प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में सरसों के किसान सरकारी क्रय केन्द्र न होने के कारण बनियों और बिचौलियों की लूट के शिकार हो रहे हैं। किसानों का आरोप है कि सरकार द्वारा केवल गेहूं और धान की खरीद के लिए ही क्रय केन्द्रों को लगाया जाता है। गेहूं और धान की फसल के अलावा यदि किसान कोई दूसरी फसल बेचने जाता है तो बनियों और बिचौलियों की ओर ताकना पड़ता है। इस कारण किसानों को फसलों के वाजिब दाम नहीं मिल रहे हैं। किसानों की आय दोगुनी करने के केंद्र सरकार के दावे भी झूठे साबित हो रहे हैं।
इस बारे में पिंडरा के मानापुर गांव के किसान रघुवर प्रसाद कहते हैं, ‘इस साल मैंने 15 बिस्वा में सरसों की खेती की थी। खेती अच्छी थी लेकिन सरकार की ओर से सरसों का क्रय केन्द्र नहीं खोला गया। क्रय केंद्र न होने के कारण हम बनियों के तय रेट पर उन्हें फसल बेचने को मजबूर होते हैं। गांव में एक-दो लोगों ने मजबूरी में 50 रुपये प्रति किलो के हिसाब से सरसों की फसल बनियों को बेची।’
रघुवर जी आगे कहते हैं ‘हमारा भी अपना परिवार है, बाल-बच्चे हैं। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, दवा-दारू सब खर्चा इसी खेती से चलता है। एमएसपी और सरकार द्वारा फसलों की खरीद ये सब बड़ी-बड़ी बाते हैं, जो भाषणों में बोली जाती हैं, सच्चाई तो ये है कि हम एमएसपी और सरकारी क्रय केंद्र में फसल बेचने का इंतेजार करते रहे तो भूखे मार जाएंगे।’
धान और गेहूं के अलावा कोई फसल नहीं खरीदती सरकार
पिंडरा के ही चनौली गांव के किसान सन्तोष पटेल ने भी सरकार ने जिन फसलों पर एमएसपी लागू की है, उसके लिए क्रय केन्द्र न खोले जाने पर अपनी पीड़ा व्यक्त की। उन्होंने कहा, ‘यह तो वही बात हुई कि सैनिक को दुश्मन से लड़ने के लिए बंदूक तो दी जाए लेकिन गोलियां न दी जाएं। सरकार ने कुछ फसलों का एमएसपी घोषित तो कर दिया, लेकिन धान और गेहूं को छोड़कर किसी भी फसल की खरीद के लिए कोई क्रय केन्द्र नहीं खोला। ऐसे में कोई किसान अपनी फसल बेचना चाहेगा तो कहां बेचेगा? बात तो वही हुई कि जैसे पहले हम लोग बनियों को अपनी फसल औने-पौने दामों में बेचते थे वैसे ही अब भी बेचें।
सन्तोष सरकार से मांग करते हैं, ‘गेहूं और धान की फसलों की ही तरह ज्वार, बाजरा, मक्का, सब्जी, फल सभी फसलों के क्रय केन्द्र स्थानीय स्तर पर खुलने चाहिए जहां किसानों की पहुंच सुलभ हो। किसान आसानी से अपनी फसल क्रय केन्द्रों पर बेच सकें।
सन्तोष आगे मांग करते हैं, ‘सरकार को MSP स्वामीनाथन आयोग के फॉर्मूले C2+50% के अनुसार घोषित करनी चाहिए, साथ ही यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक किसान की फसल की खरीद MSP पर हो। हाल ही में मैंने एक कुंतल सरसो गाँव में फसल खरीदने आए बनिए को 5000 रूपए की बेची। सरसों की लागत भी नहीं निकली। क्या किया जाए ? घर परिवार चलाना है तो कब तक इंतजार करता। घाटा सहकर बेचना पड़ा।’
चुप्पेपुर पिण्डराईं निवासी किसान गिरधारी पटेल सरसों के क्रय केन्द्र की बाबत कहते हैं, ‘पूरे पिण्डरा ब्लॉक में कहीं भी सरसों का क्रय केन्द्र नहीं है। गेहूं और धान के अलावा कहीं भी दूसरी फसलों के क्रय केन्द्र नहीं हैं। क्रय केन्द्र न होने से गांवों में आए व्यापारी खुद से ही सरसों का दाम तय करते हैं, आपको बेचना है तो बेचिए नहीं तो अपने पास रखिए। सरसों बेचकर कुछ पैसा आ जाएगा और घर का कुछ काम आगे बढ़ेगा, यही सोचकर मैंने 50 रुपया प्रति किलो के भाव पर सरसों व्यापारी को दे दी।’
