Saturday, July 27, 2024
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क्या रिंकू को अपने परिवार का कहना मान लेना चाहिए?

‘ज़िंदगी में कभी-कभी कोई ऐसा मोड़ आता है जब यह समझ में नहीं आता कि किधर जाएँ। और अगर घर के लोग अपने मन-मुताबिक निर्णय लेने के लिए मज़बूर करने लगें तब तो और भी मुश्किल हो जाती है। सारी भावनाएं छिन्न-भिन्न हो जाती हैं। लोगों का अपना मक़सद होता है लेकिन हम जानते हैं […]

‘ज़िंदगी में कभी-कभी कोई ऐसा मोड़ आता है जब यह समझ में नहीं आता कि किधर जाएँ। और अगर घर के लोग अपने मन-मुताबिक निर्णय लेने के लिए मज़बूर करने लगें तब तो और भी मुश्किल हो जाती है। सारी भावनाएं छिन्न-भिन्न हो जाती हैं। लोगों का अपना मक़सद होता है लेकिन हम जानते हैं कि हमारा जीवन उस निर्णय से फिर गलत दिशा में जा सकता है। अगर हम घरवालों का कहना मान लेते हैं तो वही होगा कि एक बार कुएं से निकले और दोबारा खाई में गिर गए।’ अपने बारे में बताते हुये रिंकू के चेहरे पर एक तकलीफ झलकने लगती है।

रिंकू चंदौली जिले की नौगढ़ तहसील के गाँव डुमरिया की रहने वाली है। फिलहाल वह ग्राम्या संस्थान लालतापुर से जुड़ी हुई है। यहाँ वह पढ़ाती है। जब मैंने उससे अपने बारे में बताने को कहा तो उसने कैमरे के सामने आने से साफ मना कर दिया लेकिन बाद में बोली कि आप चाहें तो लिख सकती हैं। यूं उसकी कहानी किसी को भी सामान्य लग सकती है लेकिन असल में सामान्य है नहीं। दूर देहात में एक लड़की का बीए तक पढ़ लेना कम बड़ी बात नहीं है। इसके साथ ही उसमें कुछ कर गुजरने का माद्दा भी है लेकिन अपने पारिवारिक स्थितियों के चलते वह दुष्चक्र में फँस गई और अब उससे निकलने की जद्दोजहद कर रही है।

रिंकू की उम्र 26 साल है और दलित अनुसूचित जाति से आती है। उसके परिवार में कुल डेढ़ बीघा जमीन है जिस पर खेती का काम करके शाम के खाने हेतु कुछ हो पाता है।  इसके परिवार में कुल 8 सदस्य हैं। दादा बुन्नू राम अपने समय में आठवीं तक पढ़े-लिखे हैं। उनकी  उम्र 70 वर्ष है। वे आज भी घर के काम में सहयोग करते हैं। गांव में छोटी परचून की दुकान है जिसे दादा ही संभालते हैं और दुकान की कमाई को परिवार के खर्चों में अपना सहयोग देते रहते हैं।

बेहतर भविष्य की उम्मीद में रिंकू

रिंकू के पिता बाबूलाल की उम्र 50 वर्ष है। उन्होंने पांचवीं तक शिक्षा प्राप्त की और परिवार का भरण-पोषण करने के लिए वाराणसी शहर में जाकर ऑटो चलाने का काम करते हैं। रिंकू की माँ सामिला देवी 47 वर्ष की हैं और उनकी कोई स्कूली शिक्षा नहीं है। वे  खेती का काम कराने में सहयोग करती हैं।  घर के काम करके परिवार में बहुत सारी जिम्मेदारियां निभाती हैं। बड़े भाई उदल की उम्र 28 वर्ष है। इनकी शिक्षा बीए है और वह  पूना, महाराष्ट्र जाकर कमाते थे तथा परिवार का आर्थिक सहयोग करते थे। परंतु कोरोना के समय वे गाँव लौट आए और अब घर पर रहकर खेती-किसानी का काम करा रहे हैं। भाभी वर्षा की उम्र 25 वर्ष है और उसने बीए तक शिक्षा पाई है। वह कहीं नौकरी नहीं करती बल्कि एक घर के कामों में ही अपना सहयोग दे रही है। भाई का बेटा उत्कर्ष 8 महीने का है।  घर का सबसे छोटा बच्चा होने के कारण सभी का लाड़ला है और सभी लोग उसकी देखभाल करते हैं। रिंकू का सबसे छोटा भाई इंदल 22 वर्ष का है। उसने बारहवीं शिक्षा पाई। अभी तक उसकी शादी नहीं हुई है और वह पिता के साथ वाराणसी में  रहकर ऑटो चलाता है।

