भारतीय स्त्री मुक्ति का दिन 25 दिसंबर

डॉ लता प्रतिभा मधुकर

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हम सब एक ऐसी मानवीय संस्कृति का निर्माण करना चाहते हैं, जहाँ हर इंसान आजादी की सांस ले सके, सम्मान  से जी सके और एक दूसरे को सम्मान दे सकें।
सबको समान अवसर, समता आधारित संसाधन का बंटवारा हो और धर्मनिरपेक्षता का पालन हो। हमारे लिये संविधान और वैश्विक मानवाधिकार संहिता से ऊपर और बड़ी  कोई आचार संहिता नहीं है चाहे हम किसी जाति, धर्म, वंश, लिंग, रंग  या क्षमता लेकर जन्में हो, हम इन्सान हैं, हम इस देश के नागरिक हैं।
इसलिये जब कोई एक कौम के नरसंहार की घोषणा करता है, हम उसका और उसके संगठन या पक्ष का निषेध करते हैं। यहाँ  हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध, सिख, इसाई, पारसी, ज्यू, जैन, बहाई, सरना तथा अन्य धर्म-पंथ के सब लोग एक दूसरे के साथ अमन से रहे, अपनी भाषा जतन करे और सब एक दूजे का सम्मान करें, ये हमारी तहजीब है।
इस देश में कोई भी धर्मांध ताकत, विषमतावादी, अविवेकी, भेदभावपूर्ण व्यवहार, फासीवादी तथा सांप्रदायिकतावादी ताकतों का, हिंसावादी, जातीयवादी मानसिकता का विरोध करते हैं।  इस देश की स्त्री मुक्ति के पहले  एल्गार डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी ने 25 दिसंबर,1927 को महाड़  में मनुस्मृति ग्रंथ का प्रतीकात्मक दहन  किया और हमें 1950  में संविधान सौंपकर हमारी मुक्ति के दरवाजे खोल दिये।
आज बाबासाहेब को  सर्व जाति-धर्म की महिलाओं की ओर से विशेष अभिवादन इसलिये  कि मनुस्मृति को नामशेष किये बगैर कोई भारतीय महिला मुक्त नहीं हो सकती, इस बात का अहसास कराया।

डॉ. लता प्रतिभा मधुकर सामाजिक कार्यकर्ता, लेखिका और शोधार्थी हैं। 

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