पत्रकारिता और साहित्य दो अलग-अलग चीजें हैं। हालांकि दोनों में समानताएं भी हैं। कई बार पत्रकारिता और साहित्य दोनों एक साथ शामिल भी किये जाते हैं। ठीक वैसे ही जैसे मैं अपनी डायरी के पन्ने लिखता हूं। वैसे मूल पत्रकारिता की बात करूं तो इसमें केवल तथ्य होते हैं। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है कि जिन खबरों में केवल तथ्य होते हैं, उनमें विचार शामिल नहीं होता। हर खबर में विचार शामिल रहता ही है। इसी तरह से हर साहित्य में विचार शामिल रहता है। विचार को हटा दिया जाय तो न खबर लिखी जा सकती है और ना ही साहित्य।
रही बात विचार की तो इसकी कोई एक परिभाषा नहीं है। यह खबर अथवा साहित्य लिखनेवाले पर निर्भर करता है। इसे हम चाहें तो मकसद भी मान सकते हैं। लेकिन मकसद जरा अलग चीज है। इस संदर्भ में मकसद विचार से बड़ा है। असल चीज है मकसद।
दरअसल, संजीव भट्ट को गिरफ्तार करने की खबर आज लगभग सभी अखबारों ने प्रमुखता से छापी है। वैसे यह बेहद दिलचस्प है कि जो व्यक्ति पूर्व में ही जेल में बंद हो, उसे कैसे गिरफ्तार किया जा सकता है। दिल्ली से प्रकाशित दैनिक जनसत्ता की खबर का शीर्षक है–बेगुनाह लोगों को फंसाने के आरोप में संजीव भट्ट गिरफ्तार। जबकि खबर के अंदर अहमदाबाद के अपराध शाखा के पुलिस उपायुक्त चैतन्य मांडलिक के हवाले से कहा गया है कि संजीव भट्ट को पालनपुर जेल से हिरासत में लिया गया और मंगलवार की शाम को औपचारिक तौर पर गिरफ्तार कर लिया गया।
तो इस प्रकार से यह एक खास खबर है। इसके कई पक्ष हैं। पहले इस खबर के लिखने की शैली के बारे में बात करते हैं। खबर को लिखते समय खास तरह का एहतियात बरता गया है। इसके लिए एक शब्द का इस्तेमाल किया गया है– ‘बेगुनाह।’ दरअसल पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट को जिस मामले में पूर्व में जेल में उम्रकैद की सजा दी जा रही है और अब जिस आरोप में उन्हें गिरफ्तार (हिरासत में लिया गया पढ़िए) किया गया है, वह 2002 में हुए गुजरात दंगे से जुड़ा है। इस मामले में बेगुनाह शब्द जिन लोगों के लिए किया गया है, उनमें प्रमुख नाम नरेंद्र मोदी का भी शामिल है। अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपने फैसले में एक याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद से ही आरोपियों को बेगुनाह कहा जाने लगा और तीस्ता सीतलवाड़ और गुजरात के पूर्व डीजीपी रहे श्रीकुमार को गिरफ्तार किया गया। इनके उपर आरोप है कि इन सभी ने तथाकथित बेगुनाहों (जिनमें एक नरेंद्र मोदी भी शामिल थे) को फंसाने के लिए झूठे सबूत एकत्रित किये।
[bs-quote quote=”संजीव भट्ट को गिरफ्तार करने की खबर आज लगभग सभी अखबारों ने प्रमुखता से छापी है। वैसे यह बेहद दिलचस्प है कि जो व्यक्ति पूर्व में ही जेल में बंद हो, उसे कैसे गिरफ्तार किया जा सकता है। दिल्ली से प्रकाशित दैनिक जनसत्ता की खबर का शीर्षक है–बेगुनाह लोगों को फंसाने के आरोप में संजीव भट्ट गिरफ्तार। जबकि खबर के अंदर अहमदाबाद के अपराध शाखा के पुलिस उपायुक्त चैतन्य मांडलिक के हवाले से कहा गया है कि संजीव भट्ट को पालनपुर जेल से हिरासत में लिया गया और मंगलवार की शाम को औपचारिक तौर पर गिरफ्तार कर लिया गया। ” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
अब फिर से इसी खबर की तकनीक पर बात करते हैं। जाहिर सी बात है कि इसमें खूब सारे तथ्य हैं और पढ़ते समय शायद ही किसी को यह लगे कि इसमें खास तरह के विचारों की बू है। मसलन, खबर के शीर्षक ओर इंट्रो के बीच समानता बनाए रखने के लिए हिरासत शब्द से परहेज किया गया है। ऐसा हम पत्रकार इसलिए भी करते हैं ताकि हमारे खबरों का शीर्षक मजबूत हो और उसे मजबूती इंट्रो से ही मिलती है। मान लें कि यदि खबर लिखनेवाले ने यदि इंट्रो में हिरासत की बात कही होती तो वह तकनीकी रूप से गलत होती। वैसे यह तथ्य भी है कि संजीव भट्ट को गिरफ्तार किया गया। लेकिन उन्हें पहले हिरासत में लिया गया, यह तथ्य इंट्रो में शामिल नहीं किया गया। इससे खबर लिखनेवाले के विचार और मकसद दोनों को समझा जा सकता है।
