कभी-कभी कोई ज़िद किसी बड़ी घटना का कारण भी बन जाती है। ठीक वैसे ही जैसे फिल्म अभिनेता/निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार की ज़िद ने खलनायक प्राण के भीतर से एक अलग ही अभिनेता को जन्म दे दिया। मनोज कुमार की महत्वाकांक्षी फिल्म उपकार के निर्माण के दौरान यह घटना हुई।
प्राण के जीवन पर लिखी बन्नी रूबेन की किताब …. और प्राण में इस घटना को तफसील से दर्ज़ किया गया है। इस फिल्म में प्राण ने मलंग चाचा की भूमिका की है जो उनकी निभाई भूमिकाओं में एक अलग स्थान रखती है। मलंग चाचा ने प्राण की छवि को आमूल-चूल परिवर्तित कर दिया।
प्राण की छवि पर्दे पर एक ऐसे बुरे आदमी की थी जिसे सार्वजनिक स्थान, सड़कों या कहीं और देखने पर लोग बदमाश, लफंगे, गुंडे, हरामी कहते थे। लेकिन अभिनेता के रूप में यह उनकी सफलता थी। फिर भी इसका प्रभाव कितना गहरा था उसे इस बात से समझा जा सकता है जब एक दिन प्राण की बेटी पिंकी ने उनसे पूछा –‘डैडी आप इसमें बदलाव के लिए कोई भले और शालीन आदमी की भूमिका क्यों नहीं करते?’ वे समझ गए कि बेटी के स्कूल की सहेलियों उससे उसके डैडी के काम के बारे में कुछ कहा है।
पिता-पुत्री में दिलचस्प संवाद हुआ और उन्होंने उससे सवाल किया कि अठारह रील पूरी होने पर मेरे जैसा बुरा व्यक्ति जब मारा जाता है और हीरो-हीरोइन हाथों में हाथ डाले गाना गाते हैं तो फिर क्या होता है? पुत्री ने कहा कि फिल्म खत्म हो जाती है और दर्शक अपने घर चले जाते हैं। प्राण ने हँसते हुये कहा कि तब समझ जाओ कि खलनायक के कारण ही लोग अपनी सीटों पर जमे रहते हैं।
इस संदर्भ में प्राण ने एक जगह कुछ घटनाओं का उल्लेख करते हुये कहा है कि ‘उन दिनों, जब मैं पर्दे पर दिखता तो बच्चे डर के मारे अपनी माताओं की गोद में छुप जाते और कुछ देर बाद पूछते, ’क्या वो चला गया? क्या अब हम अपनी आँखें खोल लें?’
“प्राण ने नायक बनकर फिल्म की शुरुआत की थी लेकिन उनका सितारा खलनायकी में बुलंद हुआ। उनकी खलनायक की छवि दर्शकों के दिमाग पर किस कदर सिर चढ़कर बोलती थी इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब राजकपूर ने उन्हें अपनी फिल्म आह में डॉक्टर का किरदार दिया तो फिल्म फ्लॉप हो गई।”
खलनायक के रूप में प्राण की जगह बेमिसाल थी। राम और श्याम का क्रूर बहनोई, जिस देश में गंगा बहती है का डाकू राका और तुम हसीं मैं जवां का ओफ़ोफ़ओफ़ करनेवाला मामा जो संपत्ति के लिए अपने दुधमुंहे भांजे का क़त्ल कर देना चाहता है, हीर रांझा के कुटिल चाचा समेत दर्जनों फिल्मों में अपनी खलनायकी से दर्शकों को दिलों में खौफ पैदा कर देनेवाले प्राण ने अपने हर चरित्र में जान फूँक दी।
प्राण ने नायक बनकर फिल्म की शुरुआत की थी लेकिन उनका सितारा खलनायकी में बुलंद हुआ। उनकी खलनायक की छवि दर्शकों के दिमाग पर किस कदर सिर चढ़कर बोलती थी इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब राजकपूर ने उन्हें अपनी फिल्म आह में डॉक्टर का किरदार दिया तो फिल्म फ्लॉप हो गई।
