मार्च-18 को विश्व असमानता लैब ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसके अनुसार 2022-23 में 1 फीसदी सबसे अमीर भारतीयों की कुल आय और संपत्ति अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है।
भारत के इन 1 फीसदी अमीरों के पास देश की कुल संपत्ति का 40.1 फीसदी हिस्सा है जबकि भारत की गरीब 50 फीसदी आबादी के पास राष्ट्रीय संपत्ति का कुल 15 फीसदी हिस्सा है। यह आंकड़े बताते हैं कि भारत में आर्थिक असमानता लगातार तेजी से बढ़ रही है।
वर्ल्ड इनइक्वालिटी लैब ने ‘भारत में आमदनी और संपदा में असमानता, 1922–2023 : अरबपति राज्य का उदय’ शीर्षक से एक रिपोर्ट पब्लिश की है। रिपोर्ट में बताया गया है कि वित्त वर्ष 2022-23 में भारत में असमानता ब्रिटिश राज से भी ज्यादा देखने को मिली है।
इस रिपोर्ट को अर्थशास्त्री नितिन कुमार भारती, लुकास चांसेल, थॉमस पिकेटी एवं अनमोल सोमांची द्वारा तैयार किया गया है।
आजादी के समय 10 फीसदी सबसे अमीर लोगों का देश की आय में हिस्सा 40 फीसदी था जो 1982 में घटकर 30 फीसदी पर आ गया वहीं 2022 में यह हिस्सा बढ़कर 60 फीसदी तक जा पहुंच गया है।
रिपोर्ट के अनुसार आज़ादी के बाद 1980 के दशक की शुरुआत तक अमीर व गरीबों के बीच आय व धन के अंतर में गिरावट देखी गई थी। साल 2000 के दशक में यह असमानता काफी तेजी से बढ़ी है।
रिपोर्ट के अनुसार 2014-15 से 2022-23 के बीच भारत में आय में असमानता सबसे तेजी से बढ़ी है। इस बढ़ती असमानता की वजह कर से जुड़ी नीतियों, रोजगार के अवसरों की कमी, कृषि सुधार और भूमि सुधार ठीक से लागू न हो पाना, महिलाओं को किसान न मानना, धन का पुनर्वितरण संभव नहीं हो पाना आदि हैं।
रिपोर्ट में आर्थिक असमानता को कम करने के लिए कुछ सुझाव भी दिए गए हैं।
सुपर रिच पर सुपर टैक्स
वैश्विक उदारीकरण की आर्थिक लहर का लाभ उठाने के लिए जरूरी है कि आय और संपत्ति दोनों के अनुसार टैक्स लगाया जाए। वित्त वर्ष 2022-23 के आधार पर 167 सबसे धनी परिवारों की शुद्ध संपत्ति पर यदि दो प्रतिशत टैक्स लगाया जाए तो, देश की कुल आय में 0.5 फीसद की बढ़ोतरी होगी।
यह असमानता को दूर करने में काफी हद तक मदद करेगी इससे निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा। इसके साथ-साथ स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण जैसी चीजों पर सरकारी निवेश को बढ़ावा देने की बात की गई है। जिससे अमीर वर्ग ही नहीं बल्कि औसतन भारतीय की तरक्की भी हो सके।
भारत में टैक्स कोड को रिवाइज करने की जरूरत बताई गई है। पेपर में कहा गया है कि टैक्स कोड के पुनर्गठन की जरूरत है। वैश्वीकरण के दौर में लाभ उठाने के लिए औसत भारतीय ही नहीं केवल कुलीन वर्ग को भी सक्षम बनाने के लिए आय और धन दोनों को ध्यान देने की जरूरत है, जिसके लिए टैक्स कोड को फिर से रिवाइज करने की जरूरत है।
रिपोर्ट में भारत में आर्थिक डेटा के बारे में भी बात की गई है, जिसमें इसकी गुणवत्ता काफ़ी ख़राब बताई गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि हाल ही में इसमें गिरावट देखी गई है। इसलिए यह संभावना है कि ये नए अनुमान वास्तविक असमानता स्तरों की निचली सीमा का प्रतिनिधित्व करते हैं।