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एक है रिया चक्रवर्ती डायरी (29 अगस्त, 2021) 

ब्राह्मणवादी दर्शन के केंद्र में क्या है? या वाकई में यक्ष दर्शन जैसा कुछ है? और यदि कुछ है तो वह क्या है जो अन्य दर्शनों से अलग कैसे है? इस दर्शन में समाज का बहुसंख्यक वर्ग कहां है और महिलाएं कहां हैं? ये सारे सवाल मेरी जेहन में दो वजहों से आए। पहली वजह […]

ब्राह्मणवादी दर्शन के केंद्र में क्या है? या वाकई में यक्ष दर्शन जैसा कुछ है? और यदि कुछ है तो वह क्या है जो अन्य दर्शनों से अलग कैसे है? इस दर्शन में समाज का बहुसंख्यक वर्ग कहां है और महिलाएं कहां हैं? ये सारे सवाल मेरी जेहन में दो वजहों से आए। पहली वजह पटना में मेरे घर से है। कल रीतू ने जानकारी दी कि उसने घर का एक कमरा अपने लिए चुन लिया है और अब वह केवल उसका कमरा होगा, अन्य किसी का नहीं। मैंने उसे बधाई दी। दूसरी वजह रही रिया चक्रवर्ती। वही अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती, जिसके उपर अपने अभिनेता प्रेमी सुशांत सिंह राजपूत की खुदकुशी के लिए उकसाने व उत्पीड़ित करने का आरोप है। कल रिया के बारे में सोच रहा था कि वह इनदिनों क्या कर रही है और सुशांत सिंह का पूरा मामला कहां तक पहुंचा है।

दरअसल, मैं ब्राह्मणवादी दर्शन के होने से इन्कार नहीं करता। यह है और हमसभी अपने-अपने हिसाब से इस दर्शन को मानते-समझते हैं। मेरे हिसाब से इसके केंद्र में केवल वर्चस्ववाद है जो कि केवल मुट्ठी भर लोगों का वाद है और ये मुट्ठी भर लोग इतने ताकतवर और शातिर हैं कि वे किसी और वाद को अंकुआने भी नहीं देते हैं। यदि इन्हें पेस्टीसाइड कहूं तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी। यह वर्ग कहानियां खूब गढ़ता है। पूरा का पूरा ब्राह्मणवाद केवल और केवल कहानियों के आसरे है। पूरा का पूरा दर्शन कपोल कल्पित कहानियों में है।

[bs-quote quote=”कमाल की बात है कि ब्राह्मण वर्ग द्वारा उत्पीड़ित इस महिला ने अपनी तस्वीर के साथ एक संदेश लिख रखा है – “Smile a lot, because one day your teeth will fall off”। मतलब यह कि – खूब मुस्कुराइए, क्योंकि एक दिन आपके दांत गिर जाएंगे। इतने शानदार संदेश के बाद रिया चक्रवर्ती बिल्कुल खामोश हो जाती हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

अब एक कहानी है गरीब ब्राह्मण की। बचपन से पढ़ता-सुनता रहा हूं कि एक गरीब ब्राह्मण था। कहानी की शुरूआत में ही यह वर्ग खुद को इस मुद्रा में खुद को खड़ा कर देता हे कि बहुसंख्यक वर्ग उसकी शातिरपनई को भूल जाता है। मजे की बात यह कि कभी कोई यह नहीं लिखता कि एक गरीब ब्राह्मणी थी। महिलाओं का तो अस्तित्व ही नहीं है। ग्रंथों में अनेक ऋषियों का जिक्र है और केवल उन ब्रा्ह्मणी महिलाओं का उल्लेख मिलता है जिनके साथ कुछ घटित हुआ है। घटित होने का मतलब यह कि या तो विष्णु ने उनका बलात्कार किया हो या फिर तीनों देवों ने मिलकर गैंगरेप। इंद्र की कहानियां भी कुछ ऐसी ही हैं।

तो कुल मिलाकर यही कि किसी गरीब ब्राह्मणी की कहानी नहीं। रिया चक्रवर्ती भले ब्राह्मणी हों, लेकिन वह गरीब नहीं है। जब सुशांत सिंह राजपूत का मामला अखबारों और न्यूज चैनलों पर चरम पर था, तब एक के बाद एक कई खुलासे हो रहे थे कि उसने अपने भाई के साथ मिलकर कैसे सुशांत सिंह राजपूत को लूटा था। मुझे लगता है कि भारतीय दर्शन को समझना हो तो रिया-सुशांत के मामले को एक कसौटी की तरह लेना चाहिए।