रिंकू की शादी नौगढ़ के सैदूपुर गाँव में तय की गई। लड़का आठवीं पास था जबकि रिंकू बीए थी। साथ ही सैदूपुर जंगल के बीच में था जहां किसी भी तरह की कोई सहूलियत नहीं थी। इस बात का रिंकू ने जोरदार विरोध किया। एक तो वह नहीं चाहती थी कि कम पढ़े-लिखे लड़के से उसकी शादी हो दूसरे उसे अपने जीवन में कुछ करने और बनने की चाह थी। सब तरफ से कटकर वह केवल चूल्हे-चौके में अपने को समेटने के पक्ष में नहीं थी। अंततः उसके घर के लोग उसके विरोध के आगे झुक गए और वहाँ उसकी शादी नहीं हुयी।

बाद में उसकी शादी गहिला गांव में तय हुई और रिंकू की 2017 में शादी कर दी गई। ससुराल में पति, जेठ, देवर और जेठानी थे। पति एकल विद्यालय में टीचर था। शादी के बाद  ससुराल में रहने के दौरान रिंकू को वहाँ कुछ अजीब लगता था। चारों ओर जैसे मनहूसियत छाई रहती। कुछ ही दिनों बाद उसके जेठ की तबीयत खराब रहने लगी। डॉक्टरी जांच में पता चला उसकी दोनों किडनी ख़राब हो गई हैं। इलाज चला लेकिन जल्दी ही उसकी मृत्यु हो गई।

ग्राम्या संस्थान, लालतापुर में बच्चों को पढ़ाती रिंकू

लेकिन मुसीबतें अभी और भी आनी थीं। जेठ की मृत्यु को 6 महीने ही बीते थे कि रिंकू के पति की भी तबीयत खराब होने लगी। जांच के बाद पता चला कि उसकी भी दोनों किडनी ख़राब हो गई हैं। अपने समझ से इलाज कराया गया लेकिन डेढ़  साल बाद इलाज के दौरान  पति की भी मृत्यु हो गई। रिंकू इस शादी के के भी पक्ष में नहीं थी। गहिला भी बहुत पिछड़ा हुआ जंगल में स्थित गाँव है जहां अनेक तरह की असुविधाएं हैं। अपने माँ-बाप से उसने  कहा था कि जंगल में शादी न करें लेकिन परिवार ने दबाव बनाकर जबरन उसकी शादी कर दी। रिंकू के ससुर के पास दो बीघा ज़मीन थी और उसके पिता को लगता था कि इससे उसका जीवन निर्वाह हो जाएगा। बाकी चीजें तो समय के साथ-साथ बदल ही जाती हैं।

शादी के दो साल के बाद ही पति की मृत्यु से रिंकू का सजा-संवरा परिवार टूट गया और उसके सारे सपने बिखर गए। एक तरह से उसके ऊपर वज्रपात हुआ था। उसे उम्मीद न थी कि इतनी जल्दी यह सब कुछ हो जाएगा। लेकिन अब कोई चारा नहीं था। वह अपने पिता के घर वापस लौट आई और जीने के लिए नए सिरे से जद्दोजहद करने लगी। उसने अपनी आंखों से आंसू पोछे और नए हालात के लिए अपने को तैयार करने लगी।

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उन्हीं दिनों उसकी मुलाक़ात ग्राम्या संस्थान की सामाजिक कार्यकर्ता बिंदू सिंह से हुई। बिंदू सिंह नौगढ़ इलाके के सभी गांवों में जानी जाती हैं। रिंकू के बारे में जानने पर उन्होंने उसे ढांढ़स बँधाया और जीने के लिए एक नई हिम्मत दी। उन्होंने कहा कि पति की मौत में तुम्हारा क्या क़ुसूर है जो अपने को खत्म करने पर तुली हो। उन्होंने उसे बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू करने को कहा। इसके बाद उसने 2021 में उषा सिलाई सेंटर, बनवासी सेवा आश्रम और ग्राम्या संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में नौ दिवसीय सिलाई प्रशिक्षण लिया और एक सफल सिलाई टीचर के रूप में भी काम करना शुरू कर दिया।

रिंकू आज बच्चों के पढ़ाने के साथ-साथ सुबह-शाम सिलाई करके 4000 से 5000 रुपए प्रति माह कमा लेती है। वह लड़कियों और महिलाओं को सिलाई सिखाती भी है। आज सामाजिक सेवा के साथ गांव में सिलाई टीचर के रूप में उसकी स्वतंत्र पहचान है। रिंकू बताती है ‘कि मुझे लड़कियों और महिलाओं को सिखा कर उन्हें स्वालंबन की शिक्षा देकर काफी खुशी  मिलती है। मैं चाहती हूँ कि महिलाएं और लड़कियां स्वयं अपने पैरों पर खड़ी हो करके बेहतर जीवन जी सकें। इसी उद्देश्य के साथ ज्यादातर लड़कियों और महिलाओं को सिलाई सिखाने का काम कर रही हूँ। अब मुझे लग रहा है कि मेरे जीवन में बहुत सारी खुशियां आने वाली हैं। इस खुशी का श्रेय मैं ग्राम्या,ऊषा सिलाई सेंटर, लखनऊ तथा बनवासी सेवा आश्रम को देती हूँ।’

