आज के वैज्ञानिक युग में, हिन्दुओं का दिमागी कन्फ्यूजन कैसे और कौन दूर करेगा?
शूद्र शिवशंकर सिंह यादव
आज दीवाली या दीपावली या दीपमहोत्सव का त्योहार है। हिंदू समाज में पौराणिक कथा मान्यता या परम्परा है कि भगवान रामचन्द्र जी लंका पर जीत हासिल कर आज ही के दिन लौटे थे, इसलिए उनके आगमन पर लोगों ने उनके स्वागत में दीपक जलाकर खुशियां मनाई थी।
गूगल के अनुसार, आईसर्व डाइरेक्टर सरोजबाला ने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा है कि आज से 7089 साल पहले 4 दिसम्बर यानी 5076 BC को राम ने रावण का वध किया था। 3300KM दूरी तय कर 29वें दिन, 2जनवरी 5075 BC कार्तिक मास में दीपावली के दिन अयोध्या पहुंचे थे।
यहां पर एक बात विचित्र लगती है कि 7000 साल पहले रावणवध 4 दिसम्बर और लौटने का दिन 2 जनवरी बताया गया है। जबकि आज का कैलेंडर, जिसे हम इंग्लिश कैलेंडर भी कहते हैं, के पहले रूस का जूलियन कैलेंडर 10 महीने का होता था। क्रिसमस को हर साल एक निश्चित दिन को लाने के लिए, आज के इस ग्रेगोरियन कलेंडर को अमेरिका में 15 अक्टूबर 1582 में शुरू किया गया।
राम के लौटने के समय का विरोधाभास देखिए, बाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान राम दशहरे के दिन पुष्पक विमान से पवित्र चैत मास में रावण वध कर दूसरे दिन अयोध्या पहुंचे थे और राज्याभिषेक भी इसी माह में हुआ था। इस हिसाब से दिसंबर में दीवाली कैसे होगी?

दीवाली से सम्बंधित कई अटपटी रोचक परम्पराएं समाज में प्रचलन में थी और कुछ अभी भी चल रही हैं
दीपावली के पूर्व व्यापारी बनिया लोग पता नहीं क्यों, राम की पूजा न करते हुए, लक्ष्मी की पूजा करते दिखाई देते हैं। दीपावली के दिन को शुभ मानते हुए ढोंगी-पाखंडी, बाबा लोग दीवाली रात को अपने भूत-प्रेत, तंत्र-मंत्र की सिद्धि के लिए रात-भर पूजा-पाठ करते हुए कुछ कुर्बानियां भी देते मिल जाएंगे। कुछ लोग रात-भर जुआ भी खेलते मिल जाएंगे। कुछ लोगों की मान्यता है कि आज के दिन यदि चोरी-डकैती, बेईमानी करने में सफल हो गए तो सालभर सफलता मिलती रहेगी। हमें याद है, बचपन में आज के दिन गांव के लोग रात-भर जाग कर किसी अनहोनी से बचने की कोशिश करते रहते थे। इसी परम्परा के चलते आज भी पूर्वांचल और बिहार में दीवाली की रात 4 बजे भोर से पहले औरतें थाली और सूप बजाते हुए हर घर के कोने में जाकर दरिद्दर भाग जा, लक्ष्मी जी आ जा कहते हुए शोर मचाती हैं। आश्चर्य है कि उस दिन भगवान राम को औरतें अपने-अपने घरों में क्यों नहीं बुलाती है?