बाद में उन्होंने चरित्र भूमिकाओं में अपनी अलग छाप छोड़ी। एक जगह वे कहते हैं कि धीरे-धीरे बुरे आदमी के रूप में मैंने इतना काम कर लिया कि आगे कुछ करने के लिए रह नहीं गया। इसलिए जैसे ही भूमिका बदलने का कोई मौका मिला मैंने उसे आगे बढ़कर स्वीकार किया।
उपकार के मलंग चाचा
मनोज कुमार और प्राण ने एक साथ तेरह फिल्मों में काम किया है। जिन दिनों मनोज कुमार उभर रहे थे तब प्राण का सितारा बुलंद था। लेकिन मनोज कुमार की लगन और मेहनत के वे कायल हो चुके थे। प्राण को हिन्दी पढ़ने में दिक्कत होती थी। वे अपने संवाद उर्दू लिपि में लिखवाकर अपने निर्देशक से एक दिन पहले ले लिया करते और फिर तैयारी के साथ अगले दिन काम पूरा करते थे। मनोज कुमार को भी अच्छी उर्दू आती थी। वे उनके संवाद लिखकर देते थे।
मनोज कुमार ने एक जगह साझा किया है कि फिल्म दो बदन के कई दृश्य उन्होंने लिखा था। उस दौरान प्राण उन्हें देखते। मनोज कुमार को लगता कि वे शायद मुझपर व्यंग्य से मन ही मन हँसते हों लेकिन ऐसा नहीं था। वे मनोज कुमार की कुशलता की प्रशंसक बन गए थे। उम्र के अंतर के बावजूद जल्दी ही दोनों में मैत्री हो गई।
एक दिन प्राण ने मनोज कुमार से कहा एक दृश्य के डायलाग में एक ही लाइन में प्रायश्चित्त और पश्चाताप शब्द आने से उन्हें उच्चारण में दिक्कत हो रही है। वे चाहते थे कि मनोज कुमार इन शब्दों की जगह उर्दू के शब्द लिखकर दें ताकि आसानी से दृश्य पूरा हो। लेकिन मनोज कुमार उनकी यह मुश्किल हल नहीं कर पाये। तब तय हुआ कि प्राण साहब इन शब्दों पर केवल होंठ हिला दें बाकी डबिंग में संभाल लिया जाएगा।
निर्माता मनोज कुमार प्राण से अपनी महत्वपूर्ण फिल्म शहीद में अभिनय करा चुके थे हालांकि यह भूमिका एक डाकू केहर सिंह की थी जो भगत सिंह के साथ जेल में बंद था लेकिन भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी युवा ने उसके ऊपर गहरा प्रभाव डाला कि अपने स्वार्थ के लिए जेल जाने से देश के लिए जेल जाना एक गौरवपूर्ण और महान घटना है। प्राण इस भूमिका में आसानी से रम गए और उनका किरदार यादगार बन गया।
“उपकार में प्राण के लिए बिलकुल अलग किरदार था। यह एक भले व्यक्ति की भूमिका थी जो प्राण के लिए एक सर्वथा नई जमीन थी। मनोज कुमार ने एक जगह कहा है कि मुझे हमेशा लगता है कि जब एक भला इंसान बुरे व्यक्ति का किरदार बखूबी निभा सकता है तो क्या वह किसी भले व्यक्ति का किरदार नहीं कर सकता।”
लेकिन उपकार में प्राण के लिए बिलकुल अलग किरदार था। यह एक भले व्यक्ति की भूमिका थी जो प्राण के लिए एक सर्वथा नई जमीन थी। मनोज कुमार ने एक जगह कहा है कि मुझे हमेशा लगता है कि जब एक भला इंसान बुरे व्यक्ति का किरदार बखूबी निभा सकता है तो क्या वह किसी भले व्यक्ति का किरदार नहीं कर सकता।
