Tuesday, October 14, 2025
Tuesday, October 14, 2025




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमTagsBanaras

TAG

banaras

बातों-बातों में यह क्या कह गईं बेबी रानी मौर्य

बेबी रानी मौर्य के बयान ने अपने सरकार पर ही सवाल खड़ा कर दिया है। एक ओर जहां बीजेपी कानून व्यवस्था के बारे में...

संघ की राजनीतिक पिच पर खेल रही कांग्रेस

किसान न्याय रैली में दिखा प्रियंका गांधी का हिंदुत्व प्रेम 'आज नवरात्रि का चौथा दिन है। मैं व्रत हूं तो मैं मां की स्तुति से...

फासिस्ट सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए छालों की परवाह नहीं

दोलन कई सरकारी षडयंत्रों का निशाना बनाया गया है। लखीमपुर खीरी में निर्दोष किसानों पर गाड़ी चढ़ा दिया गया जिसमें चार किसान शहीद हुये। लेकिन लगता है आंदोलन की आंच अब पूरे देश में फैल रही है। ये लोग जो चंपारण से पदयात्रा करके यहाँ तक आए हैं वे अपने हिस्से का संघर्ष उन तमाम लोगों के बीच ले जाना चाहते हैं जिनके भीतर किसानों के लिए संवेदना है।

 बिरहा ही नहीं, चेतना का व्याकरण बदल देनेवाला बिरहा का आदिविद्रोही

बीसवीं शताब्दी के अंतिम चार दशक बिरहा गायन के स्वर्णकाल के रूप में जाने-जाते हैं जब बनारस और आसपास के जिलों में अनेक उद्भट बिरहिए सक्रिय थे। हीरालाल, बुल्लू यादव, रामदेव, पारस, रामकैलाश, हैदर अली जुगनू के अलावा सैकड़ों गायक इस लोकविधा को ऊंचाई दे रहे थे लेकिन ठीक इसी समय बनारस के एक गाँव से निकलनेवाले नसुड़ी यादव इन सबसे अलग और अद्भुत थे। वे बिरहा में कबीर बनकर उतरे थे और आजीवन अपने तेवर को बनाए रखा। पढ़िये विलक्षण बिरहा गायक नसुड़ी के जीवन-संघर्ष और सामाजिक योगदान के बारे में।

बिरहा के बेजोड़ कवि-गायक लक्ष्मी नारायण यादव

बिरहा लोकगायकी की एक विशिष्ट विधा है। भोजपुरी बोलने वाले इलाक़ों में इसकी लोकप्रियता ज़बरदस्त रही है। कुछ दशक पहले तक बिरहा गायन की...

‘स्वर्णिम युग’ और ‘महानायक’ तलाशती जातियां

बचपन में कहानियों में पढ़ा था कि कबीर के मरने पर हिन्दू और मुसलमानों के बीच उनके धर्म को लेकर झगड़ा हो गया और...

सदियों में पैदा होते हैं हीरालाल          

बहुत दिनों तक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझते हुए अंततः चच्चा चले गए। चच्चा माने भोजपुरी के महान बिरहिया हीरालाल यादव। मुझे उनके नजदीक...

काहे रे नलिनी तू कुम्हिलानी …

दुनिया के सबसे उपेक्षित कवियों में से एक और सबसे ताकतवर और प्रतिभाशाली कवियों में से भी एक रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ की कविताओं में...

बनारस के उजड़ते बुनकरों के सामने आजीविका का संकट गहराता जा रहा है

रेशम की किल्लत और उसको लेकर रोज आनेवाली नई-नई परेशानियों ने धीरे-धीरे बनारसी साड़ी उद्योग की कमर तोड़ दी। फिर शुरू हुई भूखमरी और पलायन की रोंगटे खड़े कर देनेवाली कहानियाँ। बुनकरों की विशाल आबादी छिन्न-भिन्न होने लगी। किसी ने रिक्शे में जीवन की राह तलाशी, कोई मजदूरी करने लगा और कुछ ने आत्महत्या भी कर ली।

ताज़ा ख़बरें

Bollywood Lifestyle and Entertainment