Thursday, September 12, 2024
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ग्राउंड रिपोर्ट

मिर्ज़ापुर : नहरों में पानी की जगह सूखा घास-फूस की सफाई के नाम पर खर्च हो जाता है करोड़ों का बजट

नहरें खेत के लिए जीवनदायिनी होती हैं। इनका रख-रखाव ठीक से न हो तो नहरें किसी काम की नहीं रहती हैं। यही हाल है मिर्जापुर में नहरों का जिनमें पानी की जगह सूखे और घास-फूस का बोलबाला है। इनकी साफ-सफाई के नाम पर लाखों का हेर-फेर हो जाता है। यहां वर्षों पहले किसानों ने नहरों के लिए कृषि योग्य जमीन दी थी, जिसको लेकर वे कहते हैं कि बारिश न हो तो फसल सूख जाए। जब जमीन दी थी तब उम्मीद थी कि हमें नहरों से पानी मिलने लगेगा लेकिन लगातार हमको सूखा ही मिला है। इसी तथ्य की पड़ताल करती संतोष देव गिरी की ग्राउंड रिपोर्ट।

वाराणसी : ओडीएफ के दावे साबित हुए खोखले, लोग खुले में कर रहे हैं शौच

किसी राज्य का ओडीएफ प्लस (खुले में शौच से मुक्त राज्य) का दर्जा हासिल हो जाना हमारे देश में एक बड़ी उपलब्धि है। उत्तर प्रदेश को वर्ष 2023 में सौ प्रतिशत ओडीएफ प्लस घोषित कर दिया गया था लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है। सरकार के दावे लगातार गलत साबित हो रहे हैं। वाराणसी के आराजी लाइन ब्लॉक का गाँव सजोई कुछ ऐसी ही तस्वीर पेश कर रहा है। पढ़िये ओडीएफ की सच्चाई की पड़ताल करती अपर्णा की ग्राउंड रिपोर्ट

ग्राम प्रहरी उर्फ़ गोंड़इत अर्थात चौकीदार : नाम बिक गया लेकिन जीवन बदहाल ही रहा

इस सरकार ने जमीनी तौर पर कोई काम किया हो या न किया हो, कह नहीं सकते लेकिन नाम बदलने का काम बहुत किया है। इलाहाबाद का नाम प्रयागराज, योजना आयोग हो गया नीति आयोग, विकलांग हो गए दिव्याङ्ग और चौकीदार हो गए ग्राम प्रहरी। लेकिन नाम बादल देने से कुछ बदलने वाला नहीं है। ग्राम प्रहरी उर्फ़ गोंड़इत अर्थात चौकीदारों के सामने आज जीवन चलाने का बड़ा संकट खड़ा है। सरकार उन्हें कर्तव्य तो बताती है लेकिन अधिकार से महरूम रखती है। पढ़िये ग्राम प्रहरियों की वास्तविक स्थिति की पड़ताल करती संतोष देवगिरि की ग्राउंड रिपोर्ट।

मथुरा : भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन से देवकी नंदन शर्मा की मौत का ज़िम्मेदार है सरकारी तंत्र

मथुरा जिले की मांट तहसील निवासी देवकी नंदन शर्मा विगत पंद्रह वर्षों से ग्राम सभा से लेकर तहसील और जिला प्रशासन तक भ्रष्टाचार के खिलाफ़ सक्रिय थे। उन्होंने गले तक सरकारी लूट में लिप्त छोटे और बड़े अधिकारियों कर्मचारियों के अलावा ग्राम प्रधान, सचिव और दबंगों के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा दो महीने पहले अनशन पर बैठने के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मौत की जिम्मेदारी लेने की जगह जिला और तहसील प्रशासन उस पर लीपापोती करने का प्रयास कर रहा है।

Varanasi : व्यवसाय की मंदी का बुरा असर रंगरेज़ों पर भी पड़ा है

बनारसी साड़ी, भारत के प्रमुख पारंपरिक वस्त्रों में से एक है। यह साड़ी विशेष रूप से बनारस (वाराणसी) शहर की शिल्पकला का अद्भुत उदाहरण है। बनारसी साड़ी के रंगने की प्रक्रिया भी बेहद रोचक और जटिल होती है। देखिये ग्राउंड रिपोर्ट

दूर-दूर से लाई गई किराये की भीड़ और बनारस के लोग नज़रबंद किये गए

चुनाव का प्रचार एवं रैली कितनी आवश्यक है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली के...