यह इन्सान और उसकी छवि के बीच एक ऐसा द्वंद्व बन गया कि निर्माता मनोज कुमार ने कई लोगों की हिदायतों के बावजूद प्राण को लेकर पुनर्विचार नहीं किया। वे अपनी ज़िद पर अड़े थे। यहाँ तक तो ठीक था लेकिन मलंग चाचा बने प्राण के ऊपर एक गाना भी फिल्माना था। प्राण की छवि को देखते हुये यह कुछ बड़ा जोखिम था।
मनोज कुमार अपनी ज़िद से नहीं हटे
उपकार के शानदार गाने कसमें वादे प्यार वफा सब बातें हैं बातों का क्या को लिखा था इंदीवर ने और संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी थे। सबसे पहले मनोज कुमार किशोर कुमार के यहाँ गए लेकिन उन्हें तब बहुत झटका लगा जब किशोर कुमार ने इसे गाने से मना कर दिया। यहाँ तक कि प्राण ने भी किशोर कुमार से कहा तब भी वे नहीं तैयार हुये।
लेकिन मनोज कुमार से भी ज्यादा झटका कल्याणजी-आनंदजी को तब लगा जब उन्होंने सुना कि पर्दे पर यह गाना प्राण गाएँगे। उनके माथे पर बल पड़ गए। यह तो बिलकुल ही अनर्थ हो जाएगा। प्राण की छवि तो एक खूंख्वार खलनायक की है। और जब-जब वह छवि तोड़ने की कोशिश हुई तब-तब फिल्म मुंह के बल गिरी। राजकपूर ने अपनी फिल्म आह में प्राण को एक भले डॉक्टर का किरदार दिया और फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर पानी भी नहीं मांगा।
कल्याणजी-आनंदजी रूआँसे हो उठे और बहुत कातर होकर कहा – प्राण हमारे गाने की रेंड़ पीट देंगे। पर्दे पर उनसे गाना गंवाना पागलपन साबित होगा। आप यह पागलपन मत कीजिये। मेहरबानी करके यह गाना किसी और पर फिल्माइए। आप चाहें तो यह गाना बैकग्राउंड में बजा दीजिये लेकिन प्राण साहब पर मत फिल्माइए।’
उस समय तो मनोज कुमार ने कुछ नहीं कहा और शूटिंग के लिए दिल्ली चले गए। लेकिन बाद में उनको समझाने के लिए बार-बार उन्हें दिल्ली फोन करते। इसके बावजूद मनोज कुमार टस से मस नहीं हुये। अंततः कल्याणजी-आनंदजी को समझ में आ गया कि वे जो ठान चुके हैं उससे डिगाना मुश्किल ही नहीं असंभव है। ऊपर से मनोज कुमार ने कल्याणजी-आनंदजी को कहा कि वे कोई गायक तलाश तलाशें जिनसे यह गाना गवाया जा सके। यह सब इस संगीतकार जोड़ी के लिए कितना कठिन था इसे आसानी से समझा जा सकता है।
“प्राण की छवि तो एक खूंख्वार खलनायक की है। और जब-जब वह छवि तोड़ने की कोशिश हुई तब-तब फिल्म मुंह के बल गिरी। राजकपूर ने अपनी फिल्म आह में प्राण को एक भले डॉक्टर का किरदार दिया और फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर पानी भी नहीं मांगा।”
इस प्रयोग का अपना जोखिम था
बेशक मनोज कुमार यह प्रयोग कर रहे थे लेकिन उनको पता था कि यह एक जोखिम है। दिल कुछ कहता दिमाग उसमें अड़ंगा डालता लेकिन अंततः दिल और भरोसे पर सारा काम हुआ। गाना मन्ना डे ने गया था। और खूब डूबकर गाया था। अब कसौटी पर प्राण और मनोज कुमार थे।
