जैसे ही गर्मी का मौसम आता है, वैसे ही शहरों और गांवों में पानी के लिए हाहाकार होने लगता है। जल स्रोत सूखने लगते हैं क्योंकि भूजल स्तर नीचे पहुँच जाता है। कारण लगातार कम वर्षा होने और पानी की अत्यधिक खपत पानी के पारंपरिक स्रोत के साथ भूजल स्तर को भी कम कर रहा है। अनेक नदियां अत्यधिक प्रदूषित हो चुकी हैं और कुछ तो नाले का रूप ले चुकी हैं। प्रदूषित नदियों का पानी हाथ धोने लायक भी नहीं बचा है। आने वाले दिनों में पानी की कमी अपने खतरनाक स्थिति में पहुँच जाएगी।
संयुक्त राष्ट्र की एक नयी रिपोर्ट के अनुसार भारत में सिंधु-गंगा के मैदान के कुछ क्षेत्र पहले ही भूजल की कमी के खतरनाक बिंदु को पार कर चुके हैं और पूरे उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में साल 2025 तक कम भूजल उपलब्धता का गंभीर संकट होने का अनुमान है।
‘इंटरकनेक्टेड डिजास्टर रिस्क रिपोर्ट 2023’ शीर्षक से संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय-पर्यावरण और मानव सुरक्षा संस्थान (यूएनयू-ईएचएस) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि दुनिया पर्यावरणीय रूप से छह महत्वपूर्ण बिंदुओं के करीब पहुंच रही है : तेजी से विलुप्त होने, भूजल की कमी, पर्वतीय ग्लेशियर का पिघलना, अंतरिक्ष मलबा, असहनीय गर्मी और अनिश्चित भविष्य।
पर्यावरणीय रूप से चरम बिंदु पृथ्वी की प्रणालियों में महत्वपूर्ण सीमाएं हैं, जिसके परे अचानक और अक्सर अपरिवर्तनीय बदलाव होते हैं, जिससे पारिस्थितिक तंत्र, जलवायु के पैटर्न और समग्र पर्यावरण में गहरा और कभी-कभी विनाशकारी बदलाव होता है।
भूमिगत जलस्रोत अपर्याप्त होने की स्थिति में अक्सर कृषि के लिए लगभग 70 प्रतिशत भूजल निकासी का उपयोग किया जाता है। सूखे के कारण होने वाले कृषि नुकसान को कम करने में ये भूमिगत जल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण यह चुनौती और भी बदतर होने की आशंका है।
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि भूमिगत जल स्रोत खुद अपने अंतिम बिंदु पर पहुंच रहे हैं। दुनिया के आधे से अधिक प्रमुख भूमिगत जल स्रोत प्राकृतिक रूप से फिर से भरने के बजाय तेजी से कम हो रहे हैं। कुओं में जिस भूमिगत जलस्तर से पानी आता है अगर पानी उस भूमिगत जलस्तर से नीचे चला जाता है तो किसान पानी तक पहुंच खो सकते हैं, जिससे संपूर्ण खाद्य उत्पादन प्रणालियों के लिए खतरा पैदा हो सकता है। सऊदी अरब जैसे कुछ देश पहले ही भूजल जोखिम चरम बिंदु को पार कर चुके हैं, जबकि भारत समेत अन्य देश इससे ज्यादा दूर नहीं हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत दुनिया में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है, जो अमेरिका और चीन के संयुक्त उपयोग से अधिक है। भारत का उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र देश की बढ़ती 1.4 अरब आबादी के लिए ‘रोटी की टोकरी’ के रूप में कार्य करता है, जिसमें पंजाब और हरियाणा राज्य देश में चावल उत्पादन का 50 प्रतिशत और 85 प्रतिशत गेहूं भंडार का उत्पादन करते हैं। रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया गया है, ‘पंजाब में 78 प्रतिशत कुओं को अतिदोहित माना जाता है और पूरे उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में 2025 तक गंभीर रूप से कम भूजल उपलब्धता का अनुभव होने का अनुमान है।
