झारखंड में खूंटी संसदीय क्षेत्र के जंगलों-पहाड़ों से घिरे इलाके में दूर-दूर तक आदिवासी परिवार पानी संकट से जूझ रहे हैं। रोजगार का सवाल उन्हें अलग सताता है। कई गांवों से युवा पलायन कर रहे हैं। गर्मी की वजह से पहाड़ी नदियां सूख रही हैं। लोकतत्र के इस महापर्व में इन इलाकों में चुनावी शोर कम है और जिंदगी की जद्दोजहद ज्यादा। पड़ताल करती एक ग्राउंड रिपोर्ट..
झारखंड में लोकसभा की 14 सीटों में से दुमका पर देश भर की निगाहें होती हैं। आदिवासियों के लिए सुरक्षित इस सीट से आंदोलनकारी और झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख शिबू सोरेन का नाम जुड़ा है। दुमका इस बार भी सुर्खियों में है, लेकिन वजह बदली हुई है। और वह है, शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन का जेएमएम छोड़कर बीजेपी में शामिल होना। बीजेपी ने सीता सोरेन को दुमका सीट से उम्मीदवार बनाया है। पढ़ें, इस चुनाव में क्या है दुमका का ताना-बाना...
आदिवासी ही हैं, जिनकी वजह से बचे हुए जंगल सुरक्षित हैं। जंगलों की अवैध होती कटाई को रोकने के लिए सिमडेगा जिले के गांवों में आदिवासी महिलाएं समूह बनाकर गश्त लगाती हैं।
झारखंड के अलग-अलग इलाकों के जंगलों-पहाड़ों से घिरे-सटे और तलहटी वाले गांवों में हाथी- मानव संघर्ष का अंतहीन सिलसिला जारी है। इसमें जान-माल की लगातार क्षति हो रही है। घरों को ढाह दिये जाने और अनाज खा जाने से संकट की तस्वीर पीड़ादायक होती है। हाथियों के हमले में मारे जाने वाले लोगों में अधिकतर आदिवासी, साधारण किसान, महिला और मजदूर होते हैं। सैकड़ों गांव भय के साये में रहते हैं, लेकिन अफसोस की बात है कि चुनावों में यह मुद्दा नहीं होता। पड़ताल करती एक ग्राउंड रिपोर्ट..
लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी झारखंड में सभी 14 सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए जोर लगा रही है लेकिन आदिवासी सीटों पर क्या भाजपा जीत दर्ज करने में सफल हो सकती है?
हजारीबाग जिले का सबसे बड़ा अनाज उत्पादन करने वाला प्रखंड, बड़कागांव अब अपनी पहचान खो चुका है। काले कोयले की काली नजर बड़कागांव को लग चुकी है। एनटीपीसी के कोयला खदान लगने के बाद गाँव की खेती और किसान दोनों संकट का सामना कर रहे हैं।
उलगुलान के महानायक बिरसा मुंडा करोड़ों आदिवासियों के लिए गौरव और गुमान के प्रतीक हैं। साथ ही उनका बलिदान आदिवासियों के सपनों की बुनियाद के साथ सियासत की धुरी भी है। लेकिन बिरसा की धरती पर ही उनके अनुयायी ‘बिरसाइत’ परिवारों की जिंदगी मुश्किलों में गुजर रही। विकास का पहिया इनके गांवों में पहुंचने से पहले क्यों ठहर जाता है, पड़ताल करती एक रिपोर्ट..
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के कार्यकाल में जिस 'मुख्यमंत्री ग्राम गाड़ी योजना' की परिकल्पना की गयी थी,वर्तमान मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने उसकी शुरुआत कर दी। हालाँकि मुख्यमंत्री ने अपने भाषण में हेमंत सोरेन को ही इसका क्रेडिट दिया।
झारखण्ड में आजकल पीएम आवास से ज्यादा चर्चा अबुआ आवास योजना की हो रही है। हेमंत सोरेन की गिरफ़्तारी और इस्तीफे के बाद 31 जनवरी से नये मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन अबुआ आवास योजना को तेजी से आगे बढ़ाने में जुटे हैं। राज्य सरकार की अबुआ आवास योजना क्या है और यह योजना गरीबों को क्यों प्रभावित कर रही है, पढ़िए नीरज सिन्हा की ग्राउंड रिपोर्ट
खरसावां(झारखंड)। झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एक जनवरी 1948 के दिन खरसावां में मारे गए आदिवासियों को श्रद्धांजलि देने के बाद सोमवार को खरसाँवा...
भारत के कुछ राज्यों, खासकर झारखंड और उड़ीसा में स्त्रियों के विरुद्ध अपराधों में डायन कहकर उनको प्रताड़ित करना और उनकी हत्या तक कर देना एक भयावह स्तर तक बढ़ा है। गरीब, पिछड़ी और दलित स्त्रियों के पास यदि थोड़ी भी जमीन और संपत्ति है और वे विधवा हैं या अकेली हैं तो अक्सर उन पर डायन-बिसाही का आरोप लगाकर प्रताड़ित किया जाता है। उनके खिलाफ इतना गहरा षड्यंत्र किया जाता है कि उन्हें आसानी से भीड़ द्वारा मार डाला जाता है। झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे राज्यों में स्त्रियों को डायन साबित करने की घटना बहुत आम बात है। ग्रामीण क्षेत्रों में अंधविश्वास इस कदर हावी है कि लोग क्रूरता की सारी हदें पार करते हुए डायन-बिसाही होने का आरोप लगाकर नृशंस तरीके से हत्या करने से बाज नहीं आ रहे हैं। पिछले पैंतीस वर्षों का आंकड़ा देखें तो इसने एक कुप्रथा का रूप ले लिया है। तकरीबन पचास हज़ार से भी अधिक महिलाएं डायन होने के आरोप में प्रताड़ित की गई हैं। उन्हें गाँव से भगा दिया गया अथवा सामाजिक बहिष्कार का शिकार होकर वे नारकीय जीवन जी रही हैं। आठ हज़ार से अधिक महिलाओं की हत्याएं डायन होने के आरोप में कर दी गई हैं।