पिछले 21 दिनों से ई रिक्शा चालकों के चल रहे अनशन और आंदोलन को जबरदस्ती खत्म करवाने के लिए पुलिस-प्रशासन द्वारा आज सुबह वाराणसी के शास्त्री घाट से सभी आंदोलनकारियों को उठा दिया गया। इसके साथ ही अखिल भारतीय ई रिक्शा यूनियन के अध्यक्ष प्रवीण काशी को, जो लगातार 21 दिन से अनशन पर बैठकर इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे, उठाकर अज्ञात स्थान पर ले जाया गया है। अनशन स्थल पर अब पुलिस मुस्तैद है।
अखिल भारतीय ई रिक्शा यूनियन के अध्यक्ष प्रवीण काशी बनारस के शास्त्री घाट पर ई रिक्शा चालकों के लिए थोपे गए नए रूट के आदेश के विरोध में अनशन पर बैठे हुए हुए थे। सत्रहवें दिन, 21 सितम्बर को पुलिस ने प्रशासन के आदेश पर उन्हें अनशन स्थल से उठाकर शासकीय दीनदयाल अस्पताल में यह कहते हुए भर्ती करवा दिया वे कमजोर हो गए हैं। पिछले दो दिनों से वे अस्पताल में पुलिस की निगरानी में रखे गए थे। 23 सितंबर को उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी।
आज 24 सितंबर को प्रवीण काशी चौका घाट पर मांग पूरी नहीं करने पर आत्मदाह करने वाले थे, जिसके कारण बड़ी संख्या में रिक्शा चालक शास्त्री घाट पर एकत्रित हुए थे। इस वजह से पुलिस सुबह ही उन्हें उठा ले गई।
शास्त्री घाट पर पुलिस के आने के बाद आंदोलन पर बैठे ई रिक्शा चालकों और आम जनता को डंडा भाँजकर खदेड़ दिया गया और अब वहाँ पुलिस पहरा दे रही है।
ई रिक्शा चालकों का पिछले 21 दिन से चल रहा आंदोलन आज जबरन खत्म करा दिया गया। यह बात फोन पर ई रिक्शा चालकों के जिला उपाध्यक्ष विजय जायसवाल ने बताई। पूरा शास्त्री घाट खाली तो करवा दिया गया है लेकिन उनकी आगे की क्या योजना है यह प्रवीण काशी के वापस आने के बाद ही तय होगा। फिलहाल ई रिक्शा चालक अपने काम पर वापस नहीं लौटे हैं।
इसके पहले प्रवीण काशी इस मुद्दे को लेकर पीएमओ से लेकर सीएम के पोर्टल तक अपनी बात रख चुके हैं। जिलाधिकारी और कमिश्नर तक ज्ञापन सौंप चुके हैं, यह तक कि 20 सितंबर को डीएम के कार्यालय का घेराव भी किया ताकि अपने कार्यालय से बाहर निकलकर बात तो सुनते लेकिन उन्हें हमारी आवाज सुनाई नहीं दी।
रोजगार के लिए टोटो दिया लेकिन अब निवाला छीन रहे हैं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 मई 2016 के दिन अपने संसदीय क्षेत्र के विकास का विशेष ध्यान रखते हुए ई रिक्शा, जिसे बैटरी रिक्शा भी कहते हैं, के (टोटो) के संचालन का विमोचन किया। विमोचन के दौरान उन्होंने ई रिक्शा की सवारी भी की। उनका कहना है कि ‘जनता को मजबूत बनाने वाली योजनाओं को अमल में लाया जाना जरूरी है, ताकि आम जनता का आर्थिक आधार मजबूत हो।’
इसके बाद इन आठ वर्षों में वाराणसी में ही लगभग 25 हजार लोगों ने खाने-कमाने के लिए ई रिक्शा का सहारा लिया। इसे खरीदने के लिए 95 प्रतिशत लोगों ने बैंक से ऋण लिया। आज पूरे वाराणसी में ऑटो के साथ ई रिक्शा भी सड़कों पर चल रहे हैं।
एक ई रिक्शा की कीमत 1 लाख 80 हजार है। 95 प्रतिशत लोगों ने बैंक से ऋण लेकर ई रिक्शा खरीदा है। जिन्हें हर महीने 8000 से 9000 रुपये किस्त के देने पड़ते हैं। यदि निरंतर किस्त चुकाई जाती है तब लगभग़ दो वर्षों में लिया गया ऋण चुकता होता है।