आखिर कौन करता है मुसहरों के साथ भेदभाव

मुसहर अपने को अन्य दलित जातियों से ऊंचा मानते हैं और मौक़ा मिले तो वैसा ही करने से नहीं चूकते जैसे तथाकथित बड़ी जातियां उनके साथ करती हैं। इन्हीं गाँवों में घूमते समय मैंने मुसहरों को डोम लोगों के साथ भेदभाव करते देखा और अपने नल से पानी भरने से साफ़ तौर पर मना करते हुए देखा।

झारखण्ड के आदिवासियों के आधे विकास का पूरा सच

21 सालों के सफर में जहाँ राज्य ने कई कीर्तिमान बनाये हैं वहीं कई स्तर पर कई तरह की चुनौतियाँ आज भी मौजूद हैं। यह सच है कि कोविड जैसी वैश्विक महामारी ने पिछले डेढ़ दो सालों में जान माल का भारी नुक़सान तो किया ही, विकास की गति को भी अवरुद्ध किया है। जिसकी वजह से राज्य के कुल बजट की राशि का अभी तक लगभग 31 प्रतिशत ही खर्च हो पाया है जबकि वित्तीय वर्ष समाप्ति के मात्र चार पांच महीने ही शेष बचे हैं।

किसान आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में विगत दशकों में चल रहे आंदोलन का एक सिलसिला

यह समय का पहिया घूमने जैसी बात है। दस साल हो रहे हैं जब 2009 में आई ग्रामीण विकास मंत्रालय एक मसविदा रिपोर्ट के 160 वें पन्‍ने पर भारत के आदिवासी इलाकों में कब्जाई जा रही ज़मीनों को धरती के इतिहास में 'कोलंबस के बाद की सबसे बड़ी लूट' बताया गया था। कमिटी ऑनस्‍टेट अग्रेरियन रिलेशंस एंड अनफिनिश्‍ड टास्‍क ऑफ लैंडरिफॉर्म्‍स शीर्षक से यह रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक विमर्श का हिस्‍सा नहीं बन पाई है, जिसने छत्‍तीसगढ़ और झारखण्‍ड के कुछ इलाकों में सरकारों और निजी कंपनियों (नाम समेत) की मिली भगत से हो रही ज़मीन की लूट से पैदा हो रहे गृहयुद्ध जैसे हालात की ओर इशारा किया था।

यहाँ बिखरे थर्माकोल से विचरते हुये बगुलों का भ्रम होता है

‘कोसी नव निर्माण मंच’ के साथी क्षेत्र में आन्दोलन के साथ साथ रचना का भी कार्य बखूबी कर रहे हैं इस क्रम में जहाँ स्कूल नही है अथवा शिक्षक नहीं आते हैं, वहां जीवन शाला का संचालन किया जा रहा है, डूबे क्षेत्र में ऐसी 4 जीवन शालायें वर्तमान में चल रही हैं यद्यपि आवश्यकता तो और अधिक की है, लेकिन संसाधन जुटाने की भी बड़ी चुनौती है।

अकेले ही बीना सिंह ने रौशन किया सैकड़ों का जीवन

मैं संयुक्त परिवार में हूं और सभी लोग बहुत सपोर्ट करते हैं। परिवार को लेके चलना बहुत बड़ी तपस्या है, लेकिन अब मुझे परिवार के साथ- साथ इन कार्यों को करने में बहुत अच्छा लगता है। मैं बहुत व्यस्त रहती हूं।  सुबह पढ़ाना, फिर ब्यूटीशियन का कोर्स सिखाना,  डीएलडब्ल्यू में एक पार्लर है शाम को वहां जाती हूं। वहां से कमाई करके एनजीओं में लगाती हूं। डीएलडब्ल्यू मार्केट में व्यापार मंडल का समूह बना हुआ है। उन लोगों ने मेरे कार्यों को देखते हुए मुझे व्यापार मंडल प्रकोष्ठ का अध्यक्ष बनाया है।