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ग्राउंड रिपोर्ट

अपराधों का सेलेक्टिव विरोध और समर्थन भाजपा की रणनीति है                

बंगाल, बिहार, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और अब महाराष्ट्र में एक हफ्ते में हुई रेप की घटनाओं के बाद यदि विश्लेषण करें तो मालूम होगा कि त्वरित कार्रवाई वहीं हुई जहां जनता ने दबाव बनाया। बंगाल को छोड़कर सभी प्रदेश भाजपा शासित हैं या फिर वहाँ भाजपा समर्थित सरकारें हैं। जब-जब भाजपा शासित प्रदेशों में घटनाएं हुईं, वहाँ सरकार किसी तरह का कोई कार्रवाई न कर अपराधी को संरक्षित किया है। सवाल यह उठता है कि क्या भाजपा की मानसिकता अपराधी या गुनहगार को बचाकर ऐसे अपराधों को सीधे-सीधे बढ़ावा देना नहीं है?

मुंबई में 12 अगस्त के दिन बदलापुर में  एक स्कूल में केजी की तीन साल और छ: साल से कम उम्र की दो बच्चियों के साथ अत्याचार की घटना हुई। जिस स्कूल में यह घटना हुई, वह भाजपा के लोगों द्वारा ही चलाया जा रहा था। दोनों बच्चियों के अभिभावकों में से एक बच्ची की मां को (जो गर्भवती हैं) बदलापुर पुलिस ने बारह घंटे पुलिस स्टेशन में बिठाकर मामला दर्ज करने में आनाकानी की क्योंकि पुलिस घटना का संज्ञान लेने की जगह शायद अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बातचीत कर भाजपा के लोगों को बचाने की रणनीति तय कर रही थी।

तब स्थानीय लोगों ने विरोध करते हुए मुंबई-पुणे  रेलमार्ग को कई घंटे बंद किया। बदलापुर स्टेशन आंदोलन स्थल में तब्दील हो गया। दबाव बढ़ने पर सरकार ने  लीपापोती शुरू की।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विरोधी दलों को इस विषय पर राजनीति न करने की सलाह दी, वहीं भाजपा बंगाल में अपने साथ राज्यपाल को लेकर राजनीति कर रहा है। बदलापुर की पुलिस द्वारा इस मामले में कोताही बरतने का आरोप भाजपा के बी टीम के कप्तान राज ठाकरे ने ही किया।

 पूर्व डीआईजी सुरेश खोपडे ने अपने सोशल नेटवर्क पेज पर लिखा कि थानेदार सत्ताधारी दल के द्वारा चलाए जा रहे स्कूल के मामले में हाथ डालने में घबरा रही थी। पार्टी विद डिफरंस का पुलिस प्रशासन में आतंक है क्योंकि कोई भी सरकारी विभाग स्वतंत्र रूप से निर्णय लेकर काम न कर अलिखित संकेत के दबाव के चलते निचले स्तर के अधिकारी त्वरित और सही निर्णय लेने से बचते हैं।

कोलकाता के रेप और हत्या की घटना के बाद, पड़ोसी प्रदेश बिहार के मुजफ्फरपुर में एक दलित नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ। बिहार में भारतीय जनता पार्टी अपने को पार्टी वुईथ डिफरंस का दावा करने वाली जनता दल युनाइटेड के साथ सत्ताधारी पार्टी है लेकिन मुजफ्फरपुर की दलित बच्ची की चीख भाजपा को सुनाई नहीं दी। वहीं भाजपा बंगाल में संदेशखाली हो या कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज की ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुई घटना में बढ़-चढ़कर राजनीति कर रही है।

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 मुझे विश्व के किसी भी कोने में महिलाओं के साथ हुए अत्याचार का उतना ही दुख होता है जितना कि हमारे घर में हो रही घटनाओं को लेकर। लेकिन उत्तर प्रदेश में भाजपा सत्ताधारी पार्टी बनने के चंद दिनों के भीतर सहारनपुर में दलित समुदाय के साथ जो जघन्य कांड किया। उसके बाद बलरामपुर, वुलगढी, हाथरस उन्नाव की तरह दर्जनों उदाहरण है, जिसमें सत्ताधारी पार्टी के लोकप्रतिनिधि प्रत्यक्ष रूप से संलिप्त पाए गए हैं लेकिन सत्ताधारी भाजपा गैर भाजपा शासित राज्यों में हुई घटनाओं को लेकर लगातार हंगामा कर रहे हैं।