ऐसा क्यों है कि लगभग सभी चालक निजी बैंकों से लोन लिया हुआ है? पूछने पर ई रिक्शा चालक राजेश मिश्रा ने बताया कि सरकारी बैंक में भले ही मुद्रा लोन, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) के अंतर्गत सुविधा है लेकिन जब लोन के लिए फॉर्म भरते हैं तब फाइल दबा दी जाती है, महीनों चक्कर लगवाया जाता है, जबकि प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) एक से दो सप्ताह के बीच स्वीकृत हो जाता है। जब उसमें सफलता नहीं मिलती तब मन मारकर निजी बैंक में जाना पड़ता है। जबकि निजी बैंक से लोन लेने पर ब्याज की दर भी ज्यादा होती है।
इसे देखते हुए धन्वंतरि चौबे कहते हैं कि सरकार की गरीबों के लिए जितनी भी योजनाएं हैं वह सब कागज पर ही चलती हैं। आम जनता में एकके-दुक्के को छोड़कर किसी को भी इसका लाभ नहीं मिलता। लेकिन दावे बड़े-बड़े किए जाते हैं।
काम नहीं चलने के कारण ई रिक्शा चालक सवारी के लिए हो रहे हैं परेशान
20 सितंबर की दोपहर बनारस स्टेशन पर दो टोटो वाले (ई रिक्शा) सवारी ले जाने के लिए आपस में बहस कर रहे थे। एक ने सवारी के साथ मोलभाव तय कर लिया था और उसका सामान स्टैंड पर खड़े ई रिक्शा के पास ले जा रहा था, इसी बीच एक दूसरे ई रिक्शा वाला उसके हाथ से सामान छीनकर अपने ई रिक्शा में ले जाने की कोशिश करने लगा। असल में दोनों चाह रहे थे कि सवारी उनके टोटो में जाये ताकि कुछ कमाई हो सके।
टोटो में बैठने के बाद लड़ने का कारण पूछने पर चालक ने उदास स्वर में कहा कि पिछले 15 दिनों से ई रिक्शा वालों का आंदोलन चल रहा है। मैं आंदोलन के समर्थन में हूँ इसलिए रिक्शा नहीं चला रहा था लेकिन घर पर बच्चे हैं और खाने के लिए कुछ भी नहीं होने के कारण आज 15 दिन बाद ई रिक्शा निकाला है, ताकि 2-4 सवारियों को ढोने के बाद कुछ कमाई हो सके और घर में राशन ले जा सकूँ। घर पर छोटे-छोटे 2 बच्चे हैं। कमाई नहीं होने की वजह से एक-एक सामान के लिए दिक्कत हो रही है। यहाँ तक कि दूध भी नहीं ला पाने की स्थिति है।
पिछले 18 दिनों से कोई कमाई नहीं हुई है क्योंकि बनारस के लगभग 25 हजार टोटो चालक प्रशासन द्वारा थोपे गए निर्णय का विरोध कर रहे हैं। इतना सब बताने के बाद उसने कहा- ‘पिछले पाँच वर्ष पहले टोटो खरीदकर कमाने के निर्णय पर अब मुझे बहुत पछतावा हो रहा है। कर्जा लेकर ई रिक्शा लिया, अभी हर महीने किस्त देनी पड़ती है। जब कमाई नहीं होगी तो किस्त कैसे भरी जाएगी?
आंदोलन स्थल पर लगातार मौजूद रहनेवाले एक चालक ने बताया कि हर महीने 9 हजार रुपये की किस्त जाती है, मतलब रोज की कमाई से 300 रुपये निकालने पड़ते हैं। 100 रुपये बेटरी चार्ज के देने होते हैं। दिनभर 12 घंटे काम करने के समय 50 रुपये का चाय-नाश्ता, 50 रुपये में इन्श्योरेन्स, नगर निगम और कुछ दूसरे खर्च। मतलब 500 रुपए के बाद जो हाथ में आता है, वही कमाई होती है। वह 100 रुपये या इससे ज्यादा या कम हो सकती है।
पीएम द्वारा आठ वर्ष पहले दिए गए रोजगार को छीनने की कवायद क्यों
वाराणसी अकेला शहर नहीं है जहां ट्रैफिक जाम होता हो। बल्कि पूरे देश में यह समस्या दिखाई देती है, क्योंकि का विकास बहुत पुराने जमाने हुआ था और नए हालात में वहाँ उपयुक्त सड़कें और जगहें नहीं। देश के मेट्रो शहर दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरू, नोएडा के अतिरिक्त दूसरे अन्य शहरों में भी एक-एक, दो-दो घंटों का बड़ा जाम लगता है। यह जाम लोगों की कारों का होता है, लेकिन उन पर कोई कार्यवाही नहीं होती, न ही उनके लिए कोई रूट तय होता है, न एरिया बांटा जाता है और न ही बार कोड दिया जाता है। बल्कि ट्रैफिक पुलिस के माध्यम से उस जाम को खत्म करने की कोशिश की जाती है।
