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सब कुछ तराजू पर नहीं तौला जा सकता (डायरी 7 अगस्त, 2022)  

आजकल पारंपरिक तराजू नजर नहीं आते। लोग वजन तौलने की मशीन रखने लगे हैं। यह अच्छा भी है और बुरा भी। अच्छा इस मायने में कि खरीदार अंकों के माध्यम से वजन को देखकर निश्चिंत हो जाता है। पारंपरिक तराजू में दुकानदार द्वारा डंडी मारने की आशंका बनी रहती थी। लेकिन पारंपरिक तराजू होता था […]

आजकल पारंपरिक तराजू नजर नहीं आते। लोग वजन तौलने की मशीन रखने लगे हैं। यह अच्छा भी है और बुरा भी। अच्छा इस मायने में कि खरीदार अंकों के माध्यम से वजन को देखकर निश्चिंत हो जाता है। पारंपरिक तराजू में दुकानदार द्वारा डंडी मारने की आशंका बनी रहती थी। लेकिन पारंपरिक तराजू होता था कमाल का। मानो सब कुछ पारदर्शी हो। आधुनिक मशीनों में बटखारे का पता ही नहीं चलता। चूंकि ये डिजिटल होते हैं तो सेटिंग कुछ भी की जा सकती है। यह तो सिर्फ आंकड़ें में मामूली हेर-फेर की आवश्यकता होती है।
मैं तो जीवन भी ऐसे ही जीता हूं जैसे तराजू के दो पलड़े हों। एक पर सुख और दूसरे पर दुख चढ़ाता रहता हूं। मैं स्वयं दुकानदार और स्वयं ही खरीदार। अक्सर पाता हूं कि जितना सुख बढ़ता है, दुख भी पीछे नहीं रहता। हालांकि अबतक का अनुभव तो यही है कि दुख हमेशा सुख पर भारी पड़ता है। लेकिन पारंपरिक तराजू एक दृष्टि देता है। सुख और दुख को आधुनिक मशीनों पर नहीं तौला जा सकता।
खैर, कल मेरे जीवन के तराजू के दुख वाले पलड़े पर कुछ वजन और बढ़ा। मेरे एक रिश्तेदार की मौत हो गई। उसका नाम रोहित था और वह मेरी भतीजी निधि का पति था। कल देर रात जब मैं अपने तराजू का आकलन कर रहा था तब यह सवाल आया कि मैं दुखी क्यों था और किसके लिए दुखी था। जवाब मिला निधि के लिए। हां, यही सच है। हर रिश्ता एक समुच्चय के समान होता है। निधि तो हमारे परिवर की पहली बेटी है। दरअसल, हम दुखी होते हैं तो उसके पीछे आइंस्टीन का सापेक्षवाद काम कर रहा होता है। दुखी होते समय हम केवल दुखी ही नहीं होते, अतीत की धरातल पर भविष्य की रूपरेखा के बारे में भी सोचते हैं।

[bs-quote quote=”बीते शुक्रवार को सोन्हों में छह और लोगों की मौत हो गई। वहीं भाथा गांव में 13 लोगों की। हालांकि जिला प्रशासन अभी तक लाशों को गिन नहीं पाया है और उसने केवल 11 लोगों के मारे जाने की पुष्टि की है। जिला प्रशासन के अनुसार अभी भी 35 लोग इलाजरत हैं। डेढ़ दर्जन लोगों के आंख की रोशनी चली गई है। मरनेवालों में सबके सब ओबीसी हैं। पुलिस ने शराब बेचनेवालों को पकड़ा है। उनमें एक दलित और तीन ओबीसी के लोग हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