गाँव की महिलाएं रिंकू से सिलाई की बारीकी सीखते हुए

लेकिन रिंकू की कहानी का यह अंत नहीं है। अब उसके परिवार वालों ने पुनः उसकी शादी के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है। बेशक शादी कोई बुरी बात नहीं है। रिंकू खुद चाहती है कि वह शादी करे लेकिन जब पिता और दादा ने उसके सामने यह प्रस्ताव रखा तो उसके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई।

उसके घर वाले चाहते हैं कि वह अपने देवर से शादी कर ले और पुनः गहिला जाकर रहे। लेकिन पिछले कई साल तक रिंकू ने परिवार और ससुराल के नाम पर जो यातना झेली है उसे सोचकर वह कांप उठती है। वह सन्न है लेकिन घरवालों का दबाव बढ़ रहा है। उसके दादा सोचते हैं कि गहिला में जहां रिंकू की शादी हुई थी उस परिवार के पास दो बीघा ज़मीन है। अगर वह अपने देवर से शादी कर लेती है तो वह ज़मीन रिंकू के पास ही रह जाएगी।

घर के दूसरे लोग सोचते हैं कि वहाँ शादी होने से दहेज़ और दूसरे खर्चों की बचत हो जाएगी। ससुराल की ओर से यही प्रस्ताव आया है। रिंकू के घर के लोग ज़मीन के महत्व को इतना ज़्यादा समझ रहे हैं कि उन्हें अपनी ही बेटी की ज़िंदगी महत्वहीन लग रही है। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि ज़मीन के कारण ही रिंकू के परिवारवालों ने दबाव देकर गहिला में उसकी शादी की थी। एक ही परिवार में दोनों भाइयों की किडनियाँ खराब होना और बाद में मौत का शिकार होना काफी अजीब बात मालूम देती है। शायद ससुरालवालों ने यह बात छिपा ली थी। यह भी हो सकता है कि रिंकू के घरवालों ने इस पर ध्यान न दिया हो या संदेह होने अथवा पता चलने पर भी जानबूझकर नज़रअंदाज़ कर दिया हो। जो भी उसमें ज़मीन एक बुनियादी चीज थी और आज भी वह बनी हुई है।

दूसरी ओर रिंकू अब एक आत्मनिर्भर और स्वाभिमानी युवती है। वह फिर से उसी दलदल में नहीं फँसना चाहती। वह जितने दिन अपनी ससुराल में रही उतने दिन में उसने समझ लिया कि वह निहायत पिछड़ा और दयनीय रहन-सहन वाला परिवार था। उसके ससुर और जेठ के अलावा उसका पति भी अक्सर शराब पीता था। उसे संदेह है कि उसका देवर भी शराबी है। लेकिन उसे सबसे बड़ा ताज्जुब है कि उसके जेठ और पति दोनों कैसे किडनी के मरीज हुये और मर गए। उसे लगता है कि यह परेशानी पहले से थी और ससुरालवालों ने उसके घरवालों ने यह बात छिपा ली। या जानकारी हो जाने के बावजूद उसके घर वालों ने कोई ध्यान नहीं दिया। दोनों ही स्थितियों में उसको कुएं में ढकेलना ही हुआ। जो हुआ सो हुआ लेकिन ज़मीन की लालच में एकबार फिर उसी परिवार में एक शराबी और भविष्यहीन लड़के से वह शादी क्यों करे।

रिंकू की कहानी दोराहे पर खड़ी है। एक तरफ घर वालों का अपने देवर से शादी कर लेने का दबाव है। दूसरी तरफ रिंकू का एक सबल और स्वावलम्बी ज़िंदगी का सपना है जहां वह सुख और सम्मान से जी सके। जहां उसके व्यक्तित्व का विकास हो सके। ज़मीन के एक टुकड़े की लालच की भेंट चढ़कर वह फिर से नारकीय जीवन नहीं जीना चाहती। लेकिन परिवार के लोग न केवल उसे उल्टा-सीधा समझाकर सहमत करने में लगे हैं बल्कि भावनात्मक रूप से भी उसे कमजोर कर रहे हैं।

रिंकू गहरे द्वंद्व में है। उसे समझ में नहीं आ रहा है कि तत्काल क्या निर्णय ले? आप उसको क्या सलाह देंगे?

(कुछ जानकारियों और तस्वीरों  के लिए ग्राम्या संस्थान की बिन्दू सिंह और त्रिभुवन प्रसाद का आभार।)

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1 COMMENT

  1. रिंकू को अपने परिवार के सदस्यों की बात बिल्कुल नहीं माननी चाहिए।

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