हाल ही में केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) द्वारा किये गए जल स्तर के आँकड़ों के विश्लेषण से संकेत मिलता है कि निगरानी किये गए लगभग 33% कुओं के भू-जल स्तर में 0से 2 मीटर की गिरावट दर्ज की गई है।
इसके अलावा नई दिल्ली, चेन्नई, इंदौर, मदुरै, विजयवाड़ा, गाजियाबाद, कानपुर और लखनऊ आदि जैसे मेट्रो शहरों के कुछ हिस्सों में भी 4.0 मीटर से अधिक की गिरावट देखी गई है। सीजीडब्ल्यूबी समय-समय पर कुओं के नेटवर्क की निगरानी के माध्यम से क्षेत्रीय स्तर पर मेट्रो शहरों सहित पूरे देश में भू-जल स्तर की निगरानी कर रहा है।
प्रमुख बिंदु
भारत में भूजल का निकालना
सीजीडब्ल्यूबी के अनुसार, भारत में कृषि भूमि की सिंचाई के लिये हर साल 230 बिलियन क्यूबिक मीटर भूजल निकाला जाता है, देश के कई हिस्सों में भूजल का तेज़ी से क्षरण हो रहा है। भारत में कुल अनुमानित भूजल की कमी 122-199 बिलियन क्यूबिक मीटर की सीमा में है।
भूजल निकालने का कारण
हरित क्रांति ने पानी की कमी वाले क्षेत्रों में जल गहन फसलों को उगाने में सक्षम बनाया, जिससे भूजल की अधिक निकासी हुई। इसकी पुनःपूर्ति की प्रतीक्षा किये बिना ज़मीन से जल को बार-बार पंप करने से इसमें त्वरित कमी आई। इसके अलावा बिजली पर सब्सिडी और पानी की अधिक खपत वाली फसलों के लिये उच्च एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य)।
उद्योगों की आवश्यकता: लैंडफिल, सेप्टिक टैंक, टपका हुआ भूमिगत गैस टैंक और उर्वरकों एवं कीटनाशकों के अति प्रयोग से होने वाले प्रदूषण के मामले में जल प्रदूषण के कारण भूजल संसाधनों की क्षति और इनमें कमी आती है।
अपर्याप्त कानून भूजल का जमीन से बड़ी मात्र में निकालना तथा इसके लिये कोई दंड न होना भूजल संसाधनों की समाप्ति को प्रोत्साहित करता है।भारत में सिंचाई हेतु कुओं के निर्माण के लिये किसी मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं होती है और परित्यक्त कुओं का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है। भारत में हर दिन कई सौ कुओं का निर्माण किया जाता है और जब वे सूख जाते हैं तो उन्हें छोड़ दिया जाता है।
संघीय मुद्दा: जल एक राज्य का विषय है, जल संरक्षण और जल संचयन सहित जल प्रबंधन पर पहल तथा देश में नागरिकों को पर्याप्त पीने योग्य पानी उपलब्ध कराना मुख्य रूप से राज्यों की ज़िम्मेदारी है। हालांकि केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न परियोजनाओं के वित्तपोषण सहित महत्त्वपूर्ण उपाय किये जाते हैं।
भूजल नियंत्रण के लिये केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
जल शक्ति अभियान: भारत सरकार ने वर्ष 2019 में जल शक्ति अभियान (JSA) शुरू किया, जिसका उद्देश्य भारत में 256 ज़िलों के पानी की कमी वाले ब्लॉकों में भूजल की स्थिति सहित पानी की उपलब्धता में सुधार करना है।
बरसात का पानी पुनः जमीन के अंदर जाय इसके लिये मास्टर प्लान- 2020: CGWB ने राज्य सरकारों के परामर्श से मास्टर प्लान- 2020 तैयार किया है। इसमें 185 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) का दोहन करने के लिये देश में लगभग 1.42 करोड़ वर्षा जल संचयन और कृत्रिम पुनर्भरण संरचनाओं के निर्माण की परिकल्पना की गई है। इसके अलावा सरकार ने वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देने के लिये ‘कैच द रेन’ अभियान भी शुरू किया है।