बहरहाल, यह तो मेरा व्यक्तिगत दुख है। अभी जीवन बहुत लंबा है। दुखों का आगमन तो बस शुरू हुआ है। लेकिन मैं बिहार के छपरा के मकेर थाना के भाथा और सोन्हों गांव के लोगों के बारे में सोच रहा हूं, जहां अबतक दो दर्जन से अधिक लोगों की मौत जहरीली शराब पीने की वजह से हो गई। यह एक अजीबोगरीब समाचार है। बीते शुक्रवार को सोन्हों में छह और लोगों की मौत हो गई। वहीं भाथा गांव में 13 लोगों की। हालांकि जिला प्रशासन अभी तक लाशों को गिन नहीं पाया है और उसने केवल 11 लोगों के मारे जाने की पुष्टि की है। जिला प्रशासन के अनुसार अभी भी 35 लोग इलाजरत हैं। डेढ़ दर्जन लोगों के आंख की रोशनी चली गई है। मरनेवालों में सबके सब ओबीसी हैं। पुलिस ने शराब बेचनेवालों को पकड़ा है। उनमें एक दलित और तीन ओबीसी के लोग हैं।
मैं जातियों का उल्लेख इसलिए कर रहा हूं ताकि यह दर्ज कर सकूं कि बिहार में शराबबंदी के कारण समाज का वंचित तबका किस तरह तिल-तिलकर मर रहा है। कल ही वैशाली जिले के महुआ सहदेई और राजापाकर इलाके में जहरीली शराब के कारण तीन लोगों की मौत हो गई तथा तीनो मृतक पासी जाति के रहे।

करसड़ा के उजाड़े गए मुसहर परिवार नौकरशाही के आसान शिकार बन गए हैं

दरअसल, सरकार चलाना हो या परिवार, पारंपरिक तराजू का उपयोग करना बेहतर है। नीतीश कुमार आधुनिक मशीन का इस्तेमाल कर रहे हैं और इसलिए केवल उन्हें एक पक्ष दिखाई दे रहा है। रोती हुईं मांएं, बच्चे, पिता व अन्य परिजन उन्हें दिखाई नहीं देते। यह कोई आज की बात भी नहीं है। नीतीश कुमार के अबतक के कार्यकाल में अनेक हृदय विदारक घटनाएं घटित हुई हैं। पटना के गांधी मैदान में रावण वध के प्रदर्शन के दौरान हुई भगदड़ में 75 से अधिक लोग मारे गए थे। पूरा का पूरा पीएमसीएच घायलों और मृतकों से अटा पड़ा था। उस समय मैं पटना में पत्रकार था और पीएमसीएच में मौजूद था। नीतीश कुमार से यह भी संभव ना हुआ कि वह घायलों का हाल-चाल पूछने आएं। ऐसा ही वाकया तब हुआ जब पटना के अदालत घाट पर छठ के दौरान हादसा हुआ। तब भी दो दर्जन से अधिक लोग मारे गए थे। नीतीश कुमार के मन में तब भी कोई संवेदना नहीं जगी थी।
अभी जो लोग जहरीली शराब के कारण मारे जा रहे हैं, उनकी तो बात ही अलग है। नीतीश कुमार की नजर में शराब पीनेवाला हर आदमी अपराधी है। उनकी यह परिभाषा ही गलत है। नैतिकता के नाम पर तानाशाही व्यवस्था को बनाए रखने का उनका यह तरीका पूरे बिहार के लिए भारी पड़ रहा है।

रफ़ी को सुनते हुए आज भी ज़माना करवटें बदलता है

बहरहाल, कल जब दुख और सुख को तराजू पर तौल रहा था तब एक कविता सूझी।
अमरदेसवा या फिर कोई बेगमपुरा जैसी नहीं है
सपनों की मेरी नई दुनिया।
मेरे सपनों की दुनिया की कसौटी है
एकमात्र तुम्हारी हंसी
और बहुत बोलनेवाली
तुम्हारी आंखें।
हां, मैं देखता हूं सपने
जैसा तुम सोचती हो कि
यह धरती एक है
सारे जीव एक हैं
और कोई ईश्वर नहीं
कोई यूटोपिया नहीं।

नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।

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