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ग्राउंड रिपोर्ट

इंडिया के खिलाफ मनोवैज्ञानिक युद्ध है ‘इस बार 400 पार’ का दावा जबकि सामाजिक न्याय के मुद्दे पर हार सकती है भाजपा

अबकी बार 400 पार का' जो नारा उछाला, उसका समर्थन करते हुए अमित शाह से लेकर भाजपा के बाकी कनिष्ठ-वरिष्ठ नेताओं ने शोर मचाना शुरू कर दिया कि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को 370 और राजग 400 से अधिक सीटें मिलेंगी और देश, विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था बनेगा। मोदी के दावे के बाद मीडिया में सर्वेक्षणों की बाढ़ भी आ गई, जिसमें उनके दावे को सही ठहराने का बलिष्ठ प्रयास हुआ। दरअसल मोदी ने 400 पार के ज़रिए विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' के खिलाफ एक मनोवैज्ञानिक युद्ध छेड़ा है। भाजपा के लिए 2024 में 200 सीटें पाना भी मुश्किल है। उनके दावे को खारिज़ करने वालों का मानना है कि चूंकि मोदी ने राजसत्ता का बेइंतहा दुरुपयोग किया है और हारने पर उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं, इसलिए जीतने के लिए उद्भ्रांत होकर एक मनोवज्ञानिक युद्ध छेड़ा है।

दस फरवरी को 17वीं लोकसभा के आखिरी सत्र का समापन हो गया। इस सत्र में जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी ने 400 सीटों के साथ तीसरी बार सत्ता में आने का उद्घोष किया, उससे यह एक अभूतपूर्व सत्र बन गया। कारण, इसके पूर्व किसी भी प्रधानमंत्री ने अंतिम सत्र की समाप्ति के पूर्व ऐसा दावा नहीं किया था।

इस सत्र में प्रधानमंत्री ने ‘अबकी बार 400 पार का’ जो नारा उछाला, उसका समर्थन करते हुए अमित शाह से लेकर भाजपा के बाकी कनिष्ठ-वरिष्ठ नेताओं ने शोर मचाना शुरू कर दिया कि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को 370 और राजग 400 से अधिक सीटें मिलेंगी और देश, विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था बनेगा। मोदी के दावे के बाद मीडिया में सर्वेक्षणों की बाढ़ भी आ गई, जिसमें उनके दावे को सही ठहराने का बलिष्ठ प्रयास हुआ।

कुल मिलाकर 10 फरवरी को समाप्त हुए सत्र में ऐसा माहौल बनाने का प्रयास हुया कि अगला लोकसभा चुनाव महज एक औपचारिकता है: मोदी पहले से कहीं ज्यादा बहुमत के साथ तीसरी बार सत्ता मे आ रहे हैं। वह तीसरी बार सत्ता में आ रहे हैं… यह संदेश देने के लिए उन्होंने एक बिजनेस समिट में कह दिया कि मैं तीसरे कार्यकाल का रोड मैप बना रहा हूं, काम जारी है और 20-30 दिनों में अंतिम रूप लेगा। नया भारत सुपर स्पीड के साथ काम करेगा, यह मोदी की गारंटी है।‘

किंतु मोदी और उनके समर्थक 400 पार का जितना भी दावा करें अधिकतर राजनीतिक विश्लेषकों ने उनके दावे को हास्यास्पद व असंभव करार दे दिया है।

ऐसा करने वालों का कहना है कि मोदी ने 400 पार के ज़रिए विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के खिलाफ एक मनोवैज्ञानिक युद्ध छेड़ा है। भाजपा के लिए 2024 में 200 सीटें पाना भी मुश्किल है। उनके दावे को खारिज़ करने वालों का मानना है कि चूंकि मोदी ने राजसत्ता का बेइंतहा दुरुपयोग किया है और हारने पर उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं, इसलिए वह जीतने के लिए उद्भ्रांत होकर एक मनोवज्ञानिक युद्ध छेड़ा है।

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किंतु ढेरों राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा मोदी के दावे को पूरी तरह खारिज़ किए जाने बावजूद भाजपा और उसकी समर्थक मीडिया अगली बार 400 पार का संदेश देने में जोर-शोर से जुटी हुई हैं। बहरहाल, एकाधिक कारणों से भाजपा 2024 में इतिहास दोहराने जा रही है, ऐसा बहुत से लोगों का मानना है।

जिन कारणों से भाजपा का 2004 के ‘शाइनिंग इंडिया’ जैसा हस्र हो सकता है, उनमें प्रमुख है, 2024 में उठता सामाजिक न्याय का बवंडर! भारत के चुनावी इतिहास की यह परीक्षित सच्चाई है कि चुनाव सामाजिक न्याय पर केंद्रित होने से भाजपा कभी जीत ही नहीं सकती। वह हार वरण करने के लिए बराबर अभिशप्त रहती है। मोदी राज में चुनाव सिर्फ दो बार सामाजिक न्याय पर केंद्रित हुआ और दोनों ही बार मोदी की अपार लोकप्रियता के बावजूद भाजपा चुनाव हारने के लिए विवश रही।

