Wednesday, November 12, 2025
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

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ग्राउंड रिपोर्ट

बिहार : ईंटों के बीच दबे भट्ठा मजदूरों की व्यथा

ईंट भट्ठों में काम करने वाले मजदूर हमारी सभ्यता की नींव हैं। वे हमारी इमारतें बनाते हैं, हमारे घरों को खड़ा करते हैं, लेकिन उनके अपने घर रहने लायक नहीं होते। अगर हमें एक विकसित समाज बनाना है, तो हमें इन मजदूरों की स्थिति सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। वरना उनकी गरीबी की ये ईंटें हमेशा उनकी तरक्की का रास्ता रोकती रहेंगी।

रामपुर गांव : ‘क्राफ्ट हैंडलूम विलेज’ में बुनकरों का अधूरा सपना और टूटती उम्मीदें

रामपुर गांव की कहानी सिर्फ एक गांव की नहीं है, बल्कि यह उन लाखों कारीगरों और बुनकरों की कहानी है, जो सरकारी योजनाओं के अधूरे वादों और बाजार की बेरुखी के बीच फंसे हुए हैं। यह समय है कि सरकार और समाज मिलकर इनके सपनों को साकार करने के लिए कदम उठाए। अगर समय रहते इनकी मदद नहीं की गई, तो यह अद्वितीय कला और कौशल हमेशा के लिए खो जाएगा। पढ़िए नाजिश महताब की ग्राउंड रिपोर्ट।

बिहार में ‘हर घर नल का जल’ की हकीकत : बरमा गांव की प्यास

पिछले कई वर्षों से हर घर नल जल योजना की धूम मची हुई है और इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में प्रचारित किया जा रहा है लेकिन वास्तविकता प्रचार के बिलकुल उलट है। लगातार बढ़ते साफ पानी के संकट के मद्देनज़र यह योजना एक मज़ाक बनकर रह गई है। बिहार के लाखों ग्रामीण गंदे और ज़हरीले पानी का इस्तेमाल करने को विवश हैं। गया जिले के बरमा गांव में पानी का कैसा संकट है और सरकार की योजना किस हालत में है इस पर नाज़िश मेहताब की रिपोर्ट।

अवधी में गानेवाली यूट्यूबर महिलाएं : कहीं गरीबी से रस्साकसी कहीं वायरल हो जाने की चाह

पिछले कुछ ही वर्षों में अवधी भाषी महिलाओं ने बड़ी संख्या में यूट्यूब पर अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराई है। यह ऐसी महिलाओं की कतार है जो निम्न मध्यवर्गीय और खेतिहर परिवारों से ताल्लुक रखती हैं और घर-गृहस्थी की व्यस्त दिनचर्या के बावजूद अपने गीतों से एक बड़े दर्शक समूह को प्रभावित किया है। इनमें से कई अब पूर्णकालिक और स्टार यूट्यूबर बन चुकी हैं। अपने बचपन में सीखे गीतों को वे बिना साज-बाज के गाती हैं और लाखों की संख्या में देखी-सुनी जाती हैं। यू ट्यूब पर गाना उनके लिए न केवल अपनी आत्माभिव्यक्ति है बल्कि आर्थिक आत्मनिर्भरता भी है। इसके लिए उन्होंने कठिन मेहनत किया है। परिवार के भीतर संघर्ष किया है। जौनपुर, आजमगढ़ और अंबेडकर नगर जिलों के सुदूर गांवों की इन महिलाओं पर अपर्णा की यह रिपोर्ट।

पॉल्ट्री उद्योग : अपने ही फॉर्म पर मजदूर बनकर रह गए मुर्गी के किसान

भारत में पॉल्ट्री फ़ार्मिंग का तेजी से फैलता कारोबार है। अब इसमें अनेक बड़ी कंपनियाँ शामिल हैं जिनका हजारों करोड़ का सालाना टर्नओवर है लेकिन मुर्गी उत्पादक अब उनके बंधुआ होकर रह गए हैं। बाज़ार में डेढ़-दो सौ रुपये बिकनेवाला चिकन पॉल्ट्री फार्म से मात्र आठ रुपये किलो लिया जाता है। अब मुर्गी उत्पादक स्वतंत्र इकाई नहीं हैं। कड़े अनुबंध शर्तों पर वे कंपनियों के चूजे और चारे लेकर अपनी मेहनत से उन्हें पालते हैं और कंपनी तैयार माल उठा लेती है। मुर्गी उत्पादक राज्य और केंद्र सरकार से यह उम्मीद कर रहे हैं कि सरकारी नीतियाँ हमारे अनुकूल हों और हमें अपना उद्योग चलाने के लिए जरूरी सहयोग मिले। लेकिन क्या यह संभव हो पाएगा? पूर्वांचल के पॉल्ट्री उद्योग पर अपर्णा की रिपोर्ट।

