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हादसा और सरकारी तंत्र की असंवेदनशीलता डायरी (16 सितंबर, 2021)

देश में लोकतंत्र है और अब यह देश वह देश नहीं है जो अंग्रेजों के समय था। देश में एक संविधान है और यह बात लगभग सभी जानते-समझते-मानते हैं। कुछ लोग नहीं भी मानते हैं। जो नहीं मानते, उनमें केवल आम आदमी ही नहीं बल्कि ओहदेदार भी होते हैं। हालांकि उन्हें इस बात का अभिमान […]

देश में लोकतंत्र है और अब यह देश वह देश नहीं है जो अंग्रेजों के समय था। देश में एक संविधान है और यह बात लगभग सभी जानते-समझते-मानते हैं। कुछ लोग नहीं भी मानते हैं। जो नहीं मानते, उनमें केवल आम आदमी ही नहीं बल्कि ओहदेदार भी होते हैं। हालांकि उन्हें इस बात का अभिमान भी रहता हे कि वे ओहदेदार हैं और इसी अभिमान के कारण वे संविधान व कानून का मजाक भी बनाते हैं। उनके इस तरह के आचरण से आमजन परेशान होते हैं। खास बात यह कि उनकी कोई सुनवाई भी नहीं होती।

मामला कल हुए एक भीषण हादसा से जुड़ा है। इस हादसे की जानकारी मेरे बड़े भाई कौशल किशोर कुमार ने दी। उन्होंने बताया कि दो चचेरे भाइयों सहित पांच नौजवानों की एक सड़क हादसे में मौत हो गई है। घटना झारखंड के रामगढ़ जिले के रजरप्पा थाने के मूलबंदा इलाके में घटित हुई। सभी मृतक कार से पटना से रजरप्पा स्थित छिन्नमस्तिका मंदिर जा रहे थे। मंदिर पहुंचने के पहले ही उनकी कार एक बस से टकरा गयी जो रांची से पटना की ओर आ रही थी। भैया ने जानकारी दी कि टक्कर होते ही कार में आग लग गई और कार में सवार नौजवान जिंदा जल गए।

नौजवानों में मेरा चचेरा भाई मुन्ना राय भी था जो मुझसे करीब पांच-छह साल छोटा था। देखते ही मुस्करा देना उसकी आदत थी। एक दूसरा चचेरा भाई किशोर था। गांव में हम उसे किशोर ही कहते थे। वह भी मुन्ना के जैसा ही था। शायद मुन्ना से एक या दो साल बड़ा होगा। एकदम गोरे रंग का और अपनी ही धुन में जीनेवाला। घर की स्थिति अच्छी नहीं थी तो पढ़ नहीं पाया। लेकिन उसने अपनी इस कमजोरी को अपनी कामयाबी के आड़े नहीं आने दिया। कुछ बेहतर करने की कोशिश वह रोज करता। उसने प्रॉपर्टी के कारोबार में हाथ आजमाया था और एक लिहाज से सफल ही था। सफल इस मायने में कि वह न केवल अपना परिवार बल्कि अपने बड़े भाई के परिजनों का भी अभिभावक था। दो-दो परिवारों की जिम्मेदारियां थीं उसके पास और वह निर्वहन भी कर रहा था।

मृतकों में शेष तीन नौजवानों को मैं इसलिए भी नहीं जानता क्योंकि गांव में नियमित रूप से रहना नहीं होता है। दिल्ली से पटना मेहमान की तरह जाता हूं और वापस लौट आता हूं। इस दौरान कोशिश करता हूं कि उन सभी लोगों से जरूर मिल लूं जिन्हें मैं जानता हूं। एक डर हमेशा लगा रहता है कि जिनसे मिल रहा हूं, अगली बार उनसे मिल सकूंगा या नहीं। किशोर और मुन्ना से आखिरी मुलाकात ऐसी ही थी। हालांकि बीते साढ़े चार वर्षों में गांव में बहुत कुछ बदल गया है। एक तो गांव का विस्तार बहुत हुआ है। बाहर से जाकर गांव में अनेक लोग बसे हैं, जिन्हें मैं नहीं जानता। वहीं परिचितों के बच्चे भी बड़े हो गए हैं और चूंकि उन्हें मैंने देखा नहीं है, इसलिए मुझे सब नये लगते हैं। कभी-कभार कोई रिश्ते के हिसाब से संबोधन करता है तो पूछ बैठता हूं कि आप किसके बेटे हैं और तब समय बीतने का अहसास होता है।

