कांग्रेस के भीतर नेताओं की गुटबाजी को लेकर अक्सर समाचार सुनाई देते हैं, लेकिन कांग्रेस के नेताओं के अंदर, एक बीमारी मेरा आदमी तेरा आदमी की भी है जिसकी चर्चा कम ही होती दिखाई देती है, यदि चर्चा भी होती है तो उसे गुटबाजी नाम दे दिया जाता है।
मेरा आदमी तेरा आदमी, राजनीति का वह शब्द है जिसमें, आदमी का स्वार्थ और नेता का भ्रम छिपा होता है। आदमी अपने राजनीतिक स्वार्थ के कारण राजनेता के साथ खड़ा होता हुआ दिखाई देता है, यदि नेता यदि नेता कद्दावर है और सत्ता में है तो आदमी उसके साथ खड़ा होता हुआ दिखाई देता है, जैसे ही आदमी को राजनीतिक लाभ मिल जाता है, उस आदमी के अपने नेता के प्रति भाव और तेवर भी बदल जाता है, आदमी भी अपने नेता के साथ सत्ता का आनंद लेने लगता है जैसे ही उसे पता चलता है कि अब मेरा नेता राजनीतिक रूप से कमजोर हो रहा है आदमी के मन में पाला बदलने के विचार आने लगते हैं देखते ही देखते वह पाला भी बदल लेता है। जब आदमी पाला बदलता है तब नेता को एहसास होता है की उसे भ्रम था कि आदमी मेरा था ।
इस बीमारी को सही ढंग से समझने के लिए, राजस्थान की राजनीति का रुख करते हैं।
अगोरा प्रकाशन की किताबें अब किन्डल पर उपलब्ध :
इस समय राजस्थान की राजनीति में सत्ता पक्ष कांग्रेश और विपक्ष भाजपा के अंदर यह बीमारी अधिक देखी जा रही है, क्योंकि राजस्थान में भाजपा सत्ता से बाहर है और कांग्रेस सत्ता में है इसलिए कांग्रेस की बीमारी की चर्चा करनी चाहिए। हाल ही में कांग्रेस सरकार ने सरकार के विभिन्न आयोग निगम और बोर्ड में राजनीतिक नियुक्तियां की है।
जिन आदमियों की नियुक्तियां की गई है, वह आदमी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट और वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के आदमी बताए जा रहे हैं, यदि नियुक्त आदमियों के राजनीतिक चरित्र पर नजर डाले तो, यह आदमी कभी भी स्थाई रूप से किसी एक आदमी के नेता नहीं रहे, अपने राजनीतिक स्वार्थ के कारण यह आदमी कभी अशोक गहलोत के पाले में नजर आए तो कभी सचिन पायलट के पाले मैं नजर आए। कभी कांग्रेस का टिकट पाने के लिए तो कभी चुनाव जीतने के बाद मंत्री बनने के लिए और चुनाव हारने के बाद सरकार बनने पर राजनीतिक नियुक्ति पाने के लिए अलग-अलग नेताओं के पाले में खड़े नजर आए।
विधानसभा चुनाव से पहले, आदमी अशोक गहलोत के पाले से निकलकर तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के घर में नजर आए और टिकट प्राप्त कर जीतने के बाद, यह आदमी अशोक गहलोत के पाले में खड़े नजर आए। राजनीतिक नियुक्तियों में भी यही नजारा देखने को मिल रहा है यहां भी नेता का भ्रम और आदमी का राजनीतिक स्वार्थ देखा गया है। कुल मिलाकर राजस्थान कांग्रेस के भीतर वही चंद नेता है और वही चंद नेताओं के आदमी हैं जो फुटबॉल की तरह वक्त का इंतजार करते हुए इधर से उधर डोलते रहते हैं कांग्रेस के सत्ता में आने पर यही नेता और आदमी मिलकर मलाई खाते हैं और सत्ता से बाहर रहने के बाद यही नेता और आदमी संगठन के उच्च पदों पर रहकर मलाई खाते हैं !
‘जगरा तो कांग्रेस का आम आदमी लगाता है और बाटी निकालकर, नेता और नेता के आदमी खा जाते हैं।’ आम कार्यकर्ता के हाथ तो खुरचन भी नहीं लगती है।