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खैर, मैं रिया चक्रवर्ती का “वेरिफाइड” ट्वीटर अकाउंट देख रहा हूं। कमाल की बात है कि ब्राह्मण वर्ग द्वारा उत्पीड़ित इस महिला ने अपनी तस्वीर के साथ एक संदेश लिख रखा है – “Smile a lot, because one day your teeth will fall off”। मतलब यह कि – खूब मुस्कुराइए, क्योंकि एक दिन आपके दांत गिर जाएंगे। इतने शानदार संदेश के बाद रिया चक्रवर्ती बिल्कुल खामोश हो जाती हैं। ट्वीटर पर उनका आखिरी संदेश 16 जुलाई, 2020 को दोपहर 2 बजकर 57 मिनट पर प्रकाशित है। इस संदेश में रिया ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को टैग किया है और खुद को सुशांत सिंह राजपूत की गर्लफ्रेंड होने की बात कही है। वह सुशांत सिंह राजपूत की खुदकुशी मामले की सीबीआई जांच की मांग कर रही है। 16 जुलाई, 2020 के पहले उसका एक संदेश 13 जून, 2020 का है जिसमें उसने अपनी मुस्कुराती हुई एक सेमी बोल्ड तस्वीर के साथ लिखा है – “Me When I see my friends”। इसके पहले के संदेशों में वह बिल्कुल सामान्य मुंबईकर अभिनेत्रियों के जैसी दिखती है। जनता कर्फ्यू के संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान को वह 20 मार्च, 2020 को शेयर करती है।

अब एक सवाल यह कि 16 जुलाई, 2020 के बाद रिया ने अपने ट्वीटर अकाउंट पर कोई पोस्ट क्यों नहीं किया? हो सकता है कि उसने किया हो और किसी कारण से उन्हें डिलीट कर दिया हो। मुझे लगता है कि उसने पोस्ट ही नहीं किया। उसने खामोशी की चादर ओढ़ ली है। वह रिया जो मुस्कुराती थी, अब बिल्कुल खामोश है।

[bs-quote quote=”सीबीआई विश्वास के योग्य नहीं रही है और यह केवल मैं रिया के मामले को लेकर नहीं कह रहा। मैं यह आज भी मानता हूं कि सीबीआई ने चारा घोटाले के मामले में लालू प्रसाद को साजिश के तहत फांसा और सामाजिक न्याय के बड़े पहरेदार को आरोपी साबित किया। मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं क्योंकि लालू प्रसाद ने 1994 में चारा घोटाले को उजागर किया और जांच के आदेश दिए। फिर उन्हें ही इस घोटाले में लपेट दिया गया। जबकि यह घोटाला 1970 के दशक से चल रहा था। लालू प्रसाद इस मामले में दोषी करार दिए जा चुके हैं और फिलहाल जमानत पर जेल से बाहर हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

मैं रिया चक्रवर्ती और सुशांत सिंह राजपूत के बारे में सोच रहा हूं। दोनों लिव-इन-रिलेशनशिप में रहते थे। इस तरह के रिश्ते के संबंध में भारत में कई किस्से रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण कहानी दुष्यंत और शकुंतला की है। यह कहानी इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी कहानी के आधार पर इस देश का नाम भारत पड़ा, जहां हम सभी रहते हैं। कहानी सुशांत सिंह राजपूत और रिया चक्रवर्ती के जैसी ही है। दुष्यंत एक क्षत्रिय राजा था। वहीं शकुंतला एक ब्राह्मण की बेटी। ब्राह्मण जंगल में रहता था। एक बार दुष्यंत शिकार खेलते-खेलते ब्राह्मण के आश्रम तक जा पहुंचा और वहां उसने शकुंतला को देखा। दोनों जवान थे, आकर्षित हो गए एक-दूसरे के प्रति। बिन शादी के ही साथ रहने लगे। ठीक वैसे ही जैसे सुशांत और रिया रहते थे।

यहां कहानी में एक अंतर है। दुष्यंत ने खुदकुशी नहीं की थी। जब शकुंतला गर्भवती हो गई तब दुष्यंत का मन भर गया। वह जाने लगा। शकुंतला को डर सता रहा था कि बिन शादी के मां बनने पर समाज क्या कहेगा। वह ठोस आश्वासन चाहती थी। नहीं तो दुनिया उसके होने वाले बच्चे को नाजायज कहती। दुष्यंत ने उसे अपनी अंगुठी दे दी और अपने राज्य वापस लौट गया।

