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ग्राउंड रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूछे गए सवालों से क्यों बच रही है मोदी सरकार

संविधान के विरुद्ध किए गए फैसलों के लिए 12 दिसंबर को सुनवाई हुई और सुनवाई के दौरान CJI संजीव खन्ना को आदेश दिया गया कि जब तक मोदी सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं आता, तब तक कोई सुनवाई नहीं होगी, कोई कार्रवाई नहीं होगी, कोई नई याचिका नहीं डाली जाएगी। लेकिन केंद्र सरकार ने संविधान को ताक में रखते हुए आज तक कोई जवाब नहीं दिया। सवाल यह उठता है कि क्या मोदी सरकार न्यायपालिका से ऊपर है?

लोकतन्त्र एक इस प्रकार की शासन व्यवस्था है, जिसमे सभी व्यक्तियों को समान अधिकार होता हैं। एक अच्छा लोकतन्त्र वह है जिसमे राजनीतिक और सामाजिक न्याय के साथ-साथ आर्थिक न्याय की व्यवस्था भी है। लोकतांत्रिक भारत से पता चलता है कि चुनाव के माध्यम से प्रतिनिधियों को चुनने के लिए, भारत के प्रत्येक नागरिक को किसी भी पंथ के बावजूद, बिना किसी भेदभाव के वोट देने का अधिकार है। भारत की लोकतांत्रिक सरकार जिन सिद्धांतों पर आधारित है-वे हैं स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और न्याय। किंतु क्या आज का भारतीय लोकतंत्र इस सिद्धांतों  पर चल रहा है? नहीं, सरकार का मनोभाव ही  कुछ इन सिद्धांतों के विरुद्ध निरंतर पनपता जा रहा है।

दबा हुआ मीडिया, आवाज़हीन हाशिए की जातियाँ और अल्पसंख्यक,कमाल की बात है, फिर भी भारत, दुनिया का सबसे बड़ा ‘लोकतंत्र’ व अब सबसे ज़्यादा आबादी वाला देश, निरंकुशता की ओर बराबर आगे  खिसक रहा है।

उपर्युक्त के संदर्भ में, यह जरूरी है कि हम पहले यह जान ले कि वर्तमान समय में तानाशाही या अधिनायकवाद उस शासन-प्रणाली को कहते हैं जिसमें कोई व्यक्ति (प्रायः सेनाधिकारी) विद्यमान नियमों की अनदेखी करते हुए डंडे (डण्डे) के बल से शासन करता है। एकाधिनायकत्व, अधिनायकवाद उस एक व्यक्ति की सरकार है जिसने शासन उत्तराधिकार के फलस्वरूप नहीं वरन् बलपूर्वक प्राप्त किया हो तथा जिसे पूर्ण संप्रभुत्ता प्राप्त हो।

तानाशाही’ शब्द सरकार के उस रूप को संदर्भित करता है जिसमें किसी व्यक्ति या समूह को अधिकांश शक्ति दी जाती है। तानाशाह ऐसे व्यक्ति होते हैं जो निरंकुश राजनीतिक शक्ति को हथियाने के लिए अक्सर छल या बल का उपयोग करते हैं, जिसे वे फिर धमकी, बुनियादी नागरिक स्वतंत्रता के दमन और आतंकवाद के माध्यम से बनाए रखते हैं। जन प्रचार तकनीक एक अन्य उपकरण है जिसका उपयोग तानाशाह जन समर्थन बनाए रखने के लिए कर सकते हैं। तानाशाही के रूप में जानी जाने वाली एक सरकारी प्रणाली वह है जिसमें एक व्यक्ति, समूह, या दोनों दूसरों पर पूर्ण शक्ति का प्रयोग करते हैं।

 किसी पर अपराध का आरोप लगाया जाता है, तो अपील के लिए कोई कानूनी विकल्प नहीं होता कानूनी मुकदमे से गुजरे बिना ही लोगों को रखा या बंद किया जा सकता है। मामूली अपराध, उन्हें कठोर दंड और लंबी जेल की सजा का सामना करना पड़ सकता है।