2014 से अबतक जो दो चुनाव सामाजिक न्याय पर केंद्रित हुए, वे रहे 2015 का बिहार और 2023 का कर्नाटक विधानसभा चुनाव। अज्ञात कारणों से इन दोनों चुनावों को छोड़कर विपक्ष ने किसी भी चुनाव को सामाजिक न्याय पर केंद्रित ही नहीं किया और भाजपा जीत दर्ज करने में सफल रही। किंतु भाजपा के दुर्भाग्य और राहुल गांधी के प्रयास से 2024 का चुनाव अभूतपूर्व रूप में सामाजिक न्याय पर केंद्रित होने जा रहा है।

जहां तक सामाजिक न्याय का सवाल है, इसका एजेंडा हिंदू धर्म के जन्मजात वंचितों को शक्ति के समस्त स्रोतों (आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक और धार्मिक) में संख्यानुपात में हिस्सेदारी दिलाने तक प्रसारित होना चाहिए था। कारण, वर्ण-व्यवस्था उर्फ हिंदू आरक्षण व्यवस्था के तहत दलित, आदिवासी, पिछड़ों और इनसे धर्मांतरित तबकों को सदियों से शक्ति के समस्त स्रोतों से बहिष्कृत करके ही सामाजिक अन्याय की खाई मे धकेला गया। ऐसे में जब वर्ण-व्यवस्था के वंचितों को सामाजिक अन्याय की खाई से निकालने के लिए, सामाजिक न्याय का अभियान शुरू हुआ, तब  वंचितों को समस्त क्षेत्रों में ही हिस्सेदारी दिलाने का एजेंडा सामने आना चाहिए था।

किंतु अबतक सामाजिक न्याय के नाम पर मुख्यतः शिक्षण संस्थानों के प्रवेश, नौकरियों और प्रमोशन इत्यादि में ही आरक्षण दिलाने का एजेंडा सामने आया। शक्ति का दूसरा स्रोत राजनीति की संस्थाओं में सिर्फ दलित और आदिवासियों को हिस्सेदारी मिली, पिछड़ों को इससे महरूम रखा गया। शक्ति का एक स्रोत धर्म भी है, जिसकी अहमियत डॉ. आंबेडकर के हिसाब से आर्थिक शक्ति के समतुल्य है। किंतु सरकारों द्वारा इस सेक्टर में वंचितों को उनका प्राप्य दिलाने का प्रावधान नहीं किया गया।

अपवाद रूप से हाल के दिनों में एमके स्टालिन सरकार द्वारा तमिलनाडु के 36 हजार मंदिरों के पुजारियों की नियुक्ति में आरक्षण का प्रावधान किया गया, जिसके खिलाफ हिंदू आरक्षण का सुविधाभोगी वर्ग कोर्ट में चल गया और मामला अबतक लटका हुआ है। बहरहाल, स्वाधीन भारत के इतिहास में पहली बार कांग्रेस द्वारा सामाजिक न्याय का मुकम्मल एजेंडा देने का प्रयास फरवरी, 2023 में रायपुर में आयोजित पार्टी के 85वें अधिवेशन से शुरू हुआ, जो अब तुंग की ओर अग्रसर होता दिख रहा है।

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रायपुर अधिवेशन में कांग्रेस ने सामाजिक न्याय का जो पिटारा खोला, उसमें उच्च न्यायपालिका में वंचित वर्गों को आरक्षण देने तथा आम बजट में इनके लिए हिस्सा निर्धारित करने का प्रस्ताव पारित हुआ। साथ ही जाति जनगणना कराने, एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों के शैक्षणिक संस्थानों में भेदभाव दूर करने के लिए ‘रोहित वेमुला अधिनियम बनाने, राजनीति में महिला आरक्षण में कोटा लागू करने, संगठन में वंचित वर्गों को वाजिब प्रतिनिधत्व देने जैसे कई अन्य क्रांतिकारी प्रस्ताव पास हुए।

इसके कुछ माह बाद कर्नाटक विधानसभा में कांग्रेस ने चुनाव को सामाजिक न्याय पर केंद्रित कर भाजपा को मात दे दिया। कर्नाटक में कई महत्वपूर्ण बातों के साथ आरक्षण का 50 प्रतिशत दायरा तोड़कर उनकी सीमा 75 प्रतिशत तक करना बहुत महत्वपूर्ण कदम रहा। कर्नाटक चुनाव के बाद कांग्रेस ने 9 अक्टूबर, 2023 को कार्यकारिणी की बैठक में देश की धन-संपदा (असेट्स) में वंचित वर्गों को हिस्सेदारी देने, आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा खत्म करने, जातिवार जनगणना के साथ देशव्यापी आर्थिक सर्वे कराने की घोषणा कर सामाजिक न्याय को थोड़ा और विस्तार दिया।

