वाराणसी। ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन (ग्रापए) के प्रदेश अध्यक्ष सौरभ कुमार ने कहा कि पत्रकारिता के तह में जाकर खंगालें तो कहीं न कहीं ऐसे आंचलिक पत्रकार जरूर मिल जाएंगे, जो सतह की पत्रकारिता करते हैं। वह पत्रकारिता, जिसका सीधा सरोकार हमारे गांवों से है। गांव-गरीब के सरोकार ही पत्रकारिता के लक्षित साध्य होता है। वैचारिक स्तर पर, बौद्धिक कुशलता के मानदंडों पर, ऐसे आंचलिक पत्रकार भले कोई तीर-तोप चलाने में माहिर न माने जाएं, मगर अपने जीवन स्थितियों से जिस तरह जूझते हुए खाटी खबरों की दुनिया को वह आबाद करते हैं, उसका कद अपने आप सबसे ऊंचा हो जाता है।
सौरभ कुमार ने बुधवार को मलदहिया स्थित पटेल धर्मशाला सभागार में कार्य समिति के सदस्यों और प्रदेश भर से आए ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के पदाधिकारियों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आंचलिक पत्रकारों की अभिव्यक्ति की आजादी के लिए संस्था के संस्थापक स्व.बालेश्वर लाल जी ने जो मशाल जलाई है, वह कभी बुझने वाली नहीं है। आंचलिक पत्रकारों के उत्थान के लिए उन्होंने जो सपने बुने थे, उन्हें साकार करना हम सभी की प्रतिबद्धता है। अफसोस यह है कि हमारे देश में गांव की आवाज सुनने के लिए न नेता तैयार है और न ही वो पत्रकार जिनका नाम लेकर हम आप अघाते नहीं हैं। सही मायने पत्रकारिता के असली हीरो वो नहीं आंचलिक हैं।
[bs-quote quote=”विजय विनीत ने कहा कि किसानों और कामगारों की व्यथा-कथा जानने और उसके गांवों को राह दिखाने में आंचलिक मीडिया से ही अब कुछ उम्मीदें रह गई हैं। तमाम मुश्किलों के बावजूद आंचलिक पत्रकार डटकर खबरें लिखते हैं। चाहे शोषित समाज के साथ दुर्व्यवहार का मामला हो, खराब मूलभूत सुविधाएं हों, नरेगा की जांच पड़ताल हो, पंचायतों के काम करने के तरीके पर टिप्पणी हो, या फिर सूखे की मार से परेशान किसानों और आम आदमी की समस्या हो। इसके बावजूद सबसे ज्यादा दमन और उत्पीड़न आंचलिक पत्रकारों का किया जा रहा है। ” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि अगर पत्रकारिता जिंदा है तो सिर्फ आप सभी के दम पर। गौर कीजिए गांव की पत्रकारिता में किसका और कितना हस्तक्षेप रहा है? अखबारों के तहों में जाकर खंगालें तो कहीं न कहीं ऐसे आंचलिक पत्रकार जरूर मिल जाएंगे, जो वैचारिक स्तर पर, बौद्धिक कुशलता के मानदंडों पर खबरें लिखते हैं। उन्होंने आंचलिक पत्रकारों का आह्वान किया कि समाज को बदलने और अपने हितों के लिए संघर्ष करने के लिए एकजुटता का परिचय दें।
ग्रापए के प्रदेश संरक्षक एवं वरिष्ठ पत्रकार विजय विनीत ने कहा कि आंचलिक पत्रकार जीवन भर शापित होता है, फिर भी प्रजातंत्र के लिए लड़ता रहता है। वह तो किसानों की समस्याओं, कुपोषण, आदिवासी क्षेत्रों और जनकल्याणकारी योजनाओं की आवाज बनने में जुटा रहता है। वास्तविक चित्रण करता है। सामाजिक चेतना, गंभीर आर्थिक विषमता, जनसामान्य के प्रति संवदेना जागृत करने के लिए ऑडियो, वीडियो, मूवीज, कार्टून फिल्म, फोटो, नाटक के माध्यम से देश के मेहनतकशों की मुश्किलों का साथी बना रहता है। उन्होंने कहा कि आंचलिक पत्रकारों के दिलों में ग्रामीण परिवेश और ग्रामीण जन के प्रति भारतीय जनमानस में गहरी संवेदनाएं हैं। प्रेमचंद, रेणु, शरतचंद्र, नागार्जुन जैसे मूर्धन्य साहित्यकारों ने ग्रामीण परिवेश पर काफी कुछ लिखा है, परंतु इन दिनों ग्रामीण पत्रकारिता की दयनीय स्थिति काफी कचोटती है।