राष्ट्रीय जल नीति (2012): यह नीति वर्षा जल संचयन और जल संरक्षण की वकालत करती है तथा वर्षा जल के प्रत्यक्ष उपयोग के माध्यम से पानी की उपलब्धता बढ़ाने की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है। यह सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से वैज्ञानिक एवं नियोजित तरीके से नदी, नदी निकायों आदि की संरचना के संरक्षण की वकालत करती है।
अटल भूजल योजना: अटल भूजल योजना (ABHY) विश्व बैंक द्वारा सह-वित्त पोषित सामुदायिक भागीदारी के साथ भूजल के स्थायी प्रबंधन हेतु चिह्नित अति-शोषित और पानी की कमी वाले क्षेत्रों में लागू की जा रही है।
आगे बढ़ने का दृष्टिकोण: केंद्र सरकार मुख्य रूप से ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना’ और ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना- वाटरशेड’ विकास घटक के माध्यम से जल संचयन एवं संरक्षण कार्यों के निर्माण का समर्थन करती है।
कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन (AMRUT): मिशन अमृत शहरों में बुनियादी शहरी संरचना के विकास पर केंद्रित है, जैसे कि पानी की आपूर्ति, सीवेज और सेप्टेज प्रबंधन, जल निकासी, हरित स्थान और पार्क तथा गैर-मोटर चालित शहरी परिवहन।
विभिन्न राज्य सरकारों की पहल: कई राज्यों ने जल संसाधनों के सतत् प्रबंधन के लिये जल संरक्षण/संचयन के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है। उदाहरण के लिये:
राजस्थान में ‘मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान’
महाराष्ट्र में ‘जलयुक्त शिबर’
गुजरात में ‘सुजलाम सुफलाम अभियान’
तेलंगाना में ‘मिशन काकतीय’
आंध्र प्रदेश में नीरू चेट्टू
बिहार में जल जीवन हरियाली
हरियाणा में ‘जल ही जीवन’
आगे की राह
पानी पंचायतों की अवधारणा: भारत के प्रधानमंत्री ने जल संरक्षण के महत्त्व और जल संरक्षण को एक जन आंदोलन बनाने के लिये उचित उपायों को अपनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए सही दिशा में एक कदम उठाया है।
इस संदर्भ में जल संरक्षण का ग्रामीण स्तर पर विकेंद्रीकरण करना या पानी पंचायतों को मज़बूत करना बहुत कारगर हो सकता है।
जल निकायों के अवैध अतिक्रमण को प्रतिबंधित करना: जल निकायों और जल निकासी चैनलों के अतिक्रमण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये और जहाँ भी ऐसा हुआ है, उसे यथासंभव बहाल किया जाना चाहिये। इसके अलावा एकत्र किये गए जल का उपयोग भूजल की बहाली के लिये किया जाना चाहिये।
सूक्ष्म सिंचाई: सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों जैसे स्प्रिंकलर या ड्रिप सिंचाई को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। ड्रिप सिंचाई हेतु पानी के पाइपों (उनमें छेद के साथ) को या तो भूमि में दबा दिया जाता है या फसलों के बगल में ज़मीन से थोड़ा ऊपर रखा जाता है ताकि पानी धीरे-धीरे फसल की जड़ों और तनों पर टपकता रहे। स्प्रे सिंचाई के विपरीत वाष्पीकरण में बहुत कम नुकसान होता है और पानी को केवल उन पौधों के लिये उपलब्ध कराया जा सकता है जिन्हें इसकी आवश्यकता होती है, ताकि पानी की बर्बादी कम हो।
स्रोत:पीआईबी