MSP के नाम पर किसानों के साथ छल
पिंडरा के ही चनौली बसनी के किसान राजनाथ पटेल सवाल उठाते हैं, ‘क्या यही अच्छे दिन हैं? क्या इसीलिए जनता ने मोदी जी को चुना था? आज तो किसान बद से बदतर स्थिति में पहुंच चुका है। आज किसानों को एमएसपी के नाम पर सिर्फ बेवकूफ बनाया जा रहा है। सरकार अगर एमएसपी दे रही है तो फसलों की खरीद के लिए क्रय केन्द्र क्यों नहीं खोल रही है? दो फसलों, गेहूं और धान को छोड़कर तीसरी किसी भी फसल के लिए कहीं कोई क्रय केन्द्र नहीं है। समग्र रूप से देखा जाए तो यह सरकार वैसे भी किसान विरोधी है। इसलिए इस सरकार से किसी भी प्रकार की उम्मीद करना व्यर्थ है।’
पिंडरा के लल्लापुर निवासी किसान नेता राम सिंह कहते हैं, ‘किसान हमेशा से ठगा गया है और अभी भी ठगा ही जा रहा है। केन्द्र की मोदी सरकार के शासन में यह शोषण और बढ़ा है। सरकार ने एमएसपी का झुनझुना तो किसानों को दे दिया लेकिन दुःख की बात तो यह है कि हरियाणा और पंजाब को छोड़कर किसी भी राज्य में गेहूं और धान की फसल के अलावा अन्य फसलों के लिए कोई क्रय केंद्र नहीं खुले हैं।’
वे आगे सवाल उठाते हैं, ‘यदि सरकार को किसानों की चिंता है तो स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू क्यों नहीं करती? देखा जाए तो सरकार की ओर से लागू एमएसपी और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों वाली एमएसपी में लगभग एक चौथाई का अन्तर है। स्वामीनाथन आयोग की एमएसपी में किसान के उस खर्च को भी शामिल किया गया है जिसको सरकार की ओर से लागू एमएसपी में शामिल नहीं किया गया है। जैसे किसान की फसल की तैयारी से लेकर फसल के क्रय केन्द्र तक पहुंचाने तक का सारा खर्च। जिस ट्यूबवेल से फसल की सिंचाई हो रही है उसके पुराने होते कल पुर्जों का दाम भी शामिल है। जबकि यह सब सरकारी एमएसपी में शामिल नहीं है। इसी प्रकार से स्वामीनाथन आयोग के फॉर्मूले के कई अन्य बिंदुओं को भी सरकार द्वारा घोषित एमएसपी में शामिल नहीं किया गया है।’
कुछ ऐसे भी किसान हैं जो महंगाई और बड़ा परिवार होने की वजह से अपनी सरसों को बेचना नहीं चाहते। हरहुआ के अवसानपुर गांव के रहने वाले भरत लाल मौर्य कहते हैं, ‘इस बार मैंने एक बीघा सरसों की खेती की थी। मौसम की मार की वजह से पैदावार थोड़ी कम रही। मैं अपनी सरसों को बेचना नहीं चाहता क्योंकि मेरा परिवार बड़ा है और तेल इतना महंगा है कि कौन तेल खरीद कर खाएगा?’
इस बारे में जब मंडी परिषद् के सचिव शिवकुमार राघव से बात की गई तो उन्होंने कहा, ‘यह मामला मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता’ और फोन काट दिया।
सरकार की ओर से एमएसपी घोषित किए जाने के बाद भी किसानों की समस्याओं का अंत होता नहीं दिख रहा है। यहाँ पर एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि जब सरकार की ओर से 23 फसलों पर एमएसपी घोषित की जा रही है तो फिर एमएसपी के दायरे में आने वाली फसलों की खरीद सरकार क्यों नहीं कराती ? सरकारी क्रय केन्द्र क्यों नहीं खोले जाते? सरकार स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को कब लागू करेगी ? किसानों को C2+50% के फार्मूले के अनुसार फसलों का दाम कब मिलेगा ? किसानों की आय सच में दोगुनी कब होगी ? किसानों के हित से जुड़े ऐसे तमाम सवाल अभी अनुत्तरित ही हैं।