मुझे ऐसा लगता है कि दीवाली के दिन चोरों डकैतों से बचने के लिए भी रात-भर जागरण का अनोखा तरीका लोगों ने अपनाया होगा। अब यातायात के साधन और मोबाइल आदि होने से चोरी-डकैती गांवों में भी बहुत कम हो गई है। अब तो लोग गांव के बाहर भी मकान बनाकर रहने लगे हैं।
एक और चमत्कार देखिये, दीपावली के दूसरे दिन द्वापरयुग में पैदा हुए श्रीकृष्ण भगवान द्वारा गोवर्द्धन पहाड़ को अपनी एक कानी अंगुली पर उठा लेने के प्रतीक में अधिकतर आदमियों के द्वारा गोवर्धन पूजा की जाती है। ( पूजा में पंडित क्या मंत्र पढ़ता है, यह बहुत कोशिश के बाद भी नहीं मालूम पड़ा।) उसी दिन औरतें सार्वजनिक जगह पर एक गोबर का गोवर्द्धन बाबा बनाकर तथा उसे फूल-मालाओं से सजाकर, गीत गाते हुए मूसल से खूब कुटाई करती हैं। कहीं-कहीं गोवर्द्धन पूजा को ही औरतें गोधना कूटना कहती हैं। कहीं-कहीं तो इसी को दरिद्दर बाबा (दरिद्रता) मानते हुए, इतनी कुटाई करतीं हैं कि डर से दरिद्दर बाबा फिर आज के बाद हमारे घरों में न आने पाएं। आश्चर्य है कि गोधन बाबा इतनी मार खाने के बाद भी हर साल आते ही रहते हैं।
गोधन कूटन पर गीत तो बहुत है, लेकिन एक दो गीत का थोड़ा अंश देना उचित समझता हूं– अहिरा मुंह देख पुतवा रे, गोधन के दुधवो न देबै।, ….घीवो न देबै… ऐसे ही सभी जातियों के नाम पर गीत हैं।
फिर आगे-
काली लवुरिया,चितकाबर सोनवा मढ़ावल,/ तेज मारै मुदयी, मारे जियरा फार के/मुदयी मुदयी जिन कहा/ ऊ हौवे हमार भाई-भतीजा हो।
(औरतें गोधन को गीत के माध्यम से भाई-भतीजा भी मानती हैं।)

गोवर्द्धन पहाड़ को उठाने के बारे में जहां तक मेरा अनुमान है कि पहले अहीरों के यहां गाय-भैंस बहुतायत में होने के कारण, बहुत ज्यादा मात्रा में गोबर के उपले (खाना पकाने का एक तरह का ईंधन) बनाए जाते थे। पहले जमीन पर बरसात के पानी से बचने के लिए मजबूत लकड़ी का प्लेटफार्म बनाते थे। उसके ऊपर गोबर के उपलों का बहुत बड़ा ढेर बनाकर उसे ऊपर से बारिश से बचने के लिए ढँक दिया जाता था। पुर्वान्चल में गोहरउर अथवा उपड़उरआज भी बनाएं जाते हैं और ईंधन के रूप में बेचे भी जाते हैं। इसी को गोबर का धन यानी गोवर्द्धन भी कहा जाता है। इसी लकड़ी के प्लेटफार्म के साथ उपले के ढेर को हो सकता है। असुर श्रीकृष्ण ने ग्वाल-बालों के साथ उठाकर, उसके नीचे खड़े होकर बारिश से बचाव किया होगा।
पता नहीं किसने, किस लाजिक से मनगढ़ंत कहानी गढ़ दिया कि बारिश से बचने के लिए श्रीकृष्ण भगवान ने कानी अंगुली पर पहाड़ को ही उठा लिया। पहले तो पहाड़ जमीन से उठेगा ही नहीं। चलो, आपकी कपोल-कल्पना से, पहाड़ उठा भी लिया तो मूसलाधार बारिश में ऊपर से तो बारिश से भीगने से बचोगे, लेकिन उसी पानी में पहाड़ के नीचे डूबकर मर भी सकते हो। इतनी मूर्खता लोग कैसे पचा लेते हैं, समझ से बाहर है।
आज का अनपढ़ समझदार गड़ेरिया भी मूसलाधार बारिश या बाढ़ से बचने के लिए ऊंचाई पर या पहाड़ पर भेड़ों के साथ चला जाता है। पता नहीं किस मूर्ख ने बेचारे महानायक कृष्ण को भी पूरी दुनिया में हंसी का पात्र बनाकर रख दिया है। हमने तो अपनी तर्क-बुद्धि से कुछ बातें रखी है, समाज को पाखंड से मुक्ति दिलाने के लिए। आपको भी अपने तर्क से सत्य तक पहुंचने की कोशिश करते रहना चाहिए।
गूगल@शूद्र शिवशंकर सिंह यादव
शूद्र शिवशंकर सिंह यादव विचारक और वक्ता हैं।
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