[bs-quote quote=”आंचलिक पत्रकार, ग्रामीण विकास की धुरी है। अंधेरी झोपड़ी व भूखे पेट की कसक को अपनी संपूर्ण क्षमता से उजागर करता है। साथ ही सत्य की रक्षा करता है। आंचलिक पत्रकारों का जीवन बेहद कठिन होने के बावजूद अपने पथ से कभी डिगता नहीं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
विजय विनीत ने कहा कि किसानों और कामगारों की व्यथा-कथा जानने और उसके गांवों को राह दिखाने में आंचलिक मीडिया से ही अब कुछ उम्मीदें रह गई हैं। तमाम मुश्किलों के बावजूद आंचलिक पत्रकार डटकर खबरें लिखते हैं। चाहे शोषित समाज के साथ दुर्व्यवहार का मामला हो, खराब मूलभूत सुविधाएं हों, नरेगा की जांच पड़ताल हो, पंचायतों के काम करने के तरीके पर टिप्पणी हो, या फिर सूखे की मार से परेशान किसानों और आम आदमी की समस्या हो। इसके बावजूद सबसे ज्यादा दमन और उत्पीड़न आंचलिक पत्रकारों का किया जा रहा है।
प्रदेश महासचिव महेंद्र नाथ सिंह ने किसी खबर पर नौकरशाही आंख तरेरती है तो आंचलिक पत्रकारों को एकजुट होकर उन्हें कड़ा जवाब देने की जरूरत है। आंचलिक पत्रकार हर मुश्किल का सामना कर दूर दराज के क्षेत्रों में जाते हैं, जहां बड़े-बड़े अखबारों के संवाददाता नहीं पहुंच पाते। उनके खबर लिखने का अंदाज भी काफी अलग होता है। वो अपने अखबार में नकारात्मक खबर ही नहीं, सकारात्मक खबरें भी छापते हैं। मौजूदा दौर में आज सबसे बड़ा सवाल आंचलिक पत्रकारों को पहचान देने का है। उन्होंने कहा कि आंचलिक पत्रकारों को अपने अधिकारों की लड़ाई खुद लड़नी है। बगैर संगठन और एकता के यह लड़ाई नहीं जीती जा सकती है।
प्रदेश महासचिव देवी प्रसाद गुप्त ने कहा कि आंचलिक पत्रकार, ग्रामीण विकास की धुरी है। अंधेरी झोपड़ी व भूखे पेट की कसक को अपनी संपूर्ण क्षमता से उजागर करता है। साथ ही सत्य की रक्षा करता है। आंचलिक पत्रकारों का जीवन बेहद कठिन होने के बावजूद अपने पथ से कभी डिगता नहीं। ग्रापए ने ग्रामीण पत्रकारों के उत्थान के लिए ढेरों सराहनीय कार्य किए हैं। साथ ही कर्मपथ पर आगे बढ़ने के लिए बड़ा संबल भी दिया है। मौजूदा दौर में ग्रामीण पत्रकारों के समक्ष चुनौतिया बढ़ती जा रही हैं, जिसका पुरजोर मुकाबला करने के लिए संगठन को और अधिक मजबूत बनाने के लिए सक्रिय व सकारात्मक भूमिका निभाने की तैयारी करनी होगी।
इस मौके पर ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के जिला अध्यक्ष और मंडल अध्यक्षों ने आदि ने भी विचार व्यक्त किए। कार्यसमित की बैठक में प्रदेश भर से आए प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इससे पहले ग्रापए के पदाधिकारियों ने बाबू स्व.बालेश्वर लाल जी के चित्र पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस मौके पर कई अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से नवाजे गए वरिष्ठ पत्रकार विजय विनीत की पुस्तक बनारस लाकडाउन का लोकार्पण प्रदेश अध्यक्ष सौरभ कुमार ने किया।
इस अवसर पर विजय विनीत-वाराणसी, विपिन शाही-गोरखपुर, सी बी तिवारी-वाराणसी, प्रफुल्ल चंद्र त्रिपाठी-चित्रकूट, आलोक तनेजा-सहारनपुर, राजीव शर्मा-शाहजहांपुर, भानु प्रकाश वर्मा-बिजनौर, के वी सिंह-रायबरेली, अभिनंदन जैन-झांसी, अयोध्या प्रसाद केसरवान-प्रयागराज, उमाशंकर चौधरी-बलिया, डॉ विनय सिंह-बलिया, छोटेलाल चौधरी-बलिया, अतुल कपूर-हरदोई एवं डॉ लेनिन रघुवंशी, समाजसेवी-वाराणसी, आचार्य पं.सुनील पांडेय-बलिया, ज्योतिषाचार्य डा.ललित किशोर लाल श्रीवास्तव-बलिया, एसपी मिश्रा-देवीपाटन एवं जयप्रकाश राव-गोरखपुर को काशी शब्द सम्मान से नवाजा गया।