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गोधरा के 23 साल बाद : अभी भी अनुत्तरित रह गए कई सवाल

गोधरा स्टेशन पर 23 वर्ष पहले हुये साबरमती एक्सप्रेस हत्याकांड आसानी से भारतीय राजनीति का पीछा नहीं छोड़ने वाला है। यह वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ताजपोशी की पीठिका भले बन गया हो लेकिन यही वह बिन्दु है जो बार-बार षडयंत्रों का घाव हरा करता रहता है। संघ और गोदी मीडिया द्वारा फैलाई गई सारी अवधारणाओं के बावजूद गोधरा की आँच से बचना असंभव है। हालांकि तब के गुजरात के मुख्यमंत्री और वर्तमान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी जा चुकी है। गुजरात के पूर्व पुलिस प्रमुख आर बी श्रीकुमार की किताब 'गुजरात बिहाइंड द कर्टेन' के बहाने सामाजिक कार्यकर्ता डॉ सुरेश खैरनार इन्हीं स्थितियों की ओर संकेत कर रहे हैं।

27 फरवरी, 2002 की सुबह गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में आग लगने के बाद 58 लोग जल कर मर गए। साबरमती एक्सप्रेस की क्षमता 1100 यात्रियों को ले जाने की थी। लेकिन उस दिन ट्रेन में 2000 यात्री थे और इनमें 1700 कारसेवक थे। एस-6 कोच की क्षमता 72 यात्रियों की थी, लेकिन 27 फरवरी 2002 के दिन यह कोच खचाखच भरा हुआ था। साबरमती एक्सप्रेस में कुल ग्यारह कोच थे। खचाखच भरी इस ट्रेन में यात्रियों की सुरक्षा के लिए उत्तर प्रदेश से पुलिस भी गोधरा स्टेशन आई थी। वे गोधरा की घटना के चश्मदीदों में से थे। उत्तर प्रदेश लौटने के बाद उन्होंने अपने वरिष्ठों को रिपोर्ट भी की थी। इससे भी महत्वपूर्ण जानकारी गुजरात पुलिस के पूर्व प्रमुख श्री आर. बी. श्रीकुमार ने अपनी पुस्तक गुजरात बिहाइंड द कर्टेन में लिखा है कि ‘गुजरात एसआईबी ने अपने एजेंट्स को गुजरात से अयोध्या गए कारसेवकों की गतिविधियों की जानकारी देने के लिए भेजा था। उन्होंने वह जानकारी गुजरात में एसआईबी मुख्यालय को भेजी थी। उस जानकारी में उन्होंने लिखा है कि कारसेवकों ने अयोध्या जाते समय और वापस आते समय कई आपराधिक कृत्य किए हैं।’

गुजरात के दाहोद और सालम स्टेशनों पर उन्होंने खाद्य विक्रेताओं का माल लूट लिया था। गुजरात एसआईबी को इसकी जानकारी थी। केंद्रीय खुफिया विभाग के एजेंटों ने मुख्य रूप से अयोध्या से वापसी के दौरान विभिन्न स्टेशनों पर चाय और खाद्य विक्रेताओं और अन्य विक्रेताओं के साथ हुई झड़पों की जानकारी दी थी। उनमें से किसी का भी बयान अब तक क्यों नहीं लिया गया? इन सभी घटनाओं की जानकारी होने के बावजूद, एसआईबी गोधरा स्टेशन पर अधिक कड़ी सुरक्षा व्यवस्था कर सकती थी क्योंकि उन्होंने यह जानकारी राज्य सरकार के साथ साझा नहीं की थी। शायद गोधरा की घटना को टाला जा सकता था। खुफिया विभाग के जासूसों ने एस-6 कोच को जलाने की पूरी जानकारी राजेंद्र कुमार (संयुक्त निदेशक एसआईबी,अहमदाबाद) को दी थी, लेकिन राजेंद्र कुमार ने शायद अपने वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर यह जानकारी दी होगी क्योंकि तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरोप लगाया था कि ‘हम साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में आग लगाने के लिए पाकिस्तान की आईएसआई की साजिश को साबित करने में सक्षम होंगे।’

आईबी अधिकारियों ने अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं किया है और संघ और भाजपा के राजनीतिक एजेंडे के अनुसार काम किया है। ऐसे अवैध और अनैतिक व्यवहार के कारण ही लालकृष्ण आडवाणी और नरेंद्र मोदी ने गोधरा कांड के पीछे विदेशी हाथों की साजिश का आरोप लगाया और जिसके कारण हिंदुओं की भावनाएं भड़कीं, उन्हीं भावनाओं का इस्तेमाल अपनी राजनीतिक पकड़ बनाने के लिए किया गया। यह सब गुजरात दंगों की जांच कर रहे नानावटी आयोग के समक्ष अपने पांचवें हलफनामे में प्रस्तुत करने के बाद उन्होंने आयोग से इस संबंध में और अधिक तथ्य एकत्र करने का अनुरोध किया था। लेकिन जांच आयोग ने ऐसा कुछ नहीं किया। यह आश्चर्य की बात है कि जिस आयोग को गोधरा कांड और गुजरात दंगों की जांच का काम सौंपा गया था, उसने खुद नरेंद्र मोदी और लालकृष्ण आडवाणी के आरोपों को दोहराया कि गोधरा कांड एक साजिश का हिस्सा था। मैंने खुद अपने मित्र एडवोकेट मुकुल सिन्हा के साथ नानावटी आयोग के सामने बैठकर और आयोग की कार्यवाही का अवलोकन करने के बाद मुकुलभाई से कहा था कि ‘न्यायमूर्ति नानावटी नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने के लिए उत्सुक हैं।’ जिस पर मुकुलभाई ने जवाब दिया था कि ‘मैं भी यह जानता हूं और इसीलिए मैं नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने में देरी करने की कोशिश कर रहा हूं।’

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7 अक्टूबर, 2001 को जब नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया, उससे पहले उन्होंने अपने जीवन में कोई चुनाव नहीं लड़ा था। गुजरात विधानसभा का सदस्य बनने के मात्र छह महीने पहले ही वे बड़ी मुश्किल से विधायक बनने में सफल हुए थे। जिस तेली जाति से वे आते हैं, वह गुजरात में दो प्रतिशत भी नहीं है। इसलिए, शक्तिशाली पटेल लॉबी की मौजूदगी में गुजरात में मुख्यमंत्री के पद पर बने रहना उनके लिए एक कठिन काम था। इसे देखते हुए उन्होंने गुजरात दंगों का इस्तेमाल अपनी राजनीतिक पकड़ बनाने के लिए 56 इंच के सीने वाले ‘हिंदू हृदय सम्राट’ की मूर्ति बनवाने में किया। उसी की बदौलत आज वे तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने में सफल हुए हैं।

इस तरह हम भारतीय संविधान की अनदेखी करते हुए भारत की एकता और अखंडता को नष्ट करने के लिए एक अघोषित हिंदू राष्ट्र की ओर दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं। इसीलिए राम मंदिर निर्माण से लेकर महाकुंभ, नागरिकता कानून, गोहत्या प्रतिबंध, कॉमन सिविल कोड, लव जिहाद, लैंड जिहाद, वोट जिहाद, वक्फ बोर्ड संपत्ति, धर्मांतरण, हिजाब व अन्य मुद्दों पर नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में ब्राह्मणों को आमंत्रित कर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का काम लगातार जारी है।

डॉ. सुरेश खैरनार
डॉ. सुरेश खैरनार
लेखक चिंतक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

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