Saturday, July 27, 2024
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बकरे की माँ यहाँ खैर नहीं मनाती

पहले जो लोग पचास-साठ बकरे पालते थे अब वे बीस-पचीस भी मुश्किल से पाल रहे हैं। इसका असर पूरे मार्केट पर पड़ा है। पहले बहुत बड़े पैमाने पर मुर्गियाँ पालते थे लेकिन कोरोना की वजह से इसमें भारी गिरावट आई और यह धंधा अभी तक संभल नहीं पाया है। राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश आदि में बकरी पालन कम हो रहा है क्योंकि उधर से बकरियाँ कम आ रही हैं।

बामसेफ का 39वाँ राष्ट्रीय अधिवेशन कल्याण जिले के कोनगाँव में आयोजित था। कल्याण स्टेशन से चलते हुए एक नदी के किनारे विशाल मैदान में बने कार्यक्रम स्थल तक जाने के सड़क से उतर कर एक किलोमीटर पैदल चलना था। अचानक शूद्र शिवशंकर सिंह यादव बोले- भैंसों का तबेला तो आपने कई देखा होगा। आइये,आज बकरियों का तबेला दिखाता हूँ। फिर उन्होंने सामने इशारा किया। एक टिन शेड में हजारों बकरियां और भेड़ें बंधी थीं और सैकड़ों लोग खरीद-फरोख्त में लगे थे। शिवशंकरजी ने बताया कि यही है। लेकिन कल मैं आया था तो यहाँ एक भी बकरी नहीं थी और आज देखिये मेला लगा है। उन्होंने कहा कि इस पर भी एक रिपोर्ट लिखिए। फिर हम शेड में घुस गए। मैंने उनके मोबाइल से कुछ तस्वीरें ली तब तक कुछ लोग यह पूछने आ गए कि क्यों फोटो खींच रहे हैं। मैंने कहा हम गाँव के लोग वेबसाइट से जुड़े हैं और कुछ जानकारी ले रहे हैं। मैंने उनमें से एक से उनका नाम पूछा तो उन्होंने अपना नाम शमसुद्दीन बताया। वे सातारा के रहने वाले हैं। उनका काम ट्रांसपोर्ट का है। उनके पिता ने यह काम 1964 में शुरू किया था। बाद में शमसुद्दीन के सभी भाई इस धंधे में आये। शमसुद्दीन ने बताया कि इसको कम से कम साठ साल हो गए। इसको सबीर सेख ने शुरु करवाया था जो कि महाराष्ट्र के कामगार मंत्री थे। पहले यह मंडी कल्याण में थी। उसके बाद इधर आई। इधर भी आये हुए अट्ठाइस साल हो गए। और इस बकरामंडी को पचहत्तर साल हो गए। साबिर शेख ही मंडी के हेड थे। बाद में उनका भतीजा अल्ताफ शेख हेड बना।हालाँकि यहाँ दिखने वाले लोगों की धज और दाढ़ी से लगता था कि सभी मुस्लिम समुदाय के लोग ही इसमें लगे हैं लेकिन शमसुद्दीन ने कहा कि तक़रीबन साठ फीसदी लोग मराठी हैं। वे यहाँ से बकरियां खरीदते हैं और फुटकर में बेचते हैं। उनके अलग-अलग इलाके हैं।

बकरे के विक्रेता शमसुद्दीन

उन्होंने बताया कि यहाँ जितनी बकरियाँ और भेड़ें बिकती हैं उनका मंडी शुल्क 10 रुपए देना पड़ता है। यह मंडी तीन दिन लगती है- मंगलवार, वृहस्पतिवार और शनिवार को। यह पूछने पर कि एक दिन में कितने बकरे बिक जाते हैं? उन्होंने बताया कि यहाँ मौजूद सारे बकरे बिक जाते हैं यानी हफ्ते में तकरीबन आठ-दस हज़ार बकरे। शिवशंकरजी ने कहा कि ‘कल यहाँ बिलकुल खाली था। लेकिन आज देखिये ढाई-तीन एकड़ में बकरे ही बकरे हैं। सब खाने वालों का निवाला बनेंगे। इन सबकी यही नियति है। यहाँ तो बकरे की माँ भी अपने बच्चों की खैर नहीं मनाती। उसकी दुआ सुनेगा कौन?’

दूसरे युवा का नाम शाहिद है। शाहिद के यहाँ यह धंधा कई पीढ़ियों से होता आ रहा है। वह बताते हैं कि उनके दादा और पिता के जमाने से ही यह काम चल रहा है।

बकरे के इस धंधे के युवा विक्रेता शाहिद

यह जिज्ञासा स्वाभाविक है कि इतनी बड़ी संख्या में बकरे आते कहाँ से हैं? शाहिद ने बताया कि ‘राजस्थान से आते हैं। वहाँ बड़े पैमाने पर बकरी पालन होता है। वहाँ घर-घर बकरे पाले जाते हैं और सब लोग उन्हें बेचते हैं। यही उनकी रोजी-रोटी है।’ फिर उन्होंने कई नस्ल के बकरे और भेड़ें दिखाई और बताया कि ये गुजरात से आते हैं और ये छोटे वाले कश्मीर से। बड़े सींग वाले सिंधी बकरे भी राजस्थान से आते हैं। भेड़ें भी राजस्थान से आती हैं। बल्कि इनका तो ज्यादा व्यापार होता है उधर। उधर से थोक में खरीदकर यहाँ लाते जाते हैं और यहाँ से भी कुछ लोग थोक और कुछ फुटकर खरीदकर अपने-अपने इलाकों में ले जाते हैं। यहाँ से पूरे महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक और मद्रास तक सप्लाई होती है। इससे हमारी दाल-रोटी निकल जाती है।’