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 इसे स्वतंत्र मीडिया नापसंद है। संसाधन-संपन्न देशों में, तानाशाह के लिए नौकरशाही प्रोत्साहन कम महत्वपूर्ण होते हैं; इसलिए, मीडिया की स्वतंत्रता उभरने की संभावना कम है।

यथोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि अर्थात तानाशाही के रूप में जानी जाने वाली एक सरकारी प्रणाली वह है जिसमें एक व्यक्ति, समूह, या दोनों दूसरों पर पूर्ण शक्ति का प्रयोग करते हैं।  तानाशाही और लोकतंत्र दो लोकप्रिय प्रकार की सरकारें हैं जो राजनीतिक प्रणालियों की तुलना में अक्सर टकराती हैं।

तानाशाह अक्सर लोकतंत्र से ही पैदा होता  है 

23 फरवरी 2025 की खबर है कि दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जो कि डीके उपाध्याय ने डंके की चोट पर मोदी और शाह को आईना दिखाया। और कहा कि अगर संविधान का पालन करना छोड़ दोगे तो संविधान का कोई मतलब नहीं है। फिर हिटलर को भी कानूनी तौर पर तनहा शाह बना दिया गया। ये खबर देखने के बाद मोदी और शाह को नींद नहीं आएगी। आखिर किस जज ने उनकी मर्जी के खिलाफ इतनी बड़ी बात कही? वो भी एक सार्वजनिक सभा में।

जो लोग सोचते हैं कि संविधान में संशोधन करके, उनके अनुसार कानूनों का उल्लंघन करके वे कुछ भी कर लेंगे और तानाशाह बनते रहेंगे। तो आज दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने उन्हें अच्छे से समझाया है। आपको बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय ने साफ कहा है कि संविधान का अस्तित्व और उसका अनुपालन दो अलग-अलग चीजें हैं। हिटलर कानूनी तौर पर तानाशाह बन गया था।

CJI डीके उपाध्याय ने इतनी बड़ी बात कही है – हम सभी जानते हैं कि हिटलर जर्मनी में तत्कालीन कानून के अनुसार निर्वाचित चांसलर था। लेकिन उसने कानून या कानून बनाने की प्रक्रिया में इस तरह से संशोधन किया कि वह कानून का पालन करते हुए तानाशाह बन गया। हिटलर उसी संविधान और कानून के तहत तानाशाह बना था। लेकिन उसने कानून में संशोधन किया और तानाशाह बन गया। तो संविधान के अस्तित्व और उसके अनुपालन में कितना बड़ा अंतर है? हमारे देश के राजनेताओं को भी यह समझना चाहिए कि जो सत्ता के लालची हैं, जो 21 राज्यों में सरकार बनाने का खेल जानते हैं, जो केंद्र में बैठकर सत्ता का केंद्रीकरण करना जानते हैं, वे लोग जो तीन बार अपनी कुर्सी पर काबिज हैं, लेकिन स्थापित नेताओं को चुटकी में हटा देते हैं, जो रिमोट कंट्रोल से किसी को सीएम बनाना चाहते हैं और दिल्ली से ऑपरेट करना चाहते हैं। जान लें कि सत्ता का केंद्रीकरण करना हिटलर का ही गुण है। जस्टिस डीके उपाध्याय ने अभी-अभी अपनी आंखें खोली हैं। उन्होंने कहा कि मैं आज यहाँ उपस्थित लोगों को यह बताना चाहता हूँ कि संविधान का होना और संविधानवाद का पालन करना, ये दो अलग-अलग बातें हैं जिन्हें हमें हमेशा ध्यान में रखना चाहिए।

