आज का दिन भी बहुत खास है। दिल्ली से प्रकाशित जनसत्ता के पहले पृष्ठ पर एक तस्वीर है। इस तस्वीर में वैसे तो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और टाटा समूह के अध्यक्ष एन चंद्रशेखरन अलग-अलग कुर्सियों पर बैठे हैं। लेकिन खबर के लिहाज से दोनों में से एक खरीदार है तो दूसरा बेचनेवाला। खरीदार तो खैर खरीदार है, लेकिन बेचनेवाला देश का प्रधानमंत्री। अत्यंत ही गहरे निहितार्थ लिए यह तस्वीर यह बताने के लिए काफी है कि यह जो विशाल देश है, उसे चलाने की कुव्वत मौजूदा सरकार के पास नहीं है। दिलचस्प इससे जुड़ी दो खबरें और हैं। एक खबर में चंद्रशेखरन यह कह रहे हैं कि उन्होंने पीएम से वादा किया है कि वे एयर इंडिया को विश्वस्तरीय गुणवत्ता वाला बना देंगे। दूसरे खबर में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया सहित आधा दर्जन बैंकों ने टैलेस (टाटा समूह की कंपनी, जो कि वास्तविक खरीदार है) को कर्ज ऑफर किया है।
अब मैं यह सोच रहा हूं कि जब चंद्रशेखरन ने मोदी से यह कहा होगा तो मोदी की प्रतिक्रिया क्या रही होगी। क्या उन्हें यह नहीं लगा होगा कि जो काम उन्हें करना चाहिए था, अब वही करने का दावा यह व्यापारी कर रहा है? हो सकता है कि उन्हें शर्मिंदगी भी हुई होगी, लेकिन इसकी अभिव्यक्ति न तो जनसत्ता द्वारा प्रकाशित तस्वीर में है और ना ही सरकारी बयानों में। मुमकिन है कि उन्हें शर्मिंदगी या किसी तरह की पीड़ा नहीं हुई हो क्योंकि पीड़ा तो उसे होती है जो कुछ सृजन करता है। करीब 69 साल पहले नेहरू ने टाटा से एयर इंडिया को हासिल किया था। उसे सबसे प्रतिष्ठित विमानन कंपनी के रूप में स्थापित किया। अगर नेहरू को यह कंपनी बेचनी होती तो निश्चित तौर पर उन्हें पीड़ा होती।
[bs-quote quote=”अब अभ्यर्थी आंदोलन कर रहे हैं और पुलिस उनका दमन भी क्रूरतापूर्वक कर रही है। इलाहाबाद का जो दृश्य सामने आया है, वह तो पुलिसिया दमन की पराकाष्ठा है, जिसमें पुलिसकर्मी अभ्यर्थियों को मां-बहन की गालियां दे रहे हैं और रायफल के कुंदे से उनके दरवाजे तोड़ रहे हैं। ऐसे ही दृश्य पटना के भिखना पहाड़ी इलाके में भी देखने को मिले।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
खैर, आज मेरे सामने बिहार और यूपी के करोड़ों नौजवानों का सवाल है। पिछले एक सप्ताह से नौजवान आंदोलनरत हैं। मामला रेलवे में ग्रुप डी की नौकरियों का है। अभी तक जो आंकड़े मेरे संज्ञान में आए हैं, उनके हिसाब से करीब डेढ़ करोड़ अभ्यर्थियों ने रेलवे भती बोर्ड/एनटीपीसी (नन टेक्निकल पॉपुलर कैटेगरी) के पदों के लिए आवेदन किया। इनमें स्नातक और इंटर लेवल के अभ्यर्थी थे। पहले तो यह किया गया कि दो अलग-अलग शैक्षणिक योग्यताओं वालों की एक परीक्षा ली गयी। जाहिर तौर पर इसमें स्नातक उत्तीर्ण अभ्यर्थियों ने बाजी मारी। फिर यह किया गया कि इंटर लेवल के पदों पर भी उनकी हिस्सेदारी तय कर दी गयी। कुल 3 लाख 80 हजार अभ्यर्थियों को सफल घोषित किया गया। लेकिन में 40 फीसदी ऐसे थे, जिन्हें दो या दो से अधिक पदों पर सफल घोषित किया गया।
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अब अभ्यर्थी आंदोलन कर रहे हैं और पुलिस उनका दमन भी क्रूरतापूर्वक कर रही है। इलाहाबाद का जो दृश्य सामने आया है, वह तो पुलिसिया दमन की पराकाष्ठा है, जिसमें पुलिसकर्मी अभ्यर्थियों को मां-बहन की गालियां दे रहे हैं और रायफल के कुंदे से उनके दरवाजे तोड़ रहे हैं। ऐसे ही दृश्य पटना के भिखना पहाड़ी इलाके में भी देखने को मिले।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि आज पटना से प्रकाशित सभी अखबारों में एक झूठ को लीड खबर बनाकर प्रकाशित किया गया है। खबर के मुताबिक सुशील कुमार मोदी ने केंद्रीय रेल मंत्री से मुलाकात की है और बकौल मोदी रेलमंत्री ने तमाम मांगें मान ली हैं। जबकि मैं रेल मंत्री का आधिकारिक ट्वीटर और रेल मंत्रालय का आधिकारिक वेबसाइट देख रहा हूं और इनमें कहीं भी मांगों को माने जाने की खबर नहीं है।
बहरहाल, अखबारों की उपरोक्त कवायद अभ्यर्थियों के आंदोलन को विफल करने की साजिश है। मैं तो यह सोच रहा हूं कि आज की पत्रकारिता की परिभाषा क्या है। पटना से प्रकाशित एक स्वघोषित प्रतिष्ठित अखबार के स्थानीय संपादक जो कि मेरे मित्र भी हैं, उन्होंने कहा कि जो खबर आज के पहले पन्ने पर लीड के रूप में प्रकाशित है, वह सीधे दिल्ली से भेजी गई है और दिल्ली से भेजी जाने वाली खबरों को हू-ब-हू छापना मेरी मजबूरी है।
सचमुच मैं आज की पत्रकारिता की परिभाषा के बारे में सोच रहा हूं।
नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं ।
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