मनोज कुमार ने प्राण से इस गाने की अलग ढंग से तैयारी कराई। उन्होंने प्राण को एक जगह बिठाकर कैमरा एक जगह स्थिर कर दिया। प्राण गाते रहे और डेढ़ घंटे लगातार शूटिंग होती रही। लेकिन प्राण संतुष्ट न थे। जब पैकअप हुआ तो उन्होंने मनोज कुमार से कहा –पंडित जी आज शूटिंग में मज़ा नहीं आया। आपने एक जगह कैमरा रखकर केवल मेरा क्लोज़अप ही लिया। मनोज कुमार ने उनको बताया कि आज हम लोगों कैमरा बिलकुल चालू ही नहीं किया।
कारण पूछने पर मनोज कुमार ने बताया कि मैंने कभी आपको गाते हुये देखा नहीं। इसलिए मैं यह देखना चाहता था कि काम मेरी सोच के अनुसार हो रहा है कि नहीं। प्राण के पूछने पर कि क्या मेरे गाने में कोई गलती रही ? मनोज कुमार ने बताया कि बहुत ज्यादा नहीं, लेकिन कसमें वादे शब्द गाते समय जरा सा गैप आ रहा था।
प्राण परफेक्शनिस्ट थे। उन्होंने यह चुनौती स्वीकार ली कि उन्हें इस भूमिका से अपने को अलग धरातल पर साबित करना है। वे इस गाने का कैसेट घर ले गए और अनेक बार सुन-सुनकर इसे दिल में बसा लिया। उन्होंने मनोज कुमार से कहा कि शूटिंग के वक्त गाने को तेज आवाज में बजाया जाय और इसे आप भी मेरे साथ गायें। यह गाना प्राण को बहुत पसंद था। जिस भाव-प्रवण अंदाज में मन्ना डे ने इसे गाया था। इसलिए इसके फिल्मांकन को लेकर प्राण बहुत नर्वस थे। इसे अच्छी तरह फिल्माने के लिए उन्होंने कठिन परिश्रम किया।
और जब फिल्म बनी तो सबके विचार बदल चुके थे
किसी को उम्मीद नहीं थी कि यह गाना हिट होनेवाला है लेकिन प्राण ने इस गाने को किस कमाल से पर्दे पर गाया इसका अंदाजा इस बात से लगाया जाना चाहिए कि उन्हें सबसे पहली बधाई कल्याणजी-आनंद जी की ही मिली और उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि पहले वे इस बात के खिलाफ थे कि यह गाना आप पर फिल्माया जाय।
प्राण को बधाई देते हुये कल्याणजी-आनंदजी ने उनकी प्रशंसा करते हुये कहा –‘इस गाने को आप पर फिल्माने का हम लोगों ने यथासंभव विरोध किया था। मगर इसे पर्दे पर देखकर यह मानना पड़ा कि ज़्यादातर सितारे हमारे गाने को मात्र होंठों से ही गाते हैं , मगर आपने दिल से गाया है! आपने इस गाने में इस कदर भावनाएं भर दी कि आपकी गर्दन की नसें तक उभर कर दिखने लगी थीं।’
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इस गाने की तारीफ करनेवालों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। अभिनेत्री कामिनी कौशल उपकार में मनोज कुमार की माँ बनी थीं । उन्होंने मुक्तकंठ से प्राण की प्रशंसा करते हुये कहा कि ‘एक घृणित खलनायक की सशक्त छवि से उबर कर हरदिल अजीज़ किरदार का सफल निर्वाह वास्तव में बड़ी ऊंची छलांग थी और इसे प्राण ने बहुत ही सहजता से संपादित किया। एक खूंख्वार खलनायक के रूप में प्रतिष्ठित कलाकार को ऐसी भूमिका के लिए चुनने का श्रेय मनोज कुमार को जाता है तो निर्देशक की उम्मीदों पर खरा उतर कर भूमिका के साथ पूरा न्याय करके प्राण ने अपनी बहुमुखी प्रतिभा का प्रमाण दिया।’