तानाशाह की राजनीतिक अवधारणा

उन्होंने यहाँ आगे कहा कि संविधान के अस्तित्व का कौन पालन कर रहा है और कौन उल्लंघन कर रहा है, ये यहाँ विचारणीय बातें हैं। सब कुछ अलग है। कोई भी राजा बन सकता है, लेकिन वह संविधान के अनुसार राजा है या नहीं, यह एक बड़ी समस्या है। सत्ता के पृथक्करण का सिद्धांत, कानून का शासन, न्यायिक समीक्षा, सार्वजनिक जवाबदेही और स्थापित संस्थाओं के आचरण को नियंत्रित करने वाले नियमों का एक समूह। अब, हमें अंतर करने की जरूरत है। तो, यहां जस्टिस डीके उपाध्याय कह रहे हैं, वे दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस हैं, कि देखिए, जो कानून बनाते हैं, वे कानून बनाएंगे, लेकिन यहां कानून के शासन का पालन कौन कर रहा है, और इसकी जिम्मेदारी किसकी है? उन्होंने बिंदु बताए हैं। उन्होंने सभी बातें स्पष्ट कर दी हैं। वो कहते  हैं, दरअसल, एक कार्यक्रम था, जस्टिस सुनंदा भंडारे वहां मौजूद थीं। उन्हें भी आमंत्रित किया गया था। उनके साथ जस्टिस इंदिरा जय सिंह और दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस विभाकर ने कहा कि न्यायपालिका के पास भी संविधान है, लेकिन उसमें सहमति का घोर अभाव है। उन्होंने विशेष रूप से एडोल्फ हिटलर के उदय का जिक्र किया है। जस्टिस डीके उपाध्याय ने कहा कि अब समय आ गया है कि हमारे पास संविधान है, लेकिन संविधान का पालन हो रहा है या नहीं, इसका अंतर समझना जरूरी है। उन्होंने कहा कि मेरी राय में इन दोनों को अलग करने वाला तत्व कानून का शासन है। आप जानते हैं, उन्होंने कहा कि कानून के शासन का भी संविधान हो सकता है, लेकिन संविधान का पालन नहीं किया जाता। यह बहुत बड़ी बात है।

भारत की राजनीतिक स्थिति

आज की तारीख में हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि वे भी संविधान के रक्षक हैं, लेकिन जब नई संसदें बनती हैं, तो वे सेंगोल राजतंत्र का प्रतीक लेकर कहते हैं कि हम संविधान थोप रहे हैं। तो वहां ऐसा कैसे हो सकता है? जिस संविधान की शिक्षा लोकतंत्र हमें दे रहा है, जिसने लोकतंत्र की स्थापना की है, अगर कोई राजनेता सेंगोल राजतंत्र का प्रतीक लेकर जाए, तो वह कैसे दिखाई देगा? इसीलिए उन्होंने कहा कि कानून के शासन का भी संविधान हो सकता है, लेकिन संविधान का पालन नहीं किया जा सकता।

यही कारण था, कि आपने इस दुनिया में हिटलर का उदय भी देखा। प्रथम विश्व युद्ध के बाद। सोचिए, आज की तारीख में एक जज कह सकता है, जस्टिस सूर्यकांत इतने तेवर दिखाते हैं, लेकिन उनके हाथ अचानक कैसे खड़े हो गए? इसे आप कैसे देखेंगे? यहाँ कहा गया है, कि एडोल्फ हिटलर लोकतांत्रिक चुनावों के ज़रिए सत्ता में आया, और बाद में कानूनों में सुधार करके उसने कानूनी तौर पर अन्य राजनीतिक दलों को अवैध घोषित कर दिया, और जर्मनी का असली तानाशाह बन गया।

चीफ जस्टिस ने कहा कि हम में से हर कोई जानता है कि हिटलर जर्मनी के मौजूदा कानूनों के हिसाब से जर्मनी का चांसलर चुना गया था। लेकिन उसने एक खेल खेला, उसने कानूनों में या उन्हें बनाने की प्रक्रिया में इस तरह से सुधार किया कि कानूनों में सुधार करके वह तानाशाह बन गया। उदाहरण के लिए, यह एक साधारण बात है, जब दिल्ली में केजरीवाल सरकार थी, तब सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला दिया था, कि कुछ मुद्दों को छोड़कर, जनता द्वारा चुनी गई सरकार के पास असली ताकत होनी चाहिए। और वो केजरीवाल सरकार करेगी। लेकिन मोदी जी ने कानूनी तौर पर, कोर्ट की गर्मी की छुट्टियों में रातों-रात उन्होंने एक आदेश तैयार किया और उसे तोड़ दिया। फिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलट दिया और वहां शाही विकल्प लागू हो गया कि एक मुख्यमंत्री के फैसले पर दो विकल्प तय होंगे और अंतिम मुहर एलजी लगाएंगे।