बीते 14 जनवरी से शुरू हुए ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ से राहुल गांधी रायपुर-कर्नाटक से आगे बढ़े सामाजिक न्याय के एजेंडे को जिस तरह धार देने मे जुटे हैं, उससे अगले लोकसभा चुनाव को उस सामाजिक न्याय पर केंद्रित होने की भारी संभावना उजागर हो गई, जिसके समक्ष भाजपा चुनाव हारने के लिए सदा विवश रही है। न्याय यात्रा में जिस तरह राहुल गांधी पुरजोर तरीके से धन के न्यायपूर्ण बंटवारे के साथ कंपनियों, मीडिया, हास्पिटल, प्राइवेट यूनिवर्सिटीज मे दलित, आदिवासी, पिछड़ों के हिस्सेदारी इत्यादि का सवाल खड़ा कर रहे हैं, जिस तरह अग्निवीरों को न्याय दिलाने का आश्वासन  दे रहे हैं, जिस तरह सत्ता में आने पर मोदी के उद्योगपति मित्रों को औने-पौने दामों में बेची गई कंपनियों का हिसाब मांगने इत्यादि की बातें उठा रहे हैं, उससे सामाजिक न्याय का अभूतपूर्व बवंडर उठने के आसार पैदा हो गए हैं।

आज राहुल गांधी पांच (युवा, भागीदारी, नारी, किसान और श्रमिक) न्याय के ज़रिए भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय का वैसा ही बवंडर पैदा करने जा रहे हैं, जैसा कभी जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी की तानाशाही और वीपी सिंह ने राजीव गांधी के खिलाफ बोफर्स का मुद्दा उठा कर बनाया किया था। लेकिन जेपी और वीपी के मुद्दे चिरस्थायी नहीं रहे, पर राहुल गांधी द्वारा उठाया जा रहा आर्थिक और सामाजिक न्याय का मुद्दा भारतीय राजनीति का सबसे चिरस्थाई मुद्दा बनने जा रहा है।

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यह बवंडर तभी थमेगा जब देश के धन-दौलत में दलित, आदिवासी, पिछड़ों को उनका हक मिलने के साथ मीडिया, हास्पिटल, प्राइवेट यूनिवर्सिटीज इत्यादि में उनकी वाजिब हिस्सेदारी दिखने लगेगी। जिस तरह भाजपा चुनाव-दर-चुनाव राम मंदिर निर्माण का सपना देकर अप्रतिरोध्य बन गई, उसी तरह कांग्रेस ‘इंडिया’ को साथ लेकर सामाजिक न्याय के विस्तृत एजेंडे को नए सिरे से भारत की सत्ता पर सुदीर्घकाल के लिए काबिज होने जा रही है।

मोदी को राहुल द्वारा पैदा किए जा रहे सामाजिक न्याय के बवंडर का इल्म बहुत पहले से हो चुका है, इसलिए वह नीतीश, मायावती और हेमंत सोरेन के ज़रिए ‘इंडिया’ को छिन्न-भिन्न करने में जुट गए हैं। किंतु गोदी मीडिया मोदी को जितना भी ‘अपराजेय’ बताए, सोशल मीडिया के ज़रिए उनकी वंचित विरोधी चाल से सामाजिक अन्याय का शिकार तबका अवगत हो चुका है। इस तबके को साफ दिखाई पड़ रहा हैं कि जिस तरह पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के इमरान खान को सत्ता में आने से रोकने के लिए तरह-तरह का विघ्न पैदा किया गया, वही सब भारत में ‘इंडिया’ की आशा और आकांक्षा का केंद्र बन चुके राहुल गांधी और हेमंत सोरेन, तेजस्वी यादव जैसे सामाजिक न्याय के नायकों को रोकने के लिए किया जा रहा है।

ऐसे में मोदी की साजिशों से ‘इंडिया’ को छिन्न-भिन्न होते देख भारत की 90 प्रतिशत वंचित आबादी इंडिया के झंडे को अपने हाथों में लेने जा रही है। जिस तरह पाकिस्तान की अवाम ने जेल की सलाखों के पीछे कैद इमरान को वोटों से लाद दिया, वैसा ही कुछ भारत में भी होने जा रहा है। भारत की जनता भी पाकिस्तानी अवाम से प्रेरणा लेकर राहुल, सोरेन, तेजस्वी जैसे सामाजिक न्याय के नायकों वोटों से लादने का मन बना रही है। ऐसे में भाजपा 2004 के शाइनिंग इंडिया का हस्र देखने के लिए विवश हो सकती, ऐसा इस लेखक सहित ढेरों लोगों का ख्याल है।

एच एल दुसाध
एच एल दुसाध
लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.

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