Sunday, October 13, 2024
Sunday, October 13, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमस्वास्थ्यअस्पतालों में गर्भवती को पीटा जाता है... उन्हें अश्लील गालियां दी जाती...

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

अस्पतालों में गर्भवती को पीटा जाता है… उन्हें अश्लील गालियां दी जाती हैं

भारत में गर्भवती महिलाओं के साथ अस्पतालों में बेहद अमानवीय व्यवहार होता है। उन्हें पीटा जाता है और अश्लील गालियां दी जाती हैं। सरकारी हो या प्राइवेट अस्पताल ज्यादातर जगह गर्भवती महिलाओं के साथ बडी बेरहमी से पेश आया जाता है। आए दिन हमें खबरों में लेबर रूम से जुड़ी दर्दनाक और अमानवीय खबरें पढ़ने […]

भारत में गर्भवती महिलाओं के साथ अस्पतालों में बेहद अमानवीय व्यवहार होता है। उन्हें पीटा जाता है और अश्लील गालियां दी जाती हैं। सरकारी हो या प्राइवेट अस्पताल ज्यादातर जगह गर्भवती महिलाओं के साथ बडी बेरहमी से पेश आया जाता है। आए दिन हमें खबरों में लेबर रूम से जुड़ी दर्दनाक और अमानवीय खबरें पढ़ने को मिलती हैं। ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में काफी बुरी स्तिथि है। वहां नर्स और डॉक्टर दोनो ही प्रसूता के साथ बेहद बुरा व्यवहार करती हैं। जहां सबसे ज्यादा देखभाल और अपनेपन की जरूरत होती है वहां प्रसूताओं को अश्लील गालियां मिलती हैं।

जब एक महिला गर्भवती होती है तो बच्चे और उसकी मां के लिए मंगलकामनाएं की जाती हैं लेकिन अस्पताल में उसी प्रसूता को जब सबसे ज्यादा स्नेह और संवेदनशीलता की जरूरत होती है तब उसे अश्लील गालियों से लेकर थप्पड़ तक मिलते हैं। गर्भावस्था में तमाम तकलीफें झेलकर भी वो अपने बच्चे को लेकर सुखद कल्पनाएं करती है। लेकिन पहले से ही घबराई महिला प्रसव पीड़ा होने पर जब मेटरनिटी वार्ड में पहुंचती है तब शॉक्ड हो जाती है। पहले से ही भयंकर प्रसव पीड़ा से जूझ रही महिला को नर्सों और डॉक्टर के द्वारा डांटा, फटकारा और अपमानित किया जाता है। प्रसव पीड़ा से जूझ रही महिला को इंसान ही नहीं समझा जाता।

यह भी पढ़ें…

विद्रोही रोने नहीं देते गुस्से से भर देते हैं!

कहीं कहीं तो उन्हें थप्पड़ और घूंसे मारे जाते हैं। बाल खींचे जाते हैं। प्रसव के वक्त तो वे सब ऐसे व्यवहार करती हैं जैसे प्रसूता कोई जीती जागती इंसान नहीं मानो कोई पुतला हो। कोई कहीं भी थप्पड़ मार रही हैं, तो कोई पेट पर जोर से दबा रही है, कोई मुंह पकड़ रही है तो कोई बाल, जोर से नोच भी रही हैं। बच्चे की सिर की स्थिति जानने के लिए अपनी उंगलियां बेरहमी से प्रसूता के शरीर में घुसा देती हैं। जब बच्चा बाहर आता है तो उनकी खींचतान और लापरवाही की वजह से महिला को बेहद दर्द से गुजरना पड़ता है और कभी कभी तो बच्चे की जान पर संकट आ जाता है। प्यार और सहयोग तो दूर की बात है।

महिलाओं ने बताई आपबीती

कई महिलाओं ने बताया कि जब वो अस्पताल में प्रसव पीडा से तडप रही थी तो नर्सों ने उन्हें लगातार थप्पड लगाते हुए उनके दर्द का मजाक उड़ाया और कहा- “अब क्यों चीख रही हो, ये पति के साथ सोने से पहले नहीं सोचा तो अब क्यों चिल्ला रही हो।”

कुछ महिलाएं चेकअप के वक्त झिझकती हैं और उन्हें नर्सों और डॉक्टर के सामने शर्म आती है तो उन्हें प्यार से समझाने की बजाय वे बेहद अश्लील बातें बोलती हैं कि ” जब ये सब किया था तब शर्म नहीं आई, अब बच्चा पैदा करने में कितना नाटक कर रही है। बच्चा पैदा नहीं करना था तो मजे लेने से पहले सोचती।”

यह भी पढ़ें…

क्या भाजपा को महिला शक्ति का एहसास हो गया है?

पूरा स्टाफ दर्द से कराहती महिला पर हंसता है, चिल्लाता है, मजाक उड़ाता है। कितने दुःख, शर्म और गुस्से की बात है कि जहां प्यार, सम्मान, धैर्य और देखभाल होना चाहिए था वहां अमानवीयता फैली हुई है। जहां प्रसूता से मुस्करा कर बात करनी चाहिए थी, जहां धैर्य के साथ उसे नवजात शिशु के जन्म की प्रक्रिया पूरी करवानी चाहिए थी वहां उसे गालियां दी जा रही हैं।

जिस महिला को प्रसव पीड़ा की वजह से जीवन का सबसे खौफनाक अनुभव हो रहा हो उसे अस्पताल के असंवेदनशील स्टाफ के लोग और खौफनाक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते।