कच्‍छ के सिख किसानों की व्‍यथा कथा

इस पूरे प्रकरण में केंद्र में राजू भाई सरदार नाम के जो शख्‍स हैं, उनका एक और अहम परिचय यह है कि वे लखपत में उदासी पंथ के ऐतिहासिक गुरुद्वारे के अध्‍यक्ष भी हैं। इसके अलावा वे प्रधानमंत्री के अल्‍पसंख्‍यक 15 सूत्री कार्यक्रम के सदस्‍य हैं और सिख बहुल नरा गांव के सरपंच रह चुके हैं। उनके बाकी परिचय उन्‍हीं के नाम की निजी वेबसाइट पर देखे जा सकते हैं। इनमें सबसे गैर-ज़रूरी परिचय यह है कि वे लखपत के दयापर स्थित सरदार होटल और दीप्‍स रेस्‍त्रां के मालिक हैं।

अब हम लोग क्या करें सुभाष भैया?

साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के आंकड़ों के अनुसार भारत में 6 मार्च  2000 से 20 नवंबर 2021 तक आतंकवाद से जुड़ी हिंसक घटनाओं में 14050 नागरिक, 7363 सुरक्षा बलों के सदस्य,23342 आतंकवादी/अतिवादी एवं 1195 अज्ञात लोगों समेत कुल 45950 लोग मारे गए हैं। हमारे लिए यह एक संख्या हो सकती है जिसकी घट-बढ़ पर हम अपनी पीठ थपथपा सकते हैं लेकिन इन हजारों परिवारों की त्रासदी को समझने के लिए हमें वृद्ध त्रिपाठी दंपत्ति के उदास चेहरे को बांचना होगा जिनका सब कुछ खत्म हो गया है।

पेयजल आपूर्ति बाधित होने के कारण आदर्श गाँव नागेपुर में ग्रामीणों ने किया विरोध-प्रदर्शन

पेयजल आपूर्ति बंद होने की वजह से नाराज ग्रामीणों ने गाँव में शनिवार को नारेबाजी करते हुए विरोध प्रदर्शन किया। ग्रामीणों ने जलकल विभाग को हिदायत देते हुए चेताया कि यदि जल्द ही आपरेटर को बकाया वेतन देकर पेयजल आपूर्ति बहाल नहीं की गयी, तो ग्रामीण व्यापक आंदोलन के लिए बाध्य होंगे; जिसकी सारी जिम्मेदारी प्रशासन की होगी।

पीएम के संसदीय क्षेत्र में सरकारी दावे महज काग़ज़ी, मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं गरीब

आज़ादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी इन गाँवों के ज़रूरतमंद व वंचित समाज के लोगों को मूलभूत सुविधाओं से रुबरू होने का अवसर ही नहीं मिला है। उपर्युक्त आरोप दलित फ़ाउंडेशन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार गुप्ता का है, जो गुरुवार को उक्त गाँवों का दौरा कर दलित, वंचित व जरुरतमंदों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थितियों का जायजा ले रहे थे।

मुसहर समुदाय की ज़मीन हड़पने के लिए बिना पूर्व सूचना के बस्ती पर बुलडोजर चला दिया

इस गाँव के रहने वाले मुसहर जनजाति के लोग पिछले 9 दिनों से ठण्ड में खुले आसमान के नीचे रह रहे हैं। उन्हें लगातार निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा जगह छोडकर चले जाने की धमकी दी जा रही है जबकि उक्त ज़मीन पर चार बीघे से अधिक रकबे का पट्टा उनके नाम है।

बेघर हुए मुसहर जमीन वापस पाने तक नहीं मनायेंगे कोई पर्व-त्योहार

प्रशासन की लीला देखिए कि पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के करसड़ा गांव में मुसहरों की एक बस्ती हैं; जहाँ दीपावली के दिन खुशियों की जगह जिंदगी का संघर्ष ज्यादा नजर आता है। आपकी जानकारी के लिए बताना चाहता हूॅ कि करसड़ा गाँव के मुसहरों के घर को प्रशासन द्वारा बीते शुक्रवार को उजाड़ दिया गया था।
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