबाव में चल रही न्यायालय उन्हें जमानत तक नहीं देती और बलात्कारी राम रहीम और आशाराम बाबू जब-तब  जमानत पर छोड़ देती है।

सत्तासीन पार्टी में अनेक विधायक और सांसद पर बलात्कार और यौन उत्पीड़न के मामले चल रहे हैं लेकिन वे सभी देश की सबसे बड़ी संवैधानिक संस्था में जाकर बैठते हैं। उन्हें सरकार का संरक्षण मिला हुआ है।

एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार भाजपा के मौजूदा 294 सांसदों में से 40% अर्थात 118 ने अपने हलफनामे में अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए। कम से कम 87 सांसदों (30%) ने गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए। विपक्ष और दूसरे दलों के नेताओं के ऊपर भी गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। 514 में से 225 नेता हैं।

कहने का मतलब जब देश के चुने हुए प्रतिनिधि ही कलंकित हैं तो उनसे कैसे उम्मीद की जा सकती है कि देश की लड़कियों को सुरक्षित रख सकते हैं।

राजनैतिक संरक्षण में रहने वाले अपराधी निरपराध घोषित हो जाते हैं और खुले आम घूमते हैं।

रेपिस्टों को इस तरह खुले आम घूमने की छूट देना और सरकार द्वारा उन्हें बचाना सबके लिए शर्म की बात है।

वैसे वर्ष 2012 में हुए निर्भया कांड के बाद कानून में बदलाव लाते हुए बलात्कारी को फांसी की सजा देने का प्रावधान किया गया। लोग खुश भी हुए लेकिन फांसी की सजा इसका पूरा समाधान नहीं हो सकता। अपराधी को जेल के पीछे पहुंचाने में या फांसी की सजा दिलवाने में जो देर होती है, उससे भी अपराधियों  के हौसले बुलंद होते हैं।

महिलाओं के लिए सरकारी योजना खोखला दावा

देश में महिलाओं को सशक्त करने और आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार की अनेक योजनाएं चल रही है। जिसमें एक है ‘मिशन शक्ति योजना’ व ‘बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओ’ का नारा देने वाले और भारत को विश्वगुरु कहने और बनाने की कवायद में लगे नेताओं को यह समझ लेना होगा कि देश में बेटियाँ बिल्कुल सुरक्षित नहीं हैं। बलात्कारियों की संख्या देखकर इस देश को विश्व गुरु की जगह बलात्कारी गुरु का नाम दिया जाना ज्यादा उचित होगा।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट में दर्ज मामले के अनुसार वर्ष 2017 से 2022 के बीच भारत में प्रतिदिन औसतन 86 मामले बलात्कार के मामले दर्ज किए गए। हर घंटे बलात्कार की 4 घटनाएं अर्थात 15 मिनट मे एक रेप हुआ। इस तरह इन 5 वर्षों में 1.89 लाख मामले दर्ज हुए। वर्ष 2022 में 31516 मामले दर्ज किए गए थे। ये वे रेप की घटनाएं हैं जिनकी एफआईआर थाने में दर्ज हुईं। जिनकी रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई, उनके आँकड़ें नहीं है।

जब तक देश के सामाजिक ढांचे में बदलाव नहीं होगा, लैंगिक समानता नहीं होगी तब तक बदलाव होना असंभव है। यह एक दिन में संभव नहीं है लेकिन शुरू किया जाए तो मुश्किल भी नहीं है।

अपर्णा
अपर्णा
अपर्णा गाँव के लोग की संस्थापक और कार्यकारी संपादक हैं।

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