Tuesday, March 19, 2024
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भाजपा शासनकाल में हुए खौफ़नाक बदलाव का आख्यान है किशन लाल का उपन्यास- चींटियों की वापसी

रायपुर। 26 जून रविवार को स्थानीय वृंदावन हाल में युवा लेखक किशन लाल के उपन्यास चींटियों की वापसी पर देश के नामचीन लेखकों और आलोचकों ने विमर्श किया। सबने यह माना कि किशन लाल का उपन्यास छत्तीसगढ़ के खौफनाक बदलाव का आख्यान है। उपन्यास के लेखक किशन लाल ने बताया कि उन्होंने यह उपन्यास तब […]

रायपुर। 26 जून रविवार को स्थानीय वृंदावन हाल में युवा लेखक किशन लाल के उपन्यास चींटियों की वापसी पर देश के नामचीन लेखकों और आलोचकों ने विमर्श किया। सबने यह माना कि किशन लाल का उपन्यास छत्तीसगढ़ के खौफनाक बदलाव का आख्यान है। उपन्यास के लेखक किशन लाल ने बताया कि उन्होंने यह उपन्यास तब लिखा था तब प्रदेश में भाजपा की सरकार थीं। उन्होंने अपनी खुली आंखों से जमीनों की लूट-खसोट, किसान-मजदूरों पर अत्याचार और उनके विस्थापन के दर्द को देखा था। जो कुछ उन्होंने देखा-भोगा और समझा वहीं सब कुछ उपन्यास का हिस्सा बन गया।

आलोचक जय प्रकाश उपन्यास पर बोलते हुए

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि देश के प्रखर आलोचक जय प्रकाश ने कहा कि उपन्यास को सिर्फ रायपुर तक सीमित नहीं रखा जा सकता है। यह समूचे छत्तीसगढ़ की कहानी है। उपन्यास में तीन पीढ़ियों की चींटियां है और उपन्यासकार ने उन्हीं चींटियों के हवाले से दबले-कुचले, शोषित और पीड़ित लोगों की बात कहीं है। उपन्यास में भ्रूण हत्या, संविधान की अवहेलना, छठवीं अनुसूची की अनदेखी, मानव तस्करी, आंख फोड़वा और गर्भाश्य कांड के साथ-साथ झलियामारी में आदिवासी बच्चियों के साथ किए गए दुष्कर्म का दर्द देखने को मिलता है। उपन्यास में जातिगत विद्वेष, आरक्षण में कटौती और वेलेंटाइन-डे पर हुडदंग का उल्लेख भी होता है, लेकिन यह सारा उल्लेख किसी समाचार की तरह नहीं बल्कि एक जरूरी और स्वाभाविक चिन्ता के साथ प्रकट होता है। उन्होंने कहा कि किशन लाल की भाषा में काव्य के तत्व निहित हैं इसलिए वे अपनी पूरी बात को बेहद संवेदनाशीलता के साथ प्रकट करते हैं। उपन्यास छत्तीसगढ़ का समकाल है जिसमें विमर्शों की भरमार है। तार्किकता और विवेकशीलता उपन्यास के मुख्य नायक हैं।

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अध्यक्षता कर रहे देश के नामी आलोचक प्रोफेसर सियाराम शर्मा ने किशन लाल को विलक्षण शिल्प का चितेरा बताया। उन्होंने कहा कि लघुता का सौंदर्य ही उपन्यास की सबसे बड़ी ताकत है। लघुता में विराटता और साधारण में असाधारण को देखने का काम कोई प्रतिभाशाली लेखक ही कर सकता है। श्री शर्मा ने कहा कि ऐसे खौफनाक समय में जबकि आम आदमी की समस्याओं को देखना-सुनना बंद कर दिया गया है तब किशन लाल ने चींटियों के जरिए दबे-कुचले की आवाज को मुखर अभिव्यक्ति दी है। उन्होंने कहा कि अब चाहे पत्रकारिता हो या दूसरी जगह… सबने दलित-शोषित और पीड़ितों की आवाज को उठाना बंद कर दिया है। वंचित वर्ग को देश में जगह-जगह जो कुछ भुगतना पड़ रहा है उसे इस उपन्यास में सूक्ष्मता के साथ प्रकट किया गया है। उपन्यास में आदिवासी महिला सोनी सोरी का जिक्र भी आता है, कैसे उन्हें भयंकर अमानवीय यातनाओं का सामना करना पड़ा था। उपन्यास में एक पात्र कहता है ‘तुम कहते हो नक्सली संविधान को नहीं मानते, चलो ठीक है, नहीं मानते! लेकिन ये बताओ जिन्हें संविधान के पालन करने की जिम्मेदारी दी गई थी, जिन्हें संविधान का पालन करना चाहिए था क्या वे संविधान का पालन कर रहे हैं? संविधान को मानते हैं?’ आलोचक शर्मा ने ज्ञानेंद्रपति की चींटियां शीर्षक से प्रकाशित एक कविता का खास उल्लेख करते हुए कहा कि इतिहास जिन क्षणों को रौंदकर निकल जाता है, कविता या साहित्य उस पर नया संसार रचने का काम करता है।

