बुनकर को जो मजदूरी मिलती है उसी में घर की स्त्री की मेहनत का मूल्य भी होता है लेकिन वह उसे कभी अलग से नहीं मिलता। अमूर्त रूप से उसका मूल्य उसके भोजन में मिला होता है। अगर बुनकर के जीवन में परिश्रम और गरीबी को देखें तो यह निस्संदेह सहानुभूति पैदा करने वाला काम है जो अर्थव्यवस्था के नकारात्मक विस्तार के कारण दयनीयता और लाचारी के चरम पर है लेकिन स्त्री इस हालत में भी पुरुषसत्ता का शिकार है।
एक मंदिर पर यात्रा का थोड़ी देर के लिए ठहराव हुआ। इस मंदिर के आसपास काफी शांत माहौल था जिसे हम लोगों ने भंग कर दिया था। यह रैदास का मंदिर था। नीचे दो लोग नदी में स्नान कर रहे थे। उनमें से एक सज्जन गमछे की लुंगी बांधे ऊपर आये। उन्होंने पूछा ई का? तूफानी ने उनसे कुछ मजाक शुरु किया। उन सज्जन ने हम लोगों को सम्मान के साथ रुकने के लिए कहा।