जब दिल्ली में फिल्म का प्रीमियर रखा गया तो भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ ज़ाकिर हुसैन इसके मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुये। शो के बाद मनोज कुमार ने कलाकारों को ले जाकर राष्ट्रपति से परिचर कराया। आशा पारिख, कामिनी कौशल, प्रेम चोपड़ा आदि। राष्ट्रपति विनम्रता से हाथ जोड़कर सबका अभिवादन करते और कलाकार अपनी जगह पर जाकर बैठ जाते।
“जब दिल्ली में फिल्म का प्रीमियर रखा गया तो भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ ज़ाकिर हुसैन इसके मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुये। शो के बाद मनोज कुमार ने कलाकारों को ले जाकर राष्ट्रपति से परिचर कराया। आशा पारिख, कामिनी कौशल, प्रेम चोपड़ा आदि। राष्ट्रपति विनम्रता से हाथ जोड़कर सबका अभिवादन करते और कलाकार अपनी जगह पर जाकर बैठ जाते।”
और अंत में मनोज कुमार ने कहा – यह प्राण हैं जिन्होंने फिल्म में मलंग चाचा का रोल किया है। यह सुनकर राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन खड़े हो गए। प्राण से हाथ मिलाया और उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन की तारीफ की। फिर उनकी पीठ थपथपाकर बधाई।
15 अक्तूबर 1967 को स्टार एंड स्टाइल नामक पत्रिका ने उपकार की समीक्षा में लिखा –शहीद के बाद प्राण को लीक से हटकर यह लंगड़े व्यक्ति की एक और भूमिका मिली है। इसमें वे आम जनता से सम्बद्ध मुद्दों पर काफी मुखर नज़र आए।’
दूसरी जगह प्राण की तारीफ में लिखा गया –‘उपकार में प्राण का श्रेष्ठ प्रदर्शन रहा। खलनायक की अपनी शाश्वत छवि से मुक्त होकर प्राण ने एक तीखी ज़बान वाले दार्शनिक मलंग चाचा की भूमिका में जान डाल दी।’
लेकिन सबसे बड़ी प्रशंसा तो जनता की होती है। प्राण ने इसे याद करते हुये कहा है कि उपकार रिलीज होने के पहले जनता उनका स्वागत गालियों से करती थी। लेकिन 1968 में जब वे ओमप्रकाश की बेटी की शादी में दिल्ली गए तो उन्हें अपनी गाड़ी कुछ दूर पार्क करके पैदल मंडप में जाना था। वहाँ अनेक बड़े सितारे जमे थे और लोग उनके दीवाने हुये जा रहे थे। अपनी बात सोचकर प्राण घबरा उठे।
वे असमंजस में थे कि क्या करूँ? मेरे साथ लोग पता नहीं क्या सलूक करें लेकिन जल्दी ही वे अचंभित रह गए जब लोगों की एक भीड़ उनके स्वागत में आगे बढ़ी और उन्हें मंडप की ओर ले जाने लगे। किसी ने ज़ोर से कहा –‘मलंग चाचा आ रहे रहे हैं । उनके लिए रास्ता छोड़ो!’
इस लेख के लिए कई तथ्य बन्नी रूबेन की पुस्तक …. और प्राण से लिए गए हैं।
दुर्लभ जानकारी भरा आलेख.
बहुत बढ़िया लिखा है अपर्णा जी ने। आलेख बेहद दिलचस्प और पठनीय है। मनोज कुमार के विश्वास और जिद तथा प्राण के समर्पण और लगन ने उपकार फिल्म में जो कर दिखाया वह वाकई अदभुत और अकल्पनीय था। मलंग चाचा का किरदार और मन्नाडे की आवाज में यह गीत (कसमें वादे प्यार वफा….) दोनों अमर हो गए। क्या दार्शनिक भाव का यथार्थपरक और सर्वकालिक गीत है यह। अपर्णा जी को इस आलेख के लिए बधाई।