एक सवाल मेरी जेहन में हमेशा रहता है। सवाल यही कि जनसत्ता नामक समाचार पत्र आखिर आपातकाल के दिनों में भी इतनी चर्चा में क्यों रहा और क्यों वह आज भी यह एक प्रतिष्ठित अखबार है? इस सवाल के पीछे मुख्य वजह यह कि इस अखबार में ऐसा कोई तत्व मुझे नहीं मिलता है, जिसके लिए इसे ‘जनसत्ता’ की संज्ञा दी जाय। यह बात मैं किसी एक दिन के इसके संस्करण को देखकर नहीं कह रहा। मैं इस अखबार के ई-पेपर संस्करण को पिछले पांच सालों से लगभग रोज पढ़ रहा हूं। क्यों पढ़ता हूं मैं इसे रोज? यह सवाल भी मैं खुद से ही पूछता हूं कि क्या इस अखबार में कुछेक खबरें ऐसी होती हैं जो अन्यत्र नहीं मिलते? या इस खबर में कोई और बात है?
मेरा जवाब होता है कि आरएसएस को यदि अच्छे से समझना हो तो जनसत्ता को अवश्य देखना चाहिए। अखबारों में यह अखबार आरएसएस ही है जबकि अन्य हिंदी अखबार इसके अन्य संगठन यथा विश्व हिंदू परिषद की तर्ज पर दैनिक जागरण और भारतीय जनता पार्टी की तर्ज पर दैनिक हिन्दुस्तान। ऐसे ही अमर उजाला व अन्य अखबारों को भी आरएसएस के अन्य संगठनों के हिसाब से विभूषित किया जा सकता है। वजह यही कि इन अखबारों में ‘ब्राह्मण सत्ता’ के प्रति अनुराग स्पष्ट रूप से नजर आता है।
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जब मैं जनसत्ता को देखता हूं तो मुझे इसके अंदर आरएसएस के तत्व मिल ही जाते हैं। मसलन, आज ही इसके दिल्ली संस्करण में मैं यह देख रहा हूं कि इस अखबार ने कितने शातिर तरीके से अपने ब्राह्मण धर्म का पालन किया है और मजे की बात यह कि यह सब पत्रकारिता के आड़ में किया गया है। पहले पन्ने पर कुछ खबरों का शीर्षक देखिए– ‘समझौते की अवहेलना कर चीन ने सीमा पर खड़ा किया गतिरोध : जयशंकर’, ‘भारत को चीन से मिल रहीं बड़ी चुनौतियां : अमेरिका’, ‘हिजाब विवाद : कुछ देशों के बयानों पर भारत ने कहा : आंतरिक मुद्दों पर अन्य मकसद से टिप्पणियां स्वीकार्य नहीं’, ‘वीडियो में कर्नाटक के स्कूलों में नमाज पढ़ते दिखे कुछ छात्र’, ‘भाजपा ने पंजाब के लिए घोषणापत्र जारी किया : नौकरियों में स्थानीय युवाआं को आरक्षण का वादा’ आदि। ये सभी खबरें वे हैं, जिनसे केंद्र में सत्तासीन आरएसएस को मदद मिलती है। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि ये खबरें वे हैं, जिन्हें आरएसएस प्रकाशित करवाना चाहता है। इन खबरों के लिए पहले पन्ने का 90 फीसदी स्पेस खर्च किया गया है।
[bs-quote quote=”रएसएस को यदि अच्छे से समझना हो तो जनसत्ता को अवश्य देखना चाहिए। अखबारों में यह अखबार आरएसएस ही है जबकि अन्य हिंदी अखबार इसके अन्य संगठन यथा विश्व हिंदू परिषद की तर्ज पर दैनिक जागरण और भारतीय जनता पार्टी की तर्ज पर दैनिक हिन्दुस्तान। ऐसे ही अमर उजाला व अन्य अखबारों को भी आरएसएस के अन्य संगठनों के हिसाब से विभूषित किया जा सकता है। वजह यही कि इन अखबारों में ‘ब्राह्मण सत्ता’ के प्रति अनुराग स्पष्ट रूप से नजर आता है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
अब देखिए इसके पृष्ठ संख्या 8 का हाल जो कि जनसत्ता ने राजनीतिक खबरों व पहले पन्ने की खबरों के विस्तार के लिए सुरक्षित कर रखा है। इसमें कुछ खबरें हैं– ‘सत्ता में आए तो उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता : घामी’ (भाजपा), ‘गुजरात जैसा ही था उत्तर प्रदेश का हाल, भाजपा ने रोके दंगे : मोदी’ (भाजपा), ‘विकास के नए अध्याय में माफिया, नशीले पदार्थों से मुक्त होगा पंजाब : नड्डा’(भाजपा), ‘आंदोलनकारियों पर गोली चलाने वाले कांग्रेस को सबक सिखाए जनता : शाह’ (भाजपा), ‘कांग्रेस राष्टीय सुरक्षा के लिए खतरा : योगी’, ‘शिवसेना गोवा में भविष्य के सभी चुनाव लड़ेगी : आदित्य ठाकरे’।
मुझे तो भारतीय राजनीति में मौसम विज्ञानी के रूप में मशहूर रहे रामविलास पासवान का एक कथन याद आता है। हालांकि उनका यह कथन महज कथन ही था, क्योंकि वह कभी भी इसे अमल में नहीं ला सके। उनका कथन था– जब एक बाग में एक ही तरह का फूल खिले तो समझो कि बाग का माली चोर है।
यही बात मैं आज जनसत्ता के लिए कहना चाहता हूं। आज से इसे मैं ‘आरएसएस सत्ता’ के रूप में संबोधित करूंगा।
नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
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