मणिपुर की घटना को तीन साल से अधिक समय बीत चुका है लेकिन इसके बावजूद मणिपुर में भाजपा सरकार ने इस घटना को लेकर कभी जवाब नहीं दिया, जबकि गैर भाजपा दलों की सरकार वाले प्रदेशों में घटी घटनाओं को लेकर भाजपा शासित प्रदेशों के स्थानीय केडर, केंद्रीय नेतृत्व तथा  राज्यपाल के रवैया को देखते हुए लगता है कि राज्यपाल न होकर भाजपाल बन चुके हैं।

सवाल है कि भाजपा शासित राज्यों में महिलाओं के साथ किए जा रहे अत्याचारों को लेकर भाजपा की भूमिका और गैर भाजपा राज्यों में दिखाई दे रही भूमिका में इतना बड़ा फर्क क्यों? क्या भाजपा के शासन में हो रहे अत्याचार, अत्याचार नहीं है?

मणिपुर में अत्याचारों के बाद उन महिलाओं ने जुलूस निकाला, जिसे लगभग संपूर्ण विश्व ने देखा है लेकिन हमारे देश के प्रधानमंत्री को दिखाई नहीं दिया बल्कि आज तक मणिपुर जाने की फुर्सत नहीं मिली, न ही उस पर बोलने की। इस तरह भाजपा का महिलाओं के प्रति सिलेक्टिव और भेदभावपूर्ण व्यवहार सभी को दिखाई देता है।

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बंगाल में कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में रात में ड्यूटी पर तैनात ट्रेनी महिला डाक्टर के साथ किए गए अत्याचार जैसा ही कुछ सालों पहले मुंबई के जे जे अस्पताल की एक नर्स के साथ स्टाफ के कर्मचारी ने रेप किया बुरी तरह घायल कर दिया, जिसके बाद नर्स कोमा में चली गई थी। उस अस्पताल के अन्य कर्मचारियों ने एक तरह से प्रायश्चित्त के तौर पर उस नर्स की देखभाल उसी अस्पताल में अंतिम समय तक की, जिसकी हाल ही में मृत्यु हुई है।

दिल्ली में निर्भया कांड के बाद जस्टिस जे. एस. वर्मा कमेटी के सुझावों के बाद अत्याचारी व गुनाहगारों को फांसी देने प्रावधान किया गया। लेकिन उसके बाद भी महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचारों, रेप में रत्तीभर भी कमी तो नहीं हुई लेकिन रेपिस्ट पीड़ित महिलाओं को मार देने की हद तक पहुँच चुके हैं और सबूत नष्ट करने के मामले सामने आ रहे हैं। सवाल यह उठता है कि क्या कड़ी सजा ही इसका उपाय है?

ध्यान देने योग्य बात यह है कि संपूर्ण विश्व में ही कम ही ऐसे प्रमाण होंगे, जहां महिलाओं के कष्ट और नजरिए की तरफ किसी का ध्यान जाता हो। युद्ध हो या दंगे-फसाद सभी जगहों पर सदियों से महिलाओं के साथ हुए अत्याचारों के उदाहरण मौजूद हैं। सबसे ज्यादा पीड़ित महिलायें ही होती हैं।

यह सब देखते हुए मुझे डॉ. राम मनोहर लोहिया के योनि शुचिता के सिद्धांत की याद आ रही है। लोहिया ने अपने विचारों में नारी स्वतंत्रता के प्रति विशेष आग्रह किया है, उनका मानना है कि भारत में केवल चातुर्वर्ण्य ही नहीं है एक पांचवा वर्ण नारी का भी है, जो हजारों वर्षों से उत्पीड़ित होती आ रही है। संसार में जितने भी प्रकार के अन्याय इस पृथ्वी को विषाक्त कर रहे हैं, उसमें से सबसे बड़ा अन्याय नर-नारी के भेद का है। संसार की विशाल मानवता किसी न किसी रूप में नारी की स्वतंत्रता में बाधक रही है। पूरा संसार किसी न किसी रूप में समता का इच्छुक तो है, लेकिन आधी से अधिक मानवता नारी की स्वतंत्रता के प्रति उदासीन है। आज भी स्त्रियों को सामूहिक जीवन में पुरुषों के बराबर भाग लेने का अधिकार नहीं है।

कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में रात को काम करने वाली महिला डाक्टर के ऊपर हुआ अत्याचार भी इसी मानसिकता का परिचायक है हालांकि पश्चिम बंगाल में भारत के अन्य प्रदेशों की तुलना में, सौ से अधिक वर्षों से सामाजिक सुधार आंदोलनों के वजह से महिलाओं को सार्वजनिक जीवन में भाग लेने की शुरुआत हुई लेकिन पुरुष मानसिकता में संपूर्ण बदलाव नहीं होने की वजह से भी यह घटना हुई।

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डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कहा है कि सिर्फ आध्यात्मिक उंचाई और नारी अपमान ये दोनों साथ-साथ नहीं चल सकते। भारत वर्ष के राजनितिक और आध्यात्मिक पतन का कारण यही है कि हमारे देश में महिलाओं को उचित स्थान नहीं दिया गया। समाज के पुरुष प्रधान होने के कारण नारी की प्रतिभा को हमेशा दबाने की कोशिश की गई।

समाज के सामने दो ही विकल्प है – वह चाहे तो महिलाओं को केवल घर में कैद रहने वाला जीव बनाकर, उसे अपनी वासना और सौंदर्य का परिचायक बनाये और दूसरा उपाय है, चाहे तो उसकी मानसिक और शारीरिक क्षमताओं को विकसित कर उसे अपने समकक्ष बना ले।  लेकिन आज के समय में उसे अपनी प्रतिभा को विकसित करने का अवसर तो मिल गया, लेकिन उतना ही जितना पितृसत्ता समाज ने चाहा।

महिलाएं आज हर क्षेत्र में गुणवत्ता के साथ काम कर रही हैं। लेकिन पितृसत्तात्मक सोच के चलते महिलाओं के प्रति नजरिया वही सामंती सोच वाला है। इस वजह से अत्याचारों में वृद्धि हो रही है। महिला को  एक कमोडिटी वाली चीज माना जाता है। इस वजह से बलात्कार दिन-प्रतिदिन कम होने की जगह बढ़ रहे हैं।

जिसमें बदलापुर में छोटी नाबालिग लड़कियों से लेकर वृद्ध महिलाओं के साथ इस तरह से रेप और अत्याचार सिर्फ कड़े कानून बनने से रुकेंगे नहीं। इसके लिए लोगों का मानसिक प्रबोधन करने की आवश्यकता होगी। और जब तक महिलाओं के उपर इस तरह के अत्याचार रोका नही जा सकता, तब तक विश्वगुरु तो बहुत दूर की बात है। अपने आप को एक देश के रूप में भी कहना शर्मनाक है। ऐसा मुझे एक नागरिक के रूप में सतत लग रहा है।

हाल में हुई बदलापुर की घटना के साथ कोलकाता, मुजफ्फरपुर के अलावा, मणिपुर, उत्तर प्रदेश के हाथरस, बलरामपुर, सहारनपुर, उन्नाव, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, ओडिसा, गुजरात, हरियाणा और उत्तराखंड में महिलाओं के साथ हुई अत्याचार घटनाएं भाजपा की सरकार में घटित हुईं। इन प्रदेशों के राज्यपाल से लेकर मुख्यमंत्री तक ने गुनहगारों पर कार्यवाही करने में तत्परता दिखाने की बजाए गुनहगारों को संरक्षित और पोषित करने का काम ही किया। हाथरस मामले में पीड़ित बच्ची के शव को उसके माता-पिता के सामने पुलिस-प्रशासन ने मिलकर आग लगा कर जला दिया। क्या यही पार्टी विद डिफरंस है?

इन सब बातों पर गौर करते हुए यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या इस पार्टी को गैर भाजपा प्रदेशों में हो रही घटनाओं में धरना प्रदर्शन करने का रत्तीभर भी नैतिक अधिकार है?

डॉ. सुरेश खैरनार
डॉ. सुरेश खैरनार
लेखक चिंतक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

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