[bs-quote quote=”राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो ने क्राइम इन इंडिया-2020 रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दिया। मेरी नजर जिन आंकड़ों पर गई, उनमें महिलाओं के खिलाफ होनेवाले अत्याचारों व सड़क हादसों से संबंधित आंकड़े थे। सड़क हादसे संबंधी आंकड़ा कहता है कि हर दस मिनट पर कोई न कोई अपनी जान गंवा देता है। वहीं बलात्कार का आंकड़ा बताता है कि रोजाना औसतन 77 महिलाओं के साथ रेप की घटनाएं दर्ज होती हैं। यह आंकड़ा 2020 का है। इस औसत आंकड़े के हिसाब से सोचें तो हम पाते हैं कि हर घंटे करीब तीन मामले। मिनट के हिसाब से बात करें तो हर दस मिनट पर एक बलात्कार। वहीं महिलाओं के खिलाफ कुल अपराधों की बात करें तो 3 लाख 71 हजार 503 मामले वर्ष 2020 में दर्ज किए गए। इनमें 67 फीसदी मामले यौन हिंसा से संबंधित हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

खैर, मैं सरकारी तंत्र की कार्यशैली की बात कर रहा था। कल हुआ यह कि गांव के अनेक लोग रजरप्पा मृतकों का पार्थिव शरीर लाने गए। इनमें मेरे भैया भी रहे। उन्होंने बताया कि रात में पुलिस ने उनलोगों की कोई मदद नहीं की ताकि पार्थिव शरीर उन्हें मिल सके। पुलिस अधिकारी ने उन्हें बताया कि अनुमंडल अस्पताल में लाशों को अंत्यपरीक्षण के लिए भेजा गया है। यह जानकारी उन्हें चार घंटे के बाद दी गयी। किसी तरह मेरे गांव के करीब बीस-बाइस लोगों ने रात गुजारी।

आज सुबह में भैया ने फोन किया कि पुलिस कोई मदद नहीं कर रही है। जबकि अस्पताल द्वारा कहा जा रहा है कि जबतक स्थानीय पुलिस के लोग नहीं आएंगे, तबतक लाशें सुपुर्द नहीं की जाएंगीं।

इस क्रम में मैने रजरप्पा थाना के एसएचओ को फोन किया और उनसे मेरे गांव के लोगों की मदद करने का अनुरोध किया। बातचीत के क्रम में उन्होंने कहा कि वे अपना काम कर रहे हैं और मैं अपना काम करूं। उन्हें मेरा फोन करना बुरा लगा। मैंने उन्हें कहा कि हम पीड़ित लोग हैं और चूंकि थाना की भूमिक महत्वपूर्ण होती है तो मैं आपको फोन कर रहा हूं। मैंने बातचीत यह कहते हुए खत्म की कि यदि लाशें जल्द मिल जाएंगीं तो लोग वहां से जल्दी निकल सकेंगे।

थोड़ी देर बार उक्त अधिकारी का फोन आया। इस बार उनका लहजा बदला हुआ था। उन्हें शायद अहसस हुआ कि मैं पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठा रहा हूं या फिर यह भी हुआ होगा कि उन्हें महसूस हुआ हो कि एक आदमी उन्हें फोन कैसे कर सकता है। बातचीत का खात्मा कड़वे शब्दों के साथ हुआ।

दरअसल, यह पूरा मामला सरकारी तंत्र की असंवेदनशीलता से जुड़ा है। खासकर पुलिस महकमा। आम आदमी थाना पर विश्वास करता है। फिर चाहे कोई झगड़ा हो या कोई हादसा। पुलिस की जिम्मेदारियां भी ऐसी ही होती हैं। यह महकमा जनता से प्रत्यक्ष संबंध रखनेवाला महकमा है। लेकिन पुलिस की अपनी कार्यशैली है। भ्रष्टाचार वगैरह की बात मैं नहीं करता। यह बीमारी तो शीर्ष से लेकर निचले स्तर तक व्याप्त है। लेकिन हादसे मे मारे गए लोगों के परिजनों को केवल इसलिए परेशान करना कि उनकी जेबें गरम हों, निहायत ही निंदनीय है. कल ही पटना हाईकोर्ट की अधिवक्ता स्वाति से बात हो रही थी। उनका कहना है कि बिहार में बलात्कार पीड़िता ने थाना जाकर अपना मामला दर्ज कराया हो, ऐसे मामलों की संख्या 50 से भी कम रही होगी। अधिकांश मामले परिजनों द्वारा दर्ज कराए जाते हैं। महिलाएं हिम्मत नहीं कर पाती हैं। वजह यह कि पुलिस एक बलात्कार पीड़िता को पीड़िता से अधिक चरित्रहीन मानकर ही बातचीत शुरू करती है।