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सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार और कार्यक्रम के विशिष्ट वक्ता विनोद साव ने किशन लाल को जातिवाद के दंश के खिलाफ बेबाकी के साथ लिखने वाला साहसी लेखक बताया। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति साम्प्रदायिक होगा वह जातिवादी भी होगा। किशन अपने साहित्य के बूते साम्प्रदायिकता की जड़ें काटने का काम कर रहे हैं। इससे पहले भी उन्होंने अपनी पुस्तक किधर जाऊं में नए विमर्शों को जन्म दिया था। श्री साव ने उपन्यास के एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि कैसे सलवा जुडूम के नाम पर महज 1500 रुपये देकर आदिवासियों को आदिवासियों से ही लड़ाया जा रहा था। आदिवासी ही आदिवासी की हत्या कर रहे थे। इन तमाम बातों पर किशन लाल चिंतित हुए और उस पर भी अपनी कलम चलाई। जातिवाद विमर्श में कैसे मुखरित होता है इसे उपन्यास में उपजे विमर्शों के जरिए समझा जा सकता है। राजिम मेले के लिए दो-ढ़ाई सौ करोड़ फंड इकट्ठा हो जाता है लेकिन गिरौधपुरी के लिए महज 8-9 लाख एकत्र हो पाता है। राजिम मेले के लिए मुफ्त में बस चलाई जा सकती है, लेकिन गिरौधपुरी मेले के लिए नहीं। उन्होंने कहा कि किशन का उपन्यास न ट्रैजेटिक है, न कॉमिक है, किशन का उपन्यास पैथेटिक है। इस उपन्यास में छत्तीसगढ़ प्रांत को लेकर बहस है। एक राजधानी की सजावट भर से राज्य का विकास नहीं हो जाता है।

अगोरा प्रकाशन की किताबें किन्डल पर भी…

युवा समीक्षक अजय चंद्रवंशी ने किशन लाल को नई भावभूमि के साथ विलक्षण दृष्टि रखने वाला लेखक निरूपित किया। उन्होंने कहा कि पूरे उपन्यास में चींटियां इस कदर घुल-मिल जाती है कि वह फिर आम इंसानों का प्रतिरूप नजर आने लगती है। चींटियां गांव से उजड़ कर शहर में आती हैं और वहां की स्थिति को देखकर हतभ्रत होती हैं। उनकी शहर से वापसी की सोच यह बतलाती है कि अब शहर रहने लायक नही बचा। उपन्यास का एक पात्र संजय जो पत्रकार है वह जगह-जगह हो रहे भेदभाव और दोहरी मानसिकता को उजागर करने में सफल रहता है। एक पात्र गुरुजी के वक्तव्यों में दलित और आदिवासियों की चिंताए मुखरता के साथ उभरती है। विमर्श के अंत में झारखंड के संस्कृतिकर्मी दिनकर शर्मा ने गजानन माधव मुक्तिबोध की कहानी पक्षी और दीमक पर अपनी एकल प्रस्तुति से सबकी ऑंखें नम कर दी। कार्यक्रम का सफल संचालन युवा कवि कमलेश्वर साहू ने किया जबकि आभार प्रदर्शन पत्रकार राजकुमार सोनी ने किया।

वक्ताओं को सुनते कार्यक्रम में मौजूद लोग

अपना मोर्चा डॉट कॉम की तरफ से आयोजित की गई इस महत्वपूर्ण चर्चा गोष्ठी में छत्तीसगढ़ साहित्य परिषद के अध्यक्ष ईश्वर सिंह दोस्त, जन संस्कृति मंच की रायपुर ईकाई के अध्यक्ष आनंद बहादुर, वरिष्ठ पत्रकार दिवाकर मुक्तिबोध, कथाकार ऋषि गजपाल, समीक्षक इंद्र कुमार राठौर, स्वदेश टीवी चैनल और आज की जनधारा के प्रमुख संपादक सुभाष मिश्रा, जनवादी लेखक संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य मुमताज, प्रगतिशील लेखक संघ से संबंद्ध कवि आलोक वर्मा, नंद कुमार कंसारी, संजय शाम, मांझी अनंत, अरुणकांत शुक्ला, आदिवासी मामलों के जानकार नवल शुक्ल, समीक्षक राजेश गनौदवाले, रंगकर्मी निसार अली, अप्पला स्वामी, संतोष बंजारा, शंकर राव, उमेश, सुलेमान खान, साहित्यकार राजेंद्र ओझा, मृणालिका ओझा, वरिष्ठ छायाकार गोकुल सोनी, जसम के युवा साथी अमित चौहान, सृष्टि आलोक सहित अनेक साहित्यकार और संस्कृतिकर्मी मौजूद थे। इस मौके पर वैभव प्रकाशन के संचालक और साहित्यकार सुधीर शर्मा ने लेखक किशन लाल को शॉल और श्रीफल भेंटकर सम्मानित भी किया।

राजकुमार सोनी रायपुर में रहते हुए स्वतंत्र पत्रकारिता करते हैं। 

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