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मध्य प्रदेश चुनाव में सम्बंधों को दांव पर लगाकर बिछ रही है सियासत की बिसात

भोपाल (भाषा)। मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को विधानसभा चुनाव होंगे। आचार संहिता लागू होते ही राजनीतिक दलों ने चुनाव प्रचार तेज कर दिया है। कांग्रेस और बीजेपी के बीच यहां सीधा मुकाबला है। दोनों ही दल ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर सत्ता हासिल करना चाहते हैं। मध्यप्रदेश की कुछ विधानसभा सीटों पर अलग-अलग राजनीतिक […]

भोपाल (भाषा)। मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को विधानसभा चुनाव होंगे। आचार संहिता लागू होते ही राजनीतिक दलों ने चुनाव प्रचार तेज कर दिया है। कांग्रेस और बीजेपी के बीच यहां सीधा मुकाबला है। दोनों ही दल ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर सत्ता हासिल करना चाहते हैं। मध्यप्रदेश की कुछ विधानसभा सीटों पर अलग-अलग राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले एक ही परिवार के सदस्यों के बीच चुनावी लड़ाई देखने को मिल सकती है। सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी कांग्रेस ने रिश्तेदारों को टिकट देकर सत्ता की तलाश में एक-दूसरे से मुकाबले में खड़ा कर दिया है।

प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों के लिए होने वाले चुनाव में भाई, चाचा-भतीजा, देवर-भाभी, समधि आदि निकट एवं दूर के रिश्तेदार आमने-सामने खड़े हो गए हैं।

पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और नर्मदापुरम से भाजपा उम्मीदवार सीताशरण शर्मा का मुकाबला उनके भाई गिरिजाशंकर शर्मा से है, जो कांग्रेस के उम्मीदवार हैं।

भाजपा के पूर्व विधायक गिरिजाशंकर शर्मा ने हाल ही में अपनी पार्टी बदल दी और सत्तारूढ़ दल द्वारा टिकट देने से इनकार करने के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए।

सागर विधानसभा सीट पर कांग्रेस की निधि सुनील जैन का मुकाबला अपने जेठ और मौजूदा भाजपा विधायक शैलेन्द्र जैन से है। निधि जैन, शैलेंद्र जैन के छोटे भाई और देवरी से कांग्रेस के पूर्व विधायक सुनील जैन की पत्नी हैं।

इसी तरह रीवा जिले के देवतालाब में कांग्रेस ने पद्मेश गौतम को भाजपा विधायक और वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम के खिलाफ मैदान में उतारा है, गिरीश गौतम पद्मेश के चाचा हैं। पद्मेश गौतम ने इससे पहले पंचायत चुनाव में मौजूदा विधायक के बेटे राहुल गौतम को हराया था।

एक अन्य अंतर-पारिवारिक चुनावी लड़ाई में मौजूदा भाजपा विधायक और पार्टी उम्मीदवार संजय शाह हरदा जिले के टिमरनी में अपने भतीजे कांग्रेस के अभिजीत शाह के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। अभिजीत शाह दूसरी बार अपने चाचा के खिलाफ मैदान में हैं।

ग्वालियर जिले के डबरा में भाजपा की पूर्व राज्य मंत्री इमरती देवी अपने रिश्तेदार और मौजूदा कांग्रेस विधायक सुरेश राजे से मुकाबला कर रही हैं। भाजपा सूत्रों ने कहा कि इमरती देवी की भतीजी की शादी राजे के परिवार में हुई है।

इन सीटों पर एक-दूसरे के खिलाफ रिश्तेदारों को मैदान में उतारने के बारे में पूछे जाने पर प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी ने पीटीआई भाषा से कहा कि मध्यप्रदेश भाजपा के लिए एक परिवार है। पार्टी कार्यकर्ता इस परिवार का हिस्सा हैं। पार्टी एक उपयुक्त कार्यकर्ता को मैदान में उतारने के बारे में निर्णय करती है।

चतुर्वेदी ने कहा कि कांग्रेस एक वंशवादी पार्टी है जहां सभी प्रमुख निर्णय एक परिवार द्वारा लिया जाता है जबकि भाजपा एक कैडर-आधारित संगठन है।

रिश्तेदार बनाम रिश्तेदारों की चुनावी लड़ाई के बारे में पूछे जाने पर मप्र कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष के के मिश्रा ने इसे महज संयोग बताया।

मिश्रा ने कहा कि अलग-अलग विचारधारा वाले लोग एक छत के नीचे रह सकते हैं और यही लोकतंत्र की खूबसूरती है। तो यह संयोग चुनावी मैदान में भी हो सकता है।

उन्होंने कहा कि राजनीतिक और वैचारिक मतभेदों के बावजूद प्रतियोगियों के बीच वसुधैव कुटुंबकम (दुनिया एक परिवार है) की भावना बनी रहनी चाहिए।

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीति के जानकार आनंद पांडे ने कहा कि यह विचारधाराओं की लड़ाई नहीं है, बल्कि सत्ता और पद पाने की लड़ाई है।

उन्होंने कहा कि राजनीति नई दिशा में जा रही है। दोनों शर्मा भाई (सीताशरण और गिरिजाशंकर) नर्मदापुरम में एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं, भाजपा विधायक थे और उनमें से एक अब दूसरी पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं क्योंकि उन्हें टिकट नहीं दिया गया है।

उन्होंने कहा कि इसी तरह सागर, टिमरनी और देवतालाब में भी परिवार के करीबी सदस्य एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं।

पांडे ने कहा कि राज्य में इतने बड़े पैमाने पर ऐसा पहली बार हो रहा है जब भाइयों और करीबी रिश्तेदारों ने राजनीति और सत्ता के खेल को अपने संबंधों से ऊपर रखा है।

पांडे ने कहा कि पहले एक ही परिवार के सदस्य अलग-अलग पार्टियों में होते थे, लेकिन विधानसभा में प्रवेश के लिए उनके बीच सीधी लड़ाई दुर्लभ थी।

मध्यप्रदेश में एक चरण में 17 नवंबर को मतदान होगा और मतों की गिनती तीन दिसंबर को होगी।

मीडिया रिपोर्ट्स के मानें तो हुजूर, दक्षिण, बैरसिया और उत्तर जेसी सीटों पर त्रिकोणीय मुकबला भी देखने को मिल सकता है। टिकट न मिलने से कांग्रेस के नाराज दावेदार चुनाव में उतरकर खेल बिगाड़ सकते हैं। बीते गुरुवार को नामों का एलान होते ही कांग्रेस प्रत्याशियों के समर्थको ने जमकर जश्न मनाया था।

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