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योगीराज सिंह पटेल के चुनावी बैनर से डरते हैं विरोधी

इस साल फरवरी-मार्च में भारत के पांच राज्यों यूपी, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में विधानसभा का चुनाव होने वाला है। आचार संहिता लागू हो गयी है और नेता चुनाव जीतने के लिए अपने पुरजोर कोशिश में लगे हुए हैं। इस चुनावी सियासत में उत्तर प्रदेश का वाराणसी जिला भी अपने आप में महत्वपूर्ण है, […]

इस साल फरवरी-मार्च में भारत के पांच राज्यों यूपी, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में विधानसभा का चुनाव होने वाला है। आचार संहिता लागू हो गयी है और नेता चुनाव जीतने के लिए अपने पुरजोर कोशिश में लगे हुए हैं। इस चुनावी सियासत में उत्तर प्रदेश का वाराणसी जिला भी अपने आप में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है। और यहां भाजपा-सपा के लड़ाई के बीच कांग्रेस एवं निर्दलीय प्रत्याशी भी अपना भाग्य-भविष्य आजमा रहे हैं। निर्दलीय प्रत्याशियों में कुछ ऐसे भी प्रत्याशी हैं जो छात्र राजनीति के साथ-साथ जनता की समस्याओं को लेकर आये दिन सड़क को गरम करते रहते हैं। योगीराज सिंह पटेल भी एक ऐसे ही निर्दलीय विधायक प्रत्याशी हैं जो छात्र राजनीति के साथ-साथ किसानों, मजदूरों, दलितों, गरीबों और मजलूमों, शोषितों-पीड़ितों की समस्याओं की गहरी समझ रखते हैं, केवल समझ ही नहीं रखते हैं बल्कि उनके हक-हकूक मान-सम्मान के लिए आन्दोलन करते रहते हैं।

आचार संहिता तो अभी कुछ दिन पहले लागू हुई है लेकिन बनारस के सेवापुरी विधानसभा की सरगर्मी कई महीनों पहले से बढ़ी हुई है। पिछले साल 2021 के अक्टूबर माह में जब योगीराज सिंह पटेल ने अपने विधानसभा क्षेत्र में जगह-जगह चुनावी होर्डिंग्स लगवाए तो सत्ता पक्ष सहित अन्य विरोधी दलों की चिंता बढ़ गयी। अन्य विरोधी दलों की चिंता इस कदर बढ़ गयी कि योगीराज सिंह पटेल के जगह-जगह लगे चुनावी होर्डिंग्स को रात-बिरात फाड़ दिया गया या वह उतार ली गयी। विरोधी दलों के उक्त कारनामे यह सिद्ध करते हैं कि योगीराज सिंह पटेल अपने विधानसभा क्षेत्र में मजबूती से दावा ठोक रहे हैं। यदि जनता ने साथ दिया तो विधानसभा की कुर्सी भी मिलेगी। खैर हार-जीत तो चुनाव के अंग होते हैं।

[bs-quote quote=”योगीराज सिंह के राजनीतिक एजेंडे में जातिवार जनगणना, खेतीबाड़ी-मज़दूरी, एक-समान शिक्षा, सस्ती शिक्षा-स्वास्थ्य-सुरक्षा, निजीकरण का विरोध, पहले से निर्मित निजी कम्पनियों-संस्थानों में आरक्षण की मांग, बेरोज़गारी, महंगाई, बढते अपराध-अराजकता आदि को शामिल हैं । आपको बता दें कि  योगीराज सिंह चंदा मांगकर चुनाव लड़ रहे हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

योगीराज किसानों, मज़दूरों और छात्रों के हित के लिए संघर्ष करने वाले नेता हैं। इन्होंने अपना सर्वोच्च संघर्ष किसानों-मज़दूरों, गरीबों-मजलूमों व छात्र-हित के लिए किया है। किसान परिवार में जन्म लेने और किसान होने के नाते योगीराज किसानों के दर्द को बहुत अच्छे से समझते हैं। यही कारण है कि 2011 में योगीराज एक एनजीओ (गुड़िया) में डेढ़ साल नौकरी करने के बाद किसानों, मज़दूरों, छात्रों के हित के लिए काम करने लगे। वर्तमान में ये ‘पूर्वांचल किसान यूनियन’ नाम का एक संगठन भी चलाते हैं, जिसके स्वयं अध्यक्ष भी हैं। अभी हाल ही में भारत सरकार द्वारा वापस लिये गये तीन कृषि कानूनों के विरोध के कारण भी योगीराज चर्चा में रहे। इन्होंने संयुक्त किसान मोर्चा (नयी दिल्ली) के आह्वान पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व तीनों कृषि कानून का विरोध अपने संगठन के बैनर तले किया।

