नामदेव ढसाल ने कविता को क्रांति का पर्याय बना दिया

गाँव के लोग

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नामदेव ढसाल मराठी दलित कविता के जाज्ज्वल्यमान नक्षत्र हैं। उनका जीवन विकट परिस्थितियों से शुरू हुआ लेकिन अपने संघर्ष और साहस से उन्होंने इतिहास में अपनी एक अलग जगह बनाई। वे दलित पैंथर के संस्थापकों में एक थे। तत्कालीन महाराष्ट्र में होनेवाली दलित उत्पीड़न की घटनाओं के विरुद्ध दलित पैंथर ने अपनी आवाज बुलंद किया। मराठी कविता का व्याकरण बदलने का श्रेय नामदेव ढसाल को ही है। उनका जन्म 15 फ़रवरी 1949 को पूना के निकट एक गाँव में हुआ था। गोलपीठा (1972), मूर्ख म्हातार्‍याने डोंगर हलवले (1975), आमच्या इतिहासातील एक अपरिहार्य पात्र : प्रियदर्शिनी (1976), तुही यत्ता कंची (1981), खेळ (1983), गांडू बगीचा (1986), या सत्तेत जीव रमत नाही (1995), मी मारले सूर्याच्या रथाचे घोडे सात, तुझे बोट धरुन चाललो आहे आदि कुल ग्यारह कविता-संग्रह। ढसाल का निधन 15 जनवरी 2014 को मुंबई में हुआ। उनकी जयंती पर एच एल दुसाध , अनीता भारती और विद्या भूषण रावत के साथ बातचीत।

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