तो ये जो खेल है, आप इसे कानूनी तौर पर कलंकित करने वाला खेल कहते हैं। हो सकता है, बहुत से लोगों को लगता हो कि बातें दोहराई जा रही हैं, लेकिन उनकी बातें इसी के इर्द-गिर्द घूम रही हैं। वो इशारा कर रहे हैं, कि देश में कोई है, जो धीरे-धीरे उस तरफ बढ़ रहा है, जहां देश में संविधान तो होगा, लेकिन संविधान का उल्लंघन नहीं होगा, संविधान का पालन करने वाला कोई नहीं होगा। उन्होंने कहा कि आज यही अंतर है और इस अंतर को समझना होगा। उन्होंने कहा कि उनकी व्याख्या में न्याय विभाग को भारतीय संविधान की विशेषताओं और स्वतंत्रता के बाद इसके विकास पर विशेष ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि समानता के लिए संविधान का सबसे महत्वपूर्ण योगदान इसकी सीमा है। अगर समानता खत्म हो गई तो क्या होगा? उदाहरण के लिए हिटलर ने अपने सभी विपक्षी दलों, राजनीतिक दलों को अवैध घोषित कर दिया और हिटलर खुद तमाशा बन गया।

 भारत में भी जिस तरह से विपक्षी दलों को तोड़ा जा रहा है, नेताओं को धमकाया जा रहा है, उन्हें या तो उनकी पार्टी में शामिल किया जा रहा है, या जेल भेजा जा रहा है, या उनकी पार्टियों को तोड़ा जा रहा है, तो क्या आपको तदाशा के दौर में ऐसी स्थिति नहीं दिखती? यह एक बड़ा सवाल है। अब कहा जा रहा है कि चीफ जस्टिस कह रहे हैं कि संविधान में शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत भी अपनाया गया है। जिसके तहत एमएलए, न्याय विभाग और न्याय विभाग के बीच अधिकारों का बंटवारा किया गया है।

  इस सिद्धांत का आधार यह है कि शक्ति के प्रयोग के साथ ही उत्तर भी तय होना चाहिए। यह स्पष्ट बात है। अब आप ही बताइए कि जीके उपाध्याय ने क्या गलत कहा और कैसे? जीके उपाध्याय ने मोदी सरकार का नाम लिए बिना ही भारत के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को हिटलर की तड़प और कानूनी तड़प से जोड़ दिया

उन्होंने कहा, हमारे देश में न्याय विभाग ने अहम भूमिका निभाई है। किंतु संविधान का पालन कौन कर रहा है, यह एक बड़ा सवाल है। उन्होंने कहा, संवैधानिक अंतर को भरने के लिए, जहां ऐसा लगता है कि संविधान का उल्लंघन हो रहा है, या वहां कोई कमी है, ऐसी स्थिति से निपटने के लिए, हमें संवैधानिक अदालतों की भूमिकाओं को स्वीकार करना होगा, और हमें अपनी भूमिका बहुत अच्छे से निभानी होगी। उन्होंने कहा, संविधान में कुछ विशेषताओं का स्पष्ट उल्लेख नहीं, उन्होंने अंत में कहा कि हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि संविधान की कुछ विशेषताएं हैं, जिनके आधार पर उसका विकास होता रहता है। उन्होंने कहा कि इसमें लोगों के अधिकारों की रक्षा सबसे महत्वपूर्ण है। जिसके आधार पर हम अपनी न्याय व्यवस्था का विस्तार करते रहें। संस्थाओं को न केवल अपनी शक्ति का उपयोग करना चाहिए, बल्कि अपने निर्णयों और कार्यों के लिए जिम्मेदार भी होना चाहिए।