दुष्यंत शकुंतला को भूल चुका था। उसने किसी दूसरी राजकुमारी से शादी कर ली थी और मस्ती से अपना जीवन जी रहा था। उधर शकुंतला का जीवन पहाड़ हो गया था। बच्चे का जन्म हो चुका था। चूंकि ब्राह्मणी थी, इसलिए समाज में सवाल जरूर उठ रहे थे, लेकिन किसी ने उठाया नहीं। उसका बच्चा जंगल में जंगली जानवरों के साथ खेलता था। शेर के वह दांत गिनता था। यह सब कहानी में है। इसी बच्चे का नाम भरत था और इसके नाम पर ही इस देश का नामकरण हुआ है – भारत।

खैर, कहानी तो कहानी है। जैसे चाहिए वैसे पढ़िए। सब आपकी सोच पर निर्भर करता है।

तो मैं बात कर रहा था ब्राह्मणी रिया चक्रवर्ती की। पिछले साल 28 अगस्त को राजदीप सरदेसाई ने रिया चक्रवर्ती का साक्षात्कार लिया था। इंटरव्यू करीब 1 घंटा 42 मिनट का था। इसके पहले द्विज अखबारों और न्यूज चैनलों पर रिया का मीडिया ट्रायल भी चल रहा था। उन दिनों मेरे गृह शहर पटना में राजपूत जाति के लिए समर्पित एक अखबार “प्रभात खबर” के लिए तो रिया रोज एक मसाला थी।

मैं अपनी बात कहूं तो मुझे तो राजदीप सरदेसाई द्वारा लिया गया वह इंटरव्यू अच्छा लगा था। रिया का आत्मविश्वास देखने लायक था। इंटरव्यू में जो कुछ उसने कहा था, वह सच है या गलत, इसकी जांच सीबीआई ने की है अथवा नहीं, इसकी जानकारी नहीं है मेरे पास। वैसे भी सीबीआई विश्वास के योग्य नहीं रही है और यह केवल मैं रिया के मामले को लेकर नहीं कह रहा। मैं यह आज भी मानता हूं कि सीबीआई ने चारा घोटाले के मामले में लालू प्रसाद को साजिश के तहत फांसा और सामाजिक न्याय के बड़े पहरेदार को आरोपी साबित किया। मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं क्योंकि लालू प्रसाद ने 1994 में चारा घोटाले को उजागर किया और जांच के आदेश दिए। फिर उन्हें ही इस घोटाले में लपेट दिया गया। जबकि यह घोटाला 1970 के दशक से चल रहा था। लालू प्रसाद इस मामले में दोषी करार दिए जा चुके हैं और फिलहाल जमानत पर जेल से बाहर हैं।

खैर, बात रिया की करते हैं। उन दिनों रिया के लिए अखबारों और चैनलों में कई उपमाएं इस्तेमाल की गयी थीं। उसे विष कन्या तक कहा गया। मुझे तो हैरानी तब भी हो रही थी कि इस देश के तमाम स्त्रीवादी कर क्या रहे हैं। वे सब खामोश थे। उन दिनों यह विचार आया था कि वे महिलाएं क्यों खामोश हैं जो बात-बात पर जंतर-मंतर पर निकल आती हैं? क्या उन्हें मीडिया में रिया का हनन नजर नहीं आ रहा है?

बहरहाल, रिया चक्रवर्ती को मैं एक कामयाब ब्राह्मणी मानता हूं। उसने एक स्पेस बनाया है अपने लिए। सीबीआई जांच की अंतिम रिपोर्ट क्या होगी और जो सामने आएगा वह कितना सच होगा, यह तो केवल और केवल रिया ही बताएगी और मुझे उम्मीद है कि वह अपने ट्वीटर पर वापस लौटेगी अपनी मुस्कुराहट के साथ।

फिलहाल कुछ खास पंक्तियां उनके लिए जो ईमान को सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं –

हुक्मरां को चाहिए एक गुलाम मुल्क,

तुम गाओ नगमे कि यह मंजर खास हो।

हम भी दीवाने हैं कुछ कम नहीं “नवल”,

रखते हैं हौसला कि खुदा अपने पास हो।

 

 नवल किशोर कुमार फारवर्ड प्रेस में संपादक हैं ।

 

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