योगीराज सिंह के राजनीतिक एजेंडे में जातिवार जनगणना, खेतीबाड़ी-मज़दूरी, एक-समान शिक्षा, सस्ती शिक्षा-स्वास्थ्य-सुरक्षा, निजीकरण का विरोध, पहले से निर्मित निजी कम्पनियों-संस्थानों में आरक्षण की मांग, बेरोज़गारी, महंगाई, बढते अपराध-अराजकता आदि को शामिल हैं । आपको बता दें कि  योगीराज सिंह चंदा मांगकर चुनाव लड़ रहे हैं।

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योगीराज सिंह पटेल को करीब से जानने वाले पीएस-4 के प्रमुख छेदीलाल प्रजापति ‘निराला’ उनके बारे में बताते हैं कि, जब हमलोग धरना प्रदर्शन करते थे तो वे आ जाते थे। एक बार जिला पंचायत सदस्य थे, गांव- गांव में मीटिंग वगैरह अच्छे तरीके से करा लेते थे। अब अगर राजनीतिक लिहाज से देखा जाय तो उनके विधानसभा का दौरा किया जाय तब पता लगेगा। बाकी उनके विचार अच्छे हैं। उन्होंने किसानों को लेकर के पिछड़ों को लेकर के तमाम मुद्दों पर काम किया है और मुझे उम्मीद है अगर जनता उनके ऊपर भरोसा जताती है तो वे बेहतर प्रतिनिधित्व करेंगे।

योगीराज सिंह पटेल ने बीएचयू पूर्व छात्रनेता और भगतसिंह अम्बेडकर मंच के संयोजक सुनील यादव के साथ भी अनेक वर्षों तक काम किया है। अनेक मुद्दों पर दोनों का साझा संघर्ष बनारस के लोगों न्यू देखा है। सुनील यादव कहते हैं, ‘देखिये योगीराज पटेल एक ऐसे नेता हैं जिन्होंने किसानों और पिछड़ों के मुद्दों पर जमीनी स्तर से काम किया है। लेकिन यह थोड़ी दुविधाजनक स्थिति बनती दिखायी दे रही है, क्योंकि इसमें कोई शक नहीं है कि योगीराज पटेल एक बेहतर विकल्प हैं। लेकिन सवाल लोकतंत्र का है, और सरकार बनाने के लिए हमें पार्टी को वोट देना होगा। ऐसे कई लोग हैं जो योगीराज की तरह आन्दोलनकारी रहें हैं और वर्तमान में बेहतर के विकल्प के रूप में मौजूद हैं। लेकिन अभी की स्थिति में अच्छा प्रत्याशी बनाम भाजपा को हराने वाला प्रत्याशी ही विकल्प है। तो अच्छे प्रत्याशी के पक्ष में भावनात्मक रूप से रहने के बावजूद जो विकल्प भाजपा को हरा सके वह हमारी प्राथमिकता में होगा। अच्छे प्रत्याशियों के बारे में शायद हम किसी और दौर में सोच पायें। जाहिर है कि उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला राजतीनिक परिस्थियों को देखते हुए सोच समझ कर ही लिया होगा। मेरी तरफ से उन्हें ढ़ेरों शुभकामनाएं हैं।

देखा जाय तो योगीराज पटेल की राजनीतिक पारी मतदाताओं की अनेक उलझनों के साथ शुरू हो रही है। भाजपा के निरंकुश शासन के प्रत्यक्ष भुक्तभोगी इस समय अपना मत बिखरने नहीं देना चाहेंगे। किसी भी सूरत में भाजपा विरोधी लहर सत्ता परिवर्तन के लिए मतदाताओं की प्रतिबद्धता बनेगी। ऐसे में योगीराज पटेल जैसे किसानों मजदूरों के लिए प्रतिबद्ध उम्मीदवार की कसौटियाँ बढ़ गई हैं। स्थानीय सवालों को लेकर जिस तरह से उन्होंने संघर्ष किया है वह हर हाल में आगे बढ़ना चाहिए। उत्तर प्रदेश में आवारा पशुओं और नीलगायों के आतंक ने किसानों की नाक में दम कर रखा। खाद की अनुपलब्धता एक बड़ा मुद्दा है। कानून-व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है। किसानों को मुआवजे नहीं मिले और मांगने पर भी उन्हें कुछ नहीं मिला। कोविड के दौर में स्वास्थ्य व्यवस्था ने पूरी तरह से लोगों को निराश किया।

ऐसे अनेक मुद्दे हैं जिन्हें योगीराज बहुत शिद्दत से उठा सकते हैं। यह कहने में संकोच नहीं कि वे एक जेनुइन नेता हैं और सेवापुरी विधानसभा को जेनुइन नेता की जरूरत है।

राजकुमार गुप्ता सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

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