बकरों के बाज़ार में तेजी और मंदी आती रहती है। शाहिद के अनुसार महँगाई का असर बकरी पालन पर भी पड़ा है। पहले जो लोग पचास-साठ बकरे पालते थे अब वे बीस-पचीस भी मुश्किल से पाल रहे हैं। इसका असर पूरे मार्केट पर पड़ा है। पहले बहुत बड़े पैमाने पर मुर्गियाँ पालते थे लेकिन कोरोना की वजह से इसमें भारी गिरावट आई और यह धंधा अभी तक संभल नहीं पाया है। राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश आदि में बकरी पालन कम हो रहा है क्योंकि उधर से बकरियाँ कम आ रही हैं।’

अचानक तेजी से सीटियाँ बजने लगीं और तेज शोर उठा। चारों ओर अफरा-तफरी मच गई। जो लोग यहाँ-वहाँ घूम कर मोल-भाव कर रहे थे वे अपनी खरीदी गई बकरियाँ एक जगह इकट्ठा करने लगे। बकरियों की मिमियाहट से सारा माहौल भर गया। पता चला दो बजने वाले हैं और अब मार्केट बंद होगा। सुबह सात बजे से यहाँ खरीद-फरोख्त चल रही है लेकिन अब अगर दो बजे के बाद कोई खरीदता-बेचता पाया जाएगा तो उसके ऊपर जुर्माना लगाया जाएगा। इसलिए इस नियम को कोई नहीं तोड़ता और अब सब लोग काम समेट रहे हैं। जिन लोगों ने खरीद लिया वे अब उतना लेकर जा सकते हैं और जिनका बच गया है वे परसों आएंगे। इसी तरह की एक मंडी मुंबई के देवनार में भी है। वहाँ भी बिलकुल यही नियम है।

अपनी भेड़ों और बकरियों की पीठ पर ब्रश से पेंट लगाते हुए

इस वक्फ़े में व्यापारी आस-पास के मैदान में अपनी बकरियाँ चरने के लिए छोड़ देते हैं। शिवशंकरजी ने पूछा कि क्या ये खोती नहीं हैं? या एक दूसरे में मिल जाती हैं तो पहचान में कैसे आती हैं? शाहिद ने हँसते हुये कहा कि ‘नहीं, खोतीं क्योंकि हर आदमी अपनी बकरियों को पहचानता है। लेकिन बकरी चोर बहुत हैं। मौका देखते ही उठाते हैं। कभी-कभी तो अमीर और शरीफ दिखने वाले लोग भी हाथ साफ कर लेते हैं। उन्होंने बताया कि अक्सर ऐसा हुआ है कि चरती हुई बकरियों को एक कार आगे एक कार पीछे करके लोग पकड़ लेते हैं और चंपत हो जाते हैं।’ शिवशंकरजी ठठाकर हँसे। तभी एक आदमी अपनी भेड़ों और बकरियों की पीठ पर ब्रश से पेंट लगाता हुआ दिखा।

मैंने दो बातें और जाननी चाही। एक तो यह कि इतने बड़े व्यापार में क्या पुलिस को कोई हफ्ता देना पड़ता है? दूसरा यह कि क्या कभी उनके ऊपर तस्करी का आरोप लगाकर मोब लिंचिंग आदि की कोई घटना हुई?

पहली बात पर शाहिद ने थोड़ा संकोच किया लेकिन उनके बगल में खड़े नेरल निवासी शकील ने कहा कि ऐसा नहीं है क्योंकि यह सब बाकायदा म्युनिसिपैलिटी की परमिट से होता है। इस मंडी से सरकार के खाते में पैसा जाता है। लेकिन अभी तक मॉबलिंचिंग की कोई बात नहीं हुई। राजस्थान गुजरात बार्डर पर गाय को लेकर ऐसी बातें होती हैं कि चेकिंग होती है लेकिन बकरियों को लेकर कभी ऐसा नहीं हुआ है। जहां से माल लेते हैं उसकी बाकायदा पावती बनती है। यहाँ से भी पावती बनती है। बिना पावती के जो बकरा जाएगा तो चोरी का माना जाएगा और पकड़ा जाएगा।’

मंडी के मुख्य गेट पर लगा बकरे का बाजार का बोर्ड

दो-ढाई घंटे बाद जब हम सम्मेलन से वापस हो रहे थे तो बकरों से लदी दर्जनों गाड़ियाँ खड़ी थीं। थोड़ी देर पहले जहां चहल-पहल अब वहाँ खामोशी थी। शूद्रजी ने कहा कि ‘जैसे ठूँस-ठूँस कर भरा है उसे देखकर पशु-प्रेमी क्या कहेंगे?’ फिर स्वयं ही कहने लगे ‘क्या पता इस पर गुंडों  की नज़र पड़ जाय और वे गाय की तरह इसे पवित्र बना दें और रोकटोक-लिंचिंग का कारोबार शुरू कर दें।’

लौटते हुये हमने मंडी के मुख्य गेट पर लगे बोर्ड का फोटो लिया। यह मंडी कृषि उपज मंडी है। बकरा भी किसानों का उत्पाद है।

रामजी यादव गाँव के लोग के संपादक हैं। 

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