[bs-quote quote=”कल ही पटना हाईकोर्ट की अधिवक्ता स्वाति से बात हो रही थी। उनका कहना है कि बिहार में बलात्कार पीड़िता ने थाना जाकर अपना मामला दर्ज कराया हो, ऐसे मामलों की संख्या 50 से भी कम रही होगी। अधिकांश मामले परिजनों द्वारा दर्ज कराए जाते हैं। महिलाएं हिम्मत नहीं कर पाती हैं। वजह यह कि पुलिस एक बलात्कार पीड़िता को पीड़िता से अधिक चरित्रहीन मानकर ही बातचीत शुरू करती है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

बहरहाल, कल राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो ने क्राइम इन इंडिया-2020 रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दिया। मेरी नजर जिन आंकड़ों पर गई, उनमें महिलाओं के खिलाफ होनेवाले अत्याचारों व सड़क हादसों से संबंधित आंकड़े थे। सड़क हादसे संबंधी आंकड़ा कहता है कि हर दस मिनट पर कोई न कोई अपनी जान गंवा देता है। वहीं बलात्कार का आंकड़ा बताता है कि रोजाना औसतन 77 महिलाओं के साथ रेप की घटनाएं दर्ज होती हैं। यह आंकड़ा 2020 का है। इस औसत आंकड़े के हिसाब से सोचें तो हम पाते हैं कि हर घंटे करीब तीन मामले। मिनट के हिसाब से बात करें तो हर दस मिनट पर एक बलात्कार। वहीं महिलाओं के खिलाफ कुल अपराधों की बात करें तो 3 लाख 71 हजार 503 मामले वर्ष 2020 में दर्ज किए गए। इनमें 67 फीसदी मामले यौन हिंसा से संबंधित हैं। इन आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि हर मिनट करीब दस महिलाओं के साथ यौन हिंसा की जाती है। इनमें वे मामले शामिल नहीं हैं जो थाना नहीं पहुंच पाते और इसकी भी कई वजहें हैं।

एक वजह तो यही कि अधिकांश मामले में घर के पुरुष लोकलाज की डर से मामला दर्ज नहीं कराते। खासकर जब आरोपी घर का हो तो सब मामले को छिपा लेने में ही भलाई समाझते हैं। दूसरी वजह यह कि पुलिस यौन हिंसा के मामले को लेकर संवेनदशील नहीं रहती। पीड़ित पक्ष को ही कटघरे में खड़ा कर देती है। कल ही पटना हाईकोर्ट की अधिवक्ता स्वाति से बात हो रही थी। उनका कहना है कि बिहार में बलात्कार पीड़िता ने थाना जाकर अपना मामला दर्ज कराया हो, ऐसे मामलों की संख्या 50 से भी कम रही होगी। अधिकांश मामले परिजनों द्वारा दर्ज कराए जाते हैं। महिलाएं हिम्मत नहीं कर पाती हैं। वजह यह कि पुलिस एक बलात्कार पीड़िता को पीड़िता से अधिक चरित्रहीन मानकर ही बातचीत शुरू करती है।

खैर, पुलिस सरकारी तंत्र का हिस्सा है और असंवेदनशीलता तंत्र के हर स्तर पर है। मैं कल हादसे में मारे गए पांचों नौजवानों के परिजनों के बारे में सोच रहा हूं। उनके उपर क्या गुजर रही होगी इस वक्त। अभी से कुछ देर संभवत: 11 बजे जब 50 फीसदी से अधिक जल चुकी लाशें उन्हें सुपुर्द किया जाएगा तब का मंजर कितना भयावह होगा।

मेरे गांव के लोग और मेरे परिजन हिम्मत बनाए रखेंगे। ऐसा विश्वास है मुझे।

 

नवल किशोर कुमार फारवर्ड प्रेस में संपादक हैं ।

 

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