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इसे कहते हैं क्रोनी कैपिटलिज्म!

क्रोनी कैपिटलिज्म (परजीवी पूंजीवाद) में कॉरपोरेट किस तरह फल–फूल रहे हैं और प्राकृतिक संसाधनों को लूट रहे हैं, इसका जीता-जागता उदाहरण छत्तीसगढ़ में कोयले की खुदाई है। सरगुजा–कोरबा जिले की सीमा पर हसदेव अरण्य क्षेत्र में परसा केते माइंस स्थित है, जो राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के जरिए राजस्थान सरकार को आबंटित की […]

क्रोनी कैपिटलिज्म (परजीवी पूंजीवाद) में कॉरपोरेट किस तरह फल–फूल रहे हैं और प्राकृतिक संसाधनों को लूट रहे हैं, इसका जीता-जागता उदाहरण छत्तीसगढ़ में कोयले की खुदाई है। सरगुजा–कोरबा जिले की सीमा पर हसदेव अरण्य क्षेत्र में परसा केते माइंस स्थित है, जो राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के जरिए राजस्थान सरकार को आबंटित की गई है। राजस्थान सरकार ने एक एमडीओ के जरिए कोयला खुदाई का कार्य अडानी को सौंप दिया है। अनुबंध का प्रमुख प्रावधान यह है कि राजस्थान सरकार को अपने बिजली संयंत्रों को चलाने के लिए अडानी से 4000 कैलोरी प्रति किलोग्राम से नीचे की गुणवत्ता का कोयला स्वीकार नहीं करेगी और कम गुणवत्ता वाले रिजेक्टेड कोयले को हटाने और निबटाने का काम अडानी करेगी।

पूरा गड़बड़ घोटाला इसी अनुबंध में छिपा है, क्योंकि छत्तीसगढ़ और देश के अन्य भागों में सरकारी और निजी बिजली संयंत्रों में इस्तेमाल किए जाने वाले कोयले की औसत गुणवत्ता 3400 कैलोरी प्रति किलोग्राम है। एसईसीएल से छत्तीसगढ़ के निजी उद्योग 2200 कैलोरी तक की गुणवत्ता वाला कोयला लेते हैं।

छत्तीसगढ़ में कोयले की खुदाई का दृश्य

एक आरटीआई कार्यकर्ता डीके सोनी को मय दस्तावेज रेलवे ने जानकारी दी है कि वर्ष 2021 में परसा केते माइंस से राजस्थान के बिजली संयंत्रों को उच्च गुणवत्ता के 1,87,579 वैगन कोयला भेजा गया है, जबकि कथित रूप से निम्न गुणवत्ता वाले रिजेक्टेड कोयला के 49,229 वैगन छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के निजी बिजली संयंत्रों को भेजे गए हैं। एक वैगन में औसतन 60 टन कोयला आता है और इस प्रकार इस एक साल में ही रिजेक्टेड कोयले की मात्रा 29.58 लाख टन बैठती है, जो रेल से कुल कोयला परिवहन का 26.6% होता है।

लेकिन यह रेल से परिवहन का ही अनुमान है। परसा केते माइंस की वार्षिक उत्पादन क्षमता 150 लाख टन है। यदि रिजेक्टेड कोयले की मात्रा 26.6% ही मानी जाए, तब कुल रिजेक्टेड कोयले की मात्रा लगभग 40 लाख टन बैठती है। यह कोयला अडानी को मुफ्त में उपलब्ध हो रहा है। इसमें से 23.6 लाख टन कोयले का उपयोग वह छत्तीसगढ़ में तिल्दा स्थित खुद के पावर प्लांट को चलाने के लिए कर रहा है, जबकि 16.4 लाख टन कोयला बाजार भाव पर निजी संयंत्रों को बेचकर वह भारी–भरकम मुनाफा कमा रहा है। इस समय गैर–आयातित कोयले का खुले बाजार में भाव औसतन 7000 रूपये प्रति टन है और इस दर पर रिजेक्टेड कोयले का मूल्य होता है 2800 करोड़ रुपये! और यह लूट केवल वर्ष 2021 की है, जबकि यहां अडानी द्वारा वर्ष 2013 से खनन जारी है। पिछले 10 वर्षों में अडानी ने केंद्र और राज्य की कॉरपोरेटपरस्त सरकार के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ की केवल एक खदान से ही 28,000 करोड़ रुपयों का 4 करोड़ टन कोयला लूटा है!

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एक ओर राजस्थान सरकार अपने राज्य में बिजली संकट का हवाला देते हुए परसा केते एक्सटेंशन सहित हसदेव अरण्य की अन्य कोयला खदानों को खोलने का दबाव बना रही है, वहीं कम गुणवत्ता के नाम पर कुल खनन का एक-चौथाई से ज्यादा हिस्सा अडानी को मुफ्त में सौंप रही है और इस रिजेक्टेड कोयले की रॉयल्टी भी खुद ही दे रही है, जबकि इस रिजेक्टेड कोयले का 60% का उपयोग अडानी अपने खुद के बिजली संयंत्रों के लिए कर रहा है। पिछले कई सालों से यह लूट जारी है। साफ है कि बिजली संकट तो बहाना है, असली मकसद अडानी की तिजोरी भरना है और इस पुण्य कार्य में कांग्रेस-भाजपा दोनों भक्तिभाव से लगे हैं।

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