उसी तरह से मोदी जी ने इस तरह की संस्थाओं को भी बाधा पहुंचाने का प्रयास किया है। उसके बाद आप क्या कहेंगे? आज जब भी हम किसी बड़े जज को बड़ी-बड़ी बातें करते हुए सुनते हैं या देखते हैं तो ऐसा लगता है कि उनकी बातें, उनके फैसले, सब कुछ उसमें झलकेगा। लेकिन अगर वाकई ऐसा है तो ये बहुत बड़ी बात होगी। उस संविधान के आधार पर एक चाय बेचने वाला देश का प्रधानमंत्री बन जाता है। और उसके बाद क्या होगा? उन्होंने जर्मनी का उदाहरण दिया। उस कानून को तोड़कर, सभी विपक्षी दलों को अवैध घोषित करके, कोई गारंटी नहीं है कि कोई राजा कानूनी तौर पर तानाशाह बन जाएगा। चीफ जस्टिस ने कह दिया हिटलरशाही, एक बयान ने पूरे सिस्टम को हिला दिया।

 जब लोकसभा का चुनाव हुआ था, तब भाजपा ने नारा दिया गया था कि अबकी बार 400 पार। दावा यह भी किया गया था कि अगर 400  पार हो गए तो संविधान बदल दिया जाएगा। अभी 400 तो पार नहीं हुए, लेकिन लगता है संविधान बदलने की तैयारी है या फिर संविधान को खुलेआम चुनौती दी जा रही है। इसे एक घटनाक्रम के तौर पर समझिए। आपको बता दूं कि भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है। कि सुप्रीम कोर्ट के नोटिस का जवाब मोदी सरकार देने को तैयार नहीं है और जब CJI संजीव खन्ना को थप्पड़ मारा गया है, तब भी देने को तैयार नहीं है। आपको बता दें, यह प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट है।

इस पर 12 दिसंबर को सुनवाई हुई और सुनवाई के दौरान CJI संजीव खन्ना को आदेश दिया गया कि जब तक मोदी सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं आता, तब तक कोई सुनवाई नहीं होगी, कोई कार्रवाई नहीं होगी, कोई नई याचिका नहीं डाली जाएगी। संज्ञान में अभी तक नोटिस नहीं लिया गया है। यह वही मामला है जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद में पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ ने सर्वे का आदेश दिया था। संभल में भी इसी तरह के सर्वे के आदेश दिए गए थे। संभल में जब सर्वे हुआ था, सर्वे के दौरान किस तरह हिंसा हुई, लोग मरे और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, ये सब जानते हैं। इस पर सुनवाई हुई और सुनवाई के दौरान CJI संजीव खन्ना ने कहा कि इस तरह के सर्वे के आदेश नहीं दिए जा सकते। ये संविधान के खिलाफ है। आखिर ये आदेश कैसे दिए जा रहे हैं और किस आधार पर ये सर्वे हो रहा है? इसका जवाब तुरंत देना होगा। इसमें मोदी सरकार की हालत खराब हो गई है। नोटिस का समय खत्म हो गया है, लेकिन अभी तक जवाब नहीं आया है।

 आज यानी 12 दिसंबर से  मार्च महीना शुरू हो रहा है। लेकिन मोदी सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया है। आप देख सकते हैं कि जिद किस हद तक सामने आ चुकी है। आपको बता दें, CJI संजीव खन्ना इस बात से नाराज हैं। फिर भी केंद्र जवाब देने को तैयार नहीं है। दूसरी बात यह कि याचिकाओं पर याचिकाएं डाली जा रही हैं। केंद्र से सवाल पूछा गया है कि अभी तक जवाब क्यों नहीं दिया गया? सुप्रीम कोर्ट में CJI संजीव खन्ना नाराज हैं। लेकिन इतना सब होने के बावजूद मोदी सरकार नोटिस का जवाब देने से कोसों दूर है।

सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है और मोदी सरकार को टैग किया जा रहा है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि किसी चीफ जस्टिस ने किसी कार्यक्रम के दौरान खड़े होकर कहा है कि क्या हिटलरशाही चल रही है? कहना होगा कि संविधान होना और संविधान का पालन करना दो अलग-अलग बातें हैं। हिटलर के समय में भी संविधान था। लेकिन संविधान की धज्जियाँ कैसे उड़ाई गईं और हिटलरशाही कैसे चलाई गई, यह किसी से छिपा नहीं है। तो क्या अब भारत में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है? अगर जवाब नहीं देंगे तो कार्रवाई कैसे होगी, सुनवाई कैसे होगी, सवाल इसी बात का है। आप देख सकते हैं कि मोदी युग के इतिहास में पहली बार केंद्र न्यायपालिका को चुनौती दे रहा है। चुनौती तब भी है जब CJI संजीव खन्ना नाराज होकर जवाब मांग रहे हैं। लेकिन केंद्र सरकार जवाब देने को तैयार नहीं है। तो सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट तक, ये साफ दिख रहा है कि कैसे पूरी व्यवस्था ध्वस्त हो रही है। लेकिन दूसरा सवाल, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट से क्यों कहा कि आप जो कर रहे हैं वो गलत है? ये क्या मामला है? मामला बड़ा है प्रगति। सुप्रीम कोर्ट ने डांट लगाई है।

दिल्ली हाई कोर्ट को भी कहा गया है कि आप जो कर रहे हैं, आदेश दे रहा है, वो गलत है और ऐसा नहीं होना चाहिए। आप भली-भांति जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट भी कई बार ये बात कह चुका है। जब विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया गया था, तब भी बयान आया था कि जमानत देना अधिकार है और उन्हें जेल में डालना अपराध है। लेकिन इतना सब होने के बावजूद भी वे कोई जवाब देने को तैयार नहीं हैं। चाहे वो निचली अदालत हो या फिर हाई कोर्ट। अब इसको लेकर एक मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। बतादें कि  एक प्रैक्टिसिंग डॉक्टर ने जमानत के लिए याचिका हाईकोर्ट में डाली गई थी, ताकि मुझे जमानत मिल जाए। लेकिन हाईकोर्ट ने जमानत नहीं दी। पहले निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। उसके बाद जमानत रोकने के लिए 30 से 40 पन्नों का आदेश लिखा है, ध्यान से सुनिए। अब 30 से 40 पेज का आदेश लिखा गया है। इस पर सुप्रीम कोर्ट नाराज़ है। उसका कहना है कि आप ज़मानत रोकने के लिए इतना लंबा आदेश कैसे लिख सकते हैं? और जो आदेश लिखा गया है, उससे लगता है कि आपने इसे अपराधी घोषित कर दिया है।

इस समय जिस तरह से बेल रोकी जा रही है, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट को तमाचा मारा है। आप देख सकते हैं कि स्थिति ऐसी हो गई है कि सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट की बात सुनने को भी तैयार नहीं है। और हद तो तब हो गई जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाई कोर्ट की सीटिंग से खड़े होकर कहा कि कटमुल्ला देश के लिए खतरनाक है और ये देश अब बहुमत के हिसाब से चलेगा। तो क्या मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को खुली चुनौती दे दी है? और CJI संजीव खन्ना इस चुनौती से कैसे निपटेंगे? आप क्या सोचते हैं? सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट की कार्रवाई और खासकर मोदी सरकार पर जो जवाब नहीं दे रही है। क्या उसने हद पार कर दी है? अभी की ताजा खबर है कि राजस्थान और दिल्ली विधान सभाओं में सत्तारूढ़ दल द्वारा विपक्षी विधायकों को विधान सभा भवन में प्रवेश से वंचित रखा जा रहा है।

तेजपाल सिंह 'तेज'
तेजपाल सिंह 'तेज'
लेखक हिन्दी अकादमी (दिल्ली) द्वारा बाल साहित्य पुरस्कार तथा साहित्यकार सम्मान से सम्मानित हैं और 2009 में स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त हो स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं।

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