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दरअसल खबर लिखनेवाला कोई रोबोट नहीं होता। वह आदमी ही होता है। उसकी अपनी जाति होती है। जैसे आज के तमाम द्विज पत्रकार (अनेक अपवाद भी हैं) खुद को नरेंद्र मोदी से कमतर या फिर नरेंद्र मोदी का हितैषी जरूर मानते हैं। उन्हें लगता है कि नरेंद्र मोदी को बदनाम ना किया जाय। इसी खबर में कहीं भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम नहीं है। उन्हें बस ‘बेगुनाहों’ के बीच गायब कर दिया गया है। अब खबर लिखने वाले ने ऐसा क्यों किया होगा, यह समझने की आवश्यकता है। हो सकता है कि अखबार के संपादक ने उसे ऐसे ही लिखने को कहा हो। वजह यह कि इतनी बड़ी खबरें बिना संपादकों के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप के नहीं छपतीं। संपादकगण भी रोबोट नहीं होते। उन्हें अपनी नौकरी प्यारी होती है। जान से उन्हें मोह रहता ही है। अब आदमी हैं तो ये चीजें होगी ही। कुल मिलाकर यह एक व्यवस्था है, जो खबरें तैयार करता है और लोगों के बीच लेकर जाता है। इस व्यवस्था की खासियत यह है कि संपादक के ऊपर वाले कभी सामने नहीं आते। लेकिन वे भूत नहीं होते। वे सदेह मौजूद रहते हैं।
[bs-quote quote=”नरेंद्र मोदी के लिए तो यही बेहतर होता कि इस मामले को बंद कर दिया जाता। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने उनके माथे से कलंक का टीका मिटा दिया था। लेकिन अब फिर से उनके उपर ‘बेगुनाह’ होने का धब्बा लगा दिया गया है।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
खैर, संजीव भट्ट, श्री कुमार और तीस्ता सीतलवाड़ द्वारा बेगुनाहों के फंसाने के मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया है। मैं तो इस एसआईटी के निष्कर्ष से वाकिफ हूं और इन तीनों के अंजाम से भी। लेकिन मुझे तो इंतजार रहेगा सुप्रीम कोर्ट के फैसले का। वजह यह कि सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले के बाद जो मामला बंद हो चुका था, उसे दूसरे तरीके से फिर खोल दिया गया है। अब इसको ऐसे समझिए कि संजीव भट्ट, श्री कुमार और तीस्ता सीतलवाड़ को गिरफ्तार किया गया है, तो उन्हें न्यायिक दंडाधिकारी के आदेश के उपरांत हिरासत में लिया गया है। अब निचली अदालत अहमदाबाद के अपराध शाखा के आरोपों की सुनवाई करेगी। यह मामला फिर से हाईकोर्ट पहुंचेगा और वहां के बाद सुप्रीम कोर्ट। मतलब यह कि नरेंद्र मोदी बेगुनाह हैं या नहीं, इस बारे में सुप्रीम कोर्ट तक फिर से बहस होगी।
नरेंद्र मोदी के लिए तो यही बेहतर होता कि इस मामले को बंद कर दिया जाता। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने उनके माथे से कलंक का टीका मिटा दिया था। लेकिन अब फिर से उनके उपर ‘बेगुनाह’ होने का धब्बा लगा दिया गया है।
बद्री नारायण की बदमाशी (डायरी, 10 जुलाई, 2022)
वैसे मैं यह सोच रहा हूं कि यह शातिर चाल किसकी हो सकती है? आरएसएस के ब्राह्मणों की साजिश से इंकार नहीं किया जा सकता है। वैसे भी नरेंद्र मोदी ने आरएसएस के ब्राह्मणों का बहुत अधिक नुकसान कर दिया है। मुझे तो वह कहानी याद आ रही है, जिसमें एक मुनि द्वारा चूहे को शेर बना दिया जाता है। शेर बनने के बाद चूहा मुनि को ही शिकार बनाने लगता है। इसके बाद मुनि फिर उसे चूहा बन जाने का शाप देते हैं।
नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
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