बनारस शहर एक पर्यटन स्थल है, जिसकी जनसंख्या 14 लाख 35 हजार के करीब है। यहाँ आने वाले पर्यटकों की संख्या प्रतिदिन ढाई से तीन लाख होती है। लेकिन हर दिन लगने वाले ट्रेफिक जाम के लिए ई रिक्शा को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
इस ट्रेफिक जाम से मुक्ति की प्रक्रिया में ई रिक्शा परिचालन के लिए जनवरी 2024 से एक निश्चित रूट निर्धारित करने की योजना चल रही थी, जिसे तैयार कर सितम्बर के पहले हफ्ते से लागू कर दी गई।
इस तय किए गए रूट निर्धारण में ई रिक्शा चालकों को एक ही थाना क्षेत्र में 2 से 3 किलोमीटर की दूरी तक ही चलाने का आदेश दिया गया है। साथ ही अलग-अलग रंगों के बार कोड आबंटित किए गए हैं। अलग-अलग रंग के कोड उस चालक के थाना क्षेत्र को इंगित करेंगे। व्यावहारिक रूप से यह अनुपयुक्त नियम है। सोचने की बात है कि बनारस में एक दो किलोमीटर की दूरी लोग पैदल ही पार कर जाते हैं। 2-3 किलोमीटर तक की सवारियाँ मिलनी मुश्किल हैं। ऐसे में बमुश्किल एक सवारी से 10 रुपये से 15 रुपये तक की कमाई हो पाएगी।
बनारस को तीन ज़ोन में विभाजित किया गया है- काशी, वरुणा और गोमती। काशी ज़ोन को 11 थानों में विभाजित किया गया है। जिसे 4 रूट में बाँटा गया है, जिसमें कोई भी रूट 2 से 3 किलोमीटर से ज्यादा का नहीं है। रूट नंबर एक में 5 हजार ई रिक्शा हैं, जिसे 2 से 3 किलोमीटर के दायरे में ही चलना है। अब इतने रिक्शे कितना कमा पाएंगे और कितनी सवारियाँ मिल पाएँगी? इसी तरह हर रूट में व्यवस्था की गई है, लेकिन बाकी गाड़ियों के लिए कोई रूट तय नहीं किया गया है। ऐसे में कोई भी लंबी दूरी वाले ई रिक्शा नहीं लेगा।
दूर जाने वाले बार-बार रिक्शा बदलने का काम नहीं करेंगे, जिससे सवारी ऑटो में जाएगी और ये खाली रह जाएंगे। चालकों का कहना है कि जब इतनी दिक्कत थी तब लगातार ई रिक्शा का रजिस्ट्रेशन क्यों किया जाता रहा। इसे पहले ही बंद कर देना था।
प्रधानमंत्री द्वारा बनारस में ई रिक्शा को लाने के 8 वर्ष बाद ई रिक्शा चालकों के लिए एक ऐसा नियम लाया गया, जो कहीं से भी व्यावहारिक नहीं है।
जबकि ई रिक्शा की कमाई से लोगों के परिवार चल रहे हैं। लेकिन जाम का पूरा आरोप लगाकर इन्हें पूरे शहर में सवारी ले जाने पर रोक लगा दिया गया है।
यदि यहाँ चलने वाले वाले परिवहन साधनों की बात की जाए तो पूरे शहर में लगभग 11 लाख 80 हजार मोटर साइकिलों की संख्या है। बसों की संख्या 7 हजार से ज्यादा है, कार 80 हजार से ज्यादा है। प्रतिदिन यहाँ लाखों की संख्या में पर्यटक आते हैं, इस वजह से बाहर से आने वाली उतनी ही कारें आती जाती रहती हैं।
लेकिन इन्हें चलाने वाले की समझ अच्छी होने के कारण अपनी गाड़ियों को कैसे चलाना है और कैसे पार्किंग करना है, यह लोग भलीभाँति जानते हैं।
प्रवीण काशी का कहना है कि ई रिक्शा चालकों को इसके लिए ट्रैफिक और पार्किंग का प्रशिक्षण दिया जाना जरूरी है। किसी से काम छीन लेना, उनकी रोजगार पर प्रहार करना सही नहीं है।
सरकार द्वारा विकास की अनेक योजनाएं लाने का दावा लगातार कर रही है। प्रधानमंत्री स्वयं अखबारों में और टीवी पर विज्ञापन में योजनाओं का बखान करते हुए दिखाई देते हैं लेकिन अदूरदर्शी प्रधानमंत्री को जमीनी हकीकत से कोई वास्ता नहीं है क्योंकि रोज विकास के नाम पर योजनाएं आती हैं और बाद में बिना किसी तरह सोचे समझे उन योजनाओं खत्म कर लाभार्थियों को खत्म होने के लिए विवश किया जा रहा है।
अब देखना यह है कि बनारस में ई रिक्शा वालों का चल रहा आंदोलन आगे कौन सा रूप लेगा?