यहां तक कि जो नर्स गर्भवती महिला से विनम्रता से पेश आती है उसका वहीं या फिर बाद में मजाक उड़ाया जाता है कि “ये बड़ी दयालु बन रही थी, एक थप्पड़ मारना चाहिए था उस औरत को,कितना चिल्ला रही थी वो। देखते हैं तुम कब तक दयालु बनी रहेगी, एक दिन तो जरूर हाथ उठाओगी।“

अगोरा प्रकाशन की किताबें अब किन्डल पर भी…

अस्पताल का प्रबंधन बेहद खराब

अस्पताल में न सिर्फ स्टाफ का व्यवहार बेहद खराब होता है बल्कि अस्पताल की बिल्डिंग, कमरे, टॉयलेट, फर्श और चिकित्सा उपकरणों तक खराब हालत में होते हैं। कहीं लेबर रूम नहीं है, कहीं पर्दे गायब है, कहीं पंखे ही नहीं है और अगर हैं तो खराब हालत में। कहीं पानी मांगने पर पानी नहीं दिया जाता और महिलाओं की निजता का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखा जाता है कोई भी आते जाते उन्हें देख सकता है।

कहीं तो पलंग न होने की वजह से नवप्रसूता स्त्रियाँ जमीन पर ही नवजात शिशु के साथ लेटी दिखाई देती हैं या एक ही पलंग पर दो महिलाएं अपने नवजात शिशु के साथ होती हैं। साफ-सफाई का बेहद अभाव होता है। स्टाफ खुद स्वच्छता के तय मानकों का पालन नहीं करता। अस्पताल के कमरों से लेकर टॉयलेट तक में फैली गंदगी की वजह से प्रसूता और उसके नवजात शिशु को संक्रमण होने का खतरा बना रहता है। और तो और कई अस्पतालों में कुत्ते या बंदरों का भी प्रकोप होता है।

अगोरा प्रकाशन की किताबें अब किन्डल पर भी…

सरकार द्वारा जारी किए दिशा निर्देशों का नहीं होता पालन

सरकार ने अस्पतालों में होने वाले दुर्व्यवहार पर जो ‘लक्ष्य दिशा-निर्देश’ ज़ारी किए हैं, उनमें माना गया है कि प्रसूति की देखभाल सम्मानजनक तरीके से होनी चाहिए जिसका अभी अभाव है. जो दिशा निर्देश जारी हुए हैं उनका दूर दूर तक कोई पालन नहीं होता।

निर्देशों में कहा गया है कि:

  • प्रसव के दौरान महिला को उसकी कंफर्टबेल पोजिशन में रहने दिया जाए।
  • प्रसव पीड़ा के दौरान परिवार जन साथ रहें
  • प्रसव पीड़ा के दौरान महिला को अलग लेबर रूम या अन्य तरीके से प्राइवेसी दी जाए।
  • गर्भवती महिला के साथ मौखिक और शारीरिक दुर्व्यवहार न किया जाए।
  • गर्भवती महिला को टेबल पर न लिटाकर लेबर बेड पर लिटाया जाए।
  • बच्चा पैदा होने की खुशी में उनसे पैसे की मांग न की जाए।

अस्पताल के अन्दर घूमते हैं आवारा कुत्ते

इन निर्देशों के बाबजूद अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं के साथ क्रूरता जारी है और उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं। आखिर क्यों मेडिकल की पढ़ाई के दौरान सॉफ्ट स्किल की ट्रेनिंग नहीं दी जाती। उन्हें सही ट्रेनिंग दी जाने की जरूरत है ताकि वे मरीज के प्रति संवेदनशील रहें। मरीजों से प्यार और धैर्य के साथ पेश आने का प्रशिक्षण उन्हें समय समय पर दिया जाना चाहिए ताकि ये उनके व्यवहार में आ जाए। दूसरा ये भी होना चाहिए की प्रसूता स्त्री अपने पार्टनर या जिस भी परिवार जन को लेबर रूम में अपने साथ बुलाना चाहे उन्हें अंदर जाने की अनुमति होनी चाहिए।

ये सही है कि नर्सों पर काम का बहुत प्रेशर होता है। अस्पताल में उनके काम करने लायक सही वातावरण नहीं होता। सभी संसाधन नहीं होते। पर बात संवेदनहीनता की है। कई डॉक्टर्स पर नर्सों जितना प्रेशर नहीं होता है तब भी वे प्रसूताओं के साथ बेहद कठोर और भावनाशून्य तरीके से पेश आते हैं। अस्पताल के पूरे स्टाफ को गर्भवती महिलाओं के साथ सम्मान से बात करने की तमीज और ट्रेनिंग हो। लेबर रूम को टॉर्चर रूम नहीं बनाया जाए। प्रसव पीड़ा से लगभग अधमरी हो चुकी उन स्त्रियों से बेहद विनम्रता और प्यार के साथ पेश आना चाहिए।

ग्वालियर की नीलम स्वर्णकार स्वतंत्र लेखक हैं।

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।
1 COMMENT
  1. भयावह है ये। एक बार किसी सरकारी अस्पताल के मेटरनिटी वार्ड में गई थी मैं ,वहां जो देखा वो देखकर शॉक्ड हो गई थी। बहुत डरावना माहौल था।
    रोती हुई प्रेगनेंट औरतों पर नर्स चिल्ला रही थीं। पंखे बहुत धीमे धीमे चल रहे थे। पर्दे भी सब जगह नहीं थे। सबके सामने खुले में उनका चेकअप हो रहा था। साड़ी भी नहीं ढकने दे रही थी कि “खुला रखो, बार बार उपर करना पड़ता है।” सारी औरतों को एक साथ बिना पर्दे के कमर से नीचे बिना कपड़ों के रखा हुआ था। बहुत गंदी गंदी गालियां दे रही थी